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जे. एस. मिल का ‘स्थैतिक अवस्था’ विचार

मिल का ‘स्थैतिक अवस्था’ विचार

मिल का ‘स्थैतिक अवस्था’ विचार

आर्थिक विचारों के इतिहास में मिल का स्थान विचित्र तथा विशेष है। डेविड रिकार्डों के बाद परम्परावादी सम्प्रदाय का वह सबसे योग्य किन्तु अन्तिम सदस्य था। यद्यपि मिल ने किसी नवीन आर्थिक सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया फिर भी उसकी महानता का कारण संस्थापित आर्थिक विचारों तथा सिद्धान्तों की सुन्दर व्याख्या है।

हैवे ने उनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि जान स्टुअर्ट मिल सामाजिक तथा आर्थिक सिद्धान्त के महान व्याख्याकर्ता के रूप में मान्यता प्राप्त करने के योग्य हैं। अर्थशास्त्र में उनकी महानता सैद्धान्तिक योगदानों के कारण नहीं, अपितु उनके उस विचारधारा के कारण है जो उन्होंने अर्थशास्त्र की मान्यताओं तथा सामाजिक सिद्धान्तों से इसके सामान्य सम्बन्ध तथा सामाजिक नीति के सम्बन्ध के रूप में प्रस्तुत की।

मिल के स्थैतिक विचार

मिल का मत है कि सभी देशों में धन तथा जनसंख्या में वृद्धि हुयी है। उत्पादन प्रणाली में सुधार होने तथा निर्माण क्रियाओं में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग होने के कारण वस्तुओं के उत्पादन व्यय में कमी सम्भव हो पायी है। वैज्ञानिक खोजों के कारण मानव प्रकृति पर अधिक विजय प्राप्त कर सका है लेकिन कृषि वस्तुओं का उत्पादन प्रति इकाई अधिक उत्पादन व्यय द्वारा ही सम्भव हो सका है। उनका कहना है कि खाद्य सामग्री तथा अन्य कृषि वस्तुओं के उत्पादन व्यय में कितनी वृद्धि होगी यह दो बातों पर निर्भर होगा प्रथम जनसंख्या की वृद्धि दर पर जिसके कारण खाद्य की माँग बढ़ने के कारण कम उपजाऊ शक्ति वाली भूमि पर खेती करने के कारण सीमान्त व्यय में वृद्धि होती है परन्तु इसके साथ ही दूसरी बात कृषि कौशल में सुधार के कारण उत्पादन व्यय प्रति इकाई घटना। मिल का विचार है, यद्यपि समाज की अधिकांश अवस्थाओं में ये दोनों शक्तियाँ या तो स्थिर रहती हैं या बहुत मन्दगति से बढ़ती हैं। जब समाज में धन की वृद्धि होती है तो जनसंख्या में कृषि प्रवीणता की अपेक्षा अधिक वृद्धि होती है तथा परिणामस्वरूप खाद्य सामग्री अधिक महँगी हो जाती है।

समाज में आर्थिक प्रगति से वेतन, लाभ तथा लगान पर प्रभाव पड़ता है। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रगति के फलस्वरूप कृषि वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा श्रमिकों की उत्पादकता व निर्माण क्रियाओं में सुधार होने के कारण, औद्योगिक वस्तुओं की कीमतों में कमी होने के कारण भूमि के लगान में वृद्धि होती है, मौद्रिक वेतन दरों में भी वृद्धि होती है, परन्तु लाभ की दरों में कमी होती है। न्यूनतम लाभ स्तर की व्याख्या करते हुये मिल ने लिखा है कि प्रत्येक समय व स्थान पर लाभ की एक विशेष दर होती है जो न्यूनतम होती है तथा इस दर पर कुल बचत की मात्रा उत्पादक कार्यों-विनियोग के लिए उसकी कुल माँग के समान होती है। बचत की मात्रा दो बातों पर निर्भर करती है –

  1. धन संचय करने की समर्थ इच्छा तथा
  2. समाज में उद्योग में विनियोग हुयी पूँजी की सुरक्षा की स्थिति ।

मिल के अनुसार, “जब किसी देश में लम्बे समय से अधिक उत्पादन तथा अधिक शुद्ध आय, जिसमें से आसानी के साथ बचत की जा सकती है, प्राप्त होती रहती है तब ऐसे देश की यह एक विशेषता होती है कि लाभ की दर साधारणतया न्यूनतम दर के समान होती है।”

परन्तु प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या समाज की यह आर्थिक प्रगति अथवा विकास असीमित है अथवा इसकी कोई सीमा है ? इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुये मिल ने लिखा है कि किसी भी समाज में आर्थिक विकास असीमित नहीं है। धन की वृद्धि असीमित नहीं है तथा आर्थिक विकास की अवस्था के अन्त में प्रत्येक समाज को स्थिर अवस्था का सामना करना पड़ता है। मिल ने बड़े विश्वास एवं दृढ़ता के साथ लिखा है कि “यदि उत्पादन की कला में सुधार न हो तथा यदि धनी देशो से संसार के गरीब देशों को पूँजी का अधिक प्रवाह न हो तो संसार के सबसे अधिक धनी व खुशहाल देश भी शीघ्र स्थिर अवस्था को प्राप्त कर लेंगे।”

मिल के अनुसार स्थैतिक अवस्था में जनसंख्या अथवा पूँजी के स्टॉक में कोई वृद्धि नहीं हो सकती तथा लाभ न्यूनतम स्तर तक पहुँच जाते हैं। लगान एवं मजदूरी की दरों में होने वाली वृद्धि एवं लाभ की मात्रा में होने वाली कमी के परिणामस्वरूप जब पूँजीगत स्टाक बढ़ न पाए, तब तक यह स्थिर अवस्था है। मिल ने भूमि को ऐसा मूल साधन माना जिसकी पूर्ति स्थिर है। उनके मॉडल में अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन प्रवृत्तियाँ, विनिर्माण में तकनीकी प्रगति तथा कृषि में ह्रासमान प्रतिफल के द्वन्द्व पर निर्भर है। कृषि कीमत गिरते हुए प्रतिफल के कारण दीर्घकाल में बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है। जबकि विनिर्माण क्षेत्र में सभी वास्तविक कीमतें घटने की प्रवृत्ति रखती है, क्योंकि तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादकता में वृद्धि होती है। भूमिकी पूर्ति के स्थिर होने के कारण दी गयी तकनीक पर अन्तिम सन्तुलन स्थिर अवस्था के रूप में प्राप्त होता है। मिल ने स्थिर अवस्था को विकास की क्रियाओं का एक आवश्यक एवं अनिवार्य परिणाम माना है।

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