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मनु और कौटिल्य

मनु और कौटिल्य 

मनु और कौटिल्य के राजनीतिक विचारो की तुलना

(Comparison between Manu and Kautilya )

मनु और कौटिल्य प्राचीन भारत के महान दार्शनिक, चिंतक और विद्वान राजनीतिशास्त्री माने जाते हैं। उनके राज चिन्तन में बहुत कुछ समानता और असमानता दिखायी देती है।

जहाँ तक सामाजिक व्यवस्था का सम्बन्ध है मनु और कौटिल्य वैदिक परम्परा के अनुसार वर्णाश्रम धर्म को मानते हैं। दोनों ही विचारक समाज में ब्राह्मणों के महत्वपूर्ण स्थान को स्वीकार करते हैं और शूद्रों को समान रूप से हीन स्थान देते हैं। परन्तु कौटिल्य ने सृष्टि की रचना के सम्बन्ध में कोई विचार व्यक्त नहीं किया है, जबकि मनु ने कहा है कि ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रियों की बाहु से और वेश्यों की पेट से हुई। मनुष्य जीवन के उद्देश्य कौटिल्य की तरह मनु ने भी धर्म, अर्थ और काम तथा परलोक में मोक्ष माने हैं।

कौटिल्य की चार मुख्य विद्याएँ

कौटिल्य ने चार मुख्य विद्याएँ- आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता तथा दण्ड-नीति मानी हैं, जबकि मनु ने प्रथम को छोड़कर अन्य तीन को ही स्वीकार किया है। जहाँ तक दण्ड-नीति के महत्व का प्रश्न है दोनों ही विचारक उसे स्वीकार करते हैं। कौटिल्य के अनुसार दण्ड-नीति ही अप्राप्य वस्तुओं को प्राप्त कराने वाली, प्राप्त हुए धन की रक्षा कराने में तत्पर और सम्वर्द्धित वस्तुओं को समुचित कार्यों में लगाने का निर्देश करती है। इसी पर संसार की सारी लोक यात्रा निर्भर करती है, अत: लोक को समुचित मार्ग पर चलाने के लिए राजा को सदा ही दण्ड देने के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए। मनु के मतानुसार दण्ड ही राजा है, दण्ड शासन करने वाला है और दण्ड चारों आश्रमों के धर्म का प्रतिभू है। इसी आधार पर डॉ० घोषाल ने कहा है कि दण्ड के विषय में मनु द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त कौटिल्य के विचार को दोहराता तथा विकसित करता है।

राज्य की उत्पत्ति और उसके ध्येय के विषय में भी मनु और कौटिल्य के विचार बहुत सीमा तक समान हैं। मनु ने राजा की उत्पत्ति दैवी मानी है, किन्तु कौटिल्य ने इस विषय में अपना मत न देकर केवल सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्त को स्वीकार किया प्रतीत होता है।

कौटिल्य की भाँति ही मनु राज्य को सप्तांग मानते हैं। कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग ये बताये हैं-स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड और मित्र । मनु ने जनपद को राष्ट्र कहा है और दुर्ग के स्थान पर पुर रखा है किन्तु उनका आशय एक ही है। मनु ने केवल राजतन्त्र के विषय में ही लिखा है, कौटिल्य ने भी राजतन्त्र को ही श्रेष्ठ शासन माना है किन्तु उसने गणों (संघों) का भी उल्लेख किया है।

मनु और कौटिल्य दोनों के अनुसार राज्य के उद्देश्य प्रायः समान हैं और उसका कार्यक्षेत्र विस्तृत है। राजा को प्रजा की सुरक्षा, शान्ति और व्यवस्था के अतिरिक्त आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए प्रयत्न करने चाहिए। जहाँ तक प्रशासनिक व्यवस्था का सम्बन्ध है दोनों ही दार्शनिकों ने राजा को परामर्श देने के लिए मन्त्रियों की आवश्यकता पर बल दिया है। साथ ही पुरोहित तथा विभिन्न प्रकार के अधिकारियों की नियुक्ति आवश्यक बतायी है। फिर भी थोड़ा सा अन्तर है; मनु ने जहाँ मन्त्रियों की संख्या सात या आठ बतायी है वहीं कौटिल्य ने मन्त्रियों की संख्या समय और आवश्यकता के अनुसार नियत करने की बात कही है। मनु और कौटिल्य ने प्रधानमन्त्री के पद की ओर मन्त्रियों की योग्यता के विषय में प्रायः समान विचार व्यक्त किये हैं। जहाँ कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्राचीन भारत की प्रशासन व्यवस्था के सम्बन्ध में सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, वहाँ मनु ने प्रशासन का सविस्तार वर्णन नहीं किया है।

