अनुबन्धों/संविदा के प्रकार (Kinds of Contracts)

संविदा के प्रकार (Kinds of Contracts)

अनुबन्ध/संविदा के विभिन्न प्रकार के होते हैं। स्थूल रूप से उन्हें निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-

वैधता के आधार पर संविदा के प्रकार (On the basis of Validity)

वैधता के आधार पर अनुबन्ध/संविदा निम्नलिखित पाँच प्रकार के होते हैं-

  1. वैध अनुबन्ध / संविंदा (Valid Contract) –

    वैध अनुबन्ध/संविदा से आशय उस ठहराव / करार से है जो कि राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय हो [धारा 2 (h)]। एक ठहराव/करार के वैधानिक रूप से प्रवर्तनीय होने के लिए अनुबन्ध/संविदा अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत कुछ लक्षणों का उल्लेख किया गया है जिनके पूरा होने पर ही ठहराव/करार को वैधानिक रूप से क्रियान्वित कराया जा सकता है और इस प्रकार एक ठहराव/करार को वैधानिक रूप से क्रियान्वित कराया जा सकता है और इस प्रकार एक ठहराव/करार वैध अनुबन्ध/संविदा का रूप धारण कर सकता है। धारा 10 के अनुसार, “सभी ठहराव/करार अनुबन्ध/संविदा होते हैं यदि वे उन पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किये जाते हैं, जिनमें कि अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता है, जो वैधानिक प्रतिफल एवं न्यायोचित उद्देश्य के लिए किये गये हों तथा वे इस अधिनियम के द्वारा स्पष्ट रूप में व्यर्थ घोषित नहीं किये गये हों।” अतएव किसी ठहराव/करार के वैध अनुबन्ध/संविदा के रूप में स्वीकार करने के लिए उसमें उपर्युक्त सभी लक्षणों का होना परम आवश्यक है तभी उसे वैधानिक रूप में स्वीकार करने के लिए उसमें उपर्युक्त सभी लक्षणों का होना परम आवश्यक होता है तभी उसे वैधानिक रूप से क्रियान्वित कराया जा सकता है। आगे अलग-अलग अध्यायों के अन्तर्गत इनका विस्तार में वर्णन किया गया है।

  2. व्यर्थ अनुबन्ध/संविदा (Void Contract) –

    जब किसी अनुबन्ध / संविदा को कुछ विशिष्ट कारणों के आधार पर वैधानिक रूप से क्रियान्वित नहीं कराया जा सकता है, तो वह व्यर्थ अनुबन्ध/संविदा कहलाता है। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम की धारा 2 (j) के अनुसार, “एक अनुबन्ध/संविदा, जब वह राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हो पाता उस समय व्यर्थ हो जाता है जबकि वह इस प्रकार से अप्रवर्तनीय हो जाता है।” उदाहरण के लिए, किसी अकस्मात् असम्भवता अथवा वैधानिक परिवर्तन के कारण अनुबन्ध / संविदा का व्यर्थ होना। मान लीजिए कि अ, ब को अपनी गाय रु 500 में बेचने का ठहराव/करार करता है। गाय की अनुबन्ध / संविदा करने से पूर्व अथवा अनुबन्ध/संविदा करते समय ही मृत्यु हो चुकी है परन्तु दोनों पक्षों की तथ्य की जानकारी के अभाव में तब यह व्यर्थ अनुबन्ध/संविदा कहलायेगा।

