(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

नैल्सन का निम्न स्तरीय संतुलन अवरोध सिद्धान्त (Nelson’s Low Level Equilibrium Trap)

नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध सिद्धान्त

नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध सिद्धान्त (Nelson’s Low Level Equilibrium Trap)

आर.आर. नैल्सन ने अपना निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध का सिद्धान्त 1956 में अमेरिकन एकोनामिक रिव्यू में प्रकाशित अपने एक लेख A Theory of the Low Level Equilibrium Trap’ में प्रस्तुत किया। उनका मानना है कि एक देश में न्यूनतम जीवनयापन स्तर से प्रतिव्यक्ति आय के अधिक हो जाने पर जनसंख्या में वृद्धि होती है जो प्रति व्यक्ति आय को पुनः पीछे ढकेल कर उसे आरंभिक स्थिर संतुलन स्तर पर पहुंचा देती है, और इस प्रकार अल्प-विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं निम्न संतुलन पाश के भंवर जाल में फंसकर रह जाती है।

नैल्सन ने यह प्रतिपादित किया कि “इस निम्न संतुलन पास (अवरोध) से बाहर निकलने के लिए यह आवश्यक है कि इतनी अधिक मात्रा में विनियोग किया जाय कि प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर जनसंख्या की वृद्धि दर को पीछे छोड़ दे क्योंकि प्रारंभ में जब प्रति व्यक्ति आय जीवन निर्वाह स्तर से ऊपर उठती है तो उसके साथ जनसंख्या भी बढ़ती है, पर एक सीमा के बाद प्रति व्यक्ति आय में और वृद्धि होने पर जनसंख्या की वृद्धि दर में गिरावट होने लगती है।”

निम्न स्तरीय संतुलन अवरोध में सहायक तत्त्व

नैल्सन ने निम्नलिखित सामाजिक-प्रौद्योगिक स्थितियों का उल्लेख किया है जो निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध में सहायक होती हैं

  1. ऊँचा सहसंबंध

    नैल्सन का मत है कि अर्द्धविकसित देशों के पिछड़ेपन का कारण या इसके जाल में फंसे रहने कता कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के कारण जनसंख्या में वृद्धि होना है। इस प्रकार इन दोओं में ऊँचा सहसंबंध होता है।

  2. विनियोग की नीची प्रवृत्ति

    अर्द्धविकसित देशों के पिछड़ेपन का कारण यह भी है कि यहां प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो जाती है परन्तु वहां के लोग अपने जीवन निर्वाह को पूरा करने में ही सामान्य आय को व्यय कर देते हैं। फलतः बचत होती ही नहीं। यदि थोड़ी बहुत बचत होती भी है तो वहाँ के निवासियों में विनियोग करने की प्रवृत्ति बहुत कम होती है।

  3. भूमि की कमी

    अर्द्धविकसित देशों में आय का प्रमुख साधन कृषि ही होता है। इसलिए देश में उपलब्ध समस्त कृषि योग्य भूमि पर खेती कर ली जाती है। फलतः देश का आर्थिक विकास करने के लिए और उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि योग्य भूमि की कमी रहती है।

  4. उत्पादन के पुराने तरीके

    अर्द्धविकसित देश निम्न संतुलन जाल में इसलिए भी फंसे रहते हैं, क्योंकि वहां उत्पादन की पुरानी तकनीकों का उपयोग किया जाता है जिससे वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक आती है।

नैल्सन का मॉडल

नैल्सन मॉडल इस मान्यता पर आधारित है कि जनसंख्या की वृद्धि प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय की वृद्धि परस्पर आश्रित तथा संबंधित हैं। आय के निम्न स्तर पर किसी अर्थव्यवस्था का निम्न स्तरीय संतुलन अवरोध समझाने के लिए नैल्सन ने संबंधों के तीन समुच्चय प्रयोग किये हैं।

  1. जनसंख्या वृद्धि समीकरण-

    जनसंख्या वृद्धि का समीकरण यह स्पष्ट करता है कि नीची प्रति व्यक्ति आय वाले क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि की दर dp/p में परिवर्तित मृत्यु दर में परिवर्तनों के कारण होते हैं, और मृत्यु दर में परिवर्तन प्रति व्यक्ति आय के स्तर में परिवर्तनों के कारण होते हैं। किन्तु जब प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम जीवन निर्वाह स्तर से ऊपर पहुँच जाती है, तो प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि मृत्यु दर को प्रभावित नहीं करती।

nalson ka nimn stariya santulan avrodhsiddhant

इस तथ्य को उपरोक्त चित्र की सहायता से स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है –

