(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था का उद्देश्य तथा कार्यप्रणाली

प्रान्तों में द्वैध शासन का उद्देश्य तथा कार्यप्रणाली

1919 के अधिनियम के अंतर्गत प्रांतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के अंतर्गत द्वैध शासन व्यवस्था शुरू की गई। द्वैध शासन प्रणाली का जन्मदाता सर लियोनेल काटिस था जिसने सर भूपेन्द्र नाथ बसु के लिए एक सत्र में इस व्यवस्था पर स्पष्टीकरण किया गया था। इस योजना को लॉर्ड मांटेग्यू चैम्सफोर्ड ने अपनाकर प्रांतीय सरकार में पूर्ण रूप से स्थान दे दिया। इस प्रणाली के आधार पर प्रातीय कार्यकारिणी परिषद् को दो भागों में विभाजित, कर दिया गया। पहले भाग में गवर्नर तथा उसकी कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य थे तथा दूसरे भाग में गवर्नर तथा उसे मंत्रीगण। दोनों भागों में सदस्यों की नियुध्कत का ढंग, उनका वेतन तथा कार्यकाल से संबंधित विषय आपस में बहुत ही भिन्न थे। गवर्नर के संबंध कार्यकारिणी के दोनों भागों में साथ अलग-अलग प्रकार के थे। इस विशय में गवर्नर की स्थिति पहले की अपेक्षा कुछ विचित्र थी। भारत सचित्र तथा गवर्नर जनरल का प्रांतीय सरकारों पर नियंत्रण पहले की अपेक्षा कुछ ढीला था। मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट ने इस द्वैध शासन प्रणाली को एक प्रयोगात्मक तथा परिवर्तनशील प्रणाली बतलाया था। इसमें सरकार के दो भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के आपस में सहयोग तथा समन्वय की आवश्यकता थी। कार्यकारिणी के एक क्षेत्र में आंशिक उत्तरादयित्व का सिद्धान्त था तथा दूसरे क्षेत्र में पूर्ण उत्तरादायित्व के सिद्धान्त का समावेश था।

प्रांतो में कार्यकारिणी परिषद् की शक्तियों का विभाजन दो भागों में किया गया- आरक्षित तथा हस्तांरित विषय। आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर, चार सदस्यीय कार्यकारिणी परिषद् के सदस्यों की सहायता से चलाया करता था। व्यावहारिक तौर पर चार सदस्यों में से दो सदस्य भारतीय हुआ करते थे। कार्यकारिणी परिषद् के दूसरे हिस्से के लिए गवर्नर प्रांतीय विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों में से किसी को मंत्रिपद के लिए मनोनीत करता था। संक्षेप में कार्यकारिणी की शक्तियाँ, गवर्नर और उनकी परिषद् तथा गवर्नर और मंत्रिपरिषद् के बीच के बीच विभाजित की गई थी। गवर्नर मंत्रिपरिषद् की सलाह से ही कार्य करता था और मंत्रिगण प्रांतीय विधान सभा के प्रति उत्तरदायी थे। द्वैध शासन प्रणाली के अंतर्गत आरक्षित विषय गवर्नर और उसकी परिषद् और उसकी परिषद् के सदस्यों के अधीन रखे गए थे। ये सदस्य गवर्नर जनरल और गवर्नर के माध्यम से भारत सचिव के प्रति उत्तरादायी थे। जिन विषयों में गलती हो जाने से ब्रिटिश सरकार का कोई अहित न होता हो उन्हें हस्तांरित सूची में रखा गया था। दूसरी ओर ऐसे विषय जहाँ प्रांतों में शान्ति और व्यवस्था बनाए खने का प्रश्न था, जिससे देश का स्थायित्व बना रहे तथा जहाँ प्रांतों में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने का प्रश्न था, जिससे देश का स्थायित्व बना रहे तथा जहाँ वर्गों, श्रेणियों तथा जातियों के हितों की सुरक्षा की आवश्यकता हो उन्हें आरक्षित विषयों में सम्मिलित किया गया था। इसके अंतर्गत मुख्यतः भूमिकर, अकाल-राहत, विधि, शांति और व्यवस्था, पुलिस, रेलवे, जन सेवाएँ आदि विषय आते थे। हस्तांरित विषयों के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन, जन स्वास्थ्य सफ़ाई शिक्षा व चिकित्सा बिक्री कर, उद्योग, विकास इत्यादि सम्मिलित किए गए। उपरोक्त विषयों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने पर स्पष्टीकरण के विषय में गवर्नर का निर्णय अंतिम था। चूँकि अर्थ विभाग आरक्षित विषयों के अधीन था, अतः कार्यकारिणी के दोनों भागों में बँटवारा आवश्यक था जो कि शीर्षस्थ समझैते के अनुसार किया जाता था। यदि इन दोनों भागों में मध्य कोई मनमुटाव अथवा झगड़ा हो जाता था तो गवर्नर को इनका निर्णय करने का अधिकार दिया गया था।

