लाहौर घोषणा, संयुक्त वक्तव्य, समझ यादपत्र (फरवरी, 1999)
फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को एक अच्छी स्वस्थता, दिशा तथा गति देने के लिये भारत ने एक बड़ा प्रयास किया जब प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक सरकारी तथा एक गैर-सरकारी प्रतिनिधिमण्डल के साथ लाहौर यात्रा की तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री श्री नवाज शरीफ और अन्य नेताओं से व्यापक बातचीत के बाद तीन महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों-लाहौर घोषणा, संयुक्त वक्तव्य तथा समझ यादपत्र पर हस्ताक्षर किये। परन्तु इस यात्रा के कुछ देर बाद पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र में अवैध घुसपैठ तथा कब्जे के प्रयास के परिणामस्वरूप दोनों देशों में कारगिल युद्ध छिड़ गया तथा दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण, युद्ध जैसी स्थिति में आ गये तथा लाहौर घोषणा हाव में ही उड़ गई। लेकिन इस यात्रा के दौरान हस्ताक्षरबद्ध किये गये दस्तावेजों का ऐतिहासिक महत्त्व आज भी है तथा इनमें लिखित प्रावधानों का जानना भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों के अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिये अति आवश्यक है।
लाहौर घोषणा (Lahore Declaration)
प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा के दौरान यह घोषणा 21 फरवरी, 1999 को दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने हस्ताक्षर बद्ध की। इस में लिखा गया कि दोनों देशों में शांति तथा स्थायित्व, तथा अपने लोगों की उन्नति तथा समृद्धि के लिये एक सांझे दृष्टिकोण के आधार पर भारत तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों को यह विश्वास था कि स्थायी शान्ति तथा मित्रतापूर्ण सहयोगी एवं समरूप सम्बन्ध विकसित करने के द्वारा ही दोनों देशों के प्रमुख हितों की रक्षा की जा सकती थी तथा उन्हें अच्छे भविष्य की ओर अपनी शक्ति लगाने के योग्य बनाया जा सकता था।
दोनों नेताओं ने यह स्वीकार किया कि दोनों देशों में सुरक्षा वातावरण के परमाणु पहलू के उनके दोनों देशों में विरोध को दूर करने के उत्तरदायित्व को बढ़ा दिया था।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धान्तों तथा उद्देश्यों के प्रति तथा सार्वभौमिक रूप में स्वीकृत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्तों के प्रतिबद्धता के साथ दोनों देश यह निश्चय दोहराते हैं कि शिमला समझौते को इसके अक्षरों तथा भावना के साथ पूर्णरूप में दृढ़ता से लागू करेंगे। दोनों देश सार्वभौमिक परमाणु निःशस्त्रीकरण तथा परमाणु अप्रसार के उद्देश्य को स्वीकार करते हैं तथा दोनों आपसी विश्वास निर्माण करने वाले पगों, जो कि सुरक्षा वातावरण को सुधारने के लिये आवश्यक हैं, की महत्ता को स्वीकार करते हैं, अपने 23 सितम्बर, 1998 के समझौते को याद करते हुए कि शांति और सुरक्षा दोनों देशों के सर्वोच्च हित में है तथा जम्मू और कश्मीर के साथ सभी आपसी मुद्दों का सुलझाव आवश्यक है तथा इसीलिये यह स्वीकार किया जाता है कि दोनों देशों की सरकारें जम्मू तथा कश्मीर के मुद्दे सहित सभी मुद्दों के समाधान के लिये प्रयासों को तेज और गम्भीर करेंगे, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, आपसी द्विपक्षीय वार्तालाप की समुचित प्रक्रिया को तेज करेंगे, परमाणु शस्त्रों के दुर्घटनावश तथा गैर-अधिकृत प्रयोग के खतरे को कम करने के लिए एकदम पग उठाएंगे तथा परमाणु एवं परम्परागत क्षेत्रों में विरोध का निवारण करने तथा विश्वास पैदा करने के लिये विभिन्न धारणाओं तथा सिद्धान्तों पर विचार विमर्श करेंगे। दोनों देश सार्क के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करते हैं तथा इसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये इकट्ठे प्रयत्ल करने की बात को फिर स्वीकार करते हैं ताकि दक्षिण एशिया के लोग तेज आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक विकास के द्वारा अपने जीवन स्तर को सुधार सकें; सभी प्रकार के आतंकवाद की निंदा करते हैं तथा इनका सामना करने का निश्चय प्रकट करते हैं, तथा मानव अधिकारों और भौतिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करेंगे तथा उनको बढ़ावा देंगे।
