(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

निर्देशन के उद्देश्य

निर्देशन के उद्देश्य 

निर्देशन एक प्रकार से स्वयं के उद्देश्य के लिए क्रिया माना जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति को इस प्रकार सहायता प्रदान की जाती है कि जिससे वह अपनी अनेक प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु स्वयं निर्णय ले सके तथा स्वयं के जीवन से सम्बन्धित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें।

चाश्रोम के अनुसार- ”निर्देशन का उद्देश्य उन सजीव तथा क्रियात्मक निहित शक्तियों का विकास करना है जिनकी सहायता से वह अपने जीवन की समस्याओं को सुगमता एवं सरलतापूर्वक हल करने के योग्य बन जाए।”

निर्देशन की आवश्यकता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होती है। इसी कारण निर्देशन के अनेक उद्देश्य होते हैं। परन्तु फिर भी निर्देशन का एक ही महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है और वह उद्देश्य है जीवन से सम्बन्धित विविध परिस्थितियों के समुचित चयन, विश्लेषण एवं समायोजन हेतु इस प्रकार सहायता प्रदान करना जिससे वह इन समस्याओं का समाधान करने में स्वयं सक्षम हो सके। फिर भी व्यक्ति एवं समाज से सम्बन्धित अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की दृष्टि में रखते हुए, निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये जा सकते हैं-

  1. वैयत्तिक एवं सामाजिक प्रगति से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के योग्य बनाना

    निर्देशन के अन्तर्गत, निर्देशन प्रदान करने वाले व्यक्ति के द्वारा किसी भी व्यक्ति से सम्बन्धित समस्या का समाधान स्वयं नहीं किया जाता है वरन् समस्या सम्बन्धित व्यक्ति को ही योग्य बनाया जाता है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान कर सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए निर्देशन के द्वारा व्यक्ति में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं की जानकारी प्राप्त की जाती है और व्यक्ति को इन विशेषताओं से परिचित कराया जाता है। इस परिचय के आधार पर ही वह अपने विकास की प्रक्रिया, उपलब्ध अवसरों तथा समाज की विभिन्न परिस्थितियों को पहिचानना सीखता है। वह पहिचान ही व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि व्यक्ति अपने विकास पथ पर निरन्तर अग्रसरित होते हुए समाज में समायोजन कर सके तथा समाज की प्रगति हेतु भी अपना योगदान दे सके। अतः संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि निर्देशन का उद्देश्य आत्म-प्रदर्शन हेतु व्यक्ति को सक्षम बनाना है। ‘आत्म दीपो भव’ की शाश्वत विचारधारा को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करके वह व्यक्ति अपना पथ स्वयं ही प्रशस्त करने में सहायता प्रदान करता है। क्रो व क्रो के अनुसार भी निर्देशन लक्ष्य दिशा देना नहीं है, वह अपनी विचारधाराओं को दूसरे पर आरोपित करना नहीं है यह उन निर्णयों को जिन्हें एक व्यक्ति को अपने लिए निश्चित करना चाहिए, निश्चित करना नहीं है, यह दूसरे के दायित्व को अपने ऊपर लेना नहीं है, वरन् निर्देशन तो वह सहायता है जो एक व्यक्ति अन्य व्यक्ति को प्रदान करता है। इस सहायता से वह व्यक्ति अपने जीवन का पथ स्वयं ही प्रशस्त करता है, अपनी विचारधारा का विकास करता है, अपने निर्णय निश्चित करता है तथा अपना दायित्व सम्भालता है।”

  2. वातावरण को समुचित समायोजन हेतु सहायता

    समायोजन का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है। इसके अभाव में किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की प्रगति सम्भव नहीं है। कोई व्यक्ति समाज में समायोजित हो सके, इसके लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को अपनी रूचि, योग्यता एवं अभियोग्यता अनुरूप अवसर प्राप्त हो। वह समाज की आवश्यकता एवं परिस्थितियों को पहिचान सके तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को समायोजित कर सके। वर्तमान समाज की परिवर्तित परिस्थितियों में इस प्रकार के समायोजन की और भी अधिक आवश्यकता है। आज के युग की परिस्थितियाँ अपेक्षाकृत अधिक विषम है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्षरत होकर ही आज प्रगति की जा सकती है। उदाहरण के लिए व्यवसायिक क्षेत्र में उपलब्ध अवसर आज जनसंख्या के अनुपात में कम है। विभिन्न व्यवसायों के लिए जो स्थान विज्ञप्ति किए भी जाते हैं उन पदों पर चयन हेतु अभ्यार्थियों की एक विशाल संख्या आवेदन भेजती है तथा सन्तोषप्रद साक्षात्कार अथवा लिखित परीक्षा देने के उपरान्त भी यह आवश्यक नहीं होता कि योग्य व्यक्तियों का चयन किया ही जायेगा। इस प्रकार की अनिश्यितता अपूर्णता एवं असंगतता की स्थिति में व्यक्ति का निराश एवं हताश होना स्वाभाविक है।

