प्रतिफल क्या है ?

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प्रतिफल क्या है ?- परिभाषा, आवश्यक तत्त्व, इत्यादि

प्रतिफल क्या है ?

एक विधिपूर्ण संविदा का महत्वपूर्ण लक्षण विधिपूर्ण प्रतिफल एवं विधिपूर्ण उद्देश्य है। बिना प्रतिफल के करार (कुछ अपवादो को छोड़कर शून्य होता है। जब तक दूसरा पक्षकार वचनदाता प्रतिफल न दे दे तब तक वचन को विधिक रुप से लागू नहीं किया जा सकता है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(घ) के अनुसार-“जब प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर प्रतिज्ञाग्रहीता या किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य किया है या करने से प्रतिवरित रहा है या करता है या करने से प्रतिविति रहता है या करने या करने से प्रतिविरत रहने की प्रतिज्ञा करता है, जब ऐसा कार्य या प्रतिविरत या प्रतिज्ञा उस प्रतिज्ञा के लिए प्रतिफल कहलता है।”

प्रतिफल को अनेक विधिशास्त्रियो ने भी परिभाषित किया है। न्यायमूर्ति ब्लैकस्टोन के अनुसार प्रतिफल का अर्थ ऐसी क्षतिपूर्ति से हैं जो प्रतिज्ञाकर्ता को उसकी प्रतिज्ञा के बदले में दूसरे के द्वारा दिया जाता है।

क्यूटी बनाम निसा के वाद में न्यायमूर्ति लश ने प्रतिफल की परिभाषा इस प्रकार दी हैं- “मूल्य का प्रतिफल विधि के अभिप्राय में, वह हैं जिससे एक पक्षकार को कुछ अधिकार हित या लाभ प्राप्त हो अथवा जिससे दूसरा पक्षकार कुछ संयम, हानि या दायित्व उठाये या उठाने की प्रतिज्ञा करो।”

प्रतिफल के आवश्यक तत्व

अधिनियम वर्णित परिभाषा के आधार पर प्रतिफल के निम्न प्रमुख आवश्यक तत्व निम्नवत् है-

  1. प्रतिफल प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर दिया गया होना चाहिए

    प्रतिफल के लिए आवश्यक हैं कि बचनग्रहीता किसी बात को वचनदाता की इच्छा पर करे या करने से प्रविरत रहे। यह आवश्यक नहीं हैं कि इससे वचनदाता को व्यक्तिगत रूप से लाभ पहुँचा हो। यदि वचनदाता की इच्छा पर कोई कार्य हुआ है तो चाहे उसे कोई व्यक्तिगत लाभ हो या न हो, पर्याप्त प्रतिफल होता है। (केदारनाथ गौरी मोहम्मद)। परन्तु यदि वचनग्रहीता स्वेच्छा से या किसी अन्य व्यक्ति की इच्छा से कोई कार्य करता है या करने से प्रवरित रहता है तो उसे प्रतिफल नहीं कहा जायेगा। (दुर्गा प्रसाद v. बलदेव)

  2. प्रतिफल प्रतिज्ञाग्रहीता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है

    भारतीय विधि में प्रतिफल प्रतिज्ञाग्रहीता द्वारा अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है परन्तु अंग्रेजी विधि में प्रतिफल केवल प्रतिज्ञांग्रहीता द्वारा ही दिया गया होना चाहिए, परिणामस्वरूप प्रतिज्ञाग्रहीता से भिन्न व्यक्ति द्वारा दिया गया प्रतिफल विधिक नहीं होता है।

  3. प्रतिफल भूतकालीन, वर्तमान या भावी हो सकता है

    जब प्रतिफल प्रतिज्ञाकर्ता की प्रतिज्ञा के पूर्व दिया जाता है तो इसे भूतकालीन प्रतिफल कहते हैं। वर्तमान प्रतिफल वह हैं जो संविदा के समय ही दे दिया जाता है। भावी प्रतिफल की दशा में वचन के बदले वचन दिया जाता है।

