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डेविड रिकार्डो का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त

रिकार्डो का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त

डेविड रिकार्डो का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त

रिकार्डो के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सन्दर्भ में रिकार्डों का प्रमुख योगदान निम्नलिखित है

  1. तुलनात्मक लागत सिद्धान्त का निर्माण –

    दो देशों के बीच श्रम को पूर्णतया अगतिशील तथा उत्पत्ति समता नियम को विद्यमान मानते हुए रिकार्डो ने निरपेक्ष एवं तुलनात्मक लागत अन्तरों के सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया है।

  • निरपेक्ष लागत अन्तर

    माना कि प्रथम देश ‘अ’ वस्तु की एक इकाई 10 श्रम-इकाइयों से और ‘ब’ वस्तु की एक इकाई 20 श्रम- इकाइयों से उत्पन्न करता है, जबकि ‘द्वितीय’ देश ‘अ’ वस्तु की एक इकाई 20 और ‘ब’ वस्तु की एक इकाई 10 श्रम-इकाइयाँ लगा कर उत्पन्न करता है। ऐसी दशा में ‘प्रथम’ देश ‘अ’ वस्तु के उत्पादन में और ‘द्वितीय’ देश ‘ब’ वस्तु के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त करेगा।

  • तुलनात्मक लागत का अन्तर

    रिकार्डो एक अन्य व्यक्ति का भी विवेचन करता है, जिसमें दोनों में से एक देश दोनों ही वस्तुएँ दूसरे देश की अपेक्षा कम श्रम लागत पर बना सकता है। मान लीजिए कि इंग्लैण्ड में कपड़े की एक इकाई की लागत 100 और शराब की एक इकाई की लागत 120 श्रम-इकाइयाँ हैं। जबकि पुर्तगाल में कपड़े व शराब की एक-एक इकाई की लागत क्रमशः 90 और 80 श्रम-इकाइयाँ हैं। स्पष्ट है कि पुर्तगाल शराब और कपड़ा दोनों को ही इंग्लैण्ड की अपेक्षा सस्ता बना सकता है। फिर भी 90/100 की अपेक्षा 80/120 कम होने के कारण पुर्तगाल को शराब के उत्पादन में तथा इंग्लैण्ड को कपड़े के उत्पादन में तुलनात्मक लाभ है। अतः पुर्तगाल को शराब का और इंग्लैण्ड को कपड़े का उत्पादन करने में विशिष्टता प्राप्त करनी चाहिए।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि जो नियम एक देश में वस्तुओं के सापेक्ष मूल्य का नियमन करता है, वह दो या अधिक देशों के मध्य विनिमय की गई वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्य का नियमन नहीं करता।

  1. स्वतन्त्र व्यापार का समर्थन –

    विदेशी व्यापार के सन्दर्भ में रिकार्डो, स्मिथ एवं निर्वाधावादियों की अपेक्षा स्वतन्त्र व्यापार के अधिक समर्थक थे। उसके विदेशी व्यापार सम्बन्धी विचारों में कहीं भी निराशावाद की झलक नहीं मिलती, और वह पूर्णरूप से आशावादी प्रतीत होता है। यहाँ वह विभिन्न वर्गों के हितों में कोई सम्पर्क नहीं देखता। उसका विश्वास था कि विदेशी व्यापार से व्यक्तिगत हित के साथ-साथ सामाजिक हित में भी वृद्धि होती है।

स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में उसका एक महत्वपूर्ण तर्क प्रादेशिक श्रम विभाजन के लाभ पर आधारित है। इस सम्बन्ध में उसने लिखा था कि उद्योगों को बढ़ावा देकर, कुशलता का उपयुक्त पुरस्कार देकर एवं प्रकृति की विशिष्ट भेंट का सर्वोत्तम ढंग से प्रयोग करके स्वतन्त्र व्यापार श्रम को सबसे प्रभावों एवं मितव्ययिता पूर्ण ढंग से वितरित करता है।

  1. विदेशी व्यापार के सन्तुलन का सिद्धान्त –

    रिकार्डो का यह भी कहना था कि प्रतिबन्ध न होने पर विदेशी विनिमय दर के परिवर्तन द्वारा विदेशी व्यापार का सन्तुलन हो जायेगा। रिकार्डो की यह धारणा विदेशी विनिमय के सिद्धान्त से सम्बन्धित है। रिकार्डो का कहना है कि यदि किसी देश का व्यापार सन्तुलन प्रतिकूल है तो अन्तर का भुगतान करने के लिये उसे दूसरे देश को स्वर्ण (बुलियन) भेजना पड़ेगा। इससे वहाँ द्रव्य की मात्रा कम हो जायेगी और वस्तुओं के मूल्य गिर जायेंगे किन्तु जिसे भुगतान किया गया वहाँ द्रव्य की मात्रा बढ़ेगी वस्तुतः वहाँ वस्तुयें महंगी हो जायेगी। ऐसी दशा में वह देश पहले वाले देश से वस्तुयें मँगाने लगेगा क्योंकि वहाँ वस्तुयें सस्ती मिलती हैं। इससे उस देश का निर्यात बढ़ने से और आयात कम होने से वहाँ का दिया गया सोना वापस आने लगता है। यह एक बराबर चलता रहता है और प्रत्येक देश में द्रव्य की उतनी ही मात्रा रहती है जो कि उस देश के लिए आवश्यक होती है।

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