  3. योग्यतानुसार शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों की जानकारी प्रदान करना

    प्रत्येक बालक कुछ विशिष्ट विशेषताओं को लेकर जन्म लेता है तथा जन्म के उपरान्त अपने सामाजिक परिवेश से भी अनेक प्रकार की बौद्धिक, संवेगात्मक एवं गतिशील विशेषताओं को भी अर्जित करता है। व्यक्ति का समस्त व्यक्तित्व इन विशेषताओं का ही परिणाम होता है। व्यक्ति के विकास की गति को तीव्र करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि उसमें निहित विशेषताओं का समुचित अध्ययन किया जाए तथा उसमें निहित योग्यताओं, क्षमताओं, रूचियों, अभिरूचियों एवं अभिवृत्तियों के अनुरूप दिशा में ही उसे प्रेरित किया जाए यह अनुरूपता अथवा अवसर एक योग्यता के मध्य उचित सामंजस्य ही व्यक्ति एवं समाज की प्रगति का आधार होता है। प्रगतिशील देशों की प्रगति का यही प्रमुख रहस्य है। जिस देश में मानवीय प्रतिभा एवं क्षमता का समयानुकूल. एवं पर्याप्त उपयोग करने की दिशा में सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है। वही देश प्रगति की दौड़ में सबसे आगे है।

  4. व्यक्ति में निहित योग्यताओं एवं शक्तियों से परिचित कराना

    वैयक्तिक विभिन्नताओं के सिद्धान्त के आधार पर यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति, किसी न किसी दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न होता है। शारीरिक रचना के आधार पर विभिन्न प्रकार की वैयक्तिक विभिन्नता प्रतिदिन देखते हैं। इसी प्रकार अनेक प्रमाणीकृत मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर यह भी सिद्ध हो चुका है कि मानसिक एवं संवेगात्मक दृष्टि से भी प्रत्येक व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की विभिन्नता पाई जाती है, यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति की जीवन शैली अथवा उसका व्यवहार एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति की रूचि, बुद्धि एवं व्यक्तित्व से सम्बन्धित अनेक कारक उसके इन व्यवहार की पृष्ठभूमि में निहित होते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह स्वाभाविक ही है कि जब तक किसी व्यक्ति को स्वयं में निहित शक्तियों का स्पष्ट ज्ञान न हो वह प्रगति नहीं कर सकता है। विद्यालयी जीवन में, छात्रों को यह जानकारी प्राप्त होनी चाहिए कि वे अपने पाठ्यक्रम अथवा विषय से सम्बन्धित समस्याओं के सम्बन्ध में किस प्रकार निर्णय लें, प्रदत्त ज्ञान को ग्रहण करने हेतु अपनी बुद्धि का उपयोग किस प्रकार करे तथा कम से कम समय में अधिक से अधिक स्थायी ज्ञान किस प्रकार प्राप्त करें।

  5. निहित विशेषताओं के विकास में सहायता प्रदान करना

    निर्देशन के माध्यम से व्यक्ति में निहित विशेषताओं का परिचय भी सम्भव नहीं है वरन् इस विशेषताओं का विकास करने में भी यह प्रक्रिया सहायक होती है। उदाहरण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में, बालकों को यह जानकारी प्रदान की जा सकती है कि शरीर की विभिन्न प्रणलियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं, इन प्रणलियों में उत्पन्न होने वाले अवरोध कौन-कौन से हैं तथा व्यायाम एवं पौष्टिक भोजन के द्वारा इस अवरोधों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है। इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करके अपने शरीर को उचित देखभाल करने में सहायक होती है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

 

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!