प्रतिफल को विधिविरुद्ध कब कहा जाता है?

विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल

विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल

प्रतिफल को विधिविरुद्ध कब कहा जाता है?

विधिपूर्ण प्रतिफल एवं विधिपूर्ण उद्देश्य ही एक वैध संविदा को जन्म देता है भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 23 उन दशाओं की व्याख्या करती है जिनमें वैध संविदा नहीं हो सकती-

“करार का प्रतिफल और उद्देश्य वैधानिक है, जब तक कि-

वह विधि द्वारा निषिद्ध नहीं है; या वह ऐसी प्रकृति का नहीं हैं कि यदि वह अनुज्ञात किया गया तो वह किसी विधि के उपबन्धों को निष्फल कर देगा ; या यह कपटपूर्ण नहीं है; या उसमें किसी अन्य के शरीर की या सम्पत्ति की क्षति अन्तर्वलित या विवक्षित नहीं है; या उसे न्यायालय अनैतिक या लोक-नीति के विरुद्ध नहीं समझता है विधिपूर्ण होता है।

इन अवस्थाओं में से प्रत्येक में करार का प्रतिफल या उद्देश्य विधि-विरुद्ध कहलाता है। प्रत्येक करार, जिसका उद्देश्य या प्रतिफल विधि विरुद्ध है, शून्य है।”

इस प्रकार धारा 23 के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में करार का प्रतिफल अथवा उद्देश्य विधिपूर्ण नहीं होगा। निम्नलिखित दशाओं में से प्रत्येक दशा में करार का प्रतिफल या उद्देश्य विधिपूर्ण नहीं होगा अर्थात् अवैध होगा-

  1. विधि द्वारा निषिद्ध अथवा वर्जित-

    यदि किसी करार का प्रतिफल अथवा उद्देश्य विधि द्वारा वर्जित हो तो वह करार शून्य होगा। यहाँ विधि से तात्पर्य ऐसी विधि से है जो भारत में प्रवृत्त है तथा शब्द ‘विधि’ के अन्तर्गत व्यक्तिगत विधियों जैसे हिन्दू विधि या मुस्लिम विधि भी सम्मिलित है। इस प्रकार यदि किसी करार का प्रतिफल या उद्देश्य भारत में प्रवृत्त विधि के विरुद्ध है तो करार शून्य होगा। इसी प्रकार यदि करार का उद्देश्य या प्रतिफल हिन्दू विधि या मुस्लिम विधि के विरुद्ध है तो करार शून्य होगा। उदाहरण के लिए, क ख को 2000 रु. प्रतिज्ञा करता है, यदि ख ज की हत्या कर दे। ख ज की हत्या करने की प्रतिज्ञा करता है। करार विधि विरुद्ध होने के कारण शून्य होगा।

  2. विधि के उपबन्धों को निष्फल करने वाला करार-

    यदि करार ऐसी प्रकृति का है जिसे करने की अनुमति देने पर वह किसी विधि के उपबन्धों को निष्फल कर देगा तो करार शून्य होगा। नन्दलाल बनाम थामस जे० विलियम के वाद में वादी को उत्पादन शुल्क अधिनियम के अन्तर्गत शराब की दुकान का लाइसेन्स दिया गया था। अधिनियम के अन्तर्गत लाइसेंस का अन्तरण तथा उसे चलाने हेतु साझेदारी का निर्माण वर्जित था परन्तु वादी ने प्रतिवादी को अपना साझेदार बना लिया। न्यायालय ने साझेदारी को शून्य ठहराया। जिस करार की प्रकृति ऐसी है कि यदि उसे लागू करने की अनुमति प्रदान कर दी जाय तो वह किसी विधि के उपबन्धों को विफल कर देगा, वह करार शून्य होगा। विधि शब्द के अन्तर्गत वे सभी विधियां सम्मिलित हैं जो भारत में प्रवर्तनीय हैं और इसमें व्यक्तिगत विधियाँ जैसे हिन्दू विधि, मुस्लिम विधि भी सम्मिलित हैं।

