असम्यक असर (Undue influence)

असम्यक असर (Undue influence)- परिभाषा, आवश्यक तत्त्व एवं संविदा के प्रभाव

असम्यक असर (Undue influence)

ऐन्सन के अनुसार, “जब पक्षकार एक दूसरे से इस प्रकार विश्वास की स्थिति में होते हैं कि एक दूसरे पर अपना असर डाल सकते हों जो स्वयं में प्राकृतिक तथा उचित हो परन्तु उसे नाजायज प्रकार से प्रयोग किया गया तो इसे असम्यक असर कहेंगे।”

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 16 असम्यक असर निम्न रुप से परिभाषित करती है। –

  1. संविदा असम्यक् असर द्वारा उत्प्रेरित कही जाती है जहां कि पक्षकारों के बीच विद्यमान सम्बन्ध ऐसे हैं कि उनमें से एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में है और उस स्थिति का उपयोग उस दूसरे पक्षकार से अऋजु फायदा अभिप्राप्त करने के लिए करता है।
  2. विशिष्टतया और पूर्ववर्ती सिद्धान्त की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में समझा जाता है जब कि वह-
  • उस अन्य पर वास्तविक या दृश्यमान प्राधिकार रखता है, या उस अन्य के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध की स्थिति में है; अथवा
  • ऐसे व्यक्ति के साथ संविदा करता है जिसकी मानसिक सामर्थ्य पर आयु, रुग्णता या मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण अस्थायी या स्थायी रूप से प्रभाव पड़ा है।
  1. जहाँ कि कोई व्यक्ति, जो किसी अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में हो, उसके साथ संविदा करता है, और वह संव्यवहार देखने में ही या दिये गये साक्ष्य के आधार पर लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होता है वहाँ यह साबित करने का भार कि ऐसी संविदा असम्यक् असर से उत्प्रेरित नहीं की गयी थी उस व्यक्ति पर होगा जो उस अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में था।

इस उपधारा की कोई भी बात भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 111 के उपबन्धों पर प्रभाव नहीं डालेगी।

इस प्रकार संविदा असम्यक् असर द्वारा करायी गयी तब कही जाती है जब-

  1. एक पक्षकार के दूसरे पक्षकार से ऐसा सम्बन्ध हो कि वह दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में हो, और
  2. उन्होंने दूसरे पक्षकार से अनुचित फायदा उठाने के लिए उस स्थिति का उपयोग किया हो।

एक व्यक्ति दूसरे किसी व्यक्ति की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में तब कहा जाता है जब वह ऐसे व्यक्ति के साथ संविदा करता-

  • जिस पर वास्तविक या दृश्यमान प्राधिकार रखता है; या
  • जिसके साथ वैश्वासिक सम्बन्ध की स्थिति में हो; या
  • लोकात्मा विरुद्ध प्रतीत होने वाली संविदा के बारे में यह साबित करने का भार कि संविदा असम्यक् असर द्वारा नहीं करायी गई थी उस व्यक्ति पर होगा जो दूसरे पक्षकार की इच्छा अधिशासित करने की स्थिति में था।

असम्यक असर के आवश्यक तत्व

संविदा असम्यक् असर द्वारा करायी गयी तब कही जाती हैं जब किसी संविदा में निम्नलिखित तत्व उपस्थित हों –

  1. सम्बन्धों के कारण एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में हो –

    जब संविदा का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित या प्रभावित करने की स्थिति में होता है तो संविदा असम्यक् असर के अधीन करायी गयी होती है, उदाहरणार्थ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत मन्नू सिंह v. उमादत्त पाण्डे के वाद में-

एक आध्यात्मिक गुरू ने अपने चेले को यह कहकर धन देने के लिए प्रभावित किया कि वह यदि अपनी सारी सम्पत्ति ट्रस्ट को दान में दे देगा तो उसे मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति और स्वर्ग में शान्ति मिलेगी। उस चेले ने अपनी सम्पत्ति दान दे दी।

निर्णीत हुआ कि संविदा असम्यक् असर द्वारा प्रभावित थी।

  1. अधिशासित करने की स्थिति का उपयोग अनुचित फायदा उठाने के प्रयोजन से किया गया हो-

