“प्रस्ताव एवं स्वीकृति दोनों ही विखण्डनीय है”

प्रस्ताव एवं स्वीकृति दोनों ही विखण्डनीय है

प्रस्ताव एवं स्वीकृति दोनों ही विखण्डनीय है

प्रस्ताव और स्वीकृति दोनों ही एक-दूसरे से सम्बन्धित है, बिना एक के दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। यह दोनों बातें दो पक्षकारों के बीच होती है, अर्थात प्रस्ताव और स्वीकृति पक्षकारों द्वारा की जाती है, अतः पक्षकारों की इच्छा पर उनका खण्डन भी किया जा सकता है। इस प्रकार प्रस्ताव और स्वीकृति दोनों ही खण्डनीय हैं। पक्षकारों के एक-दूसरे के पास-पास रहने पर प्रस्ताव एवं स्वीकृति के खण्डन एवं संसूचना के विषय में कोई परेशानी उत्पन्न नहीं होती, किन्तु जब पक्षकार एक-दूसरे से दूरी पर होते हैं तब उनके खण्डन और संसूचना के सम्बन्ध में समस्या सामने आती है। पक्षकारों के दूर-दूर रहने की दशा में प्रस्ताव एवं स्वीकृति के खण्डन और संसूचना के लिए डाक सेवा वांछनीय है, जिसके लिए भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार धारा 4 एवं 5 के अग्रलिखित नियम प्रतिपादित किये गये हैं-

प्रस्ताव का विखण्डन

प्रस्ताव को, जहाँ तक प्रस्तावकर्ता का सम्बन्ध है, स्वीकृति की सूचना पूरी हो जाने से पहले कभी भी विखण्डित किया जा सकता है किन्तु जैसे ही

प्रस्तावक को स्वीकृति की सूचना पूरी की जाती है, प्रस्ताव का विखण्डन नहीं किया जा सकता। प्रस्तावक को स्वीकृति की सूचना उस समय पूर्ण हुई मानी जायेगी, जबकि स्वीकृतिकर्ता अपने स्वीकृति-पत्र को डाक में डाल दें, जिससे उसे पुनः वापस लेना उसकी शक्ति के बाहर हो जाये। इस नियम के अनुरूप प्रस्तावक अपने प्रस्ताव का विखण्डन उस समय तक कर सकता है, जब तक स्वीकृतिकर्ता अपना स्वीकृति पत्र डाक में न डाले। जैसे ही स्वीकृतिकर्ता स्वीकृति पत्र डाक में डाल देता है, प्रस्तावक अपने प्रस्ताव को खण्डन करने के अधिकार से वंचित हो जाता है।

उदाहरण-
  1. ‘क’ अपनी गाय 1000 रुपये में बेचने का प्रस्ताव डाक द्वारा ‘ख’ के पास भेजता है। ‘ख’ पत्र के माध्यम से ‘क’ के प्रस्ताव पर अपनी सहमति देता है। बाद में ‘क’ अपने प्रस्ताव का खण्डन ‘ख’ द्वारा स्वीकृति पत्र डाक में डालने से पहले करता है- यहाँ यह खण्डन मान्यnहोगा, क्योंकि स्वीकृति की संसूचना होने से पहले ही इसे किया गया है।
  2. ऐसे उदाहरण में यदि ‘क’ अपने प्रस्ताव का खण्डन उस वक्त करता है, जबकि ‘ख’ स्वीकृति पत्र डाक में छोड़ चुका होता है, तब वह खण्डन मान्य नहीं होता है।

स्वीकृति का विखण्डन

स्वीकृति को, जहाँ तक स्वीकृतिकर्ता का सम्बन्ध है, स्वीकृति की सूचना पूर्ण होने से पहले कभी भी विखण्डित की जा सकती है, लेकिन जैसे ही स्वीकृतिकर्ता को स्वीकृति की सूचना पूर्ण हो जाती है, स्वीकृतिकर्ता के पास स्वीकृति के खण्डन करने का अधिकार नहीं रहता।

स्वीकृतिकर्ता के सम्बन्ध में स्वीकृति की संसूचना तब पूर्ण हुई मानी जाती है, जबकि स्वीकृति पत्र प्रस्तावक के हाथ में आ जाये। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे ही स्वीकृति-पत्र प्रस्तावक को प्राप्त हो जाता है, स्वीकृतिकर्ता अपनी स्वीकृति को खण्डित नहीं कर सकता।

