समुद्री निक्षेप (Marine Deposits)

समुद्री निक्षेप 

समुद्री निक्षेप का अर्थ

(Meaning of Marine or Abyssal Deposits)

स्थलीय निक्षेपों के समान समुद्र की तली पर भी अनेक कारणों से कणों का जमाव पाया जाता है। समुद्री निक्षेप, स्थल की विभिन्न प्रकार की चट्टानों के शैल चूर्ण के नदियों द्वारा समुद्र में जमा करने से बनते हैं। शैल चूर्ण के अलावा समुद्री निक्षेपों में समुद्री जीवों के अवशेष भी पाये जाते हैं। इनकी जमाव क्रिया में क्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। ट्वेनहोफेल के अनुसार, “समुद्री निक्षेपों के विषय में उन स्रोतों पर विचार किया जाता है जिससे उनकी उत्पत्ति हुई है, उत्पत्ति के स्थान से जमाव के स्थान तक परिवहन के माध्यम तथा अवसादों की क्षैतिज व ऊर्ध्वाधर विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।”

समुद्री निक्षेपों के विषय में अनेक विद्वानों ने अध्ययन किया है। सर्वप्रथम हेरोडोटस (Herodotus) महोदय ने ईसा से कई वर्ष पूर्व समुद्री निक्षेपों की ओर ध्यान आकर्षित किया था। उसके बाद 1773 में कैप्टन फिप्स (Captain Phipps), 1872 में सर जॉन मरे (Sir John Murray) और रेनार्ड (Renard) आदि ने समुद्र तली के निक्षेपों को मानचित्र द्वारा प्रदर्शित किया। इनकी जानकारी 1791 में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद गरहार्ड स्कॉट (Gerhard Scott) महोदय ने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये थे। इस दिशा में निरन्तर कार्य हो रहा है फिर भी सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं हो सका है।

समुद्री निक्षेपों से सम्बन्धित अध्ययन मुख्य रूप से तीन बातों से सम्बन्धित है-

  1. यह निक्षेप कहाँ से प्राप्त हुआ ?
  2. किन साधनों द्वारा यह महासागर में पहुँचाया गया?
  3. निक्षेप का वितरण किस प्रकार का है?

समुद्री निक्षेपों के स्रोत एवं प्रकार

(Sources and Kinds of Marine deposits)

समुद्र की तली लगभग प्रत्येक स्थान पर विभिन्न प्रकार के ढीले पदार्थों से ढकी हुई है। इसकी सही मोटाई का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सका है। समुद्र वैज्ञानिकों ने निक्षेपों की ऊपरी परत (एक या दो फीट) के विषय में पर्याप्त खोज की है।

समुद्री निक्षेप के स्रोत (Sources of Marine Deposits)

समुद्री निक्षेप के निम्न चार स्रोत हैं-

  • स्थलजात सामग्री (Terrigenous Material)
  • जैविक पदार्थ (Organic or Biogenetic Material)
  • ज्वालामुखी पदार्थ (Volcanic Material) ..
  • अन्य स्रोतों से प्राप्त पदार्थ ( Extra Terrestrial Deposits)

विभिन्न प्रकार के निक्षेपों के जमाव की दर व राशि निम्नलिखित है-

  1. स्थलजात् सामग्री (Terrigenous Material) :

    समुद्र की तली में जमा हुए अधिकतर पदार्थ स्थलीय भागों से प्राप्त होते हैं। स्थल की आग्नेय व परतदार चट्टानों पर अपक्षय व अनाच्छादन की क्रियाएँ घटित होती रहती हैं, जिससे शैल चूर्ण की प्राप्ति होती है। यह शैल-चूर्ण अपरदन के साधनों द्वारा सागरों में निरन्तर ले जाया जाता है, जहाँ यह जमा होता रहता है। नदियाँ इस कार्य में सर्वाधिक योगदान देती है। अनुमान है कि विश्व की नदियाँ प्रति वर्ष 3,000 से 12,000 करोड़ टन धरातलीय ठोस पदार्थ सागरों में ले जाती है। इसके अतिरिक्त 800 करोड़ टन धुला पदार्थ भी सागरों में नदियाँ बहाकर ले जाती हैं और सागर में जमा करती रहती हैं। इन पदार्थों की उत्पत्ति स्थल पर होने के कारण इसे स्थलजात पदार्थ कहते हैं। स्थलजात पदार्थों की उत्पत्ति, कणों की आकृति, रासायनिक संगठन आदि पर इन्हें निम्न छह प्राकर के पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) गोलाश्म (Boulders), (ii) बजरी (Gravel), (iii) रेत या बालू (Sand), (iv) गाद (Silt), (v) मृत्तिका (Clay), (vi), पंक (Mud)।

