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अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निःशस्त्रीकरण में प्रगति (1980-2001)

अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निःशस्त्रीकरण में प्रगति (1980-2001)

1980 के दशक में शीत युद्ध के दुबारा छिड़ने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण फिर बहुत तनावपूर्ण तथा संदेहजनक बन गया। (भू० पू०) सोवियत संघ तथा अमरीका एक बार फिर एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगे। इसी कारण ये निःशस्त्रीकरण के लिए जेनेवा वार्ता के लिए आगे नहीं आए। अफगानिस्तान में (भू०पू०) सोवियत संघ के हसतक्षेप, अमरीका के राष्ट्रपति का अमरीका को विश्व में नम्बर एक की शक्ति बनाने के प्रयास के कारण निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के विचार से सहमत करवाने की गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के राष्ट्रों की असफलता, अमरीका का सामरिक प्रतिरक्षा उपक्रमण या सितारा युद्ध कार्यक्रम, पाकिस्तान द्वारा परमाणु अस्त्र-सम्पन्न बनने का प्रयल एवं परमाणु बम रखने वाला पहला मुस्लिम राज्य आदि सभी ने मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को बहुत अधिक जटिल तथा उलझावपूर्ण बना दिया। दोनों ही शक्तियाँ समय-समय पर निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रणके लिए अपनी-अपनी योजनाएँ, प्रस्ताव तथा कार्यक्रम सामने रखती रहीं परन्तु दोनों में से प्रत्येक शक्ति दूसरे के विचारों को तत्काल ही रद्द कर देती रही।

हिन्द महासागर क्षेत्र में शस्त्र-परिसीमन तथा परम्परागत शस्त्रों पर अमरीकी-सोवियत गतिरोध, SAT I II की असफलता तथा (भू०पू०) सोवियत संघ का अफगानिस्तान में हस्तक्षेप के कारण शक्ति गुटों के बीच नई राजनीतिक सैनिक मुठभेड़, निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के सम्बन्ध में कोई साहसिक तथा नया प्रयास करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलता, परमाणु शस्त्र दौड़ की गति तथा स्वरूप में वृद्धि, इन सभी ने मिलकर 1980 में निःशस्त्रीकरण की समस्या को बेहद समस्यात्मक तथा जटिल बना दिया। विश्व जनमत निश्चय ही निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के पक्ष में हुआ परन्तु राज्य निःशस्त्रीकरण विशेषतया परमाणु निःशस्त्रीकरण की ओर कोई ठोस कदम उठाने के स्थान पर अभी भी शस्त्र निर्माण के प्रयलों में जुटे रहे। निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के सम्बंध में कुछ घोषणाएँ अमरीका सोवियत संघ ने प्रस्तुत की परन्तु सफलता कम ही हाथ लगी। 1981 के सोवियत सुझाव, 1981 में अमरीकी राष्ट्रपति रीगन का Zero Option प्रस्ताव तथा 1982 के सोवियत राष्ट्रपति ऐंड्रोपोव ने एक योजना प्रस्तुत की, यह सभी प्रयास असफल रहे। फिर रूस तथा अमरीका में START वार्तालाप आरम्भ हुआ और इससे एक नई आशा पैदा हुई।

  1. START वार्ताएं 1982-

    29 जून, 1983 में जेनेवा में START शुरू हुई। सोवियत और अमरीकी प्रतिनिधियों ने अपनी वार्ता गुप्त रखने का निर्णय किया। तथापि उनके प्रतिनिधियों द्वारा प्रेस में जो बयान दिया गया उससे निःशस्त्रीकरण पर उनके विचारों का पता चलता था। (भू०पू०) सोवियत संघ ने अपने बड़े दूरमारक मिसाइलों तथा बमवर्षक जहाजों में पर्याप्त मात्रा में कटौती करना इस शर्त पर स्वीका किया कि अमरीका यूरोप में अपने नए माध्यम-दूरमारक मिसाइलों का प्रसार न करे तथा आगे भी अपने सारे क्रूज मिसाइल का कड़ा प्रतिबन्ध स्वीकार करे। (भू०पू०) सोवियत संघ इस सम्मेलन में इस START को INF के साथ सम्बन्धित करना चाहता था। दूसरी ओर अमरीका INF को START से अलग ही रखना चाहता था। इसलिए यूरोप ने अपने मित्र राष्ट्रों पर अपनी परमाणु छत्र-छाया बनाए रखने की इच्छा को प्रकट किया तथा साथ ही वह (भू०पू०) सोवियत संघ के साथ शस्त्र-नियन्त्रण प्रबन्ध के लिए भी काम करना चाहता था।

