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परमाणु अप्रसार संधि 

परमाणु अप्रसार संधि 

परमाणु अप्रसार संधि 

(Nuclear Non-Proliferation Treaty)

परमाणु अप्रसार संधि को, जिसे आमभाषा में NPT कहा जाता है, प्रारम्भ में अमरीका तथा (भू० पू०) सोवियत संख ने मिलकर तैयार किया था ताकि परमाणु शस्त्र-विहीन राष्ट्रों को और परमाणु शस्त्रों के प्रसार को रोका जा सके। 11 मार्च, 1968 को इस संधि पर विचार-विमर्श करने तथा अपनाए जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की महासभा के सम्मुख पेश किया गया। 12 जून, 1968 में महासभा ने यह संधि 21 अनुपस्थितियों, 95 पक्ष में तथा 4 विपक्ष में वोटों के साथ पारित कर दी।

इस परमाणु अप्रसार संधि पर 1 जुलाई, 1968 को लंदन, मास्को तथा वाशिंगटन में एक साथ हस्ताक्षर किये गये। परन्तु यह वास्तव में मार्च 1970 को क्रियान्वित की गई। आज तक कितने ही परमाणु-अस्त्र-विहीन राष्ट्रों ने इस संधि पर, इसमें दी गई प्रक्रिया के अनुसार, हस्ताक्षर किए हैं किन्तु भारत जैसे कुछ राष्ट्रों ने इस संधि पर इस आधार पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया कि यह संधि पक्षपातपूर्ण है तथा परमाणु तथा परमाणु-विहीन राष्ट्रों के बीच की खाई को और भी चौड़ा करने के लिए बनाई गई है।

परमाणु अप्रसार संधि की मुख्य विशेषताएं

परमाणु अप्रसार संधि की प्रस्तावना तथा मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

प्रस्तावना (The Preamble)

  1. संधि के सभी हस्ताक्षरकर्ताओं ने इस सिद्धान्त को स्वीकार किया कि परमाणु तकनीक के शान्तिपूर्ण प्रयोग के लाभ उसी राष्ट्रों को जो इस सन्धि के सदस्य हैं, बराबर अवसर मिलने चाहिये चाहे वे परमाणु शस्त्र सम्पन्न राज्य हैं या परमाणु-शस्त्र-विहीन, इन लाभों से परमाणु-अस्त्रों से सम्पन्न किसी भी राज्य द्वारा परमाणु विस्फोटक साधनों के विकास के परिणामस्वरूप प्रत्येक प्राप्त उत्पादन कभी शामिल हैं।
  2. इस बात पर विश्वास करते हुए कि इस सिद्धान्त को विकसित करने के लिए इस सन्धि के सभी सदस्यों के शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु शक्ति के उपयोग के विकास के लिए आप स्वयं या दूसरे राज्यों के सहयोग के साथ वैज्ञानिक ज्ञान के आदान-प्रदान में भाग का पूर्ण अधिकार होगा।
  3. किसी पर परमाणु विस्फोट के शान्तिपूर्ण प्रयोग के स्वाभाविक लाभ, उचित अन्तर्राष्ट्रीय प्रक्रिया के माध्यम से उन परमाणु-अस्त्र-विहीन राष्ट्रों को भी उपलब्ध होने चाहिए जो इस सन्धि के सदस्य हैं तथा यह ऐसे निष्पक्ष आधार पर होना चाहिए और इन प्रयुक्त विस्फोटक साधनों के लिए ऐसे सदस्यों से कम-से-कम मूल्य लिया जाये एवं शोध विकास के लिए मूल्य में छूट दी जाये।
  4. इस सन्धि ने अपने अभिप्राय की घोषणा की कि वे परमाणु अस्त्र-दौड़ को जितनी जल्दी सम्भव हो सके, रोकने का प्रयत्न किया जाये तथा इसके लिए सभी राज्यों से सहयोग के लिए प्रार्थना भी की गई।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव के कम करने की तथा राष्ट्रों के मध्य विश्वास को सुदृढ़ करने की इच्छा प्रकट की गई, ताकि परमाणु अस्त्रों का निर्माण रोका जा सके, वर्तमान अस्त्र-भण्डारों को समाप्त किया जा सके तथा वितरण की प्रक्रिया से मुक्ति प्राप्त करके कड़े तथा प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय नियन्त्रण तले सामान्य तथा पूर्ण निःशस्त्रीकरण के लिए संधि की जाए।