अंग्रेजी विधि में भूतकालीन प्रतिफल (प्रार्थना पर किये गये को छोड़कर मान्य नहीं है।

भारत में भूतपूर्व स्वैच्छिक सेवा को धारा 25 (2) में वर्णित अपवादों में विधिमान्य माना गया है। इसके अतिरिक्त धारा 2 (घ) के अनुसार भी वैध होता है यदि कार्य वचनदाता की इच्छा पर किया गया है। सारतः भारत में भूतकालीन प्रतिफल मान्य है।

  1. प्रतिफल वास्तविक होनी चाहिए

    भारतीय संविदा अधि० की धारा 25 का स्पष्टीकरण (2) यह उपबन्ध करता है कि प्रतिफल का पर्याप्त होना आवश्यक नहीं है। किन्तु प्रतिफल का वैध होना और वास्तविक होना आवश्यक है। ऐन्सन ने लिखा है कि प्रतिफल ऐसा होना चाहिए जिसका विधि की दृष्टि से कुछ मूल्य हो ।

इस प्रकार प्रतिफल भले ही पर्याप्त न हो, करार संविदा होगा यदि सम्मति स्वतन्त्र है। परन्तु सम्मति स्वतन्त्रता से दी गयी थी या नहीं न्यायालय इस बात का निर्णय करते समय प्रतिफल की अपयौप्तता को ध्यान में रखेगा।

  1. प्रतिफल कुछ कार्य का करना, कार्य से अलग रहना या वचन के रूप में हो सकता है

    प्रतिफल किसी कार्य को करने के लिए अथवा न करने के लिए दोनों ही रूप में हो, सकता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’, ‘ब’ को अपना स्कूटर 10,000 रुपये में बेचने का प्रस्ताव करता है, ‘ब’ प्रस्ताव पर अपनी सहमति देकर 10,000 रुपये ‘अ’ को देता है। यहाँ ‘ब’ द्वारा भुगतान का कार्य प्रतिफल है।

  2. प्रतिफल अवैधानिक नहीं होना चाहिए

    प्रतिफल सदैव विधि मान्य होना चाहिए; क्योंकि भारतीय संविदा अधिनिमय की धारा 23 के अनुसार, कोई संविदा जो कि वैधानिक उद्देश्य एवं प्रतिफल हेतु की गयी है, शून्य होती है ।

“प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य है।”

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 25 उन अपवादों का वर्णन करती जिनमें बिना प्रतिफल के सभी करार शून्य नहीं होते धारा 25 के अपवाद निम्नलिखित है-

  • लिखित रूप में अभिव्यक्त और दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत और एक दूसरे के साथ निकट सम्बन्ध वाले पक्षकारों के बीच नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण किया गया हो, अथवा
  • किसी ऐसे व्यक्ति के लिए पूर्णत: या भागत: प्रतिकर देने के लिए वचन हो, जिससे वचनदाता के लिए स्वेच्छया पहले ही कोई बात कर दी हो अथवा ऐसी कोई बात कर दी हो जिसे करने के लिए वचनदाता वैध रूप से विवश किये जाने का दायी था। अथवा
  • जिस ऋण का संदाय वादों की परिसीमा विधि द्वारा पारित न होने की दशा में लेनदार करा लेता उसके पूर्णत: या भागत: संदाय के लिए उस व्यक्ति द्वारा जिसे उस वचन से भारित किया जाना है या तन्निमित्त साधारण या विशेष रूप से प्राधिकृत उसके अभिकर्ता द्वारा किया गया लिखित और हस्ताक्षरित वचन हो।

इस प्रकार धारा 25 निम्नलिखित 3 अपवादों को बताती है जिनमें प्रतिफल आवश्यक नहीं होता-

  1. प्राकृति प्रेम और स्नेह

    जहाँ कि करार स्वाभाविक प्रेम और स्नेह के आधार पर निकट सम्बन्धियों के मध्य होता है, तो यह बिना प्रतिफल के होते हुए भी वैध है। इस खण्ड के अन्तर्गत बिना प्रतिफल का करार तभी विधि मान्य होगा, जबकि निम्नलिखित शर्तों की पूर्ति की गयी हो-

