संविदा के आवश्यक तत्व एवं लक्षण (Essential Elements of Contract)

करार के आवश्यक तत्व 

करार के आवश्यक तत्व 

श्रीमती बेलफोर बनाम बेलफोर के केस लॉ में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ठहराव/करार के लिए कुछ अनिवार्य तत्वों अथवा लक्षणों का होना आवश्यक है। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, “सभी ठहराव/करार अनुबन्ध/संविदा होते हैं, यदि वे ऐसे पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किये जाते हैं, जो कि अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता रखते हैं, जो वैधानिक प्रतिफल तथा वैधानिक उद्देश्य से किये जाते हों और जो इस अधिनियम के अन्तर्गत स्पष्टतया व्यर्थ घोषित नहीं किये गये हों। इसके अतिरिक्त, ठहराव/करार लिखित साक्षी द्वारा प्रमाणित अथवा रजिस्टर्ड होना चाहिए, यदि भारत में प्रचलित किसी भी राजनियम द्वारा ऐसा होना आवश्यक हो। इस धारा का समुचित अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रत्येक वैध अनुबन्ध/संविदा में निम्नलिखित आठ बातों का होना नितान्त आवश्यक है (अथवा एक वैध अनुबन्ध/संविदा के निम्नलिखित अनिवार्य लक्षण अथवा तत्व होते हैं)। इनमें से सबके अथवा किसी एक के भी अभाव में कोई ठहरा, अनुबन्ध/संविदा नहीं हो सकता-

  1. ठहराव/करार-प्रस्ताव तथा स्वीकृति (Agreement-Offer and Acceptance i.e. Agreement) [धारा 2(e)]
  2. ठहराव / करार का वैधानिक रूप से लागू होना।
  3. वैधानिक उत्तरदायित्व स्थापित करने की इच्छा।
  4. पक्षकारों की अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता (Competence of the parties to do a Contract) [धारा 11 व 12]
  5. पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति (Free consent of the parties) [धाराएँ 13-22]
  6. वैधानिक प्रतिफल एवं उद्देश्य (Lawful consideration and object) [धारा 23 व 25]
  7. अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित ठहराव/करार न होना (Agreement not here by expressly declared to be void) [धारा 26-30 एवं 56]
  8. अनुबन्ध/संविदा लिखित साक्षी द्वारा प्रमाणित अथवा रजिस्टर्ड होना चाहिए, बशर्ते ऐसा होना वैधानिक रूप में आवश्यक हो (Contract is required to be made in writing or in the presence of witness or any law relating to the registration of documents).

संविदा के लक्षण

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि एक वैध अनुबन्ध/संविदा के आवश्यक लक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. एक से अधिक पक्षकारों का होना-

    वैध अनुबन्ध/संविदा का सबसे प्रथम लक्षण यह है कि इसमें एक से अधिक अर्थात् दो या दो से अधिक पक्षकार होने चाहिए। इन पक्षकारों में एक प्रस्तावक तथा दूसरा स्वीकारकर्ता होना चाहिए। प्रस्तावक प्रस्ताव रखता है और स्वीकारक उक्त प्रस्ताव को स्वीकार करता है। प्रस्ताव की स्वीकृति होते ही अनुबन्ध/संविदा का निर्माण होता है, पहले नहीं।

  2. ठहराव/करार का होना-

    वैध अनुबन्ध/संविदा का दूसरा लक्षण यह है कि पक्षकारों के मध्य ठहराव/करार होना चाहिए। किन्तु चूँकि प्रत्येक ठहराव/करार का जन्म प्रस्ताव तथा स्वीकृति के फलस्वरूप होता है अतएव उचित रूप में यह कहा जा सकता है कि अनुबन्ध/संविदा का आवश्यक लक्षण अथवा तत्व ‘प्रस्ताव तथा स्वीकृति’ है।

  3. ठहराव/करार का वैधानिक रूप में लागू होना-

    अनुबन्ध/संविदा का तीसरा महत्वपूर्ण लक्षण उसका वैधानिक रूप में लागू होना है। यदि ठहराव/करार वैधानिक रूप में लागू नहीं कराया जा सकता है तो वह अनुबन्ध/संविदा का रूप कदापि धारण नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए, पति-पत्नी, ट्रस्टी व लाभ पाने वाले के मध्य उत्पन्न दायित्व दुष्कृति या दीवानी अपकार (Torts or Civil wrongs)।

  4. वैधानिक उत्तरदायित्व स्थापित करने की इच्छा-

    यदि सम्बन्धित पक्षकार आपस में कोई ऐसा ठहराव/ करार करते हैं जिसका उद्देश्य आपस में किसी प्रकार का वैधानिक उत्तरदायित्व स्थापित करने का नहीं है, तो ऐसा ठहराव/करार अनुबन्ध/संविदा कदापि नहीं बन सकता है।

लार्ड स्टावेल (Lord Stowell) के अनुसार, “अनुबन्ध/संविदा अवकाश के समय का खेलकूद नहीं होना चाहिए। यह केवल आनन्द एवं हँसी-मजाक का मामला नहीं होना चाहिए जिनके परिणामों की पक्षकारों द्वारा कभी इच्छा नहीं की गई हो।”

  1. पक्षकारों में अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता-

    वैध अनुबन्ध/संविदा या अनुबन्ध/संविदा का पाँचवाँ महत्वपूर्ण लक्षण है कि पक्षकारों में अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता होनी चाहिए। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम की धारा 11 पक्षकारों की अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता को स्पष्ट किया गया है। इस धारा के अनुसार प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो कि (अ) वयस्क आयु का हो, (ब) स्वस्थ मस्तिष्क का हो, तथा (स) किसी भी प्रचलित राजनियम के अन्तर्गत अनुबन्ध/संविदा करने के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया गया है- अनुबन्ध/संविदा करने की क्षमता रखता है।