  1. गोलाश्म व बजरी (Bolders and Gravel)-

    गोलाश्म या बोल्डर के टुकड़ों का व्यास 256 मिमी. होता है, जबकि बजरी बड़े कणों वाला स्थलीय पदार्थ है। इसका व्यास 2 से 256 मिमी. पाया जाता है। बजरी की उत्पत्ति विशेषता चट्टानी तटों पर लहरों के कटाव से होती है। बजरी समुद्र में दूर तक नहीं पहुँचती है। इसका जमाव निमग्न स्थलों व छिछली खाड़ियों में पाया जाता है।

  2. रेत (Sand)-

    रेत या बालू के कण बजरी से महीन होते हैं। इसके कणों का व्यास 2 मिमी 0 से 1/8 मिमी0 के बीच पाया जाता है। रेत के कणों में भी कई किस्में होती है। बहुत मोटी रेत (Very course sand), मोटी रेत (Coarse sand), मध्यम रेत ( Mediaum sand), बारीक रेत (Fine sand), तथा बहुत बारीक रेत (Very fine sand) इसकी किस्में हैं। गोलाश्म, बजरी व रेत का निर्माण धरातलीय चट्टानों के विघटन से होता है। विघटित पदार्थ नदियों व हवा के द्वारा समुद्रों में पहुँचाये जाते हैं।

  3. सिल्ट व मृत्तिका (Silt and Clay)-

    सिल्ट, मृत्तिका व पंक के कण बहुत बारीक होते हैं। इनके कणों का व्यास 1/8 मिमी0 से 8/192 मिमी0 के बीच पाया जाता है। मृत्तिका के कण सिल्ट से छोटे और पंक से बड़े होते हैं। पंक या कीचड़ के कण जोड़ने का कार्य (Cementing Work) करते हैं। इनमें एल्यूमिना का अंश अधिक होता है । छिछली व शान्त खाड़ियों में मृत्तिका व पंक के कण बारीक होने के कारण समुद्री जल में लटके रहते हैं। इन्हें लटकते कण (Suspension Particles) कह सकते हैं। इनकी उपस्थिति से समुद्री जल मटमैला दिखाई देता है। सिल्ट, मृत्तिका तथा पंक के जमाव सागरों में गहराई पर दूर-दूर तक मिलते हैं।

    • कुछ स्थलजात पदार्थ जल के साथ घुले हुए रासायनिक पदार्थों के रूप में समुद्र में पहुँचते हैं। इनमें क्वॉर्टज, फेल्सपार, अम्रक व मृत्तिका मुख्य हैं।
  4. पंक या कीचड़ (Mud)-

    पंक के कण रेत अथवा मृत्तिका के कणों से भी सूक्ष्म होते हैं। ये पानी में झूलती अवस्था में या घुलकर महासागरों में काफी दूर तक जमा होते हैं। तट से दूर 100 फैदम की गहराई की समोच्च रेखा के आगे इनका जमाव होता है। मरे महोदय के अनुसार पेक का जमाव महाद्वीपीय निमग्न स्थल एवं ढालों पर होता है। यह विभिन्न रंगों का होता है। ये रंग वास्तव में कीचड़ में मिले खनिज पदार्थों के कारण उत्पन्न होते हैं। मरे ने रंग के आधार पर पंक को निम्न तीन वर्गों में बाँटा है-(i) नीली पंक (Blue Mud), (ii) लाल पंक (Red Mud), (ii) हरी पंक (Green Mud)।

