“संविदा से अपरिचित व्यक्ति वाद नहीं चला सकता” समझाइये

“संविदा से अपरिचित व्यक्ति वाद नहीं चला सकता”

“संविदा से अपरिचित व्यक्ति वाद नहीं चला सकता”

संविदा विधि में, संविदात्मक सम्बन्ध का सिद्धान्त (पिपिटी ऑफ कांट्रेक्ट) का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो संविदा का पक्षकार न हो, संविदा का लाभ नहीं प्राप्त कर सकता चाहे संविदा उसके लाभ के लिए ही क्यो न की गई हो।

अंग्रेजी विधि में संविदा का सम्बन्ध

चूंकि इस सिद्धान्त का उदय की अंग्रेजी वाद ट्विंड्ल v. एटकिंसन के वाद में हुआ था जिसमें यह अभिनिर्धारित हुआ था कि जब दो व्यक्ति संविदा करते हैं तो कोई तीसरा व्यक्ति उस संविदा का लाभ नहीं उठा सकता। भले ही संविदा उसके भले के लिए हुई हो। हाउस ऑफ लार्ड्स ने इस सिद्धान्त को डनलप न्यूमेटिक टायर कं० V. सेल्फ्रिज एण्ड कं० के वाद में मान्यता प्रदान कर दी-

वादी डनलप कम्पनी ने ड्यू एण्ड कं० को कुछ टायर इस शर्त पर बेचा कि ड्यू एण्ड कम्पनी टायरों को निश्चित मूल्य से नीचे नहीं बेचेगी। शर्त को भंग करने पर 5 पौंड प्रति टायर के हिसाब से जुर्माना देना पड़ेगा। ड्यू एण्ड कम्पनी ने कुछ टायर सेल्फ्रिज एण्ड कम्पनी को उपर्युक्त शर्तों पर बेचा। परन्तु सेल्फ्रिज एण्ड कम्पनी ने टायरों को निर्धारित मूल्य से कम पर बेच दिया। डनलप कम्पनी ने सेल्फ़िज एण्ड कम्पनी पर शर्त भंग के कारण वाद किया।

अभिनिर्धारित हुआ कि डनलप एण्ड कम्पनी कुछ भी नहीं वसूल सकती थी क्योंकि संविदा डनलप कम्पनी और सेल्फ्रिज कम्पनी के मध्य नहीं हुई थी।

लार्ड वाईकाउन्ट ने अंग्रेजी विधि के दो सारभूत सिद्धान्त बताये-

  1. किसी संविदा को वही व्यक्ति लागू करा सकता है जो उसका पक्षकार हो अर्थात् कोई पर व्यक्ति जो संविदा का पक्षकार नहीं है संविदा को लागू नहीं करा सकता भले ही संविदा उसके भले के लिए की गयी हो।
  2. प्रतिफल केवल वचनग्रहीता द्वारा दिया जा सकता है किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं।

“संविदा का सम्बन्ध जिसका अर्थ है कि संविदा के पक्षकार ही वाद ला सकते हैं कि इंग्लैण्ड में बड़ी आलोचना होती रही है। लार्ड जस्टिस डेनिंग ने बेसबिक v. बेसविक के वाद में इस नियम की आलोचना की है। इस वाद में-

प्रतिवादी ‘B’ के कोयले के कारबार में सहायता करता रहता था। प्रतिवादी और B के बीच एक संविदा हुई जिसमें शर्त यह थी कि प्रतिवादी कारबार करेगा। B केवल सलाह देगा। B के मरने के बाद प्रतिवादी B की विधवा को प्रतिसप्ताह 2 पौंड़ देगा। B की मृत्यु के बाद प्रतिवादी ने विधवा को 5 पौंड दिया लेकिन बाद में देना बन्द कर दिया।

निर्णीत हुआ कि विधवा वाद ला सकती थी। लार्ड डेनिंग ने विचार अभिव्यक्त किया कि प्रिविटी आफ कन्ट्रेक्ट का नियम मुख्य रूप से प्रक्रिया का नियम हैं जो उपाय से सम्बन्धित है अन्तनिर्हित अधिकार से नहीं।