  3. कपटपूर्ण- यदि किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल कपट करना है तो करार शून्य हो जायेगा। क, एक भू-स्वामी का अभिकर्ता अपने मालिक के ज्ञान के बिना अपने मालिक का पट्टा ख के लिए प्राप्त करने का करार धन के लिए करता है। क और ख के मध्य हुआ करार शून्य होगा क्योंकि क ने अपने मालिक से छिपावट द्वारा कपट किया है।

शिवराम बनाम नागरमल के बाद में दो व्यक्तियों ने अपने लाभ के लिए सरकारी विभाग से ठेका प्राप्त करने के उद्देश्य से करार किया। यह ठेका कपट द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता था। न्यायालय ने इस आधार पर करार को शून्य ठहराया कि करार का उद्देश्य कपटपूर्ण था।

मनीराम बनाम पुरुषोत्तम लाल के बाद में वादी जानता था कि रेलवे कं० उसे ठेका नहीं देगी और इस कारण उसने प्रतिवादी से करार किया कि प्रतिवादी ठेका के लिए आवेदन देगा और ठेका प्राप्त होने के बाद वादी वास्तविक ठेकेदार के रूप में कार्य करेगा। वादी ने इस करार को प्रवर्तित करने के लिए वाद चलाया। न्यायालय ने इस आधार पर करार को शून्य ठहराया कि करार का उद्देश्य रेलवे कं० के साथ कपट करना था।

  1. किसी के शरीर अथवा सम्पत्ति को क्षति-

    यदि किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल किसी अन्य व्यक्ति अथवा उसकी सम्पत्ति को क्षति पहुँचाना है तो करार शून्य होगा। उदाहरण के लिए क, एक सम्पादक से ख के विरुद्ध मानहानिकारी लेख छापने को कहता है और इसके बदले में एक निश्चित रकम देने की प्रतिज्ञा करता है। यह करार शून्य होगा।

राम स्वरूप बनाम बन्शी मन्दर के वाद में एक व्यक्ति ने एक ऋणदाता से 100 रु. ऋण के रूप में लिया और एक बन्धपत्र निष्पादित किया जिसके अन्तर्गत उसे ऋणदाता के लिए बिना किसी वेतन के दो वर्ष तक कार्य करना था और ऐसा न करने पर अधिक व्याज के साथ उक्त 100 रु. शीघ्र ही वापस करना था। न्यायालय ने इस को शून्य ठहराया क्योंकि यह गुलामी थी और इससे शरीर को क्षति पहुँचती थी।

  1. जब वह अबिधिक अथवा हित नीति के विरुद्ध हो-

    ऐसे करार जिनका उद्देश्य देश या जनता को क्षति पहुँचाना है लोक नीति के विरुद्ध कहे जाते हैं। लोक नीति के विरुद्ध कहे जाने वाले प्रतिफल अवैध होते हैं। लोक नीति के अन्तर्गत राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सभी प्रकार के विषय शामिल किये जाते हैं। कानून में लोकनीति के विरुद्ध मामलों का कोई स्पष्ट वर्गीकरण नहीं किया गया है फिर भी इसके अन्तर्गत ऐसे भी करार आते हैं जो देश और जनता के अहित में हैं। मुख्य रूप से इसके अन्तर्गत आने वाले करार निम्नलिखित हैं-

  • वाद-विवाद को अनुचित रूप से बढ़ाने के लिए किये जाने वाले करार;
  • दलाली के बदले विवाह कराने के करार;
  • अपराधनीय मुकदमों के संचालन में अवरोध उत्पन्न करने के लिए किये गये करार;
  • सरकारी नौकरी प्राप्त करने के करार;
  • किसी विदेशी शत्रु के साथ करार;
  • व्यापार में रुकावट डालने के करार, कुछ दशाओं को छोड़कर।

अनैतिक सम्बन्धों को उत्प्रेरित करने वाले करार अनैतिक कहे जाते हैं जैसे- वेश्या के साथ किया गया करार। ऐसे अनैतिक करार के अन्तर्गत दिये जाने वाले प्रतिफल अनैतिक होने के कारण अवैधानिक होते हैं।

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