  2. पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति-

    वैध अनुबन्ध/संविदा अथवा अनुबन्ध/संविदा का छठा आवश्यक लक्षण यह है कि अनुबन्ध/संविदा के लिए पक्षकारों की ‘सहमति होनी चाहिए और साथ में यह सहमति ‘स्वतन्त्र’ भी होनी चाहिए। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम की धारा 13 के अनुसार, दो या दो से अधिक व्यक्तियों की ‘सहमति’ उस समय कही जाती है जब वे एक ही बात पर तथा एक ही भाव में सहमत होते हैं। धारा 14 के अनुसार सहमति उस समय स्वतन्त्र कही जाती है जबकि वह निम्नलिखित में से किसी के भी द्वारा प्रभावित न हो-

  • उत्पीड़न [धारा 15], अथवा
  • अनुचित प्रभाव [धारा 16], अथवा
  • कपट या धोखा [धारा 17], अथवा
  • मिथ्यावर्णन [धारा 18], अथवा
  • त्रुटि अथवा गलती धारा 20, 22]
  1. वैधानिक प्रतिफल एवं उद्देश्य-

    वैध अनुबन्ध/संविदा अथवा अनुबन्ध/संविदा का सातवाँ लक्षण है कि अनुबन्ध/संविदा का सातवाँ लक्षण है कि अनुबन्ध/संविदा के लिए पक्षकारों की ओर से वैध प्रतिफल होना चाहिए। किसी अनुबन्ध/संविदा में यदि इसका अभाव होता है तो एक ‘बाजी’ अथवा ‘जुआ’ का ठहराव/ करार कहलायेगा। प्रतिफल अथवा उद्देश्य निम्नलिखित दशाओं में व्यर्थ होते हैं-

  • यदि वह राजनियम द्वारा वर्जित हो, अथवा
  • यदि वह इस प्रकार का है कि अनुमति देने पर वह किसी अन्य राजनियम के प्रावधानों को निष्फल कर देगा, अथवा
  • यदि वह कपटमय हो, अथवा
  • यदि उसके किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर अथवा सम्पत्ति को क्षति पहुंचती हो, अथवा
  • यदि न्यायालय उसे अनैतिक अथवा लोकनीति के विरुद्ध समझता हो।
अपवाद (Exceptions)

सामान्यतः बिना प्रतिफल के किया गया ठहराव/ करार व्यर्थ होता है और वह अनुबन्ध/संविदा का रूप धारण नहीं कर सकता है। किन्तु निम्नलिखित कुछ ऐसी अपवादजनक परिस्थितियाँ हैं जिनमें बिना प्रतिफल के भी अनुबन्ध/संविदा वैध होता है-

  • स्वाभाविक प्रेम तथा स्नेह से प्रेरित ऐसा ठहराव/करार जो निकटम सम्बन्धियों के मध्य हुआ हो, किन्तु ऐसा ठहराव/ करार लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित एवं रजिस्टर्ड होना आवश्यक है।
  • स्वेच्छा से किये गये कार्य की क्षतिपूर्ति के लिए किया गया ठहराव/करार।
  • अवधि वर्जित ॠण के भुगतान के लिए किया गया ठहराव/करार, बशर्ते यह ठहराव/करार लिखित एवं हस्ताक्षरयुक्त हो।
  1. अधिनिय द्वारा स्पष्ट रूप में व्यर्थ घोषित ठहराव/करार नहीं होना-

    वैध अनुबन्ध/संविदा अथवा अनुबन्ध/संविदा का आठवाँ लक्षण है कि ठहराव/करार अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप व्यर्थ घोषित न हो। अनुबन्ध/संविदा अधिनियम द्वारा निम्नलिखित ठहराव/ करार स्पष्ट रूप में व्यर्थ घोषित किये गये हैं जिनका वैध होने का प्रश्न ही नहीं उठता-

  • अवयस्क के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालने वाले ठहराव/करार। [धारा 26]
  • व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव/करार [धारा 27]-
  • वैधानिक कार्यवाही में रुकावट डालने वाले ठहराव/करार। [धारा 28]
  • ठहराव/करार जिनका अर्थ निश्चित न हो अथवा निश्चित नहीं किया जा सकता हो। [धारा 29]
  • बाजी लगाने के रूप में किये गये ठहराव/करार [धारा 30]
  • असम्भव कार्य करने के ठहराव/करार। [धारा 56]

उपर्युक्त के अतिरिक्त अवयस्क के साथ किये गये ठहराव / करार, दोनों पक्षकारों द्वारा की गई तथ्य सम्बन्धी गलती पर आधारित ठहराव/ करार, अस्वथ मस्तिष्क वाले व्यक्ति के साथ किये गये ठहराव/करार, अवैधानिक प्रतिफल एवं द्देश्य पर आधारित ठहराव/करार आदि भी व्यर्थ हैं। अतएव इन पर आधारित अनुबन्ध/संविदा भी व्यर्थ होते हैं।

  1. अनुबन्ध/संविदा लिखित साक्षी द्वारा प्रमाणित तथा रजिस्टर्ड होना चाहिए, बशर्ते वैधानिक रूप में ऐसा होना आवश्यक हो-

    वैध अनुबन्ध/संविदा अथवा अनुबन्ध/संविदा का नवां महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि अनुबन्ध/संविदा लिखित हो, साक्षी द्वारा प्रमाणित हो, रजिस्टर्ड हो, बशर्ते कि भारत में प्रचलित किसी राजनियम द्वारा ऐसा होना आवश्यक हो।

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