पृथ्वी पर तापमान का वितरण
पृथ्वी पर तापमान का वितरण
पृथ्वी पर दो प्रकार का तापमान वितरण परिलक्षित हैं-
- तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal distribution of Temperature)
- तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical distribution of Temperature)
तापमान के वितरण को निम्नलिखित प्रभावित करते हैं।
- धरातल की विशिष्टताएं- धरातल की ऊंचाई, स्थिति, भूमि का ढाल, भूमि की बनावट ।
- वायुमण्डलीय दशाएं- प्रचलित वायुराशियां, मेघ तथा चक्रवात
- समुद्री दशाएं- समुद्र से दूरी, समुद्री जलधारा।
ताप को प्रभावित करने वाले मुख्य उपादान
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स्थिति-
धरातल पर सूर्यातप की मात्रा अक्षांश रेखाओं के अनुसार निर्धारित होती हैं, भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर अक्षांशों के बढ़ने के साथ-साथ तापमान भी कम होता जाता है। इसका कारण सूर्य की किरणों का तिरछापन है। अतः देखा जाता है कि पृथ्वी की सतह पर तापमान का वितरण अक्षांश रेखाओं के आधार अथवा भूमध्य रेखा से दूरी के आधार पर होता है। इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने तापक्षेत्र की सीमा को निर्धारित करने में अक्षांश का ही सहारा लिया है।
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भूमि की ढाल-
जिन स्थानों का ढाल सूर्य की ओर होता है, उन स्थानों पर सूर्य की किरणें अपेक्षाकृत सीधी पड़ती हैं और उन्हें सूर्य की ओर बना देती है। इसके विपरीत जिन स्थानों का ढाल सूर्य से परे होता है, वहां किरणें अपेक्षाकृत तिरछी पड़ती हैं और वे स्थान इतने गर्म नहीं हो पाते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के दक्षिणी ढाल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तरी ढाल होते हैं।
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भूमि की बनावट-
शुष्क मरुस्थली भूमि आर्द्र भूमि की अपेक्षा शीघ्रता से गर्म तथा ठण्डी होती हैं। यही कारण है कि मरुस्थलों में अधिक गर्मी तथा अधिक सर्दी पड़ती है।
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धरातल की ऊंचाई-
ऊंचाई के अनुसार तापमान घटता है। ऊंचाई पर हवा भी विरल होती है, क्योंकि उसमें धूल-कण तथा जल का प्रायः अभाव रहता है। इसी कारण एक ही अक्षांश में स्थित मैदान एवं पठारों में तापमान का भारी अन्तर पाया जाता है। पठारों पर अपेक्षाकृत मैदानों के ऊंचाई के कारण तापमान कम पाया जाता है।
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प्रचलित वायु-
जिस तट पर समुद्री हवाएं चलती हैं तापमान बढ़ जाता है। जिस तट से हवाएं चलती हैं उसका तापमान घट जाता है। पछुवा हवाओं से महाद्वीपों के पश्चिमी तट का तापमान बढ़ जाता है और पूर्वी तट का तापमान घट जाता है। सन्मार्गी हवाओं से महाद्वीपों के पूर्वी तट का तापमान बढ़ जाता है तथा पश्चिमी तट का तापमान घट जाता है। इसके अतिरिक्त ऊष्ण भागों से आने वाली वायु तापमान बढ़ा देती हैं तथा ठण्डे भागों से आने वाली वायु तापमान को कम कर देती हैं।
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वायु राशियां-
वायु राशियां भी तापक्रम को प्रभावित करती हैं, जैसे-(अ) शीतकाल की उत्तरी-पूर्वी मानसून हवाएं मध्य एशिया, ज़ीन, जापान, व मंचूरिया आदि में जनवरी मास में तापक्रम को हिमांक तक गिरा देती हैं। (ब) उत्तरी साइबेरिया की शीतल हवाएं शीत ऋतु में मध्य यूरोप के तापक्रम को प्रभावित करती हैं। (स) शीत में चलने वाली पश्चिमी हवाएं उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के तापक्रम को नीचे गिरने से रोकती हैं।
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मेघ तथा चक्रवात-
मेघों तथा जलवाष्प का आवरण ताप विकिरण में बाधक होता है। अतः इनके कारण तापमान के वितरण में विभेद पैदा हो जाता है। इनके वायुमण्डल सघनता में भी अन्तर पड़ जाता है।
चक्रवातों में विभिन्न प्रकार के मेघ बारी-बारी से पैदा हो जाते हैं। इनमें तरह-तरह की आंधियां, टाइफून, फोयन, चिनकू आदि पैदा हो जाते हैं, जिससे तापमान के वितरण में भारी अक्रमबद्धता पैदा हो जाती हैं।
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समुद्र से दूरी-