  • निकट सम्बन्धी पक्षकार

    करार निकट सम्बन्ध वाले पक्षकारों के मध्य होनी चाहिए, अर्थात् करार के पक्षकार निकट सम्बन्धी होने चाहिए। निकट सम्बन्ध की परिभाषा, इस अधिनियम में नहीं दी गई, परन्तु विभिन्न निर्णीत वादों से ऐसा प्रतीत होता है कि निकट सम्बन्ध के अन्तर्गत रक्त सम्बन्ध तथा विवाह द्वारा स्थापित सम्बन्ध सम्मिलित हैं।

  • प्राकृतिक प्रेम तथा स्नेह

    करार के पक्षकार निकट रिश्तेदार होने के साथ ही साथ उनके मध्य प्राकृतिक प्रेम तथा स्नेह भी होना आवश्यक है और करार इसी प्राकृतिक प्रेम और स्नेह के नाते किया गया होना चाहिए। यदि संविदा के पक्षकार निकट सम्बन्धी है, परन्तु उनके मध्य प्राकृतिक प्रेम और स्नेह नहीं है तो यह अपवाद लागू नहीं होता है और बिना प्रतिफल के किया गया करार शून्य होगा।

  • करार लिखित होना चाहिए।
  • करार पंजीकृत होना चाहिए अर्थात् करार दस्तावेजों के पंजीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अन्तर्गत पंजीकृत होना चाहिए।
  1. स्वेच्छा से की गयी भूतपूर्व सेवा के लिए प्रतिकर देने का वचन 25 (2) –

    वह करार जो उस व्यक्ति को प्रतिकर देने के लिए किया जाता है जिसने प्रतिज्ञाकर्ता के लिए भूतकाल में स्वेच्छा से कुछ किया है पूर्णत: वैध एवं पुवर्तनीय होता है।

इस प्रकार पूर्व स्वैच्छिक सेवा की क्षतिपूर्ति का वचन बिना प्रतिफल के संविदा के रूप में तभी विधिमान्य होगा जब-

  • सेवा पहले की जा चुकी है।
  • सेवा स्वेच्छा से की गयी हो।
  • सेवा ऐसी हो जिसके लिए वचनदाता वैध रूप से पहले ही बाध्य था,
  • ऐसी सेवा की क्षतिपूर्ति का पूर्णत: या भागत: वचन दिया गया है।

उदाहरण- (i)’अ’ की थैली ‘ब’ पड़ी पाता है और उसे उसको देता है। ‘अ’ को ‘ब’ 50 रु. देने का वचन देता है। यह संविदा है। धारा 25 का दृष्टान्त (ग) (ii) ‘राम’ के बच्चे का पालन ‘श्याम’ करता है। वैसा करने में हुए ‘श्याम’ के व्ययों के संदाय का ‘राम’ वचन देता है। यह संविदा है।

  1. काल तिरोहित ऋण के भुगतान के लिए की गयी प्रतिज्ञा

    यदि कोई करार किसी काल बन्धित ऋण के भुगतान के सम्बन्ध में हो तथा निम्नलिखित गुणों से परिपूर्ण हो तो बिना प्रतिफल के भी वह संविदा होगी-

  • वह अभिव्यक्त एवं लिखित है तथा एक प्रतिज्ञा है।
  • ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित जो उसे प्रभारित है या उसके अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित है, जो सामान्य रूप से अथवा विशेष रूप से उसकी ओर से अधिकृत है।
  • यदि किसी ऋण के पूर्णत: या अंशतः भुगतान से सम्बन्धित होता है। ऐसा ऋण काल बन्धित हो गया है, परन्तु मर्यादा के अन्दर वह ऋणदाता द्वारा वसूला जा सकता था।
  1. एजेन्सी के सम्बन्ध में

    एजेन्सी की स्थापना के लिए भी प्रतिफल की आवश्यकता नहीं है।

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