भरण-पोषण की धनराशि के निर्धारण की महत्वपूर्ण बातें

भरण-पोषण की धनराशि का निर्धारण

भरण-पोषण की धनराशि के निर्धारण के सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं है। उसका निर्धारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। परिस्थितियों को सम्यक् रूप से ध्यान में रख कर व्यक्ति की हैसियत तथा उनके वैवाहिक जीवन आदि को समझ कर धनराशि निश्चित की जाती है।

हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 23 ने पोषण की धनराशि निर्धारित करने के लिये न्यायालय को सर्वोपरि अधिकार दे रखा है। पोषण की धनराशि न्यायालय के अपने विवेक के आधार पर निश्चित की जायेगी तथा न्यायालय धनराशि निश्चित करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखेगा-

  1. पत्नी, बालक या वृद्ध माता-पिता के पोषण की धनराशि निर्धारित करते समय-
  • पक्षकारों की अवस्था तथा हैसियत।
  • (ब) दावेदार की युक्तियुक्त माँग।
  • (स) यदि दावेदार अलग रहा हो तो क्या उसका वैसा करना न्यायोचित है।
  • (द) दावेदार की सम्पत्ति का मूल्य तथा (1) उस सम्पत्ति से आय,  (2) दाबेदार की स्वयं की आय,  (3) किसी अन्य रूप में प्राप्त आय। (4) हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण अधिनियम के अन्तर्गत पोषण के अधिकारी व्यक्तियों की संख्या।
  1. किसी आश्रित के पोषण की धनराशि निर्धारित करने के समय न्यायालय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगा-
  • मृतक का ऋण देने के बाद उसकी सम्पत्ति का मूल्य,
  • आश्रित के विषय में मृतक द्वारा इच्छापत्र में कहीं गई बात,
  • दोनों के सम्बन्ध की दूरी,
  • आश्रित की युक्तियुक्त आवश्यकता,
  • मृतक का आश्रित से पूर्व-सम्बन्ध,
  • आश्रित की सम्पत्ति का मूल्य तथा उसकी आय, उसका स्वयं का उपार्जन, किसी अन्य प्रकार से आय,
  • इस अधिनियम के अन्तर्गत आश्रित पोषण के हकदार की संख्या।

मगनभाई छोटूभाई बनाम मनीबेन के मामले में भरण-पोषण की धनराशि पर विचार करते हुये गुजरात उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि मामले के तथ्यों के अनुसार पत्नी को पति की आय में 1/3 अथवा कुछ स्थितियों में 1/2 अंश दिया जाना चाहिये। यदि पति की आय अधिक है और उसको अपने को छोड़ कर अन्य किसी का भरण-पोषण नहीं करना है, उसकी सन्तान पत्नी के साथ रह रही हो तो उस स्थिति में पत्नी को पति की पूरी आय का आधा हिस्सा दे दिया जाना चाहिये।

मालिनी सिंघल बनाम रवि सिंघल के वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘भरण- पोषण की धनराशि के महत्वपूर्ण निर्णय दिया। प्रस्तुत वाद में सम्बन्ध में एक संयुक्त हिन्दू परिवार की सदस्या थी, विवाह के पश्चात् उसके पति ने वादी एक सम्पन्न ने अन्य रिश्तेदारों के समक्ष एक समझौता किया था जिसमें पत्नी को प्रतिमाह उसके भरण-पोषण के लिए 40 हजार रुपया देने की बात तय की गयी थी। साथ ही उसके बेटी के अध्ययन के लिये भी सम्पूर्ण खर्च देने की बात कही गयी थी। विवाह के कुछ समय पश्चात् बादी के पति का देहान्त हो गया था, उसकी मृत्यु के पश्चात् कुटुम्ब के अन्य सदस्यगण ने समझौते के आधार पर खर्च देना बंद कर दिया। बादी ने। को न्यायालय के समक्ष रक्खा। न्यायालय ने प्रस्तुत वाद में समझौते को उचित इस बात ठहराते हुए कुटुम्ब के अन्य सदस्यों को इस बात का निर्देश दिया कि बादी को भरण-पोषण की राशि 40 हजार रु. प्रतिमाह की दर से दिया जाय तथा उसकी सभी बकाया धनराशि उसे दो माह के अन्दर दे दी जाय।

भरण-पोषण के अध्याय में अधिनिमय की धारा 24 में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति भरण-पोषण का दावा करेगा उसे हिन्दू होना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति हिन्दू नहीं रह गया तो वह भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकता। सुन्दरम्बाल बनाम सुब्बिया पिल्लई के बाद में यह निरूपित किया गया कि कोई अविवाहिता पुत्री, जो ईसाई धर्म में परिणत हो गई है, धर्म- परिवर्तन के पूर्व के निर्णय के समय के लिये भी भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। यह एक पूर्ण प्रतिष्ठित सिद्धान्त है कि भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार व्यक्तिगत अधिकार है जो व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध से उत्पन्न होता है तथा व्यक्तिगत अधिकार होने के कारण मृत्यु एवं धर्म-परिवर्तन पर वह अधिकार समाप्त हो जाता है।

परिस्थिति के परिवर्तन पर पोषण-धनराशि को परिवर्तित किया जा सकता है-धारा 25 के अनुसार यदि पोषण की धनराशि में परिवर्तन करना न्यायसंगत है तो उसमें परिवर्तन लाया जा सकता है। इस प्रकार के परिवर्तन परिस्थिति के बदलने पर ही लाये जा सकते हैं। मद्रास के एक मामले में हिन्दू पति ने अपने इच्छापत्र में पोषण के लिये जो धनराशि निर्धारित की थी, वह न्यायालय द्वारा अपर्याप्त समझी गई थी। अतः मृत्यु के बाद न्यायालय ने यह निश्चय किया कि उसे उचित पोषण की धनराशि निश्चित करने का अधिकार होगा।

इस सम्बन्ध में मदन लाल बनाम श्रीमती सुमन के वाद में यह निरूपित किया कि जहाँ पत्नी को भरण-पोषण की धनराशि प्रदत्त कर दी गयी हो और बाद में पत्नी को सन्तान उत्पन्न होती है ऐसे परिवर्तन की दशा में न्यायालय को यह अधिकार होगा कि उसे उचित पोषण की धनराशि निश्चित करें।

न्यायालय द्वारा या सहमति से जो धनराशि इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के पूर्व या बाद में निश्चित हुई है, बाद में उसमें निम्नलिखित आधारों पर परिवर्तन लाया जा सकता है-

  • यदि परिस्थिति में पर्याप्त अन्तर आ गया है।
  • परिस्थिति में ऐसा अन्तर आ गया है कि परिवर्तन न्यायोचित हो गया है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए,  अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हम से संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है,  तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment