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तापमान व्युत्क्रमण (Temperature Inversion)

तापमान व्युत्क्रमण

तापमान व्युत्क्रमण

साधारण स्थिति में ऊंचाई के अनुसार तापमान कम होता है। यद्यपि तापमान की कमी का क्रम एक समान नहीं होता। यह दिन के समय स्थिर तथा मौसम के अनुसार बदलता रहता है। प्रायः ऊंचाई के अनुसार 300 मीटर पर तापमान 18° सेग्रे. कम हो जाता है। इसको ताप ह्रास दर कहते हैं। यह क्रम अचल स्तर के निचले तक चला जाता है।

कभी-कभी ठण्डे मौसम की स्वच्छ शान्त रात्रि में जब धरातल बर्फ से ढंका रहता है तो वायुमण्डल की निचती हवा कई सौ मीटर तक ऊपरी हवा से अधिक ठण्डी हो जाती है। इस दशा में जब अधिक ठण्डी हवा धरातल के ऊपर आ जाती है तो वायुमण्डल की सामान्य दशा उल्टी हो जाती है और ऊंचाई के अनुसार तापमान वायुमण्डल में बढ़ने लगता है। इस प्रकार की वायुमण्डल की स्थिति को तापमान की व्युत्क्रमणता कहते हैं। देवार्था ने उस अवस्था में तापमान का व्युत्क्रमणता बताया है जिसमें धरातल पर अधिक ठण्डी वायुपुंज और ऊपर अधिक ऊष्ण वायुपुंज मिलती है। जब ऊंचाई के अनुसार तापमान बढ़ता है तो इस गति को ऋण तक ह्रास दर (Negative Lapse rate) कहते हैं। यह व्युत्क्रमणता साधारणता शीतोष्ण कटिबन्ध के मैदानों में होती है। इसका स्पष्ट रूप पर्वतीय प्रदेशों में मिलता है।

तापमान की व्युत्क्रमणता को प्रभावित करने वाले तत्व शान्त वायु, स्वच्छ आकाश, लम्बी  रातें, शुष्क वायु तथा हिमाच्छादित भूमि है।

तापमान व्युत्क्रमण के प्रकार

  1. अप्रवाही व्युत्क्रमण (Static Inversion of Temperature)-

    इसकी ऊपरी दशाएं निम्न प्रकार हैं-शीतकाल की लम्बी रात्रियों में पृथ्वी के विपरीत ताप की मात्रा पृथ्वी पर आने वाले विकसित ताप से अधिक हो जाती हैं। स्वच्छ आकाश या अधिक ऊंचाई पर, बादलों की उपस्थिति से पार्थिक विकरण से ताप शीघ्रता से नष्ट हो जाता है। शुष्क वायु होने पर यह पृथ्वी से विकसित ताप को शीघ्र सोख लेती हैं। शान्त तथा मन्द वायु होने पर हवाएं आपस में आसानी से नहीं मिल पाती हैं। फलस्वरूप पृथ्वी तल विकरण तथा संचालन (Conduction) द्वारा पर्याप्त सर्द होने के लिए समय प्राप्त कर लेता है। पृथ्वीं तल के हिमाच्छादित होने पर उसको कम ताप प्राप्त होता है और अधम संचालन (Bold conduction) होने के कारण पृथ्वी के अन्दर की उष्णता को ऊपर आने से रोक देता है। इस प्रकार तापमान की व्युत्क्रमणता प्रायः ध्रुव प्रदेशों में अधिक मिलती है। इस प्रकार की अवस्था को भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण (Surface Inversion) भी कहते हैं।

  2. तापमान की गतिक व्युत्क्रमणता (Dynamic Inversion of Temperature)-

    धरातल के ऊपर, पास तथा दूर तापमान की व्युत्क्रमणता धरातलीय हवाओं के प्रवाह से पैदा होती हैं। यह व्युत्क्रमणता ठण्डी-हवा के नीचे से अथवा गर्म हवा के ऊपर से बहने के कारण पैदा होती है। मध्यवर्ती एशिया के मैदान तक कनाडा के झाल प्रदेशों में अस्थिर व्युत्क्रमण मिलता है। प्रति चक्रवात में हवा का धीरे-धीरे उतरना प्रायः धरातलीय हवा तथा ऊपरी हवा के बीच व्युत्क्रमण पैदा कर देता है, क्योंकि धरतलीय हवा नीचे नहीं उतरती और ऊपर की हवा नीचे उतरती है और गर्म होती है, जिससे फैलती जाती है। कभी-कभी यह क्रिया लगातार होती है और इस प्रकार उच्च पृष्ठीय व्युत्क्रमण (Upper Surface Inversion) पैदा हो जाता है।

चक्रवात में तापमान का परिवर्तन प्रायः अग्र भाग में होता है। जब ध्रुवीय सर्द हवाएं उष्ण हवाओं से मिलती हैं तो ठण्डी हवाएं उष्ण भाग की गर्म हवा को नीचे से काटती और जहां गर्म हवाएं कम गति से बढ़ती हुई ठण्डी हवाओं के ऊपर चली जाती हैं, वहां अल्प-काल के लिए अभिवाहनिक व्युत्क्रम (Advnctional Inversion) पैदा हो जाता है। इस प्रकार का व्युत्क्रमण मध्य अक्षांशों मं चक्रवातों से प्रभावित क्षेत्रों में पाया जाता है।

गतिक व्युत्क्रमणता पर्वतीय घाटियों में मिलती है, जहां सघन शीत वायु पर्वतीय ढाल से घाटियों में उतर जाती है और घाटी की उष्ण वायु को ऊपर ढकेल देती हैं। इस दशा में घाटी में शीतल वायु तथा ऊपर वायु मण्डल में गर्म वायु रहती है। यह दशा ब्राजील के कहवा क्षेत्र में मिलती है। कहवा के वृक्षों के तने बर्फ से ढक जाते हैं तथा तापमान कम रहता है, जबकि वृक्ष का ऊपरी भाग खुला होता है और तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। इस दशा के निम्न कारण स्पष्ट हैं-(क) रात्रि में कुछ स्थानों में धरातल पर अधिक सर्दी । (ख) वायुमण्डल के कतिपय भागों में उथल-पुथल। (ग) धरातल की ओर वायु का उतराव। (घ) चक्रवात के वाताग्र की दशाएं। तापीय व्युत्क्रमण के दो रूप भेद होते हैं- तापीय गतिक रूप (Thermal Dynamic Modification) नीचे से गर्म होने से उत्पन्न होता है। इसका कारण उष्ण धरातल पर ठण्डी हवा का प्रवाह तथा सूर्यातप से पृथ्वी का गर्म होना है। नीचे ठण्डा होने पर भी रूप भेद पैदा होता है। इसका कारण ठण्डे धरातल पर उष्ण वायु का प्रवाह तथा विकिरण से पृथ्वी के धरातल का सर्द होना है। वाष्पन से आर्द्रता वृद्धि तथा संचालन द्वारा आर्द्रता के लुप्त हो जाने पर तापीय रूपभेद पैदा हो जाता है।

यान्त्रिक रूपभेद वायु के क्रमविहीन मिश्रण, वायु के नीचे उतराव, वायु के ऊपर उठाव तथा वायु के झोंकों के कारण होता है।

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