संविदा में भूल (Mistake)- प्रकार एवं प्रभाव

भूल (Mistake)- प्रकार एवं प्रभाव

भूल (Mistake) के प्रकार

अधिनियम की धारा 13, 20, 21 और 22 के आधार पर भूल का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जा सकता है-

(a) सम्मति के अभाव के कारण (धारा 13)

  • पक्षकारों को पहचानने में भूल,
  • विषय-वस्तु पहचानने में भूल,
  • संव्यवहार की प्रकृति के बारे में भूल,

(b) अज्ञानता व मिथ्या धारणा के कारण (धारा 20,21 और 22)

  • पारस्परिक भूल (धारा 20 और 21)
  • तथ्य की भूल (धारा 20)
  • विधि की भूल (धारा 21)

(c) एक पक्षीय भूल (धारा 22 )

(A) सम्मति के अभाव के कारण (धारा 13)

इसमें निम्नलिखित भूलें आती हैं-

  1. पक्षकारों को पहचानने में भूल –

    यह भूल सामान्यतया तब होती है जब संविदा का एक पक्षकार स्वयं को कोई दूसरा व्यक्ति बताकर संविदा करता है अर्थात् दूसरा पक्षकार जिस व्यक्ति को समझ कर संविदा करता है वह व्यक्ति वह पक्षकार नहीं होता।

इस सम्बन्ध में इन्जाम v. लिटिल का वाद इसका उपयुक्त उदाहरण है-एक कार की तीन बहनें मालिक थी। वे कार बेचना चाहती थीं। एक व्यक्ति उनके घर आया और ऊँची कीमत पर कार खरीदने को तैयार हो गया परन्तु कार के मूल्य का भुगतान चेक द्वारा करना चाहता था। औरतों द्वारा चेक द्वारा भुगतान अस्वीकार करने पर उसने अपना नाम हचिन्सन नामक उद्योगपति बताया। पता और टेलीफोन नम्बर बताया। एक बहन ने चुपके से डाकखाने जाकर पते और टेलीफोन नम्बर का पता लगाया जो सही था। इसलिए कार उन्होंने दे दिया परन्तु चेक झूठा साबित हुआ। क्रेता ने इसी बीच वह कार प्रतिवादी को बेच दी। औरतों ने प्रतिवादी के विरुद्ध वाद किया।

निर्णीत हुआ कि वे कार प्रतिवादी से वापस पा सकती थीं क्योंकि वे जिस व्यक्ति से संविदा करना चाहती थीं वह व्यक्ति एक उद्योगपति था बहरूपिया नहीं।

  1. विषय-वस्तु की पहचान के बारे में भूल –

    जब पक्षकार विषय-वस्तु की पहचान से सम्बन्धित भूल के कारण संविदा करते हैं तो संविदा शून्य होती है। यह निम्नलिखित रूप में हो सकती है।

  • किसी ऐसे माल के बारे में संविदा जो संविदा के समय नष्ट हो चुका है;
  • विषय-वस्तु के हक या अधिकार के बारे में भूल करना
  • जब किसी तथ्य के बारे में भूल के कारण दोनों पक्षकारों के मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न विषय वस्तु हो ।
  • विषय-वस्तु के सार या गुणों के बारे में भूल ।
  1. संव्यवहार की प्रकृति के बारे में भूल-

    संव्यवहार की प्रकृति के बारे में भूल से की गयी संविदा शून्य होती है।

इस सम्बन्ध में पटना उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत राजा सिंह v. घेधू सिंह एक उपयुक्त उदाहरण है-वादी जो बहुत बूढ़ा था उसने प्रतिवादी को अपनी खेती से सम्बन्धित मुकदमों की पैरवी करने के लिए नियुक्त किया। प्रतिवादी ने वादी से जमीन के पट्टे के कारण बताकर जमीन के दानपत्र पर दस्तखत करवा लिया। निर्णीत हुआ कि दानपत्र शून्य था ।

(B) अज्ञानता व मिथ्या धारणा के बारे में भूल (धारा 20, 21, और 22)

दोनों पक्षकारों द्वारा भूल (धारा 20)- दोनों पक्षकारों द्वारा भूल के बारे में धारा निम्नलिखित उपबन्ध करती है-

जहां कि किसी करार के दोनों पक्षकार ऐसी तथ्य की बात के बारे में, जो करार के लिए मर्मभूत है, भूल में हो, वहां करार शून्य है।

स्पष्टीकरण- जो चीज करार की विषय वस्तु हो उसके मूल्य के बारे में गलत राय, तथ्य की बात के बारे में भूल नहीं समझी जायेगी।

आवश्यक शर्तें

 धारा 20 के लागू होने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूर्ण होना आवश्यक है-

  • भूल दोनों पक्षकारों द्वारा की गयी हो;
  • भूल किसी तथ्य के बारे में हो और
  • ऐसा तथ्य करार के लिए मर्मभूत या महत्वपूर्ण हो ।
  1. भूल दोनों पक्षकारों की हो

    धारा 20 वहीं लागू होगी अर्थात् संविदा वहाँ शून्य होगी जहाँ भूल दोनों पक्षकारों ने की हो जैसा कि धारा 20 का संलग्न दृष्टान्त (क) स्थिति को स्पष्ट करता है-

