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जे. आर. हिक्स का आर्थिक सिद्धांत

हिक्स का आर्थिक सिद्धांत

जे. आर. हिक्स का आर्थिक सिद्धांत

हिक्स ने अपने अध्ययन में गणित का प्रयोग सर्वाधिक किया है। उसके प्रमुख आर्थिक सिद्धान्तों को निम्न क्रम में रखा जाता है :

  1. अर्थशास्त्र की परिभाषा:

    हिक्स ने अर्थशास्त्र को विज्ञान माना है। उसके अनुसार यह वह विज्ञान है जिसका सम्बन्ध व्यापार सम्बन्धी मामलों से है। उसने सुझाव दिया है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध तथ्यों के अध्ययन से है, इसलिए विभिन्न तथ्यों को उचित क्रम में रखने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

  2. उपयोगिता का विश्लेषण –

    उपयोगिता के सन्दर्भ हिक्स का महत्वपूर्ण योगदान है। मार्शल ने उपयोगिता को द्रव्य के द्वारा मापनीय बताया था, परन्तु हिक्स ने मार्शल की इस बात को स्वीकार नहीं किया है। उसके अनुसार उपयोगिता एक क्रमवाचक विचार है जिसकी माप करना कठिन है, हाँ, दो या दो से अधिक वस्तुओं की उपयोगिताओं की तुलना आपस में की जा सकती है। इस बात की जाँच करने के लिए हिक्स ने उदासीन-वक्रों का प्रयोग किया है।

  3. माँग का नियम-

    हिक्स ने मार्शल के उपयोगिता ह्रास नियम की सहायता से उपभोक्ता के माँग के नियम की व्याख्या की है। हिक्स ने मार्शल के माँग-नियम की आलोचना करते हुए बताया है कि मार्शल ने आय प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा था। हिक्स ने अपने नियम में लिखा है कि किसी भी वस्तु का माँग वक्र नीचे की ओर झुकना चाहिए, क्योंकि मूल्य गिरने व प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण उसके सन्तुलन में परिवर्तन होता रहता है।

  4. उपभोक्ता का साम्य-

    हिक्स ने उपभोक्ता के साम्य का अध्ययन उदासीनता वक्र की सहायता से किया है। अधिकतम सन्तुष्टि की प्राप्ति के लिये उपभोक्ता सदैव सन्तुलन में रहना चाहता है। उसके अनुसार, उपभोक्ता का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ मूल्य रेखा उदासीनता वक्र को स्पर्श करती है।

  5. उदासीन वक्र विश्लेषण-

    प्रो. मार्शल ने जिन मान्यताओं के आधार को मापने की विधि की है उसकी त्रुटियों के परिणामस्वरूप तटस्थता वक्र विश्लेषण का जन्म हुआ। इसके अनुसार माँग के नियम की व्याख्या बिना उपयोगिता को मापे की जा सकती है। इसके अनुसार उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदते समय केवल प्राथमिकता क्रम को ही ध्यान में रखता है। उपभोक्ता के लिए वस्तु संयोग अधिक महत्व का होता है। अतः उपभोक्ता उस संयोग को ऊँचा क्रम देता है जो उसके लिए अधिक महत्व का होता है। इस प्रकार वह वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को उनसे प्राप्त सन्तुष्टि के आधार पर प्रथम, द्वितीय आदि प्राथमिकता प्रदान करता है। प्रो. हिक्स ने इस बात को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि उपभोक्ता की माँग स्थिर है तथा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन नहीं होता है, तो एक वस्तु का उपभोग बढ़ाने के लिए उपभोक्ता को दूसरे वस्तु के उपभोग का त्याग करना पड़ेगा। निम्न तालिका में इस बात को स्पष्ट किया जा सकता है-

संयोग x-वस्तु की मात्रा y-वस्तु की मात्रा संयोगों से प्राप्त कुल उपयोगिता प्रतिस्थापन दर
I 1 6 A
II 2 3 A x = 3y
III 3 2 A x = 1y
IV 4 1.5 A x = 0.5y
तटस्थता तालिका

उपर्युक्त तालिका से ज्ञात होता है कि उपभोक्ता के लिए पहले संयोग में x वस्तु की एक इकाई तथा y वस्तु की 6 इकाइयाँ हैं । इस संयोग से उपभोक्ता को जितनी उपयोगिता मिल रही है उसे उतनी ही उपयोगिता चौथे संयोग से भी मिल रही है क्योंकि इस संयोग पर उपभोक्ता के द्वारा 4x व 1.5y वस्तु को लिया जाता है। उपभोक्ता जैसे-जैसे से वस्तु की मात्रा को बढ़ाता है वैसे वह y वस्तु की मात्रा में कमी लाता जाता है। इसे हिक्स ने घटती हुई प्रतिस्थापन दर कहा है।

  1. तटस्थता वक्र –

    यह वक्र वस्तुओं की मात्राओं के विभिन्न संयोगों का बिन्दुपथ है जिनसे समान उपयोगिता प्राप्त होती है। फलतः उपभोक्ता उनके बीच चुनाव करने में तटस्थ रहता है। वक्र की आकृति लगभग माँग वक्र की आकृति की तरह होती है।

इस बात को संलग्न चित्र से स्पष्ट किया गया है। चित्र में x axis पर X वस्तु को तथा Y axis पर y वस्तु को दिखाया गया है । Ic वक्र इन वस्तुओं को विभिन्न संयोगों को दिखाने वाला तटस्थता वक्र है जिससे उपभोक्ता को समान उपयोगिता मिलती है। चित्र में A और B दो संयोग दिए हुए हैं। जब उपभोक्ता A संयोग से B की ओर बढ़ता है, तब वह Y वस्तु की मात्रा में P/P के कमी करके X की NN1 मात्रा में वृद्धि कर देता है। यह ध्यान रहे कि बिन्दु A और B एक ही तटस्थता वक्र पर स्थित हैं जिसके करण उपभोक्ता को दोनो संयोगों से समान तुष्टि मिल रही है।

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