एडम स्मिथ का आर्थिक स्वतन्त्रता व राज्य हस्तक्षेप पर विचार
नि:सन्देह एडम स्मिथ एक महान विचारक थे। उन्होंने अपने पूर्व के विद्वानों के अधूरे तथा बिखरे विचारों को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करके अर्थशास्त्र को विज्ञान का रूप प्रदान किया। स्मिथ की महानता इस सत्य से सिद्ध होती है कि आर्थिक विचारधारा के सभी सम्प्रदाय चाहे वह समाजवादी सम्प्रदाय हो या इतिहासवादी सम्प्रदाय, चाहे वह मार्क्सवादी समाजवादी सम्प्रदाय है या नव संस्थापक सम्प्रदाय या कोई अन्य और सम्प्रदाय - किसी न किसी रूप में स्मिथ के ऋणी अवश्य हैं।
एडम स्मिथ का आर्थिक स्वतन्त्रता व राज्य हस्तक्षेप का विचार
अपने प्रकृतिवादी पूर्व विचारकों के समान एडम स्मिथ भी व्यक्तिवादी थे। वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के भारी समर्थक थे। वे मानव के व्यक्तित्व की अच्छाई तथा गुप्त शक्ति की अच्छाई में दृढ़ विश्वास रखते थे। प्रकृतिवादी Laissez Faire Laissez Passer विचार का उन्होंने सदा समर्थन किया। उनके विचार में व्यापार तथा उद्योगों पर राज्य द्वारा लगाये गये सभी नियन्त्रण इनके विकास के लिए घातक होते हैं। इस कारण समाज में आर्थिक विकास को सम्भव बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने का पूरा अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य जिस व्यापार व उद्योग को जिस स्थान पर तथा जिस प्रकार उसका मनचाहे स्थापित कर सकता है तथा राज्य को किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। राज्य को आर्थिक क्रियाओं में अपने आपको यथासम्भव दूर रखना चाहिए। इतना ही नहीं कि राज्य को व्यक्ति की आर्थिक क्रियाओं को स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिए बल्कि एडम स्मिथ इस सम्बन्ध में एक कदम आगे जाते हैं तथा राज्य से प्रत्यक्ष रूप से किसी प्रकार की व्यापारिक व औद्योगिक क्रियाएँ न करने का अनुरोध करते हैं। उनका कहना है कि राज्य उद्योग को कुशलता से नहीं चला सकता है क्योंकि वह उद्योग का प्रबन्ध स्वयं न करके उन व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिनका उद्योग को ठीक रूप से चलाने में कोई निजी हित नहीं होता है। उनका मत है कि व्यापार व उद्योग को ठीक प्रकार से चलाने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए व्यापारी व उद्योगपति को शीघ्र तथा बुद्धिमानी से निर्णय करना होता है। राजा जिसका व्यापार सम्बन्धी कभी कोई प्रशिक्षण नहीं हुआ होता है इस प्रकार के शीघ्र निर्णय करने के अयोग्य होता है। राजा या शासक सफल व्यापारी नहीं बन सकता है।
इस प्रकार स्मिथ का यह स्पष्ट निष्कर्ष था कि राज्य को आर्थिक क्षेत्र से दूर रहना चाहिए तथा समाज के हितों में यह उचित है कि यह व्यक्तिगत आर्थिक क्रियाओं में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें।
परन्तु प्रश्न यह उठता है कि राज्य को आर्थिक क्रियाएँ नहीं करनी चाहिए तो राज्य को क्या करना चाहिए, अथवा राज्य के क्या कर्त्तव्य हैं। स्मिथ के मतानुसार राज्य के समाज के प्रति निम्नलिखित तीन अनिवार्य कर्त्तव्य हैं -
- समाज में एक अच्छे न्याय शासन की व्यवस्था करना,
- देश की रक्षा करना,
- कुछ आवश्यक लोक सेवाओं को सम्पन्न कराना तथा उन लोक संस्थाओं की स्थापना करना जिनको व्यक्ति कई कारणवश नहीं कर सकते हैं। जैसे यातायात सुविधाओं की व्यवस्था, पीने के पानी की व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना, शिक्षा की व्यवस्था करना आदि।
परन्तु स्मिथ के लिए हस्तक्षेप न करने का विचार केवल एक सामान्य सिद्धान्त था। स्मिथ के लिए यह निरपेक्ष नियम नहीं था। कुछ बातों में राज्य हस्तक्षेप की यथार्थता की बाबत स्मिथ को कोई सन्देह नहीं था।
उदाहरण
ब्याज की दर पर वैधानिक रोक लगाना, डाक का प्रबन्ध करना अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा, नोटों का निर्गमन व नियन्त्रण करना, उचित पदों पर नियुक्त करने के लिए परीक्षा कराना इत्यादि के सम्बन्ध में राज्य हस्तक्षेप उचित ही नहीं बल्कि समाज के हित में आवश्यक भी था। स्मिथ उन राज्य विनियमों के पक्ष में थे जो नागरिकों के भौतिक हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। उदाहरणार्थ समाज में बीमारी व रोगों की रोकथाम करने के लिए इस बात को आवश्यक समझते थे कि राज्य को सफाई व स्वास्थ्य सम्बन्धी विनियम बनाने चाहिए जिनका पालन करना प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य होना चाहिए। इसी प्रकार बैंकों की स्वतन्त्रता पर भी रोक लगाना सामाजिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है क्योंकि अगर बैंकों की स्वतन्त्रता पर रोक नहीं लगेगी तो वे अत्यधिक नोटों का निर्गमन व साख का विस्तार करेंगे जो समाज के लिए घातक सिद्ध होगा। अतः उनका कहना है कि बैंकों की स्वतन्त्रता पर रोक लगाना उचित एवं आवश्यक है।
परन्तु उपरोक्त अपवादों के होते हुये भी सामान्यतः स्मिथ के आर्थिक विचार व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की स्थायी आधारशिला पर आधारित थे तथा सामान्यतः स्मिथ राज्य हस्तक्षेप या राज्य प्रतिबन्धों व नियन्त्रणों के विरोध में थे। स्मिथ आर्थिक स्वतन्त्रता के पक्षधर थे। स्मिथ के विचार वणिकवादी विचारकों के विचारों से बिल्कुल विपरीत थे।
महत्वपूर्ण लिंक
- एडम स्मिथ की पुस्तक ‘राष्ट्रों का धन’ का आर्थिक विचारधारा पर प्रभाव
- एडम स्मिथ के आर्थिक विचार
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