क्रान्तिकारी दल
लार्ड कर्जन दमनकारी नीति, बंगाल विभाजन, आर्थिक शोषण तथा प्राकृतिक प्रकोपों ने भारतीयों में व्यापक असन्तोष उत्पन्न कर दिया था । विशेषकर बंगाल और महाराष्ट्र के नवयुवकों ने क्रान्तिकारी संगठनों का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया । बंगाल और महाराष्ट्र दोनों ही स्थानों पर क्रान्तिकारी आन्दोलन का श्री गणेश हुआ।
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बंगाल में क्रान्तिकारी दल की स्थापना-
बंगाल में ब्रिटिश सरकार के दमनचक्र के फलस्वरूप क्रान्तिकारियों ने अपनी कार्यवाहियों प्रारम्भ कर दीं। उन्होंने पश्चिमी देशों के समान ही क्रान्तिकारी गुप्त समितियों का संगठन किया। क्रान्तिकारी दल का नेतृत्व वीरेन्द्र कुमार घोष और भूपेन्द्रनाथ दत्त ने किया। इस दल ने ‘युगान्तर’ तथा ‘संध्या’ नामक समाचार-पत्रों के माध्यम से अपने कार्यक्रम का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया।
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क्रान्तिकारी दल के प्रमुख कार्य–
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मुजफ्फरपुर बम काण्ड-
सन् 1907 के बाद बंगाल के क्रान्तिकारियों ने अनेक आतंकपूर्ण कार्य किये। 6 दिसम्बर, 1907 ई० को क्रान्तिकारियों ने मिदनापुर के निकट उप-गवर्नर की गाड़ी को बम से उड़ाने का प्रयास किया। 23 दिसम्बर को एक क्रान्तिकारी ने ढाका के एक भूतपूर्व जिलाधीश को गोली मार दी, परन्तु वह गोली उसके प्राण न ले सकी। इसके बाद क्रान्तिकारियों ने मुजफ्फरपुर के जार्ज किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका किन्तु उस समय उस गाड़ी में किंग्सफोर्ड के स्थान पर दो अंग्रेज महिलायें बैठी हुई थीं, जिनकी तत्काल मृत्यु हो गयी। अपराध के लिए सरकार ने खुदीराम बोस को फाँसी पर चढ़ा दिया।
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अलीपुर केस–
इसके बाद एक अन्य घटना घटी, जो ‘अलीपुर केस’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस के में सरकार ने अरविन्द घोष सहित 19 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार किया और उनके पास के कुछ बम, डायनामाइट तथा कारतूस बरामद किये। इस केस में अरविन्द घोष और कुछ व्यक्तियों को छोड़ दिया गया और शेष व्यक्तियों को कठोर सजायें दी गयीं। क्रान्तिकारियों ने कुछ अन्य हत्यायें भी की, जिनका सम्बन्ध मुजफ्फरपुर और अलीपुर केस से था। उस समय बंगाल में लगभग 500 शाखायें कार्य कर रही थीं।
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पंजाब में क्रान्तिकारी दल के कार्य–
पंजाब भी क्रान्तिकारी आन्दोलन से अछूता न रहा, किन्तु पंजाब का क्रांतिकारी आन्दोलन बंगाल के समान आतंवादी नहीं था और न वहाँ क्रान्तिकारी संस्थायें ही स्थापित हो पाई थीं। फिर भी वहाँ पर सरकार को दमन नीति के कारण लाहौर और रावलपिंडी में सरकार के विरूद्ध कुछ उपद्रव अवश्य हुये। सन् 1907-1908 में पंजाब सरकार ने ऐसी भूमि सम्बन्धी नीति को अपनाया जिसके कारण वहाँ के कृषकों में व्यापक असन्तोष व्याप्त गया। मई 1907 में सरकार ने लाला लाजपत राय को क्रान्तिकारी घोषित करके देश से निर्वासित कर दिया। सरकार के इस कार्य से पंजाब की जनता बहुत उत्तेजित हो उठी। इसी समय सरकार भारतीय सम्पादकों के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। इससे भी जनता में भारी असन्तोष फैला। सरदार अजीतसिंह के नेतृत्व में सरकार की भूमि सम्बन्धी नीति के विरूद्ध लायलपुर में एक सभा हुई, जिसमें लाला लाजपत राय और अजीत सिंह ने सरकार की नीति की कटु आलोचना की। फलस्वरूप सरकार ने इन दोनों नेताओं को देश से निष्कासित कर दिया। कुछ समय बाद सरकार ने बुद्धिमानी से कार्य किया और अपनी भूमि सम्बन्धी नीति में परिवर्तन कर दिया, जिससे पंजाब में शान्ति स्थापित हो गयी।
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मद्रास क्रान्तिकारी दल के कार्य–
सन् 1907 में श्री विपिन चन्द्र पाल ने मद्रास का दौरा करके अपने विचारों का प्रचार किया, जिसका वहाँ के नवयुवकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। सरकार ने अगस्त 1907 में विपिन चन्द्र पाल को गिरफ्तार करके 6 माह के लिये जेल भेज दिया। जेल से छूटने पर उन्होने एक सभा का आयोजन किया। इस सभा का आयोजन करने वालों को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया जिसके कारण टिनवली में एक उपद्रव हो गया सरकार ने कठोर दमन-चक्र चलाया और आन्दोलन के नेताओं और पत्र सम्पादकों को बन्दी बनाकर उन पर अभियोग चलाया। इस कार्य से उत्तेजित होकर क्रान्तिकारियों ने टिनक्ली के मजिस्ट्रेट को गोली से उड़ा दिया।
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विदेशों में क्रान्तिकारियों के कार्य–