“क” माल के एक विनिर्दिष्ट स्थोरा को, जिसके बारे में यह अनुमान है कि वह इंग्लैण्ड से मुम्बई को चल चुका है, ख को बेचने का करार क करता है। पता चलता है कि सौदे के दिन से पूर्व, उस स्थोरा को प्रवहण करने वाला पोत संत्यक्त कर दिया गया था और माल नष्ट हो गया था। दोनों में से किसी भी पक्षकार को इन तथ्यों की जानकारी नहीं थी। करार शून्य है।

दो तरफा भूल के बारे में नरसिंह दास कोठारी v. छट्टू लाल मिसिर का वाद इसका उपयुक्त उदाहरण है-एक सम्पत्ति के विक्रय का करार हुआ था परन्तु इस तथ्य के बारे में किसी पक्षकार को यह जानकारी नहीं थी कि विक्रय के पहले कलकत्ता विकास न्यास अधिकरण को इसकी सूचना देना आवश्यक था।

निर्णीत हुआ कि करार धारा 20 के अधीन शून्य था क्योंकि भूल दोनों पक्षकारों ने की थी।

कोई संविदा वहाँ न तो शून्य होगी और न ही शून्यकरणीय जहाँ भूल किसी एक पक्षकार ने की हो जैसा कि धारा 22 उपबन्ध करती है कि “कोई संविदा इस कारण ही शून्यकरणी नहीं है कि उसके पक्षकारों में से एक के किसी तथ्य की बात के बारे में भूल में होने से वह कारित हुई थी।

  1. भूल तथ्य के बारे में हो विधि के बारे में नहीं

    धारा 20 वहीं लागू होती हैं जहाँ भूल संविदा के तथ्य के बारे में की गयी हो।

“ग” ख के जीवनपर्यन्त के लिए एक सम्पदा का हकदार होते हुए क उसे ग को बेचने का करार करता है। करार के समय ख मर चुका था किन्तु दोनों पक्षकार इस तथ्य से अनभिज्ञ थे। करार शून्य है।

परन्तु वहाँ संविदा अप्रभावित रहेगी अर्थात् संविदा शून्यकरणीय नहीं होगी जहाँ भूल तथ्य के बारे में न होकर विधि के बारे में की हो भले ही भूल करार के दोनों पक्षकारों ने की हो। जैसा कि धारा 21 का संलग्न दृष्टान्त उपबन्ध करता है कि ‘क’ और ‘ख’ इस गलत विश्वास पर संविदा करते हैं कि एक विशिष्ट ऋण भारतीय परिसीमा अधिनिमय द्वारा वर्जित है, संविदा शून्यकरणीय नहीं है। परन्तु उस विधि की भूल को तथ्य की भूल ही माना जायेगा जो विधि की भूल उस विधि के बारे में हो जो भारत में लागू नहीं है।

  1. तथ्य करार के लिए महत्वपूर्ण हो

    धारा 20 वही लागू होगी जहाँ भूल किसी ऐसे तथ्य के बारे में की गयी हो जो करार के लिए महत्वपूर्ण हो। इस स्थिति को धारा 20 का दृष्टान्त (ख) भलीभाँति स्पष्ट करता है।

ख से अमुक घोड़ा खरीदने का करार क करता है। यह पता चलता है कि वह घोड़ा सौदे के समय मर चुका था, यद्यपि दोनों में से किसी भी पक्षकार को इस तथ्य की जानकारी नहीं थी करार शून्य है।

उपर्युक्त दृष्टान्त में करार के लिए घोड़ा ही महत्वपूर्ण है क्योंकि घोड़ा ही करार की विषय वस्तु थी और करार के समय घोड़ा ही मर चुका था इसलिए करार शून्य ही होगा।

गलत राय तथ्य की भूल नहीं (धारा 20 का स्पष्टीकरण)

धारा 20 का स्पष्टीकरण यह प्रविधान करता है कि जो चीज करार की विषय-वस्तु हो उसके मूल्य के बारे में गलत राय, तथ्य की बात के बारे में भूल नहीं समझी जायेगी।” उदाहरणार्थ ‘अ’ अपना घोड़ा 5000 रुपये में ‘ब’ को बेचने का प्रस्ताव करता है ‘ब’ घोड़े का मूल्य 500 रुपये समझकर प्रस्ताव की स्वीकृति देता है। यहाँ ‘ब’ द्वारा घोड़े के मूल्य के बारे में की गयी गलत भूल, भूल नहीं मानी जा सकती।

भूल का संविदा की वैधता पर प्रभाव

अधिनियम की धारा 20 के अनुसार, पीड़ित पक्षकार के निम्नलिखित अधिकार हैं-

  1. संविदा रद्द करना

    यदि भूल दोनों पक्षकारों की ओर से हुई है और संविदा के किसी आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में है, तो इस आधार पर करार शून्य होता है और कोई भी पक्षकार किसी भी दूसरे पक्षकार से वचन के निष्पादन की माँग नहीं कर सकता ।

  2. धन वापस लेना

    इसके अतिरिक्त यदि किसी पक्षकार ने दूसरे पक्षकार को ऐसी संविदा के अधीन कोई वस्तु या धन दिया है तो वह उससे उसे वापस ले सकता है।

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