START द्वारा दोनों महाशक्तियों ने सामाजिक परमाणु शक्तियों में एक पक्षीय कटौती पर विचार किया। अमरीका के प्रस्ताव के अनुसार, पहली स्थिति में दोनों शक्तियों को कुल 5000 परमाणु स्फोटक तक सीमित किया जाए जिनमें से 2500 ICBM पर आधारित हों। ICBM तथा SLBM छोड़ने वाले यन्त्र भी दोनों तरफ 800 तक सीमित कर दिए जाएं। इसके बदले में अमरीका की योजना में बड़ी संख्या में (1565) तक उनके लांचरों को तोड़ना शामिल था। यह (भू०पू०) सोवियत संघ को स्वीकार नहीं था क्योंकि इसमें दोनों को एक जैसा लाभ नहीं होना था। इसलिए (भू०पू०) सोवियत संघ ने प्रत्युत्तर में एक और प्रस्ताव रखा जिसके द्वारा वितरक-भार वाहकों की संख्या 1500 तक सीमित कर दी जानी थी। यह प्रस्ताव अमरीकियों को स्वीकार्य नहीं था। इन परिस्थितियों में START का कोई शुभारम्भ न हो सका।

  1. INF वार्ताएँ-

    अमरीका तथा (भू०पू०) सोवियत संघ के बीच यूरोपीय मिसाइल की समस्या तथा कथित INF वार्ताएँ अमरीका के ‘Zero Option’ प्रस्तावों पर बल तथा इन प्रस्तावों पर रूस की अस्वीकृति की दलदल में ही फंस गई। NATO द्वारा पश्चिमी यूरोप के पेरशिंग II तथा क्रूज़ मिसाइल के विस्तार के निर्णय पर चलने के निश्चय ने (भू० पू०) सोवियत संघ 1984 में INF पर होने वाली जेनेवा वार्ता में उपस्थित न होने का निर्णय करने के लिए प्रेरित किया।

  2. जेनेवा वार्ता का पुनः आरम्भ करने पर समझौता, 1985-

    1983 में अमरीका तथा (भू०प्र०) सोवियत संघ के बीच जो गतिरोध पैदा हुआ था वह जनवरी 1985 तक चलता रहा और तब दोनों ने एक बार फिर अपनी वार्ता शुरू करने का निर्णय किया। गतिरोध को समाप्त करने के विचार से अमरीका के राज्य-सचिव जार्ज शुल्ज़ तथा सोवियत संघ के विदेश मन्त्री एंडरे ग्रोमीको जेनेवा में दो दिन (जनवरी 7-8, 1985) के लिये मिले तथा मार्च 1985 में दोनों ने बातचीत करन तथा अन्तरिक्ष में शस्त्र दौड़ को रोकने के लिए फिर से ताजा बातचीत शुरू करना स्वीकार किया, जिसमें प्रति उपग्रह तथा बहुचर्चित सितारा युद्ध भी शामिल था। वार्ता की शर्ते निश्चित हो गईं तथा दोनों शक्तियाँ अन्तरिक्ष तथा परमाणु शस्त्रों से सम्बन्धित प्रश्नों के जाल पर बातचीत करने के लिए वचनबद्ध हुईं। इस समझौते में पहले उठे विरोध के सम्बन्ध में भी एक समझौता हुआ। (भू० पू०) सोवियत संघ ने अमरीका के साथ START, MRF तथा INF वार्ता को साथ-साथ ही शुरू करने का निर्णयकिया। निर्णय किया गया कि बातचीत करने वाली टीम को तीन भागों में बाँट दिया जाएगा। यह जबकि एक टीम दूरमारक सामरिक शस्त्रों, अन्तः महाद्वीपीय मिसाइलों या पनडुब्बियों या बमवर्षकों द्वारा छोड़े गए परमाणु विस्फोटक पर बातचीत करेगी, दूसरी मध्यवर्ती शस्त्रों (विशेषतया सोवियत SS-20 मिसाइल तथा EATO पेरशिंग II मिसाइल) के बारे।

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