(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

वणिकवाद के सिद्धांत एवं नीतियाँ

वणिकवाद के सिद्धांत एवं नीतियाँ

वणिकवाद के सिद्धांत एवं नीतियाँ

वणिकवाद एक प्राचीन कल्पना का परिणाम है, जैसे-जैसे देश में प्रगति का आधार बढ़ता गया वैसे-वैसे वणिकवाद का क्षेत्र एवं महत्व भी बढ़ता गया। 14 वीं, 15वीं, 16वीं शताब्दी में वणिकवाद मैं अभूत पूर्ण परिवर्तन देखने को मिले। ऐसे परिवर्तन यूरोप, फ्रांस, जर्मनी में अधिक देखने को मिले। साधारण शब्दों में कहा जाये तो वणिकवाद के द्वारा ही आज का व्यापार एवं वाणिज्य प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके हैं, लेकिन इसके पीछे बहुत से सिद्धान्त एवं नीतियों का समय-समय पर प्रयोग किया गया। हम पहले इसके कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों एवं बाद में नीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे –

वणिकवाद के सिद्धान्त

वणिकवाद कुछ विशेष सिद्धान्तों पर आधारित हैं, जैसे यूरोपियन देशों में इसका प्रयोग पूँजीवाद के लिये एवं कुछ देशों जैसे- फ्रांस, जर्मनी, में वणिकवाद एक खुली अर्थव्यवस्था का द्योतक थी। इन देशों ने जिन-जिन सिद्धान्तों का प्रयोग वणिकवाद के लिये किया उनका वर्णन हम अग्रलिखित पंक्तियों में करेंगे-

  1. व्यापार का सिद्धान्त

    प्राचीन वणिकवादी यह मानकर व्यापार करते थे कि हमें ज्यादा से ज्यादा लाभ एवं कम से कम हानि हो जैसे कोई व्यापारी राजा की आज्ञा लेकर वणिकवाद का विस्तार करना चाहता है तो उसे कुछ-न-कुछ पूँजी कि आवश्यकता होगी, यह पूँजी वह स्वयं एवं अपने मित्रों, सगे सम्बन्धी एवं राज्य से ले सकता था लेकिन उसे उसका कुछ भाग राजा को कर के रूप में देना पड़ता था। इसी सिद्धान्त को हम व्यापार का सिद्धान्त या वाणिज्य का वणिकवाद सिद्धान्त के नाम से जानते हैं। यही सिद्धान्त आज बड़ी प्रतियोगिता एवं देश के विकास के लिये आधार बन गया है।

  2. ब्याज का सिद्धान्त

    वणिकवाद एक आर्थिक क्रिया का ही परिणाम हैं, कोई भी नीति किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उपयोग में लायी जाती हैं। ब्याज का सिद्धान्त बहुत पुराना सिद्धान्त है, इसके अन्तर्गत बड़े-बड़े जमींदार, व्यापारी, सेठ, साहूकार छोटे उद्यमियों को नकद के रूप में उधार पूँजी देते थे एवं उसके बदले में एक निश्चित दर से ब्याज लिया करते थे। ब्याज मासिक, छमाही, सालाना होती थी। ब्याज की दर अलग-अलग देशों में अलग-अलग हुआ करती थी। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि देश में पूँजी की मात्रा (मुद्रा की मात्रा) कम है तो ब्याज ऊँची दर पर लिया जाता था, एवं इसके विपरीत यदि मुद्रा की मात्रा देश के उद्यमियों की आवश्यकता के अनुसार ज्यादा होती थी, तो ब्याज की दर कम होती थी। यही सिद्धान्त आज के बैंकिंग, बीमा के रूप में प्रकट हो गया है।

  3. पूँजी की उत्पादकता का सिद्धान्त

    इस सिद्धान्त के अनुसार पूँजी का सही एवं उत्पादक कार्यों के लिये पूँजी के विनियोग से सम्बन्धित हैं। पूँजी यदि सही उद्देश्य के लिये लगायी जाएगी तो लगाने वाला एवं देश दोनों को फायदा होगा, लेकिन यदि इसका सही प्रयोग नहीं हुआ तो इसका घातक परिणाम हो सकता है। प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार वणिकवादी अपनी पूँजी का अधिकांश भाग कृषि, व्यापार, आयात एवं निर्यात के कार्यों पर लगाते थे।

  4. जोखिम का सिद्धान्त

    प्राचीन अर्थशास्त्री पहले ही यह बता चुके हैं, कि कोई भी व्यापार बिना जोखिम के फल-फूल नहीं सकता अर्थात् व्यापार के विकास के लिये जोखिम का होना आवश्यक है। यह सिद्धान्त हमें जोखिम से बचाने एवं उसका सही ढंग से सामना करना बताता हैं। यदि व्यापारी, उद्यमी, किसान एक सही रणनीति का प्रयोग करके व्यापार, कृषि आदि कार्यों को करते हैं तो जोखिम की संभावना कम हो जाती है, जब जोखिम की मात्रा कम होगी तो लाभ अनिवार्य रूप से बढ़ेगा। लाभ से ही हर प्रकार के जोखिम से बचा जा सकता है। जोखिम चूँकि व्यापार, वाणिज्य का एक आधारभूत तत्व है अर्थात इसको बिलकुल समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन अच्छी नीति एवं सुशासन के द्वारा इसका बढ़ी अच्छी तरीके से सामना किया जा सकता है।

