दत्तक ग्रहण या गोद लेना (Adoption)

दत्तक ग्रहण

मनु के अनुसार दत्तक ग्रहण किसी पुत्र को पुत्र के अभाव में ग्रहण करना है। दत्तक से तात्पर्य किसी पुत्र या पुत्री को उसके माता-पिता के घर से दूसरे व्यक्ति के घर में (जो दत्तक ग्रहण करता है) पुत्र-पुत्री के रूप में स्थापित करने से है। जिसके अनुसार यह समझा जाता है कि दत्तक ग्रहण में ग्रहीत पुत्र का दत्तकं ग्रहण करने वाले पिता के घर फिर से जन्म हुआ है तथा पूर्व पिता के घर में उसका सम्बन्ध विच्छेद हुआ मान लिया जाता है। वह पुत्र जिसे उसके माता-पिता किसी व्यक्ति को पुत्र-रूप में दान कर देते हैं, जो पुत्रहीन है तथा जो प्रदत्त पुत्र की ही जाति का हो तथा जल के साथ स्नेहपूर्वक दिया गया हो, तो वह दत्तक पुत्र माना जाता है।

मान्य दत्तक ग्रहण सम्बन्धी अपेक्षाएँ-

अधिनियम की धारा 6 के अनुसार मान्य दत्तक ग्रहण की निम्न अपेक्षायें हैं-

  1. दत्तकग्रहीता व्यक्ति दत्तकग्रहण करने की सामर्थ्य और अधिकार भी रखता हो।
  2. दत्तक देने वाला व्यक्ति ऐसा करने की सामर्थ्य रखता है।
  3. दत्तकग्रहण द्वारा किये जाने योग्य हो।
  4. दत्तकग्रहण अन्य शर्तों के अनुवर्तन में किया गया हो।

दत्तक लेने के लिए समर्थ व्यक्ति-

हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के अनुसार पुरुष एवं स्त्री दोनों दत्तक ग्रहण कर सकते हैं। दत्तक ग्रहीता, चाहे पुरुष हो या स्त्री, को हिन्दू, वयस्क और स्वस्थचित का होना चाहिए। यदि दत्तकग्रहण किसी पुत्र का हो तो यह आवश्यक है कि उसके पास कोई पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र न हो। यदि दत्तकग्रहण किसी पुत्री का है तो आवश्यक है कि दत्तकग्रहीता के पास कोई पुत्री या पुत्र की पुत्री न हो।

पुरुष हिन्दू की दत्तकग्रहण द्वारा लेने की सामर्थ्य –

अधिनियम की धारा 7 में प्रावधान किया गया है कि वही पुरुष जो हिन्दू है स्वस्थचित्त है और वयस्क है वह दत्तकग्रहण द्वारा पुत्र या पुत्री ले सकता है।

दत्तकग्रहीता यदि पुरुष हो तो यह आवश्यक है कि वह अविवाहित हो या विधुर हो या तलाकशुदा हो। दत्तकग्रहण के समय यदि उसके पास पत्नी हो तो पत्नी की सहमति आवश्यक है। यदि एक से अधिक पत्नियाँ सबकी सहमति आवश्यक है।

पत्नी की सहमति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। जब पत्नी-

  1. संसार का परित्याग कर गयी हो,
  2. दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गयी हो, या
  3. किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित हो गया हो।

नारी हिन्दू को दत्तकग्रहण द्वारा लेने की सामर्थ्य-

अधिनियम की धारा 8 में प्रावधान किया गया है कि वही नारी दत्तक ग्रहीता हो सकती है जो अविवाहिता हो, विधवा हो या तलाकशुदा हो। यदि वह विवाहिता है तो वह पति की सहमति से भी दत्तकग्रहण नहीं कर सकती।

हिन्दू नारी दत्तक ग्रहण कर सकती है यदि उसका पति-

  • संन्यासी हो गया हो।
  • दूसरा धर्म स्वीकार कर लिया हो। (हिन्दू न रह गया हो)
  • किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित हो गयी हो।

दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति-

धारा 9 के अनुसार, बालक के पिता या माता या न्यायालय की सहमति से संरक्षक बालक को दत्तक देने के लिए समर्थ हैं। (उपधारा 1) यदि पिता जीवित है तो पिता माता की सम्मति से बालक को दत्तक दे सकता है। लेकिन माता की सम्मति लेना आवश्यक नहीं है जब माता ने-

  • संसार का परित्याग कर दिया हो।
  • दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गयी हो, या
  • किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित हो गयी हो।

माता भी अपनी सन्तान को दत्तक में दे सकती है, यदि बच्चे का पिता-

  1. मर गया हो,
  2. संसार का परित्याग कर दिया हो,
  3. दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गया हो, या
  4. किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित कर दिया गया हो। (उपधारा 3)

जब माता और पिता दोनों मर गये हों या बालक को दत्तक में देने के लिए अयोग्य हो गये हों, तो उसका संरक्षक उसे दत्तकग्रहण में दे सकता है किन्तु ऐसी परिस्थिति में दत्तकग्रहण के मान्य होने के लिए आवश्यक है कि न्यायालय की अनुमति दत्तक के पूर्व प्राप्त कर ली जाय। (उपधारा 4)

दत्तक के लिए अनुमति देने से पूर्व न्यायालय यह भी देखेगा कि “दत्तक देने के प्रतिफलस्वरूप कोई देनगी या पुरस्कार (उन देनगी या पुरस्कार को छोड़कर, जिसे न्यायालय मंजूर करे) या प्राप्त करने के लिए अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदक ने न तो प्राप्त किया है और न प्राप्त करने का करार किया है।

दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति-

हिन्दू दत्तकग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 10 में यह उपबन्ध किया गया है कि कौन बालक गोद लिया और दिया जा सकता है। धारा 10 इस प्रकार है-

  • जाति- जो बालक दत्तक में लिया जाय वह हिन्दू हो।
  • उसे कभी दत्तक में न लिया गया हो।
  • अविवाहित- रूढ़ियों के अभाव में केवल अविवाहित सन्तान को ही गोद लिया जा सकता है।
  • उम्र- 15 वर्ष से कम के बालक को ही गोद लिया जा सकता है। किन्तु दत्तकग्रहीता के के परिवार या समुदाय में यदि इसके विपरीत रूढ़ि है तो 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र की संतान को भी गोद लिया जा सकता है।

मान्य दत्तक ग्रहण की अन्य शर्तें (धारा 11)-

प्रत्येक दत्तकग्रहण में निम्नवर्ती शर्तें पूरी होनी चाहिए-

  • यदि दत्तकग्रहण पुत्र का है जो जिस पिता या माता ने दत्तकग्रहण किया है, उस दत्तकग्रहीता पिता या माता का कोई हिन्दू पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र दत्तकग्रहण के समय जीवित न हो।
  • यदि दत्तकग्रहण पुत्री का है तो जिस पिता या माता ने दत्तकग्रहण किया है, उस दत्तकग्रहीता पिता या माता की कोई हिन्दू पुत्री या पुत्र की पुत्री दत्तकग्रहण के समय जीवित न हो।
  • यदि दत्तकग्रहीता और दत्तक ली जाने वाली सन्तान दोनों भित्र लिंग के हैं तो दत्तकग्रहीता कम से कम बच्चे से 21 वर्ष बड़ा या बड़ी हो।
  • एक ही बालक को एक साथ दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा दत्तक नहीं लिया जा सकेगा।
  • दत्तक लिया जाने वाला बालक जन्म के परिवार से अपने दत्तकग्रहण वाले परिवार में हस्तान्तरित करने के आशय से वास्तव में दत्तक लिया और दिया जाना चाहिए।

परन्तु दत्तक होम का किया जाना किसी भी दत्तकग्रहण की मान्यता के लिए आवश्यक नहीं होगा।

