पद्यम (बाजी) करार (Wagering agreement)

बाजी करार (Wagering agreement)- तत्व एवं प्रभाव

बाजी करार (पद्यम करार)

बाजी लगाने के तौर पर करार शून्य है और किसी ऐसी चीज के वसूली के लिये कोई वाय न लाया जा सकेगा जो पद्यम के तौर जीती गई कही जाती है या किसी व्यक्ति को किसी खेल या अन्य अनिश्चित घटना के जिसके बारे में कोई बाजी लगाई गई हो परिणाम के अनुसार व्यनित की जाने की व्यस्त की गई हैं। इस प्रकार भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 30 बाजी लगाने की संविदा को परिभाषित न करके उसके परिणाम की व्याख्या करती है।

बाजी करार की परिभाषा न्यायाधीश हाकिन्स ने कार्लिल बनाम कारबोलिक स्मोक वाल कम्पनी के वाद में दी है। इसके अनुसार बाजी संविदा वह है जिसमें दो पक्षकार भविष्य की किसी अनिश्चित घटना के सम्बन्ध में विपरीत मत रखते हुए यह करार करते हैं कि उस घटना के निश्चय या निर्धारण पर एक पक्षकार की दूसरे पर जीत होगी और दूसरा पक्षकार पहले पक्षकार को धन या कोई अन्य वस्तु देगा। दोनों पक्षकारों में से किसी का भी उस घटना के होने अथवा न होने में उक्त धन या वस्तु के हटाने या जीतने के अतिरिक्त अन्य कोई स्वार्थ या हित नहीं होता है और न कोई अन्य प्रतिफल ही दिया जाता है। बाजी संविदा के लिए यह आवश्यक है कि इसके प्रत्येक पक्षकार को हारने या जीतने की सम्भावना हो। किसी पक्षकार का हारना या जीतना घटना के परिणाम पर निर्भर रहना चाहिए। किसी पक्षकार का हारना या जीतना तब तक अनिश्चित रहता है जब तक कि घटना का परिणाम न ज्ञात हो जाय। यदि कोई पक्षकार जीत सकता है परन्तु हार नहीं सकता अथवा हार सकता है परन्तु जीत नहीं सकता तो यह बाजी संविदा नहीं है।

बाजी करार के आवश्यक तत्व

बाजी (पद्यम) करार के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-

  1. किसी अनिश्चित घटना के सम्बन्ध में करार के दोनों पक्षकार का विपरीत मत

    बाजी करार में यह जरुरी होता है कि करार के दोनों पक्षकार का किसी अनिश्चित घटना के बारे में विपरीत मत हो कार्लिल बनाम कारबोलिक स्मोक बाल कं० के वाद में न्यायाधीश हाकिन्स ने बाजी करार की परिभाषा दी है। उसके अनुसार दोनों पक्षकारों को भविष्य की किसी अनिश्चित घटना के विषय में विपरीत मत रखना चाहिए। एन्सन ने इसके विपरीत मत व्यक्त किया है। एन्सन के अनुसार घटना भूतपूर्व, वर्तमान अथवा भविष्यकालीन कोई भी हो सकती है, केवल शर्त यह है कि पक्षकारों को घटना के परिणाम के बारे में ज्ञात न हो। इस प्रकार यदि कोई चुनाव हो चुका है परन्तु करार के पक्षकारों को इसके परिणाम के बारे में जानकारी नहीं है तो दोनों इसके परिणाम के बारे में शर्त लगा सकते है।

  2. करार के प्रत्येक पक्षकार की जीतने या हारने की सम्भावना

    बाजी करार में यह भी आवश्यक होता है कि करार के दोनों पक्षकारों को, घटना के निर्धारण या निश्चय होने पर, जीतने या हारने की सम्भावना होनी चाहिए। यदि करार का कोई पक्षकार जीत सकता है परन्तु हार नहीं सकता या हार सकता है परन्तु जीत नहीं सकता तो यह बाजी करार नहीं हो सकता है। पक्षकारों का हारना या जीतना घटना के परिणाम पर निर्भर होना चाहिए। पक्षकारों का हारना या जीतना तब तक अनिश्चित होता है जब तक कि घटना का परिणाम न ज्ञात हो जाय। इस प्रकार यदि घटना के निर्धारण पर या निश्चित होने पर दोनों पक्षकारों की हारने या जीतने की सम्भावना नहीं है तो करार बाजी करार नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, बाबा साहेब बनाम राजाराम के वाद में दो कुश्ती लड़ने वाले पहलवानों के मध्य करार हुआ कि कुश्ती के दिन जो उनमें से नहीं आयेगा उसको दूसरे पक्षकार को 500 रु. हर्जाने के रूप में देना होगा। कुश्ती होने पर जीतने वाले को टिकट बेचने से प्राप्त राशि में से 1,125 रु. दिये जायेंगे। कुश्ती के दिन एक पहलवान नहीं आया और इसलिए दूसरे पहलवान ने 500 रुः प्राप्त करने के लिए वाद चलाया। न्यायालय ने करार को बाजी करार नहीं माना क्योंकि जीतने वाले पहलवान को टिकटों के विक्रय से प्राप्त रकम में से 1,125 रु. दिया जाना था और हारने पर उसे अपने पाकेट से कुछ भी नहीं देना था और इस प्रकार प्रत्येक पक्षकार को जीतने की सम्भावना थी, परन्तु हारने की कोई सम्भावना नहीं थी।