द्वैध-शासन की यह प्रणाली भारत में गवर्नर के अधीन 9 प्रांतों में लागू हुई। इस प्रणाली के अधीन गनर्वर की दोहरी भूमिका थी। हस्तातरित विषयों को गवर्नर मंत्रियों की सामान्य सलाह में करता था, हालाँकि वह इस लाह को मानने पर बाध्य नहीं था। आरक्षित विषय कार्यपालिका परिषद् के चार सदस्यों के अधीन थे तथा गवर्नर इनकी बैङ्गकों का सभापतित्व करता था। विषयों पर निर्णय बहुमत से होता था और विषमता की स्थित में गवर्नर को अपने मंत्रियों तथा परिषद् के निर्णयों को स्वीकार करने की काफी व्यापक शक्ति थी। राज्य के कार्यपालिका का आरक्षित तथा हस्तांतरित नामक दो भागों में विभाजन किया जाना एक प्रकार से सरकार के दो भाग करना था। इसी कारण इनका नाम द्वैध प्रणाली पड़ा।

द्वैध शासन-प्रणाली का उद्देश्य

ब्रिटिश सरकार भारत में उत्तरदायी शासन को शासन को एक ही चरण में शुरू कर देने के पक्ष में नहीं थी। वह यह प्राधिकार धीरे-धीरे किश्तों में देना चाहती थी। क्योंकि वह भारतीयों को इस योग्य नहीं समझती थी कि वे पूर्ण स्वतंत्रता के भार को एकाएक सँभाल लेंगे। अतः भारतीयों को उत्तरदायी सरकार चालने की कला का प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी था। इसका अतिरिक्त द्वैध शासन से यह आशा भी गई थी कि वह ब्रिटिश दफ्तरशाही और भारतीय लोगों के बीच एक पुल का काम करेगा।

द्वैध शासन की कार्यप्रणाली

गवर्नरों के अधीन 9 प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था लागू की गई थी। बंगाल का तथा मध्य प्रांत के अतिरिक्त अन्य प्रांतो में 1937 तक द्वैध शासन के बिना किसी रूकावट के कार्य किया। 1924 से 1927 तक तथा इसके कुछ समय बाद भी द्वैध शासन के मध्य प्रांत में कार्य किया। 1927 के साइमन कमीशन ने मद्रास, बंगाल तथा पंजाब में द्वैध शासन की कार्य पद्धति का अध्ययन किया। मद्रास में गैर-ब्राह्मण जस्टिस दल को विधान सभा में बहुमत प्राप्त हुआ। मंत्रिगण बहुमत दल में ही मनोनीत किए गए थे तथा संयुक्त उत्तरदायित्व पर बल दिया गया। परन्तु 1923 में कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज दल के द्वारा परिषदों की सदस्यता स्वीकार कर लेने से स्थिति में परिवर्तन हो गा। 1926 में स्वराज दल को बहुमत मिला परन्तु मंत्रिमंडल की स्थापना न हो सकी। स्वतंत्र सदस्यों से बल मंत्रिमंडल में स्थायित्व का अभाव था। बंगाल प्रांत में ‘1920 के असहयोग आंदोलन’ के कारण चुनाव में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न हो सका। 1923 से 1925 तक चितरंजनदास के नेतृत्व में स्वराज दल ने परिषदों की सदस्यता को प्राप्त किया। इसका राजनीतिक उद्देश्य नकारात्मक था अर्थात् 1919 के संविधान को भीतर से ही तोड़ फेंकने का था। मध्य प्रांतों में 1924 में स्वराज दल को पूर्ण बहुमत हुआ था परन्तु मंत्रिगण अधिक समय तक न रह सके क्योंकि उनके विरूद्ध अविश्वास के प्रस्ताव पारित कर दिए गए थे। उसके बजट को भी पूर्ण रूप से अस्वीकार कर दिया गया था। 1925 से 1926 तक मंत्रालयों की स्थापना का प्रयास असफल रहा। इसके पश्चात् स्वराज दल ने स्वयं को प्रांतीय परिषद् से अलग कर दिया। पंजाब में भी गैर-कांग्रेस दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ जिससे द्वैध शासन प्रणाली ने संतोषजनक ढंग से कार्य किया।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!