दत्तक ग्रहण के परिणाम अधिनियम की धारा 12 के अनुसार-

दत्तक-ग्रहीता बालक की बाबत यह समझा जायेगा कि दत्तकग्रहण की तारीख से वह अपने दत्तकग्रहीता पिता या माता का समस्त प्रयोजनों के लिए बालक है और यह समझा जायेगा कि उस बालक के अपने जन्म में परिवार के साथ समस्त सम्बन्ध ऐसी तारीख से टूट गये हैं और उनका स्थान उन सम्बन्धों ने ले लिया है जो कि दत्तकग्रहीता द्वारा दत्तकग्रहण के कारण परिवार में सृष्ट हुए हैं-

अपवाद-

  • वह बालक किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकेगा जिससे कि यदि वह अपने जन्म के परिवार में ही रहा होता तो वह विवाह न कर सकता,
  • जो कोई सम्पत्ति दत्तक लिये गये बालक में दत्तकग्रहण के पूर्व निहित हो गयी थी, अपने जन्म के परिवार के नातेदारों के भरण-पोषण करने के आभार सहित ऐसे आभारों के अधीन रहते हुए यदि कोई हो जो कि ऐसी सम्पत्ति के स्वामित्व से संलग्न है, ऐसे व्यक्ति में निहित बनी रहेगी,
  • जो सम्पदा किसी व्यक्ति में दत्तकग्रहण के पूर्व निहित हो गई है, दत्तक बालक को किसी व्यक्ति को उस सम्पदा में से अनिहित नहीं करेगा।

उदाहरणार्थ- क को उसके पिता प ने उसकी माता म की स्वीकृति से च को दत्तक में दे दिय। दत्तक में दिये जाने के बाद क का प तथा म के परिवार से जो उसका स्वाभाविक परिवार है समस्त सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है किन्तु क, प तथा म के परिवार में अपने किसी सपिण्डों तथा प्रतिषिद्ध सम्बन्धियों के साथ दत्तक में दिये जाने के बाद भी विवाह नहीं कर सकता। इस प्रकार के सपिण्डों तथा प्रतिषिद्ध सम्बन्धियों का निर्धारण हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के अनुसार किया जायेगा।

दूसरे अपवाद के अनुसार यदि कोई सम्पत्ति दत्तक ग्रहण में दिये जाने के पूर्व किसी पुत्र अथवा पुत्री में दाय या दान के परिणामस्वरूप या स्वअर्जित सम्पत्ति के रूप में निहित हो चुकी है तो वह उस सम्पत्ति को अपने साथ दत्तकग्रहीता परिवार में ले आयेगा। उदाहरणार्थ क की दो सन्तानें च एवं छ हैं। क ने च को दत्तकग्रहण में म को दे दिया। क की पत्नी ख की मृत्यु च को दत्तकग्रहण में दिये जाने के पूर्व ही हो गयी थी और ख की मृत्यु होने पर उसकी सम्पत्ति दोनों पुत्रों च एवं छ तथा उसके पति में 1/3 अंश प्रत्येक को बराबर प्राप्त हो गया था। च दत्तकग्रहण मैं दिये जाने के पश्चात् इस 1/3 अंश सम्पत्ति जो उसमें निहित हो चुकी थी अपने साथ दत्तकग्रहीता परिवार में ले जायेगा।

तीसरे अपवाद के अनुसार दत्तकग्रहीता पुत्र अथवा पुत्री दत्तकग्रहीता परिवार में किसी व्यक्ति को किसी सम्पत्ति से अनिहित नहीं कर सकता जो उसमें दत्तक ग्रहण के पूर्व निहित हो चुका है।

उदाहरणार्थ- क जो कि हिन्दू पुरुष है एक पुत्र द को दत्तक ग्रहण में लेता है, क के पास अर्जित तथा पैतृक सम्पत्ति है। द के दत्तकग्रहण में दिये जाने से क के स्वअर्जित सम्पत्ति के बारे में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

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