प्रपीड़न (Coercion) की परिभाषा एवं आवश्यक शर्त

प्रपीड़न (Coercion)- परिभाषा एवं आवश्यक शर्त

प्रपीड़न (Coercion)

प्रपीड़न उत्पीड़न शब्द का ही पर्याय है अधिनियम की धारा 15 प्रपीड़न की व्याख्या इस प्रकार से करती है- “प्रपीड़न इस आशय से कि किसी व्यक्ति से कोई करार कराया जाय कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना, जो भारतीय दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध है अथवा किसी व्यक्ति पर, चाहे वह कोई हो, प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए किसी सम्मति का विधि विरुद्ध निरोध करना या निरोध करने की धमकी देना है।”

प्रपीड़न (Coercion) की आवश्यक शर्ते

धारा 15 के अधीन प्रपीड़न द्वारा प्राप्त सम्मति तब कही जाती है-

जब-

  1. किसी व्यक्ति द्वारा भारतीय दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध कार्यों को कराया गया हो या कराने की धमकी दी गयी हो, या
  2. किसी सम्पत्ति का विधि-विरुद्ध निरोध किया गया हो; या
  3. ऐसी धमकी या निरोध किसी व्यक्ति से कोई करार कराने या प्रतिकूल प्रभाव डालने के आशय से की गयी हो।

अपवाद

  1. फौजदारी मुकदमें की धमकी-

    यद्यपि क्रिमिनल मुकदमें की धमकी देना दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध नहीं माना जाता इसलिए सत्य फौजदारी मुकदमें की धमकी देना प्रपीड़न नहीं होता।

इस संदर्भ में अस्करी मिर्जा बनाम बी0वी0 जय किशोर के बाद को उदाहरणस्वरूप दिया जा सकता है। इस वाद में-‘अ’ ने जो अवयस्क था अपने को वयस्क बताकर एक करार किया। जब वह वयस्क हो गया तो संविदा के दूसरे पक्षकार ने ‘अ’ को जालसाजी के मुकदमें में फँसाने की धमकी दी। ‘अ’ ने एक नया करार कर लिया। वाद में ‘अ’ ने करार को इस आधार पर शून्यकरणीय घोषित करने की मांग की कि करार प्रपीड़न द्वारा कराया गया था।

निर्णीत हुआ कि करार प्रपीड़न के अधीन नहीं करवाया गया था क्योंकि धमकी सच्चे मुकदमें की दी गयी थी। इसलिए विधि मान्य था।

  1. आत्महत्या की धमकी प्रपीड़न है-

    आत्महत्या की धमकी देना यद्यपि भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध नहीं होता है परन्तु आत्महत्या की धमकी देकर कराया गया करार प्रपाड़न माना जाता है।

इस सम्बन्ध में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत वाद चोखम अम्मीराजू v. चीखम शेषम्पा एक उपयुक्त उदाहरण है-एक व्यक्ति ने अपनी बीबी और अपने बेटे को यह धमकी दी कि वह आत्महत्या कर लेगा यदि उसको वह सम्पत्ति नहीं दी गयी जिसे बीबी और बेटा अपनी कहते थे। बीबी और बेटे ने सम्पत्ति देने का करार कर लिया।

निर्णीत हुआ कि बीबी और बेटे के विकल्प पर करार शून्यकरणीय था क्योंकि करार प्रपीड़न द्वारा कराया गया था।

  1. पुलिस स्टेशन के अन्दर दी गयी धमकी-

    कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ब्राडवे सेन्टर v. गोपाल दास बागरी के नवीनतम वाद में वहाँ भागीदार द्वारा रिटायरमेन्ट के लिए लिखे गये विलेख को प्रपीड़न के अधीन मानने से इन्कार कर दिया जहाँ भागीदार का यह आरोप था कि उसके द्वारा फर्म में रिटायरमेन्ट का विलेख थाने के अन्दर धमकी/प्रपीड़न करके लिखवाया गया है। न्यायालय का मत था कि चूँकि भागीदार विलेख पर हस्ताक्षर करने के बाद 13 लाख रुपये तत्काल स्वीकार कर लिए थे इसलिए विलेख को उत्पीड़न के अधीन नहीं माना जा सकता।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 15 का स्पष्टीकरण इस प्रकार से है-

जिस स्थान पर प्रपीड़न का प्रयोग किया गया है वहाँ भारतीय दण्ड संहिता का लागू होना आवश्यक नहीं है। उदाहरणार्थ खुले समुद्र में एक अंग्रेजी पोत पर, ऐसे कार्य जो भारतीय दण्ड संहिता के अधीन आपराधिक अभिनास की कोटि में आता है ‘B’ से ‘A’ करार कराता है। तत्पश्चात् ‘A’ संविदा भंग करने के लिए कलकत्ता में ‘B’ पर वाद लाता है।

‘A’ ने प्रपीड़न का प्रयोग किया है यद्यपि उसका कार्य इंग्लैण्ड की विधि के अनुसार अपराध नहीं हैं और यद्यपि उस समय जब और उस स्थान पर जहाँ वह कार्य किया गया था, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506 लागू नहीं थी।

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