परन्तु अपील में हाउस ऑफ लार्ड्स ने यद्यपि निर्णय को नहीं बदला परन्तु निर्णय का आधार भिन्न बताया। लार्ड रीड ने विचार अभिव्यक्त किया कि, “वादी को व्यक्तिगत रूप से वाद लाने का अधिकार नहीं हैं परन्तु अपने पति की सम्पत्ति का प्रशासक होने के नाते अपीलार्थी को संविदा पालन के लिए बाध्य करवा सकती है।”

भारतीय विधि में संविदा का सम्बन्ध – भारतीय संविदा विधि में इस नियम के बारे में कोई अपवाद नहीं है परन्तु भारतीय न्यायालयों ने अपने विनिश्चयों में इस नियम को लागू किया है जिनमें कुछ वाद निम्नलिखित हैं-

जमुना दास v. राम औतार का वाद-

‘अ’ ने पहले अपनी जमींदारी भूमि ‘ब’ के पास 40,000 रु. ऋण लेकर गिरवी रखी। फिर 44,000 रु. ने ‘स’ को बेच दिया। ‘स’ के पास 40,000 रु. इसलिए छोड़ दिया कि वह ‘ब’ का ऋण चुकाकर जमीन छुड़ा ले। ‘ब’ ने 40,000 रु. वसूलने के लिए ‘स’ पर वाद किया।

निर्णीत हुआ कि ‘ब’ वाद नहीं ला सकता था क्योंकि वह संविदा का पक्षकार नहीं था। संविदा ‘अ’ और ‘स’ के बीच हुई थी।

एम०सी० चाको v. ट्रावनकोर राज्य का वाद-

इस वाद में चीफ जस्टिस श्री शाह ने यह विचार अभिव्यक्त किया कि यह भलीभाँति स्थापित नियम माना जाना चाहिए कि न्यास अथवा पारिवारिक करारों को छोड़कर कोई व्यक्ति जो संविदा का पक्षकार नहीं हैं वाद नहीं ला सकता। इस वाद के तथ्य इस प्रकार थे-

स्टेट बैंक आफ ट्रावनकोर का, हाईलैण्ड बैंक ओवरड्राफ्ट के अधीन कर्जदार था । हाइलैण्ड बैंक के मैनेजर M थे तथा प्रत्याभूति उसके पिता K ने ओवरड्राफ्ट के भुगतान के लिए दी थी। K ने अपनी जायदाद दान कर दी। दानपत्र में एक शर्त थी कि यदि प्रत्याभूति के बारे में कोई दायित्व उत्पन्न हो तो उसकी रकम M बैंक के रुपये से चुकायेगा या उस सम्पत्ति से चुकायेगा जो M के हिस्से में आयेगी। स्टेट बैंक आफ ट्रावनकोर ने इसी शर्त को लागू कराने के लिए M पर वाद किया। परन्तु असफल रहा क्योंकि स्टेट बैंक दानपत्र में कोई पक्षकार नहीं था।

एडवरटाइजिंग ब्यूरो v. सी०टी० देवराज के मामले में सर्कस के मालिक ने एडवरटाइजिंग ब्यूरो से विज्ञापन देने का करार किया था। सर्कस के फाइनेन्स और एडवरटाइजिंग ब्यूरो के बीच कोई करार नही था। सर्कस के मालिक और फाइनेन्सर के बीच जो करार हुआ उनका विज्ञापनकर्ता ब्यूरो पक्षकार नहीं था। विज्ञापनकर्ता द्वारा सर्कस के फाइनेन्सर के विरुद्ध जब वाद लाया गया तो उच्चतम न्यायालय द्वारा संविदात्मक सम्बन्ध के सिद्धान्त के आधार पर वाद खारिज कर दिया गया।

प्रिविटी आफ कान्ट्रेक्ट के नियम के अपवाद

प्रिविटी आफ कान्ट्रेक्ट के नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं-

  1. न्यास या भार-

    जब किसी विशेष सम्पत्ति में किसी के लिए किसी न्यास या भार का सृजन किया हो तो वह व्यक्ति जिसके पक्ष में ऐसा न्यास या भार सृजित किया गया है, संविदा का पक्षकार न होते हुए भी लागू करा सकता है। इस सम्बन्ध में प्रिवी कौंसिल द्वारा निर्णीत ख्वाजा मोहम्मद खाँ हुसैनी बेगम का वाद एक अच्छा उदाहरण है-