  • नीली पंक-

    नीली पंक उन चट्टानों के अवशेषों से बनती है जिनमें लोहे के सल्फाइड एवं जैव तत्व का अंश अधिक रहता है। इस प्रकार की पंक में 35 प्रतिशत चूने के कंण व 60 प्रतिशत चीका मिट्टी पायी जाती है। जिन सागरों में नदियाँ तेजी से गिरती है, वहाँ यह पदार्थ 600 से 800 किमी0 की दूरी तक मिलते हैं। नीली पंक सभी महासागरों में मिलती हैं। इसका विस्तार लगभग 232 लाख वर्ग मिमी0 में पाया जाता है।

  • लाल पंक-

    इसका निर्माण उस शिलाचूर्ण से होता है जिसमें लौह आक्साइड हो। इसमें चूने का अंश 30 प्रतिशत और सिलिका अंश न के बराबर होता है। लाल पंक का विस्तार पीत सागर, ब्राजील तट व अटलांटिक महासागर के तल पर पाया जाता है।

  • हरी पंक-

    नीली रंग के पंक का रासायनिक परिवर्तन हो जाने के कारण हरी पंक का निर्माण होता है। यह ग्लूकोनाइट नामक खनिज के कारण होता है। ग्लूकोनाइट लोहे का सिलीकेट है जो जैविक पदार्थों के क्षय होने वाले स्थानों पर पाया जाता है। यह जैविक पदार्थ फोरामिनिफेरा (Foraminifera) नामक जीव के खोल या कोशिका (Cell) में भर जाता है। जब ये खोल घुलते हैं तब ग्लूकोनाइट के ढाँचे गोल कणों के रूप में रहकर हरी पंक का निर्माण करते हैं। हरी पंक में पोटैशियम 7 प्रतिशत, सिलीकेट 50 प्रतिशत तथा लोहांश भी पाया जाता है। हरी पंक उत्तरी अमेरिका के प्रशान्त व अटलांटिक महासागरों के तट, ऑस्ट्रेलिया व जापान तट तथा अफ्रीका के उत्तमाशा अन्तरीप के भागों में पायी जाती है। विशेषकर हरी पंक का जमाव उन क्षेत्रों में मिलता है जिन तटों पर बड़ी नदियाँ न गिरती हो और तटीय समुद्री जमाव धीरे-धीरे एकत्रित होकर लम्बी अधिक तक रासायनिक अपक्षय द्वारा बदल जाये।

  1. जैविक पदार्थ (Organic or Biogenetic Material)-

स्थलजात सामग्री के अतिरिक्त समुद्र तली में उन पदार्थों का जमाव भी मिलता है जो विशेषतया समुद्र से ही उत्पन्न होते हैं। इनमें सागरीय जीवों की हड्डियाँ, ढाँचे व चूने के बने घर आदि नष्ट होने के बाद प्राप्त पदार्थ मुख्य हैं। इन पदार्थों में चूने की मात्रा अधिक होती है, केवल कुछ जीवों के खोल सिलिका से बनते हैं। समुद्री जैव पदार्थों का जमाव गर्म समुद्रों में अधिक पाया जाता है। इनके गुणों के आधार पर समुद्री जैव पदार्थ को निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता

  1. नेरिटिव जमाव (Neritic Deposits)-

    समुद्रों में पाये वाले विभिन्न जीव-जन्तुओं की हड्डियों, मछलियों, प्रवाल, सीप, स्पंज, नेक्टन आदि हैं। नेरिटिक जमाव समुद्र तली में किसी विशिष्ट स्थान पर हीं पाये जाते । नेरिटिक जमाव समुद्र तली में किसी विशिष्ट स्थान पर नहीं पाये जाते हैं, परन्तु ये जमाव तापक्रम, खारेपन व धाराओं आदि के अनुसार बदलते रहते हैं। प्रवाल जैसे जीव केवल गर्म व छिछले समुद्रों में ही पाये जाते हैं, अतएव इन्हीं भागों में इनके अवशेष भी प्राप्त होते हैं। विभिन्न प्रकार के ऐसे अवशेष समुद्री लहरों के निरन्तर प्रहार से और रासायनिक परिवर्तन से बारीक चौका व रेत में बदल जाते हैं। अधिकांशतः स्थलीय पदार्थ के जमाव से ये ‘नेरिटिव ‘जमाव’ ढक जाते हैं। गहरे समुद्रों में ये जमाव द्वीपों के निकट मिलते हैं।

