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महासागरों में लवणता (Salinity in Oceans)

महासागरों में लवणता

महासागरों में लवणता

लवणता की परिभाषा

साधारण लवणता उस अनुपात को कहते हैं जो घुले हुए पदार्थों के तौल तथा सागरीय जल के तौल में होती हैं यह अनुपात प्रति हजारवें भाग में व्यक्त किया जाता है।

डिट्टमार के अनुसार समुद्री जल की लवणता के मूल कारण उसमें मिश्रित नमक हैं। रासायनिक खोजों के आधार पर यह निश्चित हुआ है कि सागरीय जल से सोडियम क्लोराइड बहुत अधिक (27.213 प्रति हजार) घुलनशील व्यवस्था में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त मैग्नीशियम क्लोराइड 28.07 प्रति हजार कैल्शियम सल्फेट 1.658 प्रति हजार, मैग्नीशियम सल्फेट 1.26 प्रति हजार पोटैशियम सल्फेट 0.863 प्रति हजार, कैल्शियम कार्बोनेट 0.123 प्रति हजार तथा मैग्नीशियम ब्रोमाइड 0.076 प्रति हजार सागरीय जल में घुले हुए रहते हैं। समुद्र के जल में संवहनीय गति है जिससे जल एक समान बना रहता है और घुले हुए तत्वों के सापेक्षिक अनुपात में स्थिरता बनी रहती है।

  1. समुद्री जल वाष्पन के फलस्वरूपों के फलस्वरूप लाखों टन उठ जाता है, किन्तु लवणता की मात्रा समुद्र में ही रह जाती है। प्रति वर्ष इस लवणता में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि वाष्पन एवं नदी प्रवाह (Evaporation and river transportation) का चक्र जारी रहता है।
  2. समुद्री जल में नदियों द्वारा नमक पहुँचाया जाता है। समुद्र के जल में सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride) होता है तथा नदियों के जल में चूने का कार्बोनेट (Carbonate of lime) होता है जो समुद्री जानवर प्रयोग करते हैं तथ जिससे घोंघे ढाँचे बनाते हैं। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि सागरीय जल में नमक केवल नदियों द्वारा अथवा स्वयं समुद्रों द्वारा नहीं प्राप्त होता, बल्कि दोनों स्रोतों के द्वारा उपलब्ध है। लाखों वर्ष के क्रम में महासागरों में नमक की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।

सागरों की लवणता में भिन्नता

प्रति घन किलोमीटर समुद्र 4/, करोड़ मीटरी टन नमक है। सागरों में लवणता साधारण तौर से 33 प्रति हजार और 37 प्रति हजार के बीच होती है। अधिक वर्षा वाले समुद्री भागों में तथा नदियों के मुहाने के निकट समुद्री भागों की सतह की लवणता बहुत कम होती है। कुछ अर्द्ध-बन्द क्षेत्र जैसे- बोथीनियाँ की खाड़ी का खारापन 5 प्रति हजार से भी कम होता है मध्वर्ती अक्षांशे से घिरे समुद्रों की लवणता लगभग 35 हजार मानी गयी है। इससे कम लवणता भूमध्य रेखा के निकटवर्ती समुद्रों में होती है, क्योंकि वहाँ वर्षा अधिक होती है तथा बादलों का बाहुल्य रहता है। बड़ी नदियों द्वारा अपार स्वच्छ जल प्राप्त होता है।

सागर एवं महासागर के खारेपन के प्रमुख कारण

(1) स्वच्छ जल की पूर्ति, (2) वाष्पन की मात्रा, (3) सागरीय मिश्रण क्रिया द्वारा किये गये परिवर्तन, (4) वायुदाब हवाएँ एवं जलधाराएँ।

सागरों से लवणता का प्रदर्शन सम-लवण रेखाओं (Iso-halines) के द्वारा किया जाता है। जो समान लवणता के जलीय भागों को मिलती हैं। लवणता के वितरण के सम्बन्ध में सबसे सामान्य तथ्य यह है कि लवण यौगिकों का विस्तार पूरब-पश्चिम होने की प्रवृत्ति मिलती है।