इस घोषणा में दोनों देशों ने आपसी सम्बन्धों के विकास के उचित और सकारात्मक विकास के लिये दिशा-निर्देश तथा स्वीकृत सिद्धान्त अपनाने का प्रयास किया तथा नये परमाणु स्तर को देखते हुए परमाणु ‘दुर्घटनाओं तथा परमाणु शस्त्रों के अनधिकृत प्रयोगों को रोकने का निर्णय लिया। यह एक महत्त्वपूर्ण निर्णय था तथा लाहौर घोषणा ने भारत-पाक सम्बन्धों को एक नया आधार देने का प्रयास किया।
अन्य पढ़ें…
संयुक्त वक्तव्य (Joint Statement)
प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी की दो दिवसीय पाकिस्तान यात्रा के अन्त में 21 फरवरी, 1999 को एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें कहा गया कि दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों, सार्क के अन्तर्गत क्षेत्रीय सहयोग तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बातचीत के द्वारा निर्णय लिया कि-
- दोनों देशों के विदेश मन्त्री समय-समय पर मिलेंगे तथा परमाणु मुद्दों सहित आपसी महत्त्व के मुद्दो पर विचार करेंगे,
- दोनों देश WTO से सम्बन्धित मुद्दों पर सलाह करेंगे ताकि दोनों की स्थितियों में तालमेल रहे,
- सूचना तकनोलोजी, विशेषकर Y2K समस्या का सामना करने के क्षेत्र में सहोयग के क्षेत्रों में दोनों देश निश्चित करेंगे,
- वीज़ा तथा यातायात सम्बन्धी व्यवस्था को और उदार बनाने के लिये दोनों देश सलाह-मशविरा करेंगे,
- लापता युद्धबन्दियों तथा अन्य हिरासत में रह रहे नागरिकों के मानवतावादी मुद्दे के सम्बन्ध में दोनों देश को सदस्यीय समिति समिति का गठन मन्त्रीस्तर पर करेंगे।
दोनों नेताओं ने लाहौर और नई दिल्ली के मध्य बस सेवा शुरू करने, मछुआरों तथा अन्य नागरिक बन्दियों की रिहाई तथा खेल क्षेत्र में पुनः स्थापित सम्बन्धों पर सन्तोष व्यक्त किया, दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के निर्देशन पर दोनों के विदेश सचिवों ने एक स्मरण पत्र पर 21 फरवरी,1999 को हस्ताक्षर किये जिसमें दोनों देशों में शांति और व्यवस्था के वातावरण को उत्साहित करने के लिये आवश्यक पगों को निश्चित किया गया तथा दोनों नेताओं ने लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
इस संयुक्त वक्तव्य में दोनों देशों ने, जहाँ इस यात्रा पर सन्तोष व्यक्त किया वहाँ भविष्य के सम्बन्धों के सम्बन्ध में भी कुछ सिद्धान्त (विचार) अपनाए।
समझ का स्मरण-पत्र
(Memorandum of Understanding)
21 फरवरी, 1999 को दोनों देशों के विदेश सचिवों ने समय एक स्मरण पत्र पर हस्ताक्षर किये। लाहौर घोषणा की कुछ विशेषताओं को दोहराया गया तथा यह सहमतिपूर्ण निर्णय लिया गया कि
- परमाणु एवं परम्परागत क्षेत्रों में विश्वास निर्माण के लिये पग उठाने तथा विरोध को दूर करने के लिये दोनों देश सुरक्षा धारणाओं के सम्बन्ध में व्यापक वार्तालाप करें;
- अपने-अपने बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण के बारे में दोनों देश एक दूसरे को पूर्व सूचना देंगे;
- परमाणु दुर्घटनाओं तथा अनधिकृत परमाणु प्रयोगों के खतरे को रोकने के लिये दोनों देश राष्ट्रीय स्तर पर उचित पग उठायेंगे;
