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लोवेन्स्टीन का न्यूनतम क्रांतिक प्रयास का सिद्धांत (Leibenstein Critical Minimum Efforts Thesis)

न्यूनतम क्रांतिक प्रयास का सिद्धान्त 

न्यूनतम क्रांतिक प्रयास का सिद्धान्त

हार्वे लोवेन्स्टीन ने अल्पविकसित देशों के ‘स्थिरता’ की अवस्था के प्रति निदान हेतु ‘न्यूनतम क्रान्तिक प्रयास’ सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। अल्पविकसित देशों में निर्धनता का दुश्चक्र पाया जाता है जो उन्हें प्रति व्यक्ति निम्न आय संतुलन की स्थिति में बनाये रखता है। इस दलदल से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय आवश्यक न्यूनतम मात्रा में निवेश का किया जाना है ताकि प्रति व्यक्ति आय उस स्तर तक बढ़ सके जिससे कि अर्थव्यवस्था सतत् विकास की स्थिति में कायम बनी रहे। यह सिद्धान्त उस मान्यता पर आधारित हैं कि जनसंख्या वृद्धि की दर प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर फलन है और यह विकास की विभिन्न अवस्थाओं से संबंधित है।

प्रथम अवस्था(कम आय)

आपके जीवन निर्वाह साम्य स्तर पर जन्म और मृत्यु दरें दोनों ही अधिकतम होती हैं। अतः जनसंख्या में वृद्धि नहीं होती।

द्वितीय अवस्था – (अधिक आय)

जीवन निर्वाह स्तर से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने पर मृत्यु दरें गिरना प्रारम्भ करती हैं परन्तु जन्म दर तत्काल नहीं घटती और परिणामस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि की दर आधी हो जाती है। मृत्यु दर घटने के कारण बच्चों के अनुत्पादक आय से उनकी उत्पादक आय बढ़ जाती है। फलतः बच्चे की उत्पादन उपयोगिता व सुरक्षा उपयोगिता एकदम बढ़ जाती है इसीलिये जन्मदर घटाने की कोई प्रेरणा नहीं रहती।

तृतीय अवस्था (और अधिक आय वृद्धि) –

जब प्रति व्यक्ति आय में और अधिक वृद्धि होती है और अधिक बच्चे जिन्दा रहते हैं तो बच्चों की उपभोग-उपयोगिता घट जाती है। साथ ही आय में वृद्धि हो जाने कारण सुरक्षा उपयोगिता भी महत्त्वपूर्ण नहीं रह जाती। इसके अतिरिक्त विशिष्टीकरण, सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता तथा नौकरी व्यवस्था आदि में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि आदि कारणों से बड़े परिवार का पालन-पोषण कठिन हो जाता है व शिक्षा, स्वास्थ्य, कपड़े व अन्य खर्चों के कारण प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लागतें भी बढ़ जाती हैं। ऐसी अवस्था में लागतें जब लाभ से अधिक हो जाती हैं तो फिर जन्मदर को कम रखने की इच्छा प्रबल हो जाती है।

चतुर्थ अवस्था (बहुत अधिक आय)

जब प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक हो जाती है मृत्यु दर व जन्म-दर दोनों ही बिलकुल कम हो जाती है और जनसंख्या में बहुत थोड़ी मात्रा में वृद्धि होती है।

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की दर को बढ़ाती है। किन्तु ऐसा एक सीमा तक ही होता है और उसके पश्चात् प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की दर को बढ़ाती है वृद्धि होने से जन्मदर गिरने लगती है। फ्रांस, जापान, और कई पश्चिमी यूरोप के देशों में इस प्रकार के उदाहरण देखे जा सकते हैं। लेवेन्स्टीन की यह मान्यता है कि जनसंख्या की अधिकतम वृद्धि जीव विज्ञान की दृष्टि से 3% से 4% के बीच में होती है।

अतः जनसंख्या की इस ऊँची दर को नियंत्रित करने और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके जनसंख्या वृद्धि की दर को घटाने के लिए न्यूनतम आवश्यक प्रयत्नों की आवश्यकता है।

न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त की व्याख्या

यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि अल्प-विकसित देशों जनसंख्या दबावों के कारण निर्धनता एवं अल्प पूँजी निर्माण का दुश्चक्र पाया जाता है। “ये विषम वृत इसलिए विषम बने रहते हैं क्योंकि पर्याप्त मात्रा के विकास के लिए वांछित प्रोत्साहन (प्रयास) उपलब्ध नहीं किये जा सकते।” जब निवेश आवश्यक न्यूनतम मात्रा से कम किया जाता है तो उससे आय में वृद्धि तो होती है लेकिन बढ़ी हुई आय, बढ़ी हुई जनसंख्या द्वारा हड़प ली जाती है और फलस्वरूप विकास का क्रम स्थिर बना रहता है।