सागरीय लवणता का वितरण

सागरीय सतह के दो क्षेत्रों में, जो कर्क और मकर रेखाओं पर स्थित है, सबसे अधिक लवणता की मात्रा होती है। यहाँ इन क्षेत्रों में भूमध्य रेखा तथा ध्रुवों की ओर खारापन कम हो जाता है। इन क्षेत्रों में अधिक खारापन का कारण वर्षा की बहुत कमी, स्वच्छाकाश, नदियों का अधिक अभाव। कड़ी धूप, उष्ण कटिबन्धीय प्रतिचक्रवात तथा सन्मार्गी हवाएँ जिससे वहाँ वाष्पन क्रिया बहुत तीव्र गति से होती है और सागरीय जल खारा हो जाता है। यह लवणता भूमध्य रेखा तथा ध्रुवों की ओर कम हो जाती है।

विवृत्त सागर-

भूमध्य रेखा के निकटवर्ती सागरीय सतह पर वर्षपर्यन्त अधिक संवहनीय वर्षा तथा अधिक बादलों के कारण वाष्पन की कमी जल को स्वच्छ रखती हैं और खारापन बहुत कम पाया जाता है। आमेजन, कांगो तथा नाइजर आदि विशाल नदियों के मुहानों पर नदियों द्वारा अपरिमित स्वच्छ जल के उड़ेलने से खारापन बहुत कम पाया जाता है। एक ही तापमान का स्वच्छ जल नमकीन जल की अपेक्षा हल्का होता है। अतः नदियों द्वारा लाया गया जल मिश्रण के पूर्व कुछ समय तक समुद्री जल के ऊपर तैरता रहता है। यहाँ 34 प्रति हजार लवणता है।

अर्द्ध विवृत सागर-

भूमध्य सागर एवं बाल्टिक सागर जैसे समुद्र, जो सँकरे जलडमरूमध्य द्वारा महासागरों से मिले रहते हैं। खारापन की दृष्टि से भिन्न हैं। भूमध्य सागर के जल में बड़ी लवणता है। भूमध्य सागर में जिब्राल्टर के पास 36.5 प्रति हजार खारापन पाया जाता है जो पूरब की ओर बढ़ता जाता है। यहाँ तक कि पूर्वी भूमध्य सागर में खारापन 29 प्रति हजार रहता है। लाल सागर के दक्षिणी किनारे पर खारापन 36.5 प्रति हजार रहता है, जो उत्तर की ओर स्वेज नहर के समीप बढ़कर 41 प्रति हजार हो जाता है। इस प्रकार के खारेपन का उदाहरण संवृत सागरों में ही पाया जाता है जो खुले सागरों के खारेपन से बहुत अधिक होता है।

स्वच्छ जल एवं वाष्पीकरण की मात्रा-

इनके अधिक खारेपन का कारण नदियों द्वारा लाये गये स्वच्छ जल की कमी तथा इनमें अधिक वाष्पन का होना है, साथ ही साथ इनका जल स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं मिश्रित हो पाता है। लाल सागर में तो कोई नदी गिरती ही नहीं, किन्तु भूमध्य सागर में नील, रोन, पो आदि नदियाँ गिरती हैं, परन्तु इसमें वाष्पन क्रिया इतनी अधिक होती है कि जल की कमी की पूर्ति नदियों द्वारा लाये हुए जल से नहीं होती है। फल यह होता है कि इसका खारापन बढ़ता जाता है।

काले सागर में खारापन 18 या 18.5 प्रति हजार से भी कम रहता है। इससे सम्बन्धित अजोब सागर में तो इससे भी कम खारापन पाया जाता है, क्योंकि इसमें उत्तर से आकर कई बड़ी नदियाँ डान, नीपर, नीस्टर आदि गिरती हैं जो अपने साथ बहुत अधिक ताजा जल लाकर इसमें डाल देती है और खारापन बढ़ने नहीं पाता है। इसमें वाष्पन भी कम होता है। बाल्टिक सागर में प्रवेश के समय उसके जल में खारापन सम्बन्धी अधिक मित्रताएँ पायी जाती हैं।