- दोनों देशों ने जो भविष्य में परमाणु परीक्षण न करने का अपना-अपना निर्णय लिया है उसे बनाए रखेंगे लेकिन प्रभुसत्तात्मक आवश्यकताओं के उभरने पर इस निर्णय को बदला भी जा सकता है;
- समुद्री यातायात में दुर्घटना को रोकने के लिये दोनों देश एक समझौता करेंगे।;
- समय-समय पर दोनों देश विश्वास निर्माण के सम्बन्ध में उठाए गये पगों की समीक्षा करेंगे तथा जहाँ आवश्यकता होगी वहाँ सलाहकारी तन्त्रों की स्थापना करेंगे;
- दोनों देश दोनों डी० जी० मिलीटरी-आपरेशन्स के मध्य संचार व्यवस्था को और सुरक्षित तथा उच्चस्तरीय बनाने के कार्य की समीक्षा करेंगे; तथा (8) सुरक्षा, निःशस्त्रीकरण तथा परमाणु अप्रसार के मुद्दों पर द्विपक्षीय परामर्श करेंगे।
यह भी लिखा गया कि जहाँ कहीं भी जरूरी होगा इन पगों के तकनीकी विवरण को स्पष्ट करने के लिये दोनों देशों के विशेषज्ञों की बैठकें की जायेंगी तथा सन् 1999 के मध्य तक द्विपक्षीय समझौते किये जायेंगे।
इस प्रकार फरवरी 1999 में भारत तथा पाकिस्तान के मध्य उच्चस्तरीय सम्पर्क स्थापित किये गये तथा वार्तालाप हुआ तथा तीन महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी किये गये। इससे यह आशा बनी कि भारत-पाक सम्बन्ध अब आगे से बेहतर हो जायेंगे। परन्तु ऐसा हुआ नहीं। इसके कारण निम्नलिखित तत्त्व रहे हैं-
- पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ तथा मई 1999 में कारगिल युद्ध का आरम्भ होगा।
- पाकिस्तान द्वारा जम्मू तथा कश्मीर के वास्तविक नियंत्रण रेखा (कारगिल-क्षेत्र) की निश्चित स्थिति को स्वीकार करने से इन्कार।
- एक नये भारत-पाक युद्ध की सम्भावना।
- पाकिस्तान का यह अड़ियल मत कि सबसे पहले कश्मीर का मुद्दा हल किया जाये तथा भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध अच्छे और विकसित हो सकते हैं।
- पाकिस्तान के द्वारा कश्मीर घाटी में चल रहा अप्रत्यक्ष युद्ध (Proxy War) जारी रखना।
- पाकिस्तान द्वारा भारत को सर्वाधिक वरीयता प्राप्त राष्ट्र (MFN) का दर्जा न दिया जाना।
- पाकिस्तान द्वारा चीन के माध्यम से भारतीय सुरक्षा पर दबाव बढ़ाने के प्रयास। प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा के दौरान ही चीन के विदेश मन्त्री भी पाकिस्तान की यात्रा कर रहे थे। इस अवसर पर पाकिस्तानी प्रेस तथा कुछ नेताओं ने अपने भारत-विरोधी विचारों को प्रकट करने में कोई संकोच नहीं किया था।
- पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुददे का अन्तर्राष्ट्रीयकरण किये जाने के प्रयास।
- भारत में विद्यमान राजनीतिक उथल-पुथल तथा एक काम चलाऊ सरकार की उपस्थिति।
- पाकिस्तान की घरेलू राजनीति की आवश्यकताएं।
- दोनों देशों द्वारा मिसाइल शस्त्र-निर्माण करने की होड़।
- पाकिस्तान में कुछ कट्टरपंथी संस्थाएं जैसे जमायते इस्लामी भारत के साथ सम्बन्धों के समन्वय में सदैव नकारात्मक और विरोधी रुख अपनाती रही हैं और आज भी स्थिति ऐसी ही है। ऐसे संगठनों ने श्री वाजपेयी की सद्भावना यात्रा का भी पूर्ण विरोध किया था। ऐसे तत्त्व पाकिस्तान की सरकार को भारत विरोधी नीति अपनाने के लिये मजबूर करते रहे हैं। ऐसे ही तत्त्व पाकिस्तान को कश्मीर कारगिल, पंजाब आदि क्षेत्रों में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को सैनिक संरक्षण, सहायता तथा निर्देशन देने के लिये विवश करते रहे हैं।
महत्वपूर्ण लिंक
- आसियान के कार्य एवं भूमिका (Functions & Role of ASEAN)
- सार्क (SAARC)- कार्य, शिखर सम्मेलन, उद्देश्य, सिद्धांत, एवं भूमिका
- “भारत की विदेश नीति” के मूलभूत कारक (उद्देश्य एवं सिद्धांत)
- भारत-चीन सम्बन्धों का इतिहास एवं विवाद के मुद्दे
- नरसिम्हा राव एवं अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल की विदेश नीति
Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।