  2. पेलॉजिक जमाव (Pelagic Deposits)-

    ये विशिष्ट प्रकार की Algae है, जो बिना सहारे के समुद्र में बढ़ती हैं। इनमें कुछ प्रोटोजोआ, डायटम, एम्फीपोड्स (Amphipods) आदि मुख्य हैं। ये पंक के समान हैं और ऊज (OOze) कहलाता है। पेलॉजिक जमाव विशेषता गहरे समुद्रों में (75.5 प्रतिशत) विस्तृत रूप से पाये जाते हैं। पेलॉजिक को दो भागों में विभाजित किया गया है। इनमें से प्रत्येक के दो उप-विभाग हैं-

  1. चूनायुक्त ऊज (Calcerous Ooze)-

    इस जैविक सामग्री में चूने का अंश अधिक होता है। इसलिये इस सामग्री को चूना प्रधान सामग्री कहते हैं। यह सामग्री मोलस्क (Molluse) फोरामिनीफरा, स्टार फिश, सी-अरचिन, अलसियोनारिया (Alcyonaria), पोलीजोआ (Polyzoa) और शैवाल (Algae) आदि जीवो के अवशेषों से प्राप्त होती है। टेरीपॉड व ग्लोबीजेरीना प्रमुख चूनायुक्त ऊज हैं।

    1. टेरोपॉड ऊंज (Pteropud Ooze)- ये चूनायुक्त ऊज हैं। इसमें 90 प्रतिशत कार्बोनेट का अंश रहता है। टेरोपॉड जीवों के शरीर कोमल, पतले, नुकीले व शीघ्र टूटने वाले होते हैं। इनका शरीर चूने से निर्मित होता है। इनकी लम्बाई 1 सेमी. से 1.5 सेमी. तक होती है। टेरोपॉड जीव उष्ण सागरों में पाये जाते हैं। इन जीवों का विकास स्थल से दूर उथले सागरों में होता है। अतः इनके अवशेषों के जमाव 1600 से 3000 मीटर की गहराई के सागरीय जल में पाये जाते हैं। सर्वाधिक टेरोपॉड ऊज के जमाव मध्यवर्ती अटलांटिक महासागर की कटक (Ridge) में मिलते हैं। भूमध्य सागर के पश्चिमी भाग तथा प्रशान्त महासागर के प्रवाल द्वीपों के निकटवर्ती सागरों में भी टेरोपॉड पंक पाये जाते हैं। विश्व के समस्त सागरीय क्षेत्रों में 0.4 प्रतिशत मात्रा टेरोपॉड पंक की है।
    2. ग्लोबीजेरीना ऊज (Globigerina Ooze)- इसका रंग मूल रूप से दूध के समान सफेद होता है। महासागरों की तली पर अधिक गहराई में इसका विस्तार मिलता है। इनका विकास फोरामिनीफेरा जीवों के खोल से होता है, जिनका आकार पित की नोक के समान बहुत सूक्ष्म होता है। ग्लोबीजेरीना पंक में 64.47 प्रतिशत चूना, 1.64 प्रतिशत सिलिका, 3.33 प्रतिशत अन्य जैविक अवशेष तथा शेष लाल रंग की मृत्तिका होती है। इनका विस्तार 13 करोड़ वर्ग किमी) क्षेत्र पर मिलता है। यह पंक अटलांटिक महासागर के उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धों, हिन्द महासागर के निमग्न तटों तथा प्रशान्त महासागर के पूर्वी भाग में बहुलता से मिलता है। ये 3000-4000 मीटर की गहराई पर मिलते हैं। विश्व के समस्त गम्भीर सागरीय तली में 29.2 प्रतिशत जमाव ग्गलोबीजेरीना पंक के होते हैं। अटलांटिक महासागर में इस प्रकार के जमाव 72 अंश उत्तरी अक्षांश से 60 अंश दक्षिणी अक्षांश तक पाये जाते हैं। ग्लोबीजेरीना ठंडे ध्रुवीय जल में कम मात्रा में पायी जाती है। प्रायः छिछले समुद्रों में जहाँ स्थलीय जमाव की अधिकता नहीं है, वहाँ भी ये ऊज दिखाई पड़ते हैं। ये ऊज सबसे अधिक विस्तृत रूप में 60 अंश से 70 अंश उत्तरी अक्षांश तक पायी जाती
  2. सिलिकायुक्त ऊज (Siliceous Ooze)-