  3. पक्षकारों की घटना में दांव या शर्त के अतिरिक्त अन्य कोई हित या स्वार्थ हो

    बाजी का एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह हैकि सभी पक्षकारों में से किसी का भी उस घटना के होने अथवा न होने में जीतने या हारने वाले धन या वस्तु के अतिरिक्त कोई अन्य हित या स्वार्थ नहीं होना चाहिए और न ही इस करार के लिए कोई अन्य प्रतिफल दिया गया होना चाहिये। यह तथ्य बाजी संविदा और बीमा संविदा में भेद उत्पन्न करता है। बाजी संविदा में पक्षकार की रुचि या हित केवल दाव या शर्त की धन या वस्तु पाने में होता है परन्तु बीमा संविदा में पक्षकार का हित जिस वस्तु या व्यक्ति का बीमा कराया गया है उसकी सुरक्षा में होता है। बीमा-संविदा तभी विधिमान्य होती है जबकि बीमा कराने वाले का बीमा करायी गयी वस्तु या बीमा कराये गये व्यक्ति में उसमें बीमा योग्य हित हो। बीमा योग्य हित से तात्पर्य है कि उसका हित बीमा करायी गयी वस्तु या बीमा कराये गये व्यक्ति की सुरक्षा में होना चाहिए।

जब करार के पक्षकार भविष्य में किसी विशेष तिथि पर किसी वस्तु के बाजार मूल्य और संविदा मूल्य के अन्तर को ले देकर निपटारा करने का करार करते हैं तो ऐसे करार को सट्टेबाजी का करार कहा जायेगा। यह भी एक प्रकार का बाजी करार है। इस प्रकार यदि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को एक विशिष्ट तिथि पर एक विशिष्ट मूल्य पर कोई माल देने का करार करता है परन्तु दोनों ही पक्षकार का आशय उक्त माल को देना या लेना नहीं हैं बल्कि उस तिथि पर माल के बाजार मूल्य और संविदा मूल्य के अन्तर को ले देकर निपटारा करना है तो यह सट्टेबाजी का करार होगा और 30 के अन्तर्गत शून्य होगा।

बाजी करार (पद्यम तौर के करार) का परिणाम

  1. करार –

    धारा 30 के अनुसार बाजी करार शून्य है और इसलिए न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता है। इस प्रकार बाजी द्वारा जीती गयी रकम या वस्तु वसूल नहीं की जा सकती है। यदि बाजी करार के आधार पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का ऋणी हो जाता है और इस ऋण के भुगतान हेतु दूसरे व्यक्ति के पक्ष में एक वचनपत्र लिखता है, तो यह वचनपत्र शून्य होगा और प्रवर्तनीय होगा। यदि उक्त ऋण के भुगतान के लिए उन दोनों के मध्य करार होता है तो करार जिसका प्रतिफल बाजी द्वारा जीती गयी रकम या वस्तु है, शून्य होगा।

यदि दो व्यक्ति बाजी-करार करते हैं और दोनों बाजी की रकम एक अन्य व्यक्ति के पास जमा कर देते हैं और शर्त यह है कि बाजी जीतने वाले को जमा की गयी सम्पर्ण राशि दे दी जायेगी और ऐसी स्थिति में एक पक्षकार बाजी जीत जाता है तो वह जीती रकम पाने का हकदार नहीं होगा और रकम जमा करने वाला व्यक्ति अपनी रकम उस व्यक्ति से जिसके पास जमा किया है तब तक वापस ले सकता है जब तक कि वह व्यक्ति उक्त रकम बाजी जीतने वाले को दे न दी हो। यदि वह व्यक्ति जिसके पास बाजी की रकम जमा की गयी है, बाजी जीतने वाले को रकम दे दिया है तो रकम जमा करने वाला व्यक्ति जमा की गयी रकम वापस नहीं ले सकता है।

  1. बाजी करार (पद्यम तौर के करार) से सम्बन्धित सांपाश्विक करार –

    अधिनियम की धारा 30 में यह वर्णित है कि बाजी-करार शून्य होता है परन्तु पहले के बाम्बे राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में विधि द्वारा वर्जित न होने के कारण अवैध नहीं हैं। परिणामस्वरूप पहले के बंबई राज्य को छोडकर शेष भारत में बाजी करार से सम्बन्धित सांपार्शिक करार प्रवर्तनीय होता है। उदाहरण के लिए शिवोमल ब० लक्ष्मणदास के वाद में एक अभिकर्ता ने अपने मालिक के लिए किये गये बाजी करार के अन्तर्गत होने वाली हानि का भुगतान कर दिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि वह इस प्रकार किये गये भुगतान की रकम अपने मालिक से वसूल कर सकता है।

धारा 30 के अन्तर्गत अपवाद

अधिनियम की धारा 30 में इसके अपवाद भी दिये गये हैं। यह धारा ऐसे चन्दे या अंशदान को या चन्दा देने या अंशदान देने के करार को, जो कि घुड़दौड़ के विजेता को 500 रु. या इससे अधिक की कीमत वाली किसी प्लेट पुरस्कार या धनराशि को देने के लिए किया गया है, शून्य घोषित नहीं करती है। अर्थात् ऐसा करार धारा 30 के अन्तर्गत शून्य नहीं होगा। यह धारा घुड़दौड़ से सम्बन्धित किसी संव्यवहार को, जिसके सम्बन्ध में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 294 क लागू होती है, वैध नहीं करती है।

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