इस संधि में ऐसा कुछ नहीं है जो किसी भी राज्य-समूह को इस अधिकार से वंचित करता है कि वे अपने क्षेत्रों में परमाणु-अस्त्रों के बहिष्कार के लिए संधियाँ कर सकें।

धाराएँ

संधि के सभी सदस्यों ने निम्नलिखित बातों को स्वीकार किया-

  1. प्रत्येक परमाणु-अस्त्रों वाला राज्य जो इस संधि का सदस्य है, यह स्वीकार करता है कि वह किसी भी प्रापक को, किसी भी प्रकार के परमाणु-अस्त्र या अन्य परमाणु विस्फोटक साधनों का हस्तान्तरण नहीं करेगा या प्रत्यक्ष रूप से ऐसे किन्हीं शत्रों या विस्फोटक साधनों पर नियन्त्रण नहीं बनने देगा। तथा किसी भी ढंग से किसी परमाणु-अस्त्र-विहीन राज्य को ऐसे अस्त्रों के निर्माण या किसी दूसरे ढंग से उन्हें प्राप्त करने में या दूसरे परमाणु विस्फोटक साधनों पर या ऐसे शस्त्रों पर नियन्त्रण करने में उन्हें न तो सहायता देगा, और उत्साहित करेगा तथा उनको ऐसी वस्तुएँ प्रस्तुत भी नहीं करेगा। (अनुच्छेद 1)
  2. इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाले परमाणु अस्त्र-विहीन सदस्य राज्य यह स्वीकार करते हैं कि वे किसी भी राज्य से परमाणु अस्त्रों या दूसरे परमाणु विस्फोटक साधनों या ऐसे शस्त्रों विस्फोटकों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण के लिए शक्ति प्राप्त नहीं करेंगे। न तो वे इन परमाणु शस्त्रों का निर्माण करेंगे और न ही किसी अन्य ढंग से परमाणु शस्त्रों का अन्य परमाणु विस्फोटक साधनों को प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे, तथा न ही इन परमाणु शस्त्रों, अन्य परमाणु विस्पोटक शस्त्रों का निर्माण करने के लिए किसी भी अन्य राज्य से सहायता मांगेंगे, और न ही प्राप्त करेंगे। (अनुच्छेद II)
  3. इस सन्धि में किसी भी धारा की व्याख्या इस ढंग से न की जायेगी जो इस सन्धि के सभी सदस्य राज्यों के उस स्थायी अधिकार को प्रभावित करे जो सन्धि के अनुच्छेद I तथा II के रूप तथा निष्पक्ष रूप से परमाणु शक्ति के खोज, उत्पादन तथा शान्तिपूर्ण उद्देशयों के लिए इसका प्रयोग करते हों तथा इसके साथ-साथ शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए स्वयं या दूसरे देशों के साथ सहयोग करके अपना पूर्ण योगदान देते हों या सचना का आदान-प्रदान करते हों। (अनुच्छेद III)
  4. (क) इस सन्धि का कोई भी सदस्य इस सन्धि में संशोधन का प्रस्ताव रख सकता है। किसी भी प्रस्तावित संशोधन के मूल-पाठ को न्यासी सरकार को जमा करवाना होगा जो इस सन्धि के सभी सदस्यों में वितरित करेगी। उसके बाद यदि 1/3 या इससे अधिक सदस्य ऐसा करने की प्रार्थना करते हैं तो न्यासी सरकार एक सम्मेलन बुलाएगी, जिसमें वे संधि के सभी सदस्यों को इस तरह संशोधन पर विचार करने के लिए आमन्त्रित करेगी।

(ख) इन सन्धि में कोई भी संशोधन इस संधि के सभी सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकृत होना चाहिए। इन सदस्यों में शामिल होंगे संधि के स भी सदस्य, परमाणु अस्त्र सम्पन्न राज्यों के सभी मतदाता तथा अन्य सभी सदस्य जो संशोधन के वितरण के दिन अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु शक्ति एजेन्सी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य होंगे।

  1. इस सन्धि के लागू होने के पाँच वर्ष लान, संवि के सदस्यों का एक सम्मेलन जेनेवा, स्विट्जरलैंड में बुलाया जायेगा ताकि इस बात की समीक्षा हो सके कि इस संधि की धाराओं तथा उद्देश्यों का पूर्णरूप से उचित संचालन हो रहा है या नहीं। (अनुच्छेद V)
  2. (क) इस सन्धि पर सभी राज्य हस्ताक्षर कर सकते हैं। कोई राज्य जो इस सन्धि के लागू होने से पहले इस पर हस्ताक्षर नहीं करता, वह बाद में अनुच्छेद “C” के अनुसार कभी भी इसमें शामिल हो सकता है।