    ये पदार्थ उन जीवों के अवशेष से बनते हैं जिनमें चूना की अपेक्षा सिलिका का अंश अधिक होता है। इनका जमाव गर्म व ठंडे दोनों सागरों में और अधिक गहराई पर होता है। इस प्रकार के जमाव महासागरों की तली के 62 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं। इनका निर्माण ओपल, क्वार्ट्ज, अर्थोक्लेज, प्लेजिओक्लेज, जेलोलाइट्स, क्लोराइड, ग्लूकोनाइट, मस्कोवाइट तथा मृत्तिका खनिज के सिलिकेटों की सहायता से होता हैं सिलिकायुक्त ऊज के दो प्रकार है-

    1. डायटम ऊज (Diatom Ooze)- यह ऊज रेडियोलेरियन, डायटम फोरामिनिफेरा नाम जीवों से बनती है। इसमें सिलिका का अंश अधिक तथा चूना-3 से 30 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसका रंग स्लेटी होता है। ये गहरे सागरों में मिलती है। यह सामान्यतः 1200 से 4000 मीटर की गहराई पर अधिक मिलता है, परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में यह 8000 मीटर की गहराई तक भी पाया जाता है। यह पंक अधिक ऊँचे अक्षांशों में स्थित ठण्डे सागरीय जल की तली पर मिलता है। अण्टार्कटिका महासागर में इसका विस्तार सबसे अधिक है। 40 अंश दक्षिणी अक्षांश से ध्रुव की ओर इसका विस्तार 2.8 करोड़ वर्ग किमी0 क्षेत्र पर मिलता है। दक्षिणी व उत्तरी प्रशान्त महासागर में भी यह प्रचुर मात्रा में मिलता है। समस्त विश्व के सागरीय तल पर डायटम पंक 6.4 प्रतिशत पाये जाते हैं।
    2. रेडियोलेरियन ऊज (Radiolarian Ooze)- यह सिलिका प्रधान रेडियोलेरियन जीवों के अवशेष से निर्मित होता है। रेडियोलेरियन उष्ण जल का जीवन है। इसका खोल कम घुलनशील होने के कारण अधिक गहराई तक पाया जाता है। इसके खोल में चूने का अशं 4 प्रतिशत होता है। ये 4,000 से 10,000 मीटर तक की गहराई पर विकसित होते हैं। प्रशान्त महासागर के उष्ण कटिबन्धीय जल में ये विस्तृत रूप से पाये जाते हैं। विश्व के लगभग 32 लाख वर्ग किमी) सागरीय क्षेत्र में रेडियोलेरियन जमाव पाये जाते हैं जो सम्पूर्ण जमावों का 3.4 प्रतिशत है।
  1. ज्वालामुखी पदार्थ (Volcanic Material)-

समुद्री निक्षेपों में ज्वालामुखी पदार्थों का भी योगदान रहता है। समुद्र की तली में ज्वालामुखी से प्राप्त पदार्थ दो प्रकार का होता है -(i) वह पदार्थ जो ज्वालामुखी द्वारा धरातल पर जमा दिया जाता है। इसमें रासायनिक व भौतिक अपक्षय द्वारा परिवर्तन आता है। यह वायुमण्डल की विभिन्न शक्तियों (नदी, वायु, हिम) द्वारा समुद्र की तली में धीरे-धीरे पहुँचता है। (ii) वह पदार्थ जो समुद्र में ही ज्वालामुखी के उपरान्त होते हैं।