लेवेन्स्टीन ने अपनी पुस्तक में अपने इस सिद्धान्त की व्याख्या के लिए अनेक रेखाचित्रों का सहारा लिया। इनमें से कुछ का विश्लेषण निम्न हैं

  1. ऐसी स्थिति जबकि अर्थव्यवस्था में जनसंख्या की वृद्धि शून्य हो तथा निवेश या पूँजी संचयन भी शून्य हो –

इस स्थिति की व्याख्या रेखाचित्र में की गयी है। इस स्थिति की व्याख्या के लिए यह मान लिया गया है कि उत्पादन की मात्रा संसाधन तथा जनसंख्या के आधार पर निर्भर करती हैं। दोनों ही जनसंख्या तथा निबल निवेश प्रति व्यक्ति आय के ऊपर निर्भर करते हैं।

principle of minimum critical effort

इस रेखाचित्र में खींची गयी AB रेखा जो आधार अक्ष के समानान्तर है, प्रदर्शित करती है अर्थात् जनसंख्या की वृद्धि दर शून्य है जिसका अर्थ हुआ कि मृत्युदर तथा जन्मदर बराबर है। शून्य जनसंख्या की वृद्धिदर प्रति व्यक्ति आय OA के स्तर पर है यदि प्रति व्यक्ति आय OA से अधिक हुयी तो जनसंख्या की वृद्धि दर धनात्मक होगी, OA पर शून्य तथा OA से कम पर ऋणात्मक होगी। OA स्तर पर निवल निवेश भी शून्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि नयी सृजित पूँजी सम्पत्ति केवल पूँजी सम्पत्ति के मूल्य में ह्रास था तोड़-फोड़ को पूरा करने के लिए या प्रतिस्थापन के लिए आवश्यक पूँजी के बराबर है।

रेखाचित्र में R1, R2, R3….Rn वक्र वैकल्पिक प्रति व्यक्ति आय प्रदर्शित करती है जिसे दिये हुए संसाधन P1, P2, P3…..Pn से वैकल्पिक जनसंख्या के आकार पर प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार ये वक्र एक निश्चित संसाधन के साथ प्रति व्यक्ति तथा जनसंख्या के आकार के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करती है।

हम सबसे पहले R1 को लेते हैं तो संसाधन R1 तथा जनसंख्या के आकार OP के साथ सम्वध व्यक्त करती हैं। मूल संस्थति की स्थिति E पर है। इस स्थिति में प्रति व्यक्ति आय OA है जिस पर X = Z हैं। अब मान लिजिए प्रति विनियोग के कारण संसाधन R1 से बढ़कर R2 हो जाते हैं। स्पष्ट है यदि जनसंख्या OP1 हो तो नये संसाधन R2 के साथ प्रति व्यक्ति आय Oa या P1a होगी पर इस बढ़ी हुयी प्रति व्यक्ति आय के कारण जनसंख्या में वृद्धि होगी। मान लीजिए इसके कारण जनसंख्या का आकार बढ़कर OP2 हो जाता है तो प्रति व्यक्ति आय घटकर P2b या Ob हो जायेगी। निवेश की ओर अधिक वृद्धि यदि R3 तक हो तो जनसंख्या का आकार OP3 हो जायेगा और प्रति व्यक्ति आय घटकर P3c व Oc हो जायेंगी और यह क्रिया तब तक चलती है जब तक कि पुनः OA की स्थिति में नहीं प्राप्त हो जाती है। अतः स्पष्ट है, इस स्थिति में जनसंख्या एक अवसादी शक्ति के रूप में कार्य करेगी। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि लाती है और जनसंख्या की वृद्धि इतनी बलवती है कि अर्थव्यवस्था पुनः अल्पस्तरीय संस्थिति में वहीं पहुंच जाती है। यहां हम लोगों ने जो व्याख्या की उसमें यह मान लिया कि प्रत्येक गड़बड़ी चाहे वह कितना बड़ी क्यों न हो, जनसंख्या वृद्धि का दीर्घकालीन प्रभाव प्रेरित विनियोग के कारण उत्पन्न प्रभाव की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होगा। लेबन्स्टीन इस सम्भावना के अतिरिक्त दो और सम्भावनाओं की बात करते हैं –

  • प्रणाली छोटी गड़बड़ियों के लिये ‘अर्द्धस्थिर संस्थिति के रूप में है पर बड़ी गड़बड़ियों के सम्बन्ध में ऐसा नहीं है। कहने का अर्थ यह है कि छोटी-मोटी गड़बड़ियों के सम्बन्ध में प्रति व्यक्ति आय को गिराने में जनसंख्या की अवसादी शक्ति प्रेरित विनियोग की उत्प्रेरक शक्ति से अधिक प्रबल होगी और बड़ी गड़बड़ियों या असन्तुलनों के सम्बन्ध में जनसंख्या की अवसादी शक्ति कम महत्त्वपूर्ण होगी।
  • प्रारम्भ से ही संस्थिति अस्थायी है, स्वयं लेवेन्स्टीन वाली सम्भावना को अल्पविकसित देशों के सम्बन्ध में व्यावहारिक तथा ठीक नहीं पाते हैं।
  1. ऐसी स्थिति जबकि शून्य विनियोग रेखा (OX) तथा शून्य जनसंख्या वृद्धि रेखा (OZ) एक ही नहीं हो बल्कि X रेखा Z रेखा से ऊपर है- इस स्थिति को रेखाचित्र में प्रदर्शित किया गया है

nyuntam krantik siddhant

इस रेखाचित्र में MM न्यूनतम प्रतिव्यक्ति आय रेखा है जिससे अधिक प्रति व्यक्ति आय स्तर पर आर्थिक संवृद्धि कायम रह सकेगा। RO पहले ही की तरह निश्चित संसाधन RO के साथ प्रति व्यक्ति तथा जनसंख्या के आकार के बीच सम्बन्ध स्थापित करती है। मान लीजिये कि मूल संस्थति E पर है। यहाँ जनसंख्या का आकार OPO, प्रति व्यक्ति आय OA तथा संसाधन RO है। यह देखा जा सकता है कि प्राप्त विनियोग के कारण कोई भी गड़बड़ी जो प्रणाली को EXZ या ENM1X के भीतर रखती है तो पुनः मूल संस्थिति E की स्थिति कायम हो जायेगी। उदाहरण के लिए यदि गड़बड़ी के बाद नयी संस्थति का बिन्दु XEZ के भीतर ही मान लीजिये E1 इस बिन्दु पर निबल निवेश ऋणात्मक होगा क्योंकि E1 बिन्दु EX या शून्य विनियोग से नीचे हैं तथा जनसंख्या की वृद्धिदर धनात्मक या शून्य से अधिक होगी क्योंकि छ, बिन्दु शून्य जनसंख्या वृद्धि रेखा EZ से ऊपर है। इस स्थिति में अविनियोग तथा जनसंख्या वृद्धि दोनों ही प्रति व्यक्ति आय को नीचे लायेंगे और पुनः संस्थति E पर कायम हो जायेगी। लेवेन्स्टीन का कहना है कि प्रत्येक साहसिक क्रिया लाभ की आशा के लिए की जाती है। अगर लाभ की आशा साहसी को कम हो तो वह विकासात्मक क्रियाओं में नहीं लगेगा और विकासात्मक कार्य में न लगने का अर्थ है देश के विकास में कमी।

न्यूनतम क्रांतिक प्रयास सिद्धांत का आलोचनात्मक मूल्यांकन

(Critical Evaluation)

लीविन्स्टीन का आवश्यक न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त रोडान के प्रबल प्रयास सिद्धान्त की अपेक्षा अधिक वास्तविक है, यह प्रजातान्त्रिक के कारण विकसित देशों में योजना निर्माताओं के लिये आकर्षण का केन्द्र है परन्तु इस सिद्धान्त में अनेक दोष होने के कारण इसकी आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इस सिद्धान्त में समय तत्व (Time Element) की इपेक्षा की गयी है।
  2. इस सिद्धान्त ने जन्म दर घटाने में राज्य की भूमिका पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
  3. इस सिद्धान्त की यह मान्यता सही नहीं है कि यदि प्रारम्भिक निवेश आवश्यक न्यूनतम आकार से कम है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी।
  4. प्रो. मिन्ट के शब्दों में प्रति व्यक्ति आय के स्तर और वृद्धि दर में स्थापित किया गया फलनात्मक सम्बन्ध काफी जटिल है।”
  5. इस सिद्धान्त में आय, बचत एवं विनियोग के विभिन्न स्तरों पर विदेशी पूँजी तथा अन्य बाह्य घटकों के प्रभाव का अध्ययन नहीं किया जाता है।
  6. सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि प्रतिव्यक्ति आय का फलन है जोकि सही है। वास्तविकता में जनसंख्या में वृद्धि प्रतिव्यक्ति आय का फलन न होकर मृत्यु दर में कमी का परिणाम है।

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