  3. व्यर्थनीय अनुबन्ध/संविदा (Voidable Contract) –

    भारतीय अनुबन्ध /संविदा अधिनियम की धारा 2(i) के अनुसार, “ठहराव/करार जो कि केवल एक अथवा अधिक पक्षकारों की इच्छा पर प्रवर्तनीय होता है परन्तु दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों की इच्छा पर नहीं, वर्णनीय अनुबन्ध/संविदा कहलाता है।” इस सम्बन्ध में यह ध्यान रहे कि अनुबन्ध / संविदा को व्य घोषित करने का अधिकार अनुबन्ध/संविदा से पीड़ित पखकार को ही होता है, दूसरे पक्षकारों को नहीं। एक अनुबन्ध/संविदा व्यर्थनीय तभी ठहराया जा सकता है जबकि वह अनुबन्ध/संविदा (i) उत्पीड़न, (ii) अनुचित प्रभाव, (iii) कपट, अथवा (iv) मिथ्या वर्णन द्वारा प्रभावित हो ।

  4. अवैध अनुबन्ध/संविदा (Illegal Contract)-

    अवैध अनुबन्ध/संविदा आशय उस ठहराव/करार से है जो कि स्वयं तो व्यर्थ होता ही है साथ में उसके समस्त समपार्रिवक व्यवहार (Collateral transactions) भी होते हैं। एक ठहराव / करार जो कि आधारभूत जन-नीति के विरुद्ध अथवा दण्डनीय प्रकृति का हो अथवा अनैतिक हो, अवैध ठहराव/करार कहलाता है। इस प्रकार के अनुबन्धों/संविदा की अधिनियम में कोई भी मान्यता नहीं होती है, अतएव उनके कार्यान्वित होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम में अवैध अनुबन्ध/संविदा शब्द का उपयोग नहीं किया गया है अपितु अवैधानिक अनुबन्ध/संविदा शब्द का उपयोग किया गया है। वैसे ये दोनों समानार्थक ही माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अ’, ‘ब’ को पीटने के लिए ‘स’ को कहता है और इस कार्य के लिए ‘स’ को रु 250 देने का वचन देता है। ‘स’, ‘ब’ को पीटता है। बाद में वह ‘अ’ से रु250 की माँग करता है जो उसे देने से इन्कार कर देता है। यहाँ पर ‘स’, ‘अ’ के विरुद्ध रु 250 प्राप्त करने के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता है, क्योंकि यह अनुबन्ध/संविदा अवैध है।

  5. अप्रवर्तनीय अनुबन्ध/संविदा (Unforceable Contract) –

    अप्रवर्तनीय अनुबन्ध/संविदा से आशय उन अनुबन्ध/संविदा से है जिनमें यद्यपि एक अनुबन्ध/संविदा के सभी आवश्यक तत्व (लक्षण) पाये जाते हैं, किन्तु उसमें कुछ वैधानिक तकनीकी (Technical) दोषों के कारण उन्हें प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता है। ये वैधानिक तकनीकी दोष कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे- अनुबन्ध/संविदा का लिखित नहीं होना, उस पर पर्याप्त मुद्रांक (Stamp) लगा नहीं होना अथवा अभिप्रमाणन (Attestation) नहीं होना आदि। इन तकनीकी दोषों को दूर करने पर ही ऐसे अनुबन्ध/संविदा को प्रवर्तनीय कराया जा सकता है।

निर्माण अथवा उत्पत्ति की विधि के आधार पर (On the basis of Construction of Mode of Origin)

अनुबन्ध/संविदा के निर्माण अथवा उत्पत्ति की विधि के आधार पर अनुबन्धों/संविदा को अग्रलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. स्पष्ट अनुबन्ध/संविदा (Express Contracts)-

    स्पष्ट अनुबन्धों/संविदा से आशय ऐसे अनुबन्धों/संविदा से है जो पक्षकारों द्वारा लिखित मौखिक रूप से शब्दों के उच्चारण द्वारा किये जाते हैं। उदाहरण के लिए ‘अ’, ‘ब’ के समक्ष अपना ऊँट रु 5,000 में बेचने का प्रस्ताव लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। ‘ब’, ‘अ’ के प्रस्ताव को लिखित रूप में स्वीकार कर लेता है। यह स्पष्ट अनुबन्ध/संविदा कहलाया। इस प्रकार मौखिक रूप में भी अनुबन्ध/संविदा हो सकता है। स्पष्ट अनुबन की मूलभूत विशेषता यह है कि अनुबन्ध/संविदा सम्बन्धी सभी बातें सम्बन्धित सभी पक्षकारों को पूर्णतः स्पष्ट होनी चाहिए।

