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“भारत छोड़ो आन्दोलन” के असफलता के कारण एवं परिणाम

भारत छोड़ो आन्दोलन के असफलता के कारण एवं परिणाम

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के तीन मुख्य कारण थे-

(1) सरकार का अधिक शक्तिशाली होना, (2) आन्दोलन का नेतृत्वहीन होना, (3) सरकारी सेवाओं की वफादारी।

  1. सरकार का अधिक शक्तिशाली होना

    सरकार के पास समस्त साधन थे। इसके गुप्तचर थे जिन्होंने आन्दोलनकारियों की गतिविधियों का पूर्ण विवरण सरकार को उपलब्ध किया। सरकार के पास पुलिस और सेना थी जो ब्रिटिश शासन के प्रति पूर्ण वफादार थी। इनके माध्यम से आतंक के साम्राज्य को स्थापित किया जा सकता।

  2. आन्दोलन का नेतृत्व हीन होना

    करीब-करीब सभी शीर्षस्थ नेता 9 अगस्त, सन1942 को गिरफ्तार कर लिये गए। जनता को यह बताने वाला कोई नहीं रहा कि उसे क्या करना चाहिए यहाँ तक कि वह पुस्तिका जिसमें आन्दोलन सम्बन्धी वारह सूत्र थे उसे भी जब्त कर लिया गया। गाँधी जी ने यह कभी नहीं सोचा था कि ब्रिटिश सरकार उन्हें गिरफ्तार करेगी। वास्तव में गाँधी जी का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को संकट के समय परेशान करना नहीं था। उनका विचार था कि देशव्यापी आन्दोलन की धमकी से ही सरकार बातचीत करने के लिये तैयार हो जायेगी तथा उन्हें 1930 की भाँति ही बन्दी नहीं बनायेगी। नेहरू ने भी आश्चर्य से भरकर यही कहा था उन्हें गाँधी जी पर आश्चर्य होता था जो अभी तक अंग्रेजों के साथ समझौते का विश्पस हृदय से चिपकाये हुये हैं। स्वयं कांग्रेस के दो गुट पैदा हो गए थे जिनमें से एक हिंसात्मक कार्यवाहियों के पक्ष में था तथा दूसरा इनका प्रबल विरोध था।

  3. सरकारी सेवाओं को वफादारी

    पुलिस और सेना ने राष्ट्रीयता के इस आन्दोलन के प्रति कोई आस्थ प्रगट नहीं की। वे पूर्णतः सरकार के प्रति वफादार रहे। इसके अतिरिक्त राष्ट्र के भी अर्तत कुछ ऐसे तत्व थे जो सरकार के पिटठू कहे जा सकते हैं इनमें रायबहादुर तथा खनबहादुर अन्य अंग्रेजों के चाटुकार भी थे जिन्होंने इस कठिन परिस्थिति में ब्रिटिश सरकार की अन्य सहायता पहुँचाई। अगर सेना, पुलिस तथा चाटुकर कम से कम अंग्रेजों की सहायता नहीं करते तो अंग्रेजों के लिये भारत में रहना कठिन हो गया होता।

भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व और परिणाम

1942 का आन्दोलन एक महान आन्दोलन था जिनमें सरकार को कई बार अत्यधिक क्रूर साधनों का प्रयोग करना पड़ा। 10229 व्यक्तियों को बन्दी बनाया गया तथा हजारों की संख्या में लोग हताहत हुए। आतंक राज्य के बावजूद भी जिस विद्युत गति से इसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया वह अतुलनीय है। पं0 नेहरू, पटेल व गाँधी ने जेल से छूटकर वक्तव्य दिया कि उन्हें इस आन्दोलन पर गर्व है। निम्नलिखित आधारों पर आन्दोलन की सफलता दर्शायी जा सकती हैं

  1. जन जागृति

    नेतृत्वहीन होते हुए भी जिस सक्रियता से जनता ने इस आन्दोलन में भाग लिया वह इसके मौलिक उद्देश्य को दर्शाता है। यू०पी० के बलिया जिसे में कई महीनों तक व्यक्तियों ने अस्थाई सरकार के अस्तित्व को बनाये रखा। सरकार ने उन्हें दबाने के लिये हवाई जहाजों से बम भी फेंके तथा अन्य अमानवीय व्यवहार भी किया लेकिन राष्ट्रवाद की चिंगारी भी नहीं बुझाया जा सका डॉ० अम्वाप्रसाद के विचार में इस आन्दोलन ने 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के लिये पृष्ठभूमि तैयार कर दी। मिस्टर बड़ी का यह कथन था कि “यदि अंग्रेज भारत को शक्ति देने का कोई हल नहीं निकालते हैं तो उनका निकालने के लिए फिर एक क्रान्ति होगी।

  2. ब्रिटिश और मुस्लिम लीग के मध्य समीपता

    1942 के विद्रोह ने मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सरकार के मध्य समीपता पैदा कर दी। मुस्लिम लीग ने आह्वान किया था कि मुसलमान इस आन्दोलन से दूर रहे। उसने अंग्रेजों की नीति को पूर्ण समर्थन प्रदान किया। ऐसी कठिन परिस्थिति में जब कि अंग्रेज वर्मा और सिंगापुर में हार चुके थे मुस्लिम लीग का समर्थन अंग्रेजों के लिये एक वरदान सिद्ध हुआ तथा पाकिस्तान के निर्माण का विचार और दृढ़ एवं सम्भव हो गया।