    एक पक्षकार का दूसरे पक्षकार को अधिशासित करने की स्थिति में होना ही पर्याप्त नहीं होता तब तक ऐसी स्थिति का उपयोग अनुचित लाभ उठाने के आशय से नहीं किया जाता।

  1. वास्तविक या दृश्यमान प्राधिकार ( धारा 16 (2) ())

व्यक्ति जो दूसरे की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में कहे जाते हैं- ऐसा व्यक्ति जा किसी दूसरे व्यक्ति पर वास्तविक या दृश्यमान प्राधिकार रखता है उसके बारे में यह उपधारणा की जाती है कि वह दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में होता है।

ऐसा प्राधिकार रखने वाले व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं अभियुक्त के प्रति पुलिस एवं मजिस्ट्रेट, कर दाताओं के प्रति आयकर अधिकारी, किसी कर्मचारी के प्रति उसका नियोजक आदि। जहाँ किसी बीमार कर्मचारी को उसके अधिकारी ने इस आश्वासन पर छुट्टी दी हो ड्यूटी पर वापस नहीं आयेगा वहाँ ऐसा आश्वासन धारा 16(i) के अधीन शून्य होगा और कर्मचारी को ड्यूटी पर आने दिया जायेगा।

ii. वैश्वासिक सम्बन्ध-

वैश्वासिक सम्बन्ध की श्रेणी अत्यन्त विस्तृत है क्योंकि भरोसे एवं विश्वास के सभी सम्बन्ध वैश्वासिक सम्बन्ध की श्रेणी में आते हैं। उदाहरणार्थ बालक एवं माता-पिता या संरक्षक के सम्बन्ध, न्यास के हिताधिकारी और न्यासी का सम्बन्ध, मरीज और डॉक्टर का सम्बन्ध, वकील और मुवक्किल का सम्बन्ध न्याय के हिताधिकारी और न्यायी का सम्बन्ध, भागीदार और फर्म के सम्बन्ध तथा मालिक और अभिकर्ता के सम्बन्ध धारा 16 का दृष्टान्त (क) बाप-बेटे के वैश्वासिक सम्बन्ध के बारे में उपयुक्त उदाहरण है-

  • अ, जिसने अपने पुत्र ब को उसकी अप्राप्तवयता के दौरान में धन उधार दिया था, ब के प्राप्तवय होने पर अपने पैत्रिक असर के दुरुपयोग द्वारा उससे उस उधार धन की बाबत शोध्य करता है।

राशि से अधिक रकम के लिए एक बन्धपत्र अभिप्राप्त कर लेता है। अ असम्यक् असर का प्रयोग वैश्वासिक सम्बन्ध के बारे में रावमणि अम्माल v. भूरासमी पदयाची और अन्य का वाद उल्लेखनीय है -एक महिला अपनी छोटी बहन का पालन-पोषण कर रही थी। बहन अविवाहिता एवं अनपढ़ थी। महिला ने अपनी छोटी बहन से एक विलेख पर हस्ताक्षर करवा लिया।

निर्णीत हुआ कि विलेख असम्यक् असर द्वारा प्राप्त किया गया था।

iii. दिमागी रूप से असमर्थ व्यक्ति के साथ संविदा करने वाला (धारा 16 (2) (ख))

जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संविदा करता है जिसकी मानसिक सामर्थ्य पर आयु, रुग्णता या मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण अस्थायी या स्थायी रूप से प्रभाव पड़ा हो, दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में कहा जाता है। धारा 16 का दृष्टान्त (ख) इस स्थिति को और अधिक स्पष्ट कर देता है-.

  • रोग या आयु से क्षीण हुए मनुष्य क पर ख का, जो असर उसके चिकित्सीय परिचारक के नाते है, उस असर से ख को उसकी वृत्तिक सेवाओं के लिए एक अयुक्तियुक्त राशि देने का करार करने के लिए क उत्प्रेरित किया जाता है। ख असम्यक् असर का प्रयोग करता है।

इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत लक्ष्मीम्मा v. टी० नारायन का वाद एक उपयुक्त उदाहरण है-एक बूढ़ा आदमी जो कई बीमारियों से पीड़ित था इलाज करवाने के लिए नर्सिंग होम में भरती हुआ। वहाँ उसने अपनी सारी सम्पत्ति एक ही लड़के को दान-पत्र द्वारा दे दी। दूसरे लड़के को कुछ भी नहीं दिया।

निर्णीत हुआ कि वह दान-पत्र असम्यक् असर के अधीन लिखा गया था इसलिए शून्यकरणीय था।

अन्तःकरण विरुद्ध प्रतीत होने वाली संविदाएँ धारा 16 (3) –

जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से संविदा करता है जिसकी वह इच्छा अधिशासित करने की स्थिति में था और ऐसी संविदा अंतःकरण विरुद्ध प्रतीत होती हो चाहे ऐसा संव्यवहार देखने से प्रतीत हो या दिये गये साक्ष्य के आधार पर तो वहाँ यह साबित करने का भार कि संविदा असम्यक् असर से उत्प्रेरित नहीं की गयी थी उस पर होता है जो दूसरे पक्षकार की इच्छा अधिशासित करने की स्थिति में था जैसा कि धारा 16 का दृष्टान्त (ग) स्पष्ट करता है-

अ अपने ग्राम के साहूकार ब का ऋणी होते हुए एक नई संविदा करके ऐसे निबंधनों पर धन उधार लेता है जो लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होते हैं। यह साबित करने का भार कि संविदा असम्यक् असर से उत्प्रेरित नहीं की गयी थी, ब पर है।

उपरोक्त संदर्भ को स्पष्ट करने के लिए में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत वाद शेर सिंह बनाम प्रिथी सिंह एक उपयुक्त उदाहरण है-इस वाद-वादी जो बहुत बूढ़ा था दुर्बल तथा दिमागी रूप से परेशान था। पत्नी की मृत्यु और लड़कियों के विवाह के बाद बिल्कुल अकेला रह गया। प्रतिवादी जो वादी का नजदीकी रिश्तेदार और संयुक्त परिवार का सदस्य था। वादी की देखरेख तथा वादी की खेती का प्रबन्ध करता था। प्रतिवादी ने बादी की सारी अन्तरणीय सम्पत्ति अपने नाम अन्तरित करवा ली थी।

इस बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविदा अन्तः करण विरुद्ध प्रतीत होती थी क्योंकि ऐसा कोई युक्तियुक्त कारण नहीं प्रतीत होता था कि वादी अपने लड़कों तथा लड़कियों को कुछ भी न देता। अतः यह साबित करने का भार प्रतिवादी पर था कि संविदा असम्यक असर द्वारा नहीं करायी गयी थी। चूंकि प्रतिवादी यह साबित करने में असफल रहा। इसलिए संविदा वादी के विकल्प पर शून्यकरणीय थी।

पर्दानशीन औरतों के साथ संविदा

पर्दानशीन औरतें पर्दे में रहकर समाज से कुछ अर्थों में पृथक जीवन बिताती हैं। उन्हें सांसारिक बातों का विशेष ज्ञान नहीं होता है इसलिए विधि द्वारा उन्हें विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। सामान्यतया पर्दानशीन औरत उसे कहते हैं जो देश की प्रथा या समुदाय विशेष के चलन के अनुसार समाज से पृथक रहने को बाध्य हैं इसलिए जो व्यक्ति उनसे संविदा करता है उसे ही यह साबित करना पड़ता है कि पर्दानशीन स्त्री को संव्यवहार की प्रकृति एवं परिणाम को अच्छी तरह से समझा दिया गया था।

पर्दानशीन औरतों के साथ की गयी संविदा असम्यक् असर द्वारा प्रभावित मानी जाती है। यदि दूसरा पक्षकार यह नहीं कर देता कि उक्त महिला को संविदा करने के पूर्व संविदा की शर्तों के बारे में समझा नहीं दिया गया था और उक्त महिला ने स्वतन्त्र सम्मति से संविदा की थी।

परन्तु पर्दानशीन औरत की किसी अधिनियम में कोई परिभाषा नहीं दी गयी है। इसलिए न्यायालयों को वाद के तथ्यों के आधार पर यह निश्चित करना पड़ता है कि संविदा पर्दानशीन औरत द्वारा की गयी थी या नहीं। वैसे समाज से पूर्णरूप से पृथक रहने वाली औरत को पर्दानशीन औरतों की श्रेणी में रखा जा सकता है।

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