(ख) हस्ताक्षरकर्ता राज्य इस संधि का अनुसमर्थन भी कर सकते हैं। अनुसमर्थन के उपकरण तथा सम्मिलित होने के उपकरणों को उस सरकार के पास, जिसे तब न्यासी सरकार नियुक्त किया जायेगा, जमा करवाया जायेगा।

  1. (क) यह सन्धि उस समय लागू होगी जब इस संधि के सभी परमाणु-अस्त्र सम्पन्न सदस्य राज्य तथा इस संधि के अन्य सदस्य राज्य इसे अपना अनुसमर्थन देंगे तथा अपने-अपने अनुसमर्थन के उपकरणों को जमा करवायेंगे। इस संधि के संदर्भ में एक परमाणु अस्त्र सम्पन्न राज्य व राज्य है, जिसने 1 जनवरी, 1967 से पहले किसी परमाणु अस्त्र या किसी अन्य परमाणु साधन का निर्माण किया हो और उसका विस्फोट किया हो।

(ख) जिन राज्यों द्वारा इन संधि में शामिल होने के अनुसमर्थन के उपकरण इन संधि के लागू होने के तुरन्त बाद ही जमा करवाए गये हैं, यह सन्धि उनके प्रदेश के अनुसमर्थन के उपकरणों के जमा करवाये जाने के दिन से ही क्रियान्वित होगी।

(ग) न्यासी सरकार सभी हस्ताक्षरकर्ता राज्यों को तथा इसमें प्रवेश करने वाले राज्यों को हस्ताक्षर करने की तिथि, इस संधि के लागू होने की तिथि तथा किसी सम्मेलन बुलाने की प्रार्थना तथा दूसरे नोटिस मिलने की तिथि के सम्बन्ध में तुरन्त सूचना देगी।

(घ) यह संधि न्यासी सरकार के पास पंजीकृत रहेगी। ऐसा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 102 के अन्तर्गत किया जायेगा। (अनुच्छेद VI)

  1. यह संधि असीमित समय के लिए होगी।
  • कोई सदस्य अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रयोग करते समय, यह अनुभव करे कि इस संधि की विषय-वस्तु से सम्बन्धित किसी साधारण घटना ने उसके राज्य के उच्चतम हितों को जोखिम में डाल दिया है तो वह संधि से अपना नाम वापस ले सकता है। यह अपने इस आशय का नोटिस सभी सदस्य राष्ट्रों तथा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् को 3 महीने पहले देगा। इस तरह के नोटिस में उस असाधारण कर रहे हैं। अब वह एक व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि को त्यागकर विश्व पर लादने का यत्ल कर रहे हैं। ताकि और देश उनकी श्रेणी में शामिल न हो सकें।

NPT पर 178 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं जिनमें से 173 देश परमाणु शस्त्र-विहीन हैं। भारत, पाकिस्तान, इस्राइल, क्यूबा, यू० ए० ई०, ओमान, तजाकिस्तान, ईरीट्रीया, कोमोरोल, अगोला दजीवोउती तथा मोनाको ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। चीन तथा फ्रांस ने पहले इस सन्धि को न माना परन्तु बाद में परमाणु शस्त्रों को प्राप्त करके इस सन्धि को मान्यता दी। भारत इस सन्धि को भेदभावपूर्ण तथा अन्याय युक्त मानता है क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य Nuclear Haves तथा Nuclear Havenots में खाई को बनाए रखना है। पाकिस्तान भारतका नाम लेकर इस सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं कर रहा तथा परमाणु शस्त्र तकनीक एवं ऐसे शस्त्रों का विकास करने में संलग्न है।

NPT को शस्त्र-नियंत्रण का उपकरण बतलाया जाता है। यह एक अधूरी तथा एक पक्षीय व्यवस्था है क्योंकि इस के बाद परमाणु निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ की जानी चाहिए थी जोकि नहीं की गई क्योंकि परमाणु धारक देश अपने परमाणु एकाधिकार तथा श्रेष्ठता को बनाए रखना चाहते हैं जो कि अवांछित है। भारत इस सन्धि का विरोधी रहा है और नई भारतीय सरकार ने भी इस के विरोध की नीति जारी रखने की घोषणा की क्योंकि भारत इस सन्धि को पक्षपातपूर्ण, अन्याययुक्त, असमान तथा एकपक्षीय और अधूरी सन्धि मानता है।

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