वर एवं वधू के पिता के बीच यह करार हुआ कि वर का पिता वधू को आजीवन 500 रुपये खर्चा-ए-पानदान के रूप में देता रहेगा। इस प्रयोजन से वर के पिता ने कुछ सम्पत्ति भी शामिल की। वर एवं वधू में आपसी सम्बन्ध खराब हो गये इसलिए वर के पिता ने खर्चा-ए-पानदान देना बन्द कर दिया।

निर्णीत हुआ कि वादी संविदा प्रवर्तित करा सकती थी क्योंकि वादी के पक्ष में वादी के भले के लिए सम्पत्ति भारित की गयी थी।

  1. विवाह, बँटवारा एवं अन्य पारिवारिक करार-

    जब कोई ऐसा करार हुआ है। जो विवाह, बंटवारा, भरण-पोषण आदि किसी प्रकार के पारिवारिक करार से सम्बन्धित है और उस करार में किसी के भले के लिए कोई व्यवस्था है तो वह संविदा का पक्षकार न होते हुए भी करार को लागू करा सकता है।

उदाहरणार्थ- द्रौपदी v. जसपत राय के वाद में J की पत्नी D ने क्रूरता के कारण J को छोड़ दिया था। ‘J’ और उसके ससुर में करार हुआ कि वह ‘D’ को प्यार से रखेगा और यदि वह ऐसा करने में असफल रहा तो D को एक अलग मकान की व्यवस्था करेगा और सारा खर्च वहन करेगा। परन्तु ‘J’ ने फिर क्रूरता की और D को घर से निकाल दिया। D ने संविदा प्रवर्तित कराने के लिए वांद किया। निर्णीत हुआ कि D संविदा प्रवर्तित करा सकती थी।

  1. विबन्ध या अभिस्वीकृति –

    जब किसी संविदा का कोई पक्षकार किसी अन्य व्यक्ति के प्रति दायित्व स्वीकार कर लेता है तो वह अन्य व्यक्ति संविदा का पक्षकार न होते हुए भी संविदा को लागू करा सकता है।

उदाहरणार्थ- देवराज अर्स v. रामकृष्णैया के वाद में एक व्यक्ति ने प्रतिवादी को अपना मकान बेचा और विक्रय मूल्य का कुछ भाग उसी के पास रहने दिया और कहा कि वह उस रुपये को वादी को दे देगा जो उसने वादी से उधार लिया। प्रतिवादी ने वादी को भुगतान करने का वचन दिया। कुछ रुपया तुरन्त दे दिया और शेष वाद में देने का वचन दिया। निर्णीत हुआ कि वादी यद्यपि संविदा का पक्षकार नही था फिर भी संविदा को लागू करा सकता था।

  1. भूमि से सम्बन्धित ऐसी संविदा जो स्वामी पर कोई कर्तव्य लादती हो –

    जब किसी व्यक्ति ने कोई ऐसी जमीन खरीदी हो, जो खरीदने वाले पर कोई कर्तव्य लादती हो तो वह व्यक्ति जिसने ऐसी जमीन खरीदी है संविदा से बाध्य होगा भले ही वह संविदा का पक्षकार न हो। इस सम्बन्ध में स्मिथ एण्ड स्नाइब्स हाल फार्म लि० खिर डगलस कैचमेण्ट बोर्ड का वाद इस प्रकार है-

नदी से मिली हुई भूमि के भू-स्वामियों से प्रतिवादी बोर्ड ने यह संविदा की कि बोर्ड नदी के किनारों को सुरक्षित रखेगा और भू-स्वामियों को इसके बदले में चन्दा देना होगा। एक भू-स्वामी ने अपनी जमीन’ अ’ को बेच दी । ‘अ’ ने जमीन ‘ब’ को बेच दी। बोर्ड की असावधानी के कारण बांध टूट गया और जमीन में बाढ़ आ गयी।

निर्णीत हुआ कि ‘अ’ और ‘ब’ यद्यपि संविदा के पक्षकार नहीं थे परन्तु उन्हें वाद लाने का अधिकार था।

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