उदाहरण के लिए- ‘क’ ने अपनी कोई अमुक वस्तु निश्चित कीमत पर बेचने के लिए ‘ख’ के पास डाक द्वारा प्रस्ताव भेजा। ‘ख’ डाक द्वारा उसका स्वीकृति पत्र ‘क’ के पास भेजता है। ‘ख’ अपनी इस स्वीकृति का खण्डन उस समय तक कर सकता है जब तक कि ‘क’ को स्वीकृति-पत्र प्राप्त न हो जाये, परन्तु जैसे ही ‘क’ को ‘ख’ का स्वीकृति-पत्र प्राप्त हो जायेगा, ‘ख’ के द्वारा किया गया स्वीकृति का खण्डन मान्य न होगा।

महत्वपूर्ण समस्या

उपर्युक्त दशा में यदि ‘ख’ अपनी स्वीकृति का खण्डन एक्सप्रेस लैटर द्वारा करता है और संयोगवश ‘क’ को स्वीकृति पत्र और स्वीकृति के खण्डन का एक्सप्रेस लैटर एक साथ प्राप्त होते हैं तो ऐसी दशा में विद्यमान परिस्थिति का अवलोकन करते हुए स्वीकृति का खण्डन मान्य होता है, क्योंकि सामान्य परिस्थिति में सामान्य बुद्धि का मनुष्य साधारण डाक और तुरन्त डाक के एक साथ मिलने पर तुरन्त डाक को ही मान्यता देगा और उसे पहले पढ़ेगा।

हेन्थार्न बनाम फ्रेजर के मुकदमें में जबकि प्रस्तावक को स्वीकृति के खण्डन का पत्र स्वीकृति पत्र के प्राप्त होने के काफी समय बाद प्राप्त हुआ था, न्यायालय ने उक्त स्वीकृति के खण्डन सम्बन्धी नियम का पालने करते हुए संविदा को पूर्ण मान लिया था।

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प्रस्ताव के खण्डन की अन्य रीतियाँ

  1. प्रस्तावक द्वारा अपने प्रस्ताव के खण्डन की सूचना देकर

    जब प्रस्तावक अपने प्रस्ताव के खण्डन करने की सूचना स्वीकृतिकर्ता को भेजता है तो ऐसी सूचना के प्राप्त होते ही प्रस्ताव का विखण्डन हो जाता है। प्रस्ताव के खण्डन की सूचना कब दी जाती हैं और कब उसका खण्डन मान्य होता है।

  2. जब प्रस्ताव में स्वीकृति के लिए कोई समय दिया गया हो तो उस समय के व्यतीत होने पर

    यदि प्रस्ताव में प्रस्तावक ने स्वीकृतिकर्ता के लिए स्वीकृति देने का कोई समय स्पष्ट कर दिया है और उस समय तक स्वीकृतिकर्ता ने अपनी स्वीकृति नहीं दी हैं तो उस समय के व्यतीत होते ही स्वतः प्रस्ताव का अन्त हो जाता है।

  3. प्रस्तावक की मृत्यु अथवा उसके दिमाग के खराब होने पर

    जब प्रस्तावक की मृत्यु हो जाती है अथवा किसी कारणवश उसका मष्तिस्क खराब हो जाता है तब ऐसी दशा में भी प्रस्ताव का अन्त हो जाता है, क्योंकि प्रस्तावक के न रहने पर प्रस्ताव भी महत्वहीन है।

  4. प्रतिग्रहीता की पुर्ववर्ती शर्त को पूरा करने में प्रतिग्रहणकर्ता की असफलता से

    यदि प्रस्ताव में कोई शर्त रखी गयी हैं जिसके पूरा करने के पहले प्रतिग्रहीता प्रस्ताव का प्रतिग्रहण नहीं कर सकता ऐसी पूर्ववर्ती शर्त को पूरा करने असफल हो जाने पर प्रस्ताव का स्वाभाविक रूप से अपखण्डन हो जायेगा ।

भारतीय राजविधि और अंग्रेजी राजविधि में इस विषय पर अन्तर है। अंग्रेजी राजविधि अनुसार, , यदि प्रस्तावक की मृत्यु की सूचना होने से पहले या इस तथ्य की जानकारी होने से पहले स्वीकृतिकर्ता प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तो इससे एक वैध संविदा का सृजन हो जाता है।

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