हिन्दू सहदायिकी (Hindu Coparcener)

हिन्दू सहदायिकी 

हिन्दू सहदायिकी एक पृथक निकाय है जो भारतीय संयुक्त परिवार से अलग है। यह एक छोटी संस्था है। यह केवल उन्हीं सदस्यों को सम्मिलित करती है जिनको जन्म से संयुक्त अथवा सहदायिकी सम्पत्ति में हक प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में नरेन्द्र बनाम डबल्यू.टी. कमिश्नर के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि हिन्दू सहदायिकी एक प्रश्न संगठन है जिसमें सहदायिकी सम्पत्ति में हक रखने वाले वे पुरुष सदस्य (सन्तान) आते हैं जो तीन पीढ़ी तक के वंशानुक्रम में है।

मिताक्षरा विधि में सहदायिकी के निम्नलिखित लक्षण वर्णित हैं-

  1. इसमें तीन पीढ़ी तक की पुरुष सन्तानें पैतृक सम्पत्ति में जन्म से हक अर्जित करती हैं।
  2. ये सन्तानें किसी भी विभाजन की माँग कर सकती हैं।
  3. विभाजन होने तक प्रत्येक सदस्य को पूरी सम्पत्ति पर स्वामित्व रहता है।
  4. सह-स्वामित्व से कब्जा तथा सम्पत्ति प्रयोग प्रत्येक सदस्य का समान रूप से होता है।
  5. सम्पत्ति का अन्य संक्रामण बिना आवश्यकता के सम्भव नहीं होता और न अन्य सहदायिकी की सम्पत्ति के बिना सम्भव होता है।
  6. मृत सहदायिकी का हित उनकी मृत्यु के बाद उत्तरजीवितों को चला जाता है। संयुक्त परिवार एवं सहदायिकी एक-दूसरे के पर्यायवाची न होकर पृथक-पृथक संस्था है। संयुक्त परिवार एक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है, जिनमें एक ही पूर्वज के वंशज, उनकी मातायें, पत्नियाँ अथवा विधवायें और अविवाहिता पुत्रियाँ सम्मिलित हैं। यह सदस्यों के परस्पर सपिण्डता पर आधारित है। यह सदस्यों के कृत्य से निर्मित नहीं होता वरन् विधि-सृष्ट होता है। इसके विरुद्ध सहदायिकी एक परिमित संगठन है जिसमें परिवार के वही सदस्य आते हैं जो पूर्वज की पैतृक सम्पत्ति में जन्म से ही अधिकार प्राप्त करते हैं तथा जिनको उस सम्पत्ति का स्वेच्छा से विभाजन करने का अधिकार होता है। इस सहदायिकी में किसी वंश की तीन पीढ़ी तक के वंशज अर्थात् पुत्र, पौत्र एवं प्रपौत्र आते हैं।

सहदायिकी एवं संयुक्त हिन्दू परिवार में अन्तर

  1. संयुक्त हिन्दू परिवार में सदस्यों की संख्या तथा समान पूर्वजों के वंशजों की दूरी सीमित नहीं होती, सहदायिकी संयुक्त परिवार के केवल कुछ निश्चित सदस्यों के लिए होती है।
  2. सहदायिकी केवल उन पुरुष-सदस्यों तक ही सीमित होती है जो पूर्वज से उसको सम्मिलित करके, चार पीढ़ी के अन्तर्गत आते हैं जबकि संयुक्त परिवार में इस प्रकार की कोई भी सीमिततायें नहीं रहतीं।
  3. सहदायिकी केवल पुरुष-सदस्यों तक ही सीमित होने के कारण अन्तिम सहदायिकी बाद समाप्त हो जाती स्थिर रहता है। हैं, जबकि संयुक्त परिवार ऐसे सहदायिक की मृत्यु के बाद भी स्थिर रहता है।
  4. यद्यपि प्रत्येक सहदायिकी या तो संयुक्त परिवार होता है या उसका भाग, किन्तु प्रत्येक संयुक्त परिवार सहदायिकी नहीं है।

किसी सहदायिकी के अवैध पुत्र सहदायिक के सदस्य नहीं होते। अवैध पुत्र का तात्पर्य रखैल की सन्तान से है। हालांकि उन्हें भरण-पोषण पाने का अधिकार होता है। सहदायिक न होने के कारण उसे विभाजन माँगने का अधिकार नहीं है। किन्तु पिता की मृत्यु के बाद वह विभाजन का दावा कर सकता है और एक वैध पुत्र के अश के आधे के बराबर अंश प्राप्त कर सकता है।

हिन्दू सहदायिकी दो प्रकार से समाप्त भी हो जाती है-

  • विभाजन द्वारा, तथा
  • अन्तिम उत्तरजीवी सहदायिकी की मृत्यु द्वारा।

सहदायिकी का बनना

हिन्दू सहदायिकी विधि के द्वारा बनती है न पक्षकारों के कृत्यों के द्वारा। इसके शब्दों में हिन्दू सहदायिकी का गठन विधि के द्वारा होता है न कि पक्षकारों के कृत्यों या आचरण द्वारा। हिन्दु सहदायिकी तीन पीढ़ी तक के सदस्य आते है इसके जन्म के द्वारा या दत्तक ग्रहण के द्वारा कोई भी व्यक्ति शामिल माना जाता है। सहमति या करार के द्वारा कोई भी व्यक्ति हिन्दू सहदायिकी का सदस्य नहीं बन सकता है। जहां कोई व्यक्ति अपने पिता, पितामह या प्रतितामह के दाय में सम्पत्ति पाता है तो उस व्यक्ति के पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र जन्म से ही उस सहदायिकी के सदस्य मान लिये जाते हैं। वर्तमान में मितक्षरा विधि के अन्तर्गत पुत्री भी सहदायिकी की सदस्य हो गयी है। पुत्री को भी पुत्र की भाँति सहदायिकी सम्पत्ति के विभाजन का अधिकार है।

सहदायिकी के अधिकार

हिन्दू सहदायिकी में सहदायिकों के निम्न अधिकार है-

  1. हिन्दू सहदायिकी में सम्पत्ति पर प्रत्येक सहदायिक का संयुक्त कब्जा होता है तथा उसे संयुक्त उपभोग का भी अधिकार होता है। किसी भी सहदायिक का हिस्सा निर्धारित नहीं होता है। परिवार का एक आय होता है तथा उसके प्राप्त लाभ को संयुक्त रूप से जमा किया जाता है। एवं वह संयुक्त परिवारी के आय में सम्मिलित होता है।
  2. हिन्दू सहदायिकी में किसी भी सदस्य का हिस्सा निश्चित नहीं होता है वह सम्पूर्ण परिवार की सम्पत्ति मानी जाती है।
  3. हिन्दू सहदायिकी का कोई भी सदस्य परिवार के कर्ता से अपना या परिवार का हिसाब मांग सकता है तथा सहदायिकी की विधि के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  4. प्रत्येक सहदायिक का सहदायिकी सम्पत्ति पर संयुक्त प्रथा एवं उपभोग का अधिकार होता है वह बिना किसी प्रकार के विभाजन का दावा किये संयुक्त सम्पत्ति का उपभोग कर सकता है।
  5. प्रत्येक सहदायिक को अपना हिस्सा पृथक करने का अधिकार होता है।
  6. हिन्दू सहदायिकी का कोई भी सदस्य अन्य सहदायिकों की सहमति में अपने अधिकारिता हिस्से को उपहार में दे सकता है उसका बन्धक रख सकता है या विक्रय कर सकता है।
  7. हिन्दू सहदायिकी का कोई भी सदस्य किसी ऐसे कार्य को किये जाने से रोक सकता है जो उसके उपभोग में किसी प्रकार की रुकावट डालता है या जिससे सहदायिकी सम्पत्ति बर्बाद हो रही हो।
  8. प्रत्येक सहदायिक को अपने बच्चों तथा पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार होता है।

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