(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

निर्देशन

निर्देशन  

निर्देशन का अर्थ (Meaning of Guidance)

निर्देशन क्या है इस सम्बन्ध में समस्त विद्वान एकमत नहीं है । वर्तमान युग में विवादग्रस्त प्रत्ययों में, यह एक ऐसा प्रत्यय है, जिसे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है, फिर भी निर्विवाद सत्य यह है कि आधुनिक युग में हुई वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरुप औद्योगिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। उद्योगों में विविधता के दर्शन होते हैं तो समाज में अनेकता के। इस प्रकार निर्देशन के आधार पर ही, व्यक्ति को अपनी योग्यताओं, क्षमताओं, कौशलों तथा व्यक्तिगत से सम्बन्धित विशेषताओं का ज्ञान हो जाता है।

निर्देशन की प्रक्रिया के अन्तर्गत, निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति में निहित विशेषताओं तथा शैक्षिक, व्यावसायिक एवं वैयक्तिक क्षेत्र में सम्बन्धित जानकारी का समन्वित अध्ययन आवश्यक है। इस समन्वित जानकारी के अभाव में निर्देशन की क्रिया का सम्पन्न हो पाना नितान्त असम्भव है। व्यक्ति में निहित विशेषताओं की जानकारी प्राप्त करने के लिये व्यक्ति की योग्यताओं रुचियों आदि का मापन करने के लिये साधनों तथा मापनियों की आवश्यकताओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन आवश्यक होता है। व्यक्ति में निहित क्षमताओं, योग्यताओं आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए व्यक्तित्व परख, अभिवृत्ति परीक्षण, रुचि, अनुसूची, बुद्धि परीक्षण आदि का विशेष महत्व है। यद्यपि समुचित जानकारी हेतु विशेषतया वैध एवं प्रमाणीकृत परीक्षणों को ही विश्वसनीय निर्देशन के लिये प्रयुक्त किया जाना चाहिये, परन्तु कुछ व्यक्तिनिष्ठ या आत्मनिष्ठ साधनों का प्रयोग भी निर्देशन के अन्तर्गत किया जा सकता है।

परिभाषा (Definition)

निर्देशन की परिभाषा निम्नलिखित हैं-

  1. शर्ले हैमरिन के अनुसार- ‘व्यक्ति के स्वयं को पहचानने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना, जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके, इस प्रक्रिया को निर्देशन कहा जाता है।”
  2. लेस्टर डी0 क्रो के अनुसार- “निर्देशन से तात्पर्य, निर्देशन के लिये स्वयं निर्णय लेने की अपेक्षा निर्णय कर देना नहीं है और न ही दूसरे के जीवन का बोझ ढोना है। इसके विपरीत, योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा, दूसरे व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी आयु वर्ग का हो, अपनी जीवन क्रियाओं को स्वयं गठित करने, अपने निजी दृष्टिकोण विकसित करने, अपने निर्णय स्वयं ले सकने तथा अपना भार स्वयं वहन करने में सहायता करना ही वास्तविक निर्देशन है।”
  3. आर्थर जे0 जौन्स के अनुसार- “निर्देशन एक प्रकार की सहायता है जिसके अन्तर्गत, एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसके समक्ष आए विकल्पों के चयन, समायोजन एवं समस्याओं के समाधान के प्रति सहायक होता है। यह निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति में स्वाधीनता की प्रवृत्ति एवं अपने उत्तरदायी बनने की योग्यता में वृद्धि लाती है। यह विद्यालय अथवा परिवार की परिधि में आबद्ध न रहकर एक सार्वभौम सेवा का रूप धारण लेती है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र यथा परिवार, व्यापार एवं उद्योग, सरकार, सामाजिक जीवन, अस्पताल व कारागृहों में व्यक्त होती है। वस्तुतः निर्देशन का क्षेत्र, प्रत्येक ऐसी परिस्थिति में विद्यमान होती है, जहाँ इस प्रकार के व्यक्ति हों जिन्हें सहायता की आवश्यकता हो और जहाँ सहायता प्रदान करने की योग्यता रखने वाले व्यक्ति हों।”
  4. गाइडेन्स कमेटी ऑफ सॉल्ट लेक सिटी स्कूल के अनुसार “वास्तविक अर्थ में प्रत्येक प्रकार की शिक्षा के अन्तर्गत, किसी न किसी प्रकार का निर्देशन व्याप्त है। इसके द्वारा शिक्षा को वैधानिक बनाने की चेष्टा प्रकट होती है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक शिक्षक का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने छात्र की रुचियों, योग्यताओं एवं भावनाओं को समझे वह उसकी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिये, शैक्षिक कार्यक्रमों में अनुकूल परिवर्तन लायें। दूसरे अर्थ में, निर्देशन को एक विशेष प्रकार की सेवाओं की श्रृंखला कहा जाता है। इसके अन्तर्गत, विद्यालयी कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिये वे क्रियायें सम्मिलित की जाती हैं जो छात्रों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित योजनायें उल्लेखनीय हैं-
    • छात्रों की वास्तविक आवश्यकताओं तथा समस्याओं की जानकारी प्राप्त करना।
    • छात्रों के सम्बन्ध में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर, उनकी वैयक्तिक आवश्यकताओं के अनुदेशन को अनुकूलित करने में सहायता प्राप्त करना।
    • शिक्षकों में बालक की वृद्धि एवं विकास के सम्बन्ध में, अधिकाधिक अवबोध की क्षमता का विकास करना।
    • विशिष्ट सेवायें यथा-अभिविन्यास, वैयक्तिक तालिका, उपबोधन व्यापक सूचना समूह निर्देशन, स्थापन, स्नातकों व शिक्षा से वंचित छात्रों के अनुवर्तन इत्यादि का प्रावधान करना।
    • कार्यक्रम की सफलता ज्ञात करने वाले शोधों का संचालन।
  5. डब्लू० एल० रिन्कल व आर० एल० गिलक्रस्ट के अनुसार- “छात्र में उपयुक्त एवं प्राप्त हो सकने योग्य उद्देश्यों के निर्धारण कर सकने तथा उन्हें प्राप्त करने हेतु वांछित योग्यताओं का विकास कर सकने में सहायता प्रदान करना व प्रेरित करना। इसके आवश्यक अंक इस प्रकार हैं-उद्देश्यों का निरुपण, अनुकूल अनुभवों का प्रावधान करना, योग्यताओं का विकास करना तथा उद्देश्यों की प्राप्ति करना। बुद्धिमत्तापूर्ण निर्देशन के अभाव में शिक्षण को उत्तम शिक्षा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है तथा अच्छे शिक्षण के अभाव में दिया गया निर्देशन भी अपूर्ण होता है। इस प्रकार शिक्षण एवं निर्देशन एक दूसरे के पूरक हैं।”
  6. अमेरिका की नेशनल वोकेशनल गाइडेन्स ऐसोसिएशन ने निर्देशन को परिभाषित करते हुए लिखा है- “निर्देशन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति को विकसित करने, अपने सम्बन्ध में पर्याप्त व समन्वित करने तथा कार्य क्षेत्र में अपनी भूमिका को समझने में सहायता प्राप्त होती है। साथ ही इसके द्वारा व्यक्ति अपनी इस धारणा को यथार्थ में परिवर्तित कर देता है।”
  7. मायर्स के अनुसार- “निर्देशन, व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों व प्रशिक्षण से अर्जित क्षमताओं को संरक्षित रखने का एक मूल प्रयास है। इस संरक्षण के लिये वह व्यक्ति को उन समस्त साधनों से सम्पन्न बनाता है, जिससे वह अपनी तथा समाज की सन्तुष्टि के लिये, अपनी उच्चतम शक्तियों का अन्वेषण कर सकें।”
  8. ट्रेक्सलर के मतानुसार- “निर्देशन वह है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यताओं एवं रुचियों को समझने, उन्हें यथासम्भव विकसित करने, उन्हें जीवन लक्ष्यों से संयुक्त करने तथा अन्ततः अपनी सामाजिक व्यवस्था के वांछनीय सदस्य की दृष्टि से एक पूर्ण परिपक्व आत्म-निर्देशन की स्थिति तक पहुँचने में सहायक होता है।”

निर्देशन की विशेषतायें (Characteristics of Guidance)