उपरोक्त चित्र में Y/p प्रति व्यक्ति आय के स्तर से संबंध रखता है, जो कि क्षैतिज अक्ष पर मापी गयी और dp/p जनसंख्या वृद्धि की प्रतिशत दर जो अनुलंब अक्ष पर मापी गयी है। क्षैतिज अक्ष S बिन्दु, प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम जीवन निर्वाह-स्तर है, जहाँ पर जनसंख्या का वृद्धि वक्र (dp/p)प्रति व्यक्ति आय के स्तर के बराबर है। इस स्तर पर जनसंख्या स्थिर है।

बिन्दु S के बायीं ओर जनसंख्या घटक है। यदि हम जनसंख्या के वृद्धि वक्र के साथ-साथ S से ऊपर की ओर चलें, तो न्यूनतम निर्वाह स्तर से ऊपर प्रति व्यक्ति आय बढ़ने पर, जनसंख्या की वृद्धि-दर ‘एक उच्च भौतिक सीमा’ “T” तक बढ़ती चलती है। कुछ समय तक इस स्तर पर प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या बढ़ेगी और फिर बिन्दु M से गिरना शुरू हो जायेगी। अर्थात् उच्च प्रति व्यक्ति आय पर जनसंख्या की वृद्धि दर गिरेगी।

  1. पूँजी निर्माण से संबंधित समीकरण-

    अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण अथवा शुद्ध विनियोग (dk)बराबर होता है – (i) बचत से निर्मित पूँजी (dk) तथा (ii) कृषि के अन्तर्गत लायी गयी नयी भूमि की मात्रा (dr) अर्थात् dk = dlk’ + dri

चूंकि जैसे- जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है नयी भूमि जोत में आती है पर एक सीमा के बाद नयी भूमि में वृद्धि दुर्लभ हो जायेगी इसलिए यह मान लिया गया है कि नयी भूमि पूँजी निर्माण की स्रोत नहीं है, पूँजी स्टॉक में वृद्धि दर बचत द्वारा ही होगी। यह भी मान लिया गया है कि सभी बचत विनियोग हो जायेगी इस प्रकार –

पूँजी निर्माण में वृद्धि = बचत में वृद्धि = औद्योगिक क्षेत्र में विनियोग में कमी

जब तक आय जीवन निर्वाह स्तर से ऊपर नहीं हो जाती विनियोग में कोई वृद्धि संभव नहीं होगी, इस बिन्दु के बाद विनियोग में वृद्धि प्रति व्यक्ति आय के साथ होती है। नैल्सन ने यह भी माना है कि अविनियोग की भी एक निचली सीमा है क्योंकि कोई कितना भी भूखा क्यों न हो वह रेल या सड़क तोड़कर नहीं खायेगा। इसी तथ्य को उपरोक्त चित्र के B हिस्से में दिखाया गया है।

  • dk/p बचतों में से विनियोग की प्रति व्यक्ति दर है, जो लम्बवत् अक्ष पर मापी गयी है।
  • वक्र dk/p विनियोग का वृद्धि वक्र है, जो विनियोग की प्रति व्यक्ति दर को प्रति व्यक्ति आय के विभिन्न स्तरों से जोड़ता है। यह वक्र क्षैतिज अक्ष को x बिन्दु पर काटता है, जो कि शून्य बचत का स्तर है।
  • x बिंदु के बायीं ओर विनियोग ऋणात्मक है। X शून्य बचत वाले आय स्तर को बतलाता है। जैसे- जैसे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है विनियोग स्तर भी बढ़ता है जिसकी कोई उच्चतम सीमा नहीं है।
  1. आय निर्धारण समीकरण –

nelson ka siddhant

नैल्सन मॉडल का आय-निर्धारण समीकरण उत्पादन फलन की भांति है जो इस मान्यता पर आधारित है कि आय का उत्पादन साधनों के रूप में आगतों का रैखिक सजातीय फलन है अर्थात् (Y) या [उत्पादन (0)] फलन है, पूँजी (k), श्रम (L) व प्रौद्योगिकी स्तर (T) का। इस प्रकार Y or O f(KLT)

मॉडल की उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर ‘आय वृद्धि वक्र’ का निर्माण किया जा सकता है जिसको उपरोक्त चित्र में dy/y के द्वारा किया गया है।

बिन्दु S=X की स्थिति में जनसंख्या स्थिर है, बचत के द्वारा निर्मित प्रति व्यक्ति पूँजी शून्य है, परिणामस्वरूप आय की वृद्धि दर शून्य (dy/y=0) है। स्थिर साम्य के स्तर के ऊपर प्रति व्यक्ति आय के वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति पूँजी की उपलब्धता तथा श्रम शक्ति की वृद्धि के कारण आर्थिक विकास की दर में वृद्धि होती है परंतु प्रौद्योगिकी प्रगति के अभाव में ‘परिवर्तनीय अनुपात नियम’ की क्रियाशीलता के कारण आर्थिक विकास की वृद्धि दर में गिरावट आयेगी।

उपरोक्त तीनों समीकरणों के माध्यम से नैल्सन ने अपना मॉडल तैयार किया।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!