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प्रकृतिवाद और वाणिज्यवाद में अन्तर

प्रकृतिवाद और वणिकवाद में अन्तर

प्रकृतिवाद और वणिकवाद में अन्तर

प्रकृतिवाद या निर्बाधावाद को वणिकवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया अथवा विद्रोह प्रमाणित करने के लिए अथवा यूं कहें, इसके नकारात्मक स्वरूप को दिखलाने के लिए इन दोनों चिन्तनों की विशेषताओं पर तुलनात्मक रूप से विचार करना चाहिए। इससे दोनों का अन्तर स्पष्ट हो जायेगा। यह अन्तर निम्नांकित तालिका में किया गया है।

वणिकवाद

प्रकृतिवाद

1.       वणिकवादियों ने बहुमूल्य धातुओं सोना-चाँदी को अत्यधिक महत्व दिया, क्योंकि इनको विश्वास था कि सोना देकर इनका स्वामी अपनी इच्छित वस्तुयें सहज ही खरीद सकता है। 1.       निर्बाधावादियों ने धातुओं को कोई महत्व नहीं दिया। उन्होंने कृषि से प्राप्त विशुद्ध उत्पत्ति पर बल दिया और कहा कि देश का कल्याण विशुद्ध उत्पत्ति के बढ़ने पर निर्भर है। सोना-चाँदी स्वयं में मानव समाज की भूख-प्यास सन्तुष्ट करने की सामर्थ्य नहीं रखते।
2.       बहुमूल्य धातुओं को प्राप्त करने के उद्देश्य से वणिकवादियों ने विदेशी व्यापार को विशेष महत्त्व दिया और वे इसे यथाशक्ति सुविधायें प्रदान कीं। 2.       निर्बाधावादियों ने विशुद्ध उत्पत्ति को बढ़ाने के लिए कृषि पर बल दिया। उनकी दृष्टि में कृषि ही उत्पादन है। विदेशी व्यापार को वे एक आवश्यक बुराई समझते थे और कोई महत्त्व न देते थे।
3.       वणिकवादी विदेशी व्यापार के क्षेत्र में व्यापार सन्तुलन की अनुकूलता पर बल देते थे और इस हेतु उन्होंने आयात और निर्यात की राय दी, जिसमें आयात हतोत्साहित और निर्यात प्रोत्साहित हों, क्योंकि केवल ऐसा होने पर ही विदेशों से स्वर्ण प्राप्त हो सकता था। 3.       निर्बाधावादी इस नीति के समर्थक न थे। उनका विचार था कि देश में सोना-चाँदी अधिक हो जाने से वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अत्यधिक कष्ट सहना पड़ता है। उनका यह भी कहना था कि व्यापार सन्तुलन स्वयं ही अपनी उचित स्थिति में आ जायेगा। हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
4.       वणिकवादी कच्चे माल का आयात करना ठीक समझते थे। 4.       निर्बाधावादी पक्के नाल का आयात करना ठीक मानते थे।
5.       वणिकवादी राष्ट्रवादी थे और देश हितों की अभिवृद्धि के लिए उन्होंने कई सिद्धान्त व नीतियाँ प्रस्तुत कीं। 5.       निर्बाधावादी विश्ववादी थे। वे राजनीति में श्रेणीवाद को अनुचित मानते थे।
6.       वणिकवादी एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण करने के पक्ष में थे और इस हेतु राज्य को बहुत से अधिकार सौंपने का सुझाव देते थे। 6.       निर्बाधावादी राजसत्ता तो चाहते थे लेकिन उसके हाथों न्यूनतम सत्ता सौंपने के कानून बनाये जायें।
7.       वणिकवादी प्रतिबन्धात्मक व्यापार प्रणाली के समर्थक थे। 7.       ये स्वतन्त्र व्यापार के समर्थक थे।
8.       वणिकवादियों ने भूमि और श्रम को प्रमुख उत्पादन साधन माना था, किन्तु इनमें भी अधिक महत्त्व श्रम को दिया। 8.       निर्बाधावादियों ने केवल भूमि को उत्पत्ति साधन के रूप में स्वीकार किया। उनका कहना था कि भूमि के अलावा अन्य क्षेत्रों में लगा श्रम अनुत्पादक है।
9.       वणिकवादियों के मतानुसार प्रत्येक मनुष्य को उतना कर देना चाहिए जितना कि वह सरकार से लाभ उठाता है।

9.       निर्बाधावादियों के मतानुसार केवल भूस्वामियों पर कर लगना चाहिए और ऐसा कर विशुद्ध उत्पत्ति का लगभग 30% हो। वे अन्य सामाजिक वर्गों पर कर लगाने के पक्ष में न थे।

10.    इन्होंने सरकार के कार्यों को काफी बढ़ा दिया। 10.    इन्होंने सरकार के कार्य को सीमित कर दिया।
11.   ये लोग सम्पत्ति को द्रव्य के रूप में मानते थे। 11.    ये लोग सम्पत्ति को कच्चे माल के रूप में मानते थे।
12.    व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु वणिकवादियों ने नीची ब्याज दर का समर्थन किया। 12.   इन्होंने केवल ऐसी पूँजी पर ब्याज लेने देने का समर्थन किया, जोकि उत्पादक कार्य (और ऐसा कार्य उनकी राय में कृषि था) में लगायी जाय।

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