  3. अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव

    विदेशों में भी इस आन्दोलन का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इस आन्दोलन के समस्त विश्व जनमत के समक्ष अंग्रेजों की दोगली नीति स्पष्ट हो गयी। अमेरिका और ब्रिटिश जनमत इतना तेज हो गया कि ब्रिटेन को विश होकर भारत को स्वतंत्रता देनी पड़ी रूजवेल्ट और व्यांग-काई-शेक ने व्यक्तिगत आधारों पर भारतीय स्वतंत्रता कर समर्थन किया।

गाँधी जी ने जेल जाने के बाद देश में जो भी हिंसात्मक कार्य हुए ब्रिटिश सरकार ने उनके लिए गाँधी जी को ही जिम्मेदार ठहराया। गाँधी जी ने इस बात को अपमानजनक समझकर 10 फरवरी सन 1943 को 21 दिन का उपवास शुरू किया। 13 दिन पश्चात ही गाँधी जी की स्थिति बहुत नाजुक हो गयी लेकिन फिर भी वायसराय ने इस सम्बन्ध में कोई ध्यान नहीं दिया। इस बात पर वायसराय लिनलिथगो की कार्यकारिणी परिषद के तीन सदस्य एच०पी० मोदी एन0आर0 सरकार तथा एम०एम० अणे ने त्याग पत्र दे दिया। लेकिन गाँधी जी की स्थिति सुधर गई और वे बच गये। कुछ माह पश्चात् उनके सचिव महादेव देसाई तथा 22 फरवरी सन 1944 को उनकी धर्मपत्नी कस्तूरवा का जेल में ही देहान्त हो गया। 6 मई 1944 को गांधी जी को जेल से छोड़ दिया गया।

राज गोपालाचारी फार्मूला

भारत छोड़ो आन्दोलन में गाँधी जी को पूना के आगा खाँ पैलेस में बन्दी रखा गया था। जेल में छूटने के बाद संवैधानिक गत्यावरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से गाँधी जी ने वायसराय को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया था कि भविष्य में सत्याग्रह करने का उनका कोई विचार नहीं है यदि सरकार राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के लिये प्रयत्न करे। वायसराय ने इसमें एक वर्ष लगा दी वह यह थी कि गाँधी जी पहले भारत छोड़ों आन्दोलन को वापस लें। संवैधानिक गत्यावरोध को दूर करने के लिए आवश्यक था कि मुस्लिम लीग के साथ कोई समझौता किया जाया इस उद्देश्य से राज गोपालाचारी ने मार्च 1944 को एक योजना बनाई जिसे गाँधी जी ने स्वीकार किया और उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना के साथ बातचीत प्रारम्भ की।

राज गोपालचारी की योजना में निम्नलिखित प्रावधान थे-

  1. मुस्लिम लीग भारतवर्ष की स्वतंत्रता की माँग को स्वीकार करेगी तथा कांग्रेस के एक साथ संक्रमण कालीन व्यवस्था के लिये अन्तरिम सरकार का निर्माण करेगी।
  2. युद्ध के बाद मुस्लिम जिलों में वयस्क मताधिकार के आधर पर जनमत संग्रह किया जाये। यह ए निष्पक्ष आयोग की देख-रेख में हो। अगर ये क्षेत्र एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिये सहमत हों तो उस निर्णय को कार्यान्वित किया जाये।
  3. जनमत संग्रह से पूर्व सभी राजनीतिक दलों के मध्य प्रचार के सम्बन्ध में एक समझौता होना चाहिये।
  4. जनसंख्या का आदान-प्रदान जनता की इच्छा से किया जायेगा।
  5. ये शर्ते सत्ता के हस्तान्तरण के पश्चात ही लागू होगी।
  6. गाँधी जी और मि० जिन्ना इन शर्तो को स्वीकार करेंगे और कांग्रेस तथा नीग की सहमति प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे।

सी0 आर0 फार्मूले की अस्वीकृति

महात्मा गाँधी और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच फार्मूला को लेकर सितम्बर, 1944 में वाद-विवाद चला जिन्ना ने निम्नलिखित कारणों से इसे अस्वीकार कर दिया।

  1. इस फार्मूले में अपूर्ण अंगहीन व दीमक लंगा पाकिस्तान दिया गया था। श्री जिन्ना एक ऐसा पाकिस्तान चाहते थे जिसमें वारा बंगाल, आसाम, सिन्ध, पंजाब और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त एवं बलूचिस्तान हो। पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को मिलाने के लिये गलियारे की मांग भी जिन्ना ने की थी।
  2. इस फार्मूले में जनमत-संग्रह के अन्तर्गत गैर मुस्लिमों के भाग लेने की भी बात कही गई थी जो जिन्ना को स्वीकार नहीं था।

इस फार्मूले में संयुक्त संचार साधनों, व्यापार एवं प्रतिरक्षा का प्रस्ताव रखा गया था। यह जिन्ना को मान्य नहीं था।

मौलाना आजाद के अनुसार सी0 आर0 फार्मूले का परिणाम मुस्लिम लीग के लिए लाभदायक तथा कांग्रेस के लिये हानिकारक हुआ। गाँधी जी की खुशामदों और प्रार्थनाओं से जिन्ना का सम्मान मुसलमानों में बढ़ा दिया। उसे कायदे आजम बना दिया।

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