जल की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म होता है, अतः भूमध्य रेखा के निकट स्थल पर समतापी रेखायें ध्रुव की ओर और जल पर भूमध्य रेखा की ओर झुकी रहती है। स्थल शीघ्र ठण्डा हो जाता है। अतः ध्रुवीय प्रदेश के स्थल पर समताप रेखाएं भूमध्य रेखा की ओर और जल पर ध्रुवों की ओर झुक जाती हैं। ध्रुवीय तथा मध्यरेखीय प्रदेशों के मध्य कुल अक्षांशों पर स्थल तथा जल का तापमान एक-सा रहता है और वहां पर समतापी रेखाएं लगभग सीधी रहती हैं। इस प्रकार थल और जल के वितरण के कारण तापमान में विभिन्नताएं पैदा हो जाती हैं।
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समुद्री जलधारा-
धरातल की उष्णता के वितरण पर समुद्री धाराओं का भी प्रभाव पड़ता है। गर्म धाराएं जिस तट से होकर प्रवाहित होती हैं वहां के तापमान को बढ़ा देती हैं। उनके ऊपर से बहने वाली वायु भी गर्म होकर निकटवर्ती भाग के तापमान को बढ़ा देती है। गर्म धाराओं के कारण ठण्डे समुद्रों का भी तापमान बढ़ जाता है। इसके विपरीत ठण्डी धाराएं निकटवर्ती तथा सागरीय भाग के तापमान को घटा देती हैं।
तापमान का क्षैतिज वितरण
तापमान के वितरण पर अक्षांश रेखा ताप मण्डलों का निर्धारण अक्षांश रेखाओं मुख्य तीन भागों में विभाजित किया गया
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उष्ण तापमण्डल-
उष्ण ताप कर्क और मकर रेखाओं के बीच के भाग वर्ष में दो बार अवश्य पड़ती हैं। इसी से है तथा कभी भी ताप हिमांक तक नहीं पहुचता।
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शीतोष्ण तापमण्डल-
शीतोष्ण पर दोनों गोलार्द्ध में 23 1°/4 अक्षांश से
तापमण्डल की अपेक्षा ठण्डा होता है। इससे अधिक के कभी नहीं होते हैं।
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शीत तापमण्डल-
शीत ताप अक्षांश से ध्रुवं तक फैला हुआ हैं। इस प्रभाव से धरातल पर सबसे अधिक तिरछी सूर्यकी किरण यहा आता है। इस भाग म दिन व रात लम्बाई वर्ष भर चौबीस घण्टे से अधिक रहती है यहां तक कि ध्रुवों पर छह माह को दिकटिबयों हुआ करती हैं।
सूपन नामक जर्मन वैज्ञानिक ने अन्य भौगोलिक परीस्थितियों का विचार करते हुए समतापी रेखाओं द्वारा तापमण्डलों की सीमाएं निर्धारित की हैं। इनके अनुसार 18 डिग्री सेग्रे. की वार्षिक समतापी रेखा उष्ण मण्डल की सीमा बनाती है और 10 डिग्री सेग्रे. की ग्रीष्म ऋतु की समतापी शीतोष्ण और शीतमण्डलों को अलग करती हैं। सूपन के अनुसार निम्न तारामण्डल हैं-
- उष्ण भूमध्य रेखीय कटिबन्ध (Hot Equatorial Belt )
- उत्तर शीतोष्ण कटिबन्ध (North Temperate Zone)
- दक्षिण शीतोष्ण कटिबन्ध (South Temperate Zone)
- उत्तर शीत कटिबन्ध (North Cold Cap)
- दक्षिण शीत कटिबन्ध (South Cold Cap)
कोइपेन नामक वैज्ञानिक ने भी वार्षिक तापमान के आधार पर सम्पूर्ण धरातल को निम्न पांच तापमण्डलों में विभाजित किया है-
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उष्ण कटिबन्ध-
जहां पर 20° सेग्रे से अधिक वार्षिक तापमान रहता है, उसे उष्ण कटिबन्ध अथवा उष्ण ताप मण्डल कहते हैं।
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शुष्क क्षेत्र-
यहां पर चार से ग्यारह माह तक तापमान 20° से अधिक और एक से आठ माह तक 10° से 200 सेग्रे तक रहता है। इसको उपोष्ण कटिबन्ध (Sub Ecooquincl Zone) कहते हैं।
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अर्द्ध मासोथर्मल क्षेत्र-
यहां पर चार से बारह माह तक 10° से 20° से. तक तापमान रहता है। इसको कोष्ण शीतोष्ण कटिबन्ध कहते हैं।
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अर्द्ध माइकोथर्मल क्षेत्र-
यह भाग अति शीत ध्रुवीय कटिबन्ध अर्थात् अतिशीतमण्डल का है। ये धरातल पर ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश हैं। यहां वर्ष भर तापमान 10° सेग्रे. से कम रहता है।
थार्नवेट ने धरातल पर तापमान की मात्रा के आधार पर भूमण्डल को विभिन्न तापमण्डलों में बांटा है-
- मण्डल (A) = कटिबन्ध (Tropical) अर्थात् अति गर्म भाग।
- मण्डल (B) = मध्य तापीय (Micro-thermal) साधारण गर्मी तथा वर्षा 15° सेग्रे. से 16° से. तापमान।
- मण्डल (C) = सूक्ष्मतापीय (Meso-thermal) कम गर्मी, कम औसत वार्षिक ताप परिशीतल तथा छोटी गर्मी की ऋतु और अधिक ठण्डी जाड़े की ऋतु।
- मण्डल (D) = शरद् अथवा टैगा।
- मण्डल (E) = शीत अथवा टुण्ड्रा
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