राजा के गुणों, उसके प्रशिक्षण और कर्तव्यों पर दोनों ही लेखकों ने बल दिया है। मनु और कौटिल्य ने राजा की दिनचर्या का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। न्याय व्यवस्था के विषय में दोनों के विचार काफी मिलते हैं। दोनों ही मानते हैं कि न्यायिक कार्य में निष्पक्षता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। कौटिल्य ने न्याय प्रशासन को व्यवहार और दण्ड, इस प्रकार के दो भागों में विभाजित किया है और क्रमशः धर्मस्थीय और कष्ट शोधन न्यायालयों के संगठन का विस्तृत वर्णन किया है। मनु ने न्याय प्रशासन का भार राजा पर छोड़ा है। मनु और कौटिल्य दोनों ने ही दण्ड व्यवस्था में ब्राह्मणों और अन्य वर्गों के निर्धारित दण्डों में कुछ अन्तर रखा है।

कर-व्यवस्था के सम्बन्ध में भी मनु और कौटिल्य के विचारों में बड़ी समानता है। दोनों के अनुसार कर लेने का उद्देश्य प्रजा-रक्षण है और राजा के द्वारा कर थोड़ा-थोड़ा ही लिया जाना चाहिए।

अन्त में, अन्तर्राज्य सम्बन्धों के क्षेत्र में कौटिल्य ने मुखा रूप से मण्डल सिद्धान्त और षाड्गुण्य नीति का प्रतिपादन किया है। इन दोनों ही सिद्धान्तों को मनु ने भी अपनाया है; किन्तु मनु ने मण्डल सिद्धान्त में कुछ जोड़ दिया है। जबकि कौटिल्य ने राजमण्डल में बारह राज्य सम्मिलित किये हैं, मनु ने उन बारह राज्यों को मण्डल की मूल प्रकृतियाँ कहा है और इसके अतिरिक्त प्रत्येक की 5-5 द्रव्य प्रकृतियाँ भी बतायी है।

संक्षेप में, मनु और कौटिल्य की विचारधारा में समानताएँ अधिक महत्वपूर्ण हैं और असमानताएँ अपेक्षाकृत गौण महत्व की हैं।

मनु का महत्व एवं योगदान

(Significance And Contribution Of Manu)

प्राचीन भारत के राजनीतिक चिन्तन में सबसे अधिक ध्यान देने योग्य विचार मनुस्मृति में उल्लिखित हैं। मनु पहले ऐसे विचारक थे जिन्होंने अराजकता का अन्त कर शासन की स्थापना पर बल दिया। उन्होंने शासन के लिए आदर्श राजा की आवश्यकता प्रतिपादित की। मनु का आदर्श शासक प्लेटो के दार्शनिक राजा से कम नहीं है।

मनु ने राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। किन्तु वे निरकुंश राजतन्त्र के समर्थक नहीं हैं अपितु वे शासक को धर्म तथा सदाचरण के नियमों में आबद्ध करते हैं।

मनु विधिवेत्ता और संहिताकार थे, जिन्होंने मानव जीवन के नियमों की एक ऐसी श्रृंखला प्रस्तुत की जिसे अपनाकर सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत किया जा सकता है। डॉ० सत्यमित्र दुबे के शब्दों में, “भारतीय सामाजिक व्यवस्था में मनुस्मृति की परम्परा द्वारा प्रतिपादित नियमों का विशेष महत्व है। विकृत रूप में ही सही, आज भी यह नियम भारतीय राष्ट्र के बहुसंख्यक जन मानस की आचार पद्धति के नियामक हैं।”

मनु ने प्रशासनिक व्यवस्था, कर व्यवस्था, न्यायिक प्रशासन, विदेश नीति आदि के सम्बन्ध में जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है वे इतने यथार्थ हैं कि यदि आधुनिक राज्य उन सिद्धान्तों के आधार पर आचरण करें तो सच्चे अर्थ में लोककल्याणकारी राज्य के आदर्श की प्राप्ति की जा सकती है।

मनु के राजनीतिक विचार का केन्द्र बिन्दु मानवता है। मनुस्मृति के अध्ययन से ऐसा लगता है कि उस समय भारतीय समाज पूर्ण रूप से सुव्यवस्थित था और समाज को यह सुव्यवस्था मनु की देन थी।

मनु के राजा सम्बन्धी विचार एकदम मौलिक हैं क्योंकि हम देखते हैं कि मनु का राजा वास्तव में एक राजर्षि शासक से निश्चित रूप से श्रेष्ठ है और मैकियावेली के ‘प्रिन्स’ के समान व्यावहारिक भी है। मनु द्वारा प्रतिपादित षाड्गुण्य नीति आज भी किसी देश की वैदेशिक नीति के महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं। प्राचीन भारतीय न्याय और दण्ड-व्यवस्था का आधार मनु की न्याय व्यवस्था ही है।

प्राचीन भारतीय राजनीति- महत्वपूर्ण लिंक

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