“लोकनीति के विरुद्ध करार शून्य होते हैं” समझाइये

लोकनीति के विरुद्ध करार एवं इसकी श्रेणियाँ

लोकनीति के विरुद्ध करार एवं इसकी श्रेणियाँ

ऐसा करार जो न्यायालय की दृष्टि में लोकनीति के विरुद्ध हो अवैध एवं शून्य होता है। यद्यपि लोकनीति का अर्थ अस्पष्ट, अनिश्चित एवं अत्यन्त विस्तृत होता हैं इसकी तुलना एक अनियंत्रित घोड़े से की गयी है परन्तु लोकनीति का शाब्दिक अर्थ यह होता है कि कुछ परिस्थितियों में न्यायालय लोकनीति को ध्यान में रखकर कुछ करार अप्रर्वतनीय घोषित करेंगे। इंग्लैण्ड में व्यापार अवरोधी करार, विवाह में दलाली की संविदा जुआ या बाजी की संविदा को लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है। लार्ड एटकिन फेन्डर बनाम जान मिल्डमें के मामले में विचार अभिव्यक्त किया था कि इस सिद्धान्त को केवल ऐसी परिस्थितियों में लागू किया जाना चाहिए जब जनता को नुकसान होने के बारे में सन्देह न हो और ऐसी हानि का सन्देह न्यायाधीशों के अनुमान पर आधारित नहीं होना चाहिए।

भारत में भी इसी सिद्धान्त का अनुसरण किया गया है। जैसा कि आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने रतनचन्द हीराचन्द v. अस्कर नवाज जंग के वाद में कहा है कि लोकनीति के जो दो पहलू हैं लोक कल्याण में वृद्धि और दूसरा सामाजिक बुराइयों को कम करना इन्हें न्यायालय को समाज का साधारण सदस्य होने के नाते न कि विधिवेत्ता होने के नाते जनसाधारण की भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने सेन्ट्रल इनलैण्ड वाटर ट्रान्सपोर्ट प्रा० लिo v. ब्रजनाथ के मुकदमें में कहा है कि संविदा अधिनियम 1872 लोकनीति या लोकनीति के विरुद्ध शब्दों को परिभाषित नहीं करता है। इनकी परिभाषा देना सम्भव भी नहीं हैं क्योंकि इनकी प्रकृति ही ऐसी है। लोकनीति से अभिप्राय लोकहित या लोककल्याण होता है। लोकहित या लोककल्याण की धारणा समय-समय पर परिवर्तित होती रहती है। ऐसा ही विचार इंग्लैण्ड के न्यायाधीश डैंकबर्ट्स ने नागले v. फीडेन के वाद में प्रकट किया था। उनके अनुसार लोकनीति से सम्बन्धित विधि स्थिर नहीं रह सकती। हवा की भाँति यह भी परिवर्तनशील है। समय के साथ इसे भी परिवर्तित होना चाहिए। जस्टिस आनन्द ने मेसर्स आनन्द प्रकाश ओम प्रकाश v. मेसर्स ओसवाल ट्रेडिंग एजेन्सी एवं अन्य के मुकदमें में विचार प्रकट किया है कि लोकनीति से सम्बन्धित विधि परिवर्तित की जानी चाहिए, जिससे सरकारी कर चोरी करने के लिए की गयी संविदाओं को न्यायालय लागू न कर सके।

लोकनीति की विभिन्न श्रेणियाँ

लोकनीति की विभिन्न श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. शत्रु देश के साथ व्यापार

    शत्रुदेश के साथ व्यापार करना लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है त्म्योंकि इस प्रकार के व्यापार से शत्रु देश को सहायता मिलती है।

  2. सार्वजनिक पद या नौकरियों का क्रयविक्रय

    सार्वजनिक पद या नौकरियों की खरीद-फरोख्त भी लोकनीति के विरुद्ध मानी जाती है। उच्चतम न्यायालय ने गुलाब चन्द बनाम कोदई लाल के मुकदमें में ऐसे करार को लोकनीति के विरुद्ध माना जिसमें घूस लेकर एक व्यक्ति को भागीदार बनाया गया था। लोकपद के क्रय-विक्रय से सम्बन्धित एन०वी० पी० पाण्डियन एम०एम० राय का वाद एक उपयुक्त उदाहरण है-

अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी के लड़के को मेडिकल कालेज में प्रवेश दिलाने की प्रतिज्ञा की थी जिसके बदले में प्रत्यर्थी ने अपीलार्थी को 15,000 रुपया दिया। अपीलार्थी प्रवेश दिलाने में असफल रहा। प्रत्यर्थी ने मय ब्याज 15,975 रुपये प्राप्त करने के लिए वाद किया।

निर्णीत हुआ कि करार लोकनीति के विरुद्ध था।

समस्या

‘क’ के लिए लोक सेवा में नियोजन अभिप्राप्त करने के लिए ‘ख’ वचन देता है और ‘क’ ‘ख’ को रु. 10,000 देने का वचन देता है। इन करारों की वैधानिकता का परीक्षण कीजिए।

हल-करार शून्य है क्योंकि उसके लिए प्रतिफल विधि विरुद्ध (धारा 23 का दृष्टान्त (ब)।

  1. न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप

    न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है-

  • न्यायालय के कार्य में बाधा-

    न्यायालय के कार्य में बाधा डालना लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति झूठी गवाही को देने के लिए करार करे या गवाही न देने या गवाह को अदालत तक पहुँचने देने का करार करे तो न्यायालय ऐसे करार को लागू नहीं करेंगे।

  • अभियोजन में बाधा-

    न्यायालय ऐसे करार को भी लागू नहीं करेगे जिनका उद्देश्य अभियोजन को चलाना या चल रहे मुकदमें को वापस लेना हो। इस सम्बन्ध में भवानीपुर बैंकिंग कारपोरेशन लि० बनाम दुर्गेश नन्दिनी दासी का मुकदमा अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है-

एक व्यक्ति पर गबन का आरोप था। बैंक ने उस पर फौजदारी का मुकदमा कायम करवाया। उसकी पत्नी ने अपनी सम्मति बैंक के पास बंधक कर दी और मुकदमा वापस करवा लिया।

निर्णीत हुआ कि बन्धक शून्य था क्योंकि यह लोकनीति के विरुद्ध था। मुकदमें की वापसी से सम्बन्धित सुमित्रा बनाम सुलेखा का वाद भी उल्लेखनीय है-

इस मामले में एक व्यक्ति पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420/406 के अन्तर्गत मुकदमा विचाराधीन था। एक करार के तहत मुकदमा वापस ले लिया गया। यद्यपि धारा 406 के अन्तर्गत कायम मुकदमा पक्षकारों द्वारा वापस नहीं लिया जा सकता।

निर्णीत हुआ कि करार लोकनीति के विरुद्ध था इसलिए शून्य था।

उच्चतम न्यायालय ने मेसर्स श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेन्स कारपोरेशन लि० बनाम रमा मिश्रा के बाद में यह अभिनिर्धारित किया है कि करार वहाँ लोकनीति के विरुद्ध नहीं माना जायेगा जहाँ पर पक्षकारों को दो या अधिक न्यायालयों में अधिकारिता प्राप्त है परन्तु पक्षकारों ने यह करार किया हो कि केवल एक ही न्यायालय को मामले की सुनवाई करने की अधिकारिता होगी।

  • विवाह की दलाली-

    यदि कोई व्यक्ति घूस लेकर विवाह कराने का करार करे तो ऐसा करार न्यायालय लागू नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करार लोकनीति के विरुद्ध होता है। दहेज देने का करार भी लोकनीति के विरुद्ध होता है। ए०सूर्य नारायन मूर्थि बनाम पी० कृष्णमूर्ति के बाद में प्रतिवादी ने वादी के साथ अपने भांजी का विवाह तय किया था बदले में उसे सोना, हीरा, जमीन आदि देने का करार किया था। निर्णीत हुआ कि करार लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण शून्य था ।

  • मेन्टीनेन्स और चैम्पर्टी-

    जब कोई अन्य व्यक्ति किसी व्यक्ति के बाद में रुपया देकर हस्ताक्षेप करता है यदि उसमें उसका कोई हित नहीं होता तो उसे मैन्टीनेंस कहते हैं। इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से ऐसा करार करता है कि वह उसके सम्पत्ति प्राप्त करने वाले मुकदमें में मदद करेगा और बदले में कुछ सम्पत्ति वह भी लेगा तो ऐसे करार को चैम्पर्टी कहते हैं। मेन्टीनेन्स और चैम्पर्टी से सम्बन्धित करार लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण शून्य होते हैं।

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