भारत के क्रान्तिकारियों ने विदेशों में अपनी शाखायें स्थापित की। सन् 1905 में श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लन्दन में ‘नेशनल होमरूल सोसाइटी’ की स्थापना की। इसके साथ ही उनहोंने ‘इण्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक एक मासिक-पत्र का प्रकाशन भी किया। सन् 1906 में विनायक दामोदर सावरकर लन्दन पहुंचे और उन्होने इण्डिया हाउस कार्यों में सक्रिय भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1908 में इण्डिया हाउस में उन्होने ‘विद्रोह दिवस’ मनाया। उन्होंने भारत के क्रान्तिकारियों की सहायता के लिये 20 पिस्तौलें भी भेजी। महाराष्ट्र में सावरकर का भाई गणेश क्रान्तिकारी दल का संगठन कर रहा था। 9 जून, 1909 ई० को सरकार ने उसको भी देश से निष्कासित कर दिया। इसके बाद की सूचना पाकर सावरकर ने अंग्रेजों से बदला लेने का निश्चय किया। 1 जुलाई, 1909 ई0 को मदनलाल धींगरा ने फ्रांसिस कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसके फलस्वरूप उनको प्राणदण्ड मिला। कुछ समय बाद सावरकर को बन्दी बनाकर जेल भेज दिया गया। उनको उम्र कैद की सजा दी गयी । 11 दिस्मबर, 1909 ई0 को एक क्रान्तिकारी ने मि0 जैक्शन को गोली से उड़ा दिया। इस अपराध के लिये सात व्यक्त गिरफ्तार किये गये, जिनमें से तीन को फांसी की सजा दी गयी। इस प्रकार कुछ छोटी-मोटी हत्याओं की घटनायें हुई किन्तु धीरे-धीरे क्रान्तिकारी दल का पतन होना आरम्भ हो गया।
क्रान्तिकारी आन्दोलन की असफलता के कारण
इस क्रान्तिकारी की असफलता के निम्नलिखित कारण थे
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केन्द्रीय संगठन का अभाव–
क्रान्तिकारी आन्दोलन की असफलता का एक प्रमुख कारण यह था कि क्रान्तिकारियों में केन्द्रीय संगठन का सर्वथा अभाव था। देश के विभिन्न भागों में क्रान्तिकारी नेताओं में पारस्परिक सहयोग तथा सम्बन्ध का पूर्ण अभाव था।
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अस्त्र–शस्त्रों की कमी–
क्रान्तिकारियों के पास अस्त्र-शस्त्रों का भारी अभाव था, उन्हें कङ्गिनाई से अस्त्र-शस्त्र प्राप्त होते थे। उन्हें आम जनता का सहयोग भी प्राप्त न था। वे शस्त्रों को प्राप्त करने के लिये अत्यन्त गोपनीयता के साथ कार्य करते थे। लेकिन सरकारी गुप्तचरों की आँखों में अधिक समय तक धूल नहीं झोंक पाते थे और शीघ्र ही पकड़ लिये जाते थे और जेल भेज दिये जाते थे।
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उच्च मध्य वर्ग की सहानुभूति का अभाव–
इस आन्दोलन की असफलता का एक कारण यह भी था कि इस आन्दोलन के प्रति भारत का उच्च मध्यम वर्ग कोङ्ग सहानुभूति नहीं रखता था। उच्च मध्यम वर्ग के नेता हिंसात्मक और आतंकवादी कार्यों को घृणा की दृष्टि देखते थे। वे केवल वैधानिक साधनों में ही आस्था रखते थे। श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आशुतोष मुखर्जी जैसे महान् नेताओं ने तो सरकार से यह प्रार्थना की कि इस क्रान्तिकारी आन्दोलन को कठारेतापूर्वक दमन कर दिया जाये।
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ब्रिटिश सरकार की कठोर नीति–
ब्रिटिश सरकार की कङ्गोर दमनकारी नीति के कारण क्रान्तिकारी आन्दोलन असफल हो गया। सरकार ने अपनी दमनकारी नीति के द्वारा जनता में आतंक फैलाकर जनता को इतना अधिक भयभीत कर दिया कि वह इस आन्दोलन के प्रति कोई सहानुभूति न रख सकी। फलतः यह आन्दोलन विफल रहा।
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उदारवादियों का व्यवहार–
कांग्रेस के उदारवादही नेता इस आन्दोलन से पूर्णतया उदसीन रहे। इतना ही नहीं उदारवादियों ने क्रान्तिकारियों के आतंकवादी कार्यों की आलोचन की तथा क्रान्तिकारी आन्दोलन को समाप्त करने का उन्होंने प्रयत्न भी किया। ऐसी स्थिति में इस आन्दोलन का विफल होना स्वाभाविक था।
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गाँधी जी का राजनीति में प्रवेश–
महात्मागांधी ने भारतीय राजनीतिक में प्रवष्टि होकर सत्य-अहिंसा के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह सिद्धान्त जनता में बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो गया क्योंकि यह भारतीयों की मनोवृत्ति के मनुकूल था। गाँधी जी के इस अहिंसात्मक आन्दोलन ने क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रभावहीन बना दिया।
महत्वपूर्ण लिंक
- 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश नीति में परिवर्तन
- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण
- भारतीय राजनीति में उदारवादी नीति (1885 से 1905 तक)
- उग्रवादी के उदय के प्रमुख कारण
- उदारवादी राष्ट्रीयता का मूल्यांकन
- मुस्लिम समाज का धर्म और सामाजिक सुधार आंदोलन
- सुधार आन्दोलन में जाति प्रथा और अछूतोद्धार / हरिजन आन्दोलन
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