  2. निहित अनुबंध (Implied Contracts)-

    ऐसे अनुबन्ध/संविदा जो लिखित अथवा मौखिक रूप में न होकर पक्षकारों के आचरण द्वारा होते हैं, गर्भित अनुबन्ध/संविदा कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अ’, ‘ब’ को (जो कि बस का कण्डक्टर है) एक रुपया देकर बस में बैठ जाता है और ‘ब’ उसे टिकट दे देता है। बस कण्डक्टर द्वारा ‘अ’ को टिकट दिया जाना उसके गर्भित प्रस्ताव को गर्भित स्वीकृति है और इस प्रकार ‘अ’ को बस में बैठकर निर्धारित स्थान तक यात्रा करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

  3. सांयोगिक अनुबन (Contingent Contract)-

    किसी घटना के घटि होने या न घटित होने पर किसी कार्य को करने या न करने का अनुबन्ध/संविदा सांयोगिक अनुबन्ध/संविदा कहलाता है। इसे सशर्त अनुबन्ध/संविदा भी कहते हैं। राम, मोहन को वैजन्तीमाला के अमरीका से सकुशल लौटने पर रु 5,000 देने का वचन देता है। यह सांयोगिक अनुबन्ध/संविदा है।

निष्पादन के आधार पर (On the basis of Performance)

निष्पादन के आधार पर अनुबन्धों/संविदा को निम्नांकित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. निष्पादित अनुबन्ध/संविदा (Executory Contract)-

    जब किसी अनुबन्ध/संविदा के सभी पक्षकार अपने-अपने दायित्व को पूरा कर चुके हों और उसके पश्चात् कुछ करना शेष न हो तो यह निष्पादित अनुबन्ध/संविदा कहलाता है।

  2. निष्पादकीय अनुबन्ध/संविदा (Executory Contract) –

    जब अनुबन्ध/संविदा के एक अथवा दोनों पक्षकार अपने-अपने दायित्व को पूरा नहीं करते हों एवं भविष्य में अपना-अपना दायित्व पूरा करने का वचन देते हों तो अनुबन्ध/संविदा निष्पादकीय अनुबन्ध/ संविदा कहलायो। यह निम्न प्रकार का होता है-

  • एकपक्षीय अनुबन्ध/संविदा(Unilateral Contract)-

    ऐसे अनुबन्ध / संविदा जिसके किसी एक पक्षकार द्वारा तो अपने वचन अथवा दायित्वों को क्रियान्वित कर दिया जाता है किन्तु दूसरे पक्षकार द्वारा अपने वचन या दायित्वों को क्रियान्वित किया जाना शेष रहता एकपक्षीय अनुबन्ध/संविदा कहलाते हैं। ऐसे अनुबन्धों/संविदा को निष्पादित अनुबन्ध/संविदा (Executed Contracts) भी कहते हैं। उदाहरण के लिए ‘अ’, ‘ब’ को रु 200 में अपनी घड़ी बेच देता है। ‘अ’ तो ‘ब’ को घड़ी दे देता है किन्तु ‘ब’ उसका भुगतान नहीं करता है। यह एकपक्षीय अनुबन है।

  • द्विपक्षीय अनुबन्ध / संविदा (Bilateral Contracts)–

    द्विपक्षीय अनुबन्धों/ संविदा से आशय ऐसे अनुबन्धों/संविदा से है जिनके अन्तर्गत अनुबन्ध/संविदा से सम्बन्धित दोनों पक्षकारों द्वारा अपने-अपने वचनों अथवा दायित्वों को क्रियान्वित किया जाना शेष है।

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