उपरोक्त परिभाषाओं के निर्देशन की विशेषताओं, कार्यों एवं उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है। निर्देशन की प्रमुख विशेषताऐं निम्नांकित हैं-

  1. निर्देशन जीवन में आगे बढ़ने में सहायक होती है। शिक्षण की भाँति निर्देशन भी विकास की प्रक्रिया है।
  2. निर्देशन द्वारा व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं ले सकने में सक्षम बनाना है तथा अपना भार स्वयं वहन करने में सहायता करना है।
  3. इसके अन्तर्गत एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसकी समस्याओं एवं समायोजन के विकल्पों के चयन में सहायक होता है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करती है।
  4. निर्देशन शिक्षा की प्रक्रिया के अन्तर्गत व्याप्त होता है। प्रत्येक शिक्षा को अपने छात्र की रुचियाँ, योग्यताओं एवं क्षमताओं को समझकर उनके अनुकूल सीखने की परिस्थितियों को प्रस्तुत करे जिससे उनकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जा सके।
  5. निर्देशन में छात्रों की वैयत्तिक आवश्यकताओं के अनुरूप अनुदेशन को अनुकूलित करने में सहायता प्रदान करती है।
  6. प्रभावशाली शिक्षण तथा अनुदेशन में निर्देशन प्रक्रिया निहित होती है। बुद्धिमतापूर्ण निर्देशन के अभाव में शिक्षण प्रक्रिया अपूर्ण होती है।
  7. निर्देशन द्वारा व्यक्ति को विकसित करने, अपर्न सम्बन्ध में पर्याप्त वह समान्वत जानकारी कराने तथा व्यावसायिक जीवन में अपनी भूमिका को समझने में सहायता प्रदान करना है।
  8. निर्देशन व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं व शक्तियों तथा प्रशिक्षण से अनेक कौशलों को संरक्षित रखने का मूल प्रयास है।

शिक्षा तथा निर्देशन में सम्बन्ध (Relation between Education and Guidance)

शिक्षा एवं निर्देशन का परस्पर गहन सम्बन्ध है। शिक्षा को एक ऐसी गतिशील प्रक्रिया के रूप में पहिचाना जाता है देश-काल की परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है। इसके उद्देश्यों का निर्धारण, समाज, काल एवं परिस्थितियों के आधार पर किया जाता है। शिक्षा के इन समस्त उद्देश्यों पर दर्शन का विशेष प्रभाव होता है अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षा व दर्शन का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। शिक्षा के उददेश्यों की प्राप्ति में, निर्देशन के द्वारा विशेष सहायता प्राप्त होती है। अतः स्वाभाविक रूप से निर्देशन को प्राप्त करने में निर्देशन किसी न किसी रूप में सहायक होता है। उदाहरण के लिए शिक्षा को सर्वागीण विकास की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति की मानसिक, भावात्मक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाता है। इसके उपरान्त ही वह अपनी क्षमताओं का प्रयोग करते हुए, समाज के साथ समायोजन करने एवं समाज में अपना योगदान देने में सक्षम हो जाता है। परन्तु विकास की यह प्रक्रिया एवं इन प्रक्रिया के आधार पर वैयक्तिक एवं सामाजिक उपलब्धि उसी दशा में सम्भव हो

सकती है तब शिक्षार्थी की वैयक्तिक क्षमताओं, रुचि, अभिवृत्ति, स्तर आदि के अनुरूप पाठ्यक्रम का चयन करने में सहायता प्राप्त हो सके, वह सीखने की सरल एवं स्वाभाविक विधियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर सके तथा समायोजन से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम हो सके। इस प्रकार की समस्याओं का समुचित समाधान करने में निर्देशन ही सहायक है। शिक्षा की उप-प्रक्रिया के रुप में, निर्देशन के माध्यम से इस प्रकार की सहायता प्रदान की जा सकती है।

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में, शिक्षा का सहभागी होने के साथ ही यह शिक्षा के समान एक गतिशील प्रक्रिया है, क्योंकि शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन के साथ-साथ निर्देशन के उद्देश्यों में भी परिवर्तन होता रहता है। इसके अतिरिक्त यह भी शिक्षा के समान ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन सम्पन्न होती है। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसी भी व्यक्ति के विकास हेतु निरन्तर सहायता प्रदान की जा सकती है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

 

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!