वायुमण्डल का दाब एवं हवाओं का गहरा प्रभाव

खारेपन के वितरण में वायुमण्डल का दाब तथा हवाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है, बाहरी सागरों की अपेक्षा बाल्टिक सागर के ऊपर वायुदाब कम रहता है। अतः इसमें अन्य सागरों से कम खारापन पाया जाता है। इसमें रूजन द्वीपों के समीप खारापन केवल 7 या 8 प्रति हजार रहता है जो उत्तर की ओर क्रमशः कम हो जाता है, यहाँ तक कि बोथोनिया तथा फिनलैण्ड की खाड़ी में खारापन केवल 2 प्रति हजार हो पाया है अर्थात् जल लगभग स्वच्छ एवं ताजा रहता है। इसका मुख्य कारण वर्षा और ओडर, विश्चुअला नदियों तथ बर्फ द्वारा बहुत अधिक साफ जल की प्राप्ति हैं। यहाँ जल के ठण्डा होने के कारण अति अल्प वाष्पन होता है।

परिबद्ध सागर (Enclosed Sea) एवं झीलों- संवृत्त जलीय भागों का खारापन स्वच्छ जल की प्राप्ति या पूर्ति एवं वाष्पन पर निर्भर रहता है। यदि स्वच्छ जल की पूर्ति वाष्पन द्वारा प्राप्त जल से कम होती है तो धीरे-धीरे खारा होता है। अतः ऐसे जलीय भागों में जल का खारापन समय पर निर्भर करता है।

जिस परिबद्ध सागर अथवा झील में पानी के बाहर निकलने का मार्ग रहता है उसका पानी कम नमकील होता है, क्योंकि बाहर निकलने वाली नदियाँ खारेपन को दूर बहा ले जाती हैं। बन्द सागर अथवा झीलों में स्वच्छ जल की प्राप्ति एवं वाष्पन बराबर होता रहता है तो खारापन नहीं बढ़ने पाता है। अतः झील अथवा बन्द सागरों का खारापन बढ़ना उस समय तक जारी रहता है जब तक कि उनके खारे जल के बाहर निकलने के लिए कोई मार्ग नहीं मिलता है।

कभी-कभी एक ही झील के जल के खारेपन में भिन्नता पायी जाती है, जैसे-कैस्पियन सागर में। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में 14 प्रति हजार से भी कम खारापन रहता है, परन्तु दक्षिण में इसी से सम्बन्धित कारबुग की खाड़ी के उथले जल का खारापन 170 प्रति हजार रहता है। इसका कारण इसमें होने वाला अधिक वाष्पन है। मृत सागर (Dead Sea) में सबसे अधिक 237.5 प्रति हजार खारापन पाया जाता है। जहाँ पानी अधिक खारा रहता है वहाँ जल का तापमान भी अधिक होता है। किन्तु जहाँ नमक कम होता है, जल का तापमान भी कम रहता है। इसलिए खारे पानी के जमने के लिए तापमान हिमांक से नीचे होना चाहिए।

सागरीय जल का दबाव 1 किलोमीटर गहराई 170 किलोग्राम प्रति वर्ग सेण्टीमीटर रहता है, किन्तु पानी दबाव से कम सिकुड़ता है। अतः अधिक गहराई पर भी सतह का ही घनत्व रहता है। इसी कारण कोई वस्तु, जो सतह पर डूब जायेगी, समुद्र तल पर पहुँ जायेगी।

जल में मिश्रण के कारण घनत्व बढ़ जाता है। अतः कोई वस्तु डूब नहीं सकती है। मृत सागर में मनुष्य डुबकी नहीं लगा सकता है। उसका शरीर अपेक्षाकृत हल्का होने से उतराने लगता है।

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