  5. लाभ का सिद्धान्त

    वणिकवाद अर्थशास्त्र में लाभ का बड़ा महत्व है, कोई भी आर्थिक क्रिया बिना लाभ के कल्पना मात्र है, प्राचीन अर्थशात्रियों के अनुसार 14वीं, 15वीं, 16वीं, 17 वीं शताब्दी में वणिकवाद के अन्तर्गत व्यक्तिगत लाभ को ज्यादा ध्यान दिया जाता था, लेकिन 18वीं शताब्दी में इसमें बदलाव हुआ और वणिकवादियों ने लाभ के साथ-साथ उपयोगिता, संतुष्टि का भी ध्यान देना शुरू किया। सारांश रूप में लाभ लेना अनुचित नहीं है अपितु उसका तरीका राज्य, जनता, विरोधी न हो। अर्थात शोषक न हो।

वणिकवाद की नीतियाँ 

वणिकवाद राष्ट्रवाद के आने से पूर्व एक औद्योगिक क्रांति को जन्म दे चुकी थी क्योंकि मुद्रा का उदय, पुर्नजागरण, आर्थिक एवं राजनीतिक नीतियों का धार्मिक विचारधारा से पृथक होना, इसके महत्वपूर्ण कारण थे। हम वणिकवादियों द्वारा अपनायी गयी नीतियों को निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-

  1. वणिकवाद की आर्थिक नीति

    वणिकवादियों की आर्थिक नीति एक सोची समझी जागरुक नीति थी। देश के विकास एवं संसार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये उनके अनुसार आर्थिक गतिविधियों पर बहुत विचार करना आवश्यक है। यही कारण है कि 17वीं शताब्दी में इग्लैण्ड में आद्योगिक क्रांति का प्रार्दुभाव हो पाया। वणिकवादियों के अनुसार देश का सही विकास स्तंभ उसका आर्थिक नियोजन एवं उसका सही क्रियान्यवन हैं। शुरू में वणिकवादियों की आर्थिक नीति बहुत संकुचित थी पर बढ़ती जनसंख्या एवं जागरूकता ने इसकी आर्थिक नीति में भी परिवर्तन कर दिया।

  2. वणिकवाद की सामाजिक नीति

    वणिकवादियों की सामाजिक नीति बहुत अच्छी नहीं थी पर समय के साथ-साथ इनकी सामाजिक सोच एवं विचार में भी वृद्धि हुई। यदि हम 14वीं, 15वीं शताब्दी का विश्लेषण करें एवं 16वीं, 17 वीं शताब्दी के सामाजिक परिवर्तन से तुलना करें तो काफी अन्तर दिखायी पड़ता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वणिकवादियों की व्यक्तिगत नीति का स्थान सामाजिक नीति ले रही थी।

  3. वणिकवाद की राजनैतिक नीति

    वणिकवाद पूरी तरह से 14वीं, 15वीं 16वीं शताब्दी में राजा के अधीन राजनीतिक नीति का प्रयोग करते थे। वणिक पूरी तरह से राजा से स्वतंत्र नहीं थे अत: उनकी राजनीतिक नीति देश के राजा के अनुसार ही होती थी परन्तु बहुत वणिक अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग करके राजनैतिक नीति का प्रयोग अपने व्यापार की उन्नति के लिये करवा लेते थे।

  4. वणिकवाद की उद्देश्य नीति

    वणिकवादियों का प्रमुख उद्देश्य उनके द्वारा स्थापित उद्योग-धन्धों का विकास करना एवं लाभ कमाना था। उद्योग का ज्यादा से ज्यादा विस्तार एवं निर्यात प्रोत्साहन ही उनकी सबसे बड़ी नीति थी।

  5. वणिकवाद की भविष्य एवं प्रतियोगिता की नीति

    प्रत्येक देश के वणिकवादी चाहते थे कि उनका व्यापार, वाणिज्य, निर्यात पूरे संसार में सबसे अधिक विकसित हो, इसलिये वणिक ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिता की वस्तुओं को ध्यान देकर अपने व्यापार एवं वाणिज्य को अग्रसर करते थे।

  6. वणिकवाद की परिवर्तन नीति

    वणिकवाद की परिवर्तन नीति समय की देन थी, ‘जैसे मनुष्य विकसित होता है वैसे-वैसे उसकी आवश्यकता एवं इच्छा में वृद्धि होती है।

यही वृद्धि एक नये खोज एवं तकनीक का रूप धारण कर लेती है। वणिकवादियों की परिवर्तन नीति श्रेष्ठ थी क्योंकि 14वीं, 15वीं शताब्दी में उद्योग उतना विकसित नहीं था जितना कि 17 वीं, 18वीं एवं आज है।

इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वणिकवादियों की नीति एवं सिद्धान्त दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, और हमारे आर्थिक, राजनैतिक, एवं सामाजिक जीवन का आधार है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें wandofknowledge539@gmail.com पर मेल करें।

About the author

Wand of Knowledge Team

Leave a Comment

error: Content is protected !!