उपर्युक्त दोनों पदार्थ यद्यपि ज्वालामुखी क्रिया से ही प्राप्त होते हैं, परन्तु उनके गुणों की भिन्नता के कारण भेद आता है। ज्वालामुखी से निकलने वाली राख बहुत बारीक कणों वाली होती है और इसमें खजिज तत्वों की मुख्यता होती है। ज्वालामुखी पदार्थ समुद्र की तली में आग्नेय चट्टानों एवं ज्वालामुखी पर्वतों के क्षय से प्राप्त होता है। महाद्वीपीय निमग्न स्थलों पर जमा होने वाले ज्वालामुखी पदार्थ के कण गहरे सागरों की तुलना में बड़े होते हैं, इन्हें ज्वालामुखी रेत कहते हैं। इसका रंग भूरा, स्लेटी और काले. बीच में पाया जाता है तथा इसका विस्तार विशेषतया समुद्री द्वीपों के आस-पास होता है।

समुद्री निक्षेपों का वितरण

(Distribution of Marine Deposits)

मोंकहाऊस (Monkhouse) महोदय ने समुद्री निक्षेपों का लम्बवत् वितरण निम्न चार भागों में प्रस्तुत किया है-

  1. तटीय जमाव (Litorial Deposits)-

    ये उच्च व निम्न ज्वार तथा समुद्र तल (High and Low water spirng Tide) के बीच का क्षेत्र है। इसमें कंकड़, पत्थर, बजरी, रेत आदि का जमाव पाया जाता है। तट के इन जमावों में क्रमबद्धता (Assortation) पायी जाती है अर्थात् मोटा व भारी पदार्थ तट के निकट तथा बारीक तट से दूर जमता है। तटीय जमाव का आधार लहरों द्वारा किया गया कटाव ही है।

  2. छिछले जल के जमाव (Shallow water deposits)-

    भाटा तल से 183 मीटर की गहराई तक के भागों में पाये जाने वाले निक्षेपों को छिछले जल के जमाव कहते हैं। इनमें बालू तथा प्रवाल कंकालों के निक्षेप पाये जाते हैं।

  3. बेथाइल पेटी के जमाव (Bethyal zone deposits)-

    इसके अन्तर्गत महाद्वीपीय ढालों पर पाये जाने वाले सागरीय निक्षेप शामिल किये जाते हैं। इनमें विविध प्रकार के पंक (Mud)- नीली, हरी व लाल तथा प्रवालों के जमाव पाये जाते हैं।

  4. अगाध सागरीय निक्षेप (Abyssal deposits)-

    गहरे सागरीय मैदानों तथा महासागरीय ढालों पर पाये जाने वाले निक्षेपों को अगाध सागरीय निक्षेप कहा जाता है। इनमें ऊज-टेरोपॉड, ग्लोबीजेरीना, डायटम व रेडियोलेरियन, लाल मृत्तिका तथा उल्का धूल मुख्य होते हैं। मरे महोदय ने सागरीय निक्षेपों को समुद्री क्षेत्र के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-

  5. स्थलीय निक्षेप (Terrigenous deposits)
  6. अगाध सागरीय (Pelagic deposits)

स्थलीय जमाव के अन्तर्गत गहरे जल के जमाव (नीली पंक, लाल पंक, ज्वालामुखी पंक तथा मूंगे की रेत), छिछले जल के निक्षेप (रेत, बजरी, मृत्तिका) तथा तटीय जमावों को शामिल किया है। उन्होंने पेलॉजिक निक्षेपों में रेडक्ले, रेडियोलेरियन ऊज डायटम ऊज, ग्लोबीजेरीना ऊज व टेरोपॉड ऊज को शामिल किया है। समुद्रों में ज्यों-ज्यों गहराई बढ़ती हाती हैं, चूने के अभाव में कमी आ जाती है।

समुद्री निक्षेप की विशेषताएँ (Characteristics of Marine Deposits)

समुद्री निक्षेपों की जमाव दर बहुत कम है। जमाव को प्रभावित करने वाली दशाएँ कणों के आकार, रचना, जल की लवणता, गतियाँ आदि पर निर्भर करती हैं। चूने का जमाव 14 सेमी0 प्रति 1000 वर्ष में होता है। उथले सागरीय जल में निक्षेप की गति अपेक्षाकृत अधिक है।

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