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पौधों व प्राणियों का विकास

पौधों व प्राणियों का विकास

पौधों व प्राणियों का विकास (Evolution of Plant and Animals)

ज्ञा ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ, जीवों का विकास हुआ है, किन्तु विभिन्न प्राणियों और पादपों का जो स्वरूप हम आज देखते हैं, प्रारम्भ में ऐसा नहीं था। जीवों को वर्तमान स्परूप प्राप्त करने में अरबों-खरबों वर्ष लगे। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जीवों के स्वरूप में भी निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। शनैः शनैः परिवर्तन से जीवन के सरल रूप के जटिल रूप में निर्माण को जैविक विकास कहते हैं। जीवों का वर्तमान जटिल स्वरूप क्रमशः परिवर्तन का परिणाम है। यह प्रक्रिया आज भी सतत रूप से जारी है।

पृथ्वी पर जीवन का प्रादुर्भाव कब तथा किस प्रकार से हुआ? इसका सर्वसम्मत हल ढूँढने के लिए जीवविज्ञ सदैव प्रयत्नरत रहे हैं। जीवों द्वारा शैलों पर अंकित चिह्न या परिरक्षित अवशेष जीवाश्म (fossils) कहलाते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से पृथ्वी पर जीवों के विकास के अनेक प्रमाण प्राप्त हुए हैं। जो कुछ हम जानते हैं, उसके अनुसार महाकल्पों (Eons) पूर्व इस धरती पर जीवित जीवद्रव्य विद्यमान था और इसकी उत्पत्ति समुद्रों में हुई थी जो उस समय पृथ्वी के अधिकांश भाग पर फैले हुए थे। इस जीवद्रव्य की संरचना अत्यन्त सरल थी और इसकी सूक्ष्मता तथा आकारिकी वर्तमान जीवाणुओं, जलाशयी शैवालों आदि के सदृश थी अनेक जीव वैज्ञानिक यह मानते हैं कि पृथ्वी पर प्रथम जीव रसायन-संश्लेषी जीवाणु थे तथा इनसे आदिम हरे पादप विकसित हुए।

पृथ्वी का इतिहास पाँच महाकल्पों में विभाजित किया गया है-

  1. आर्कियोजोइक महाकल्प-

    यह सबसे प्राचीन महाकल्प है जिसकी शुरूआत भू-पटल के निर्माण के साथ मानी जाती है। इस काल में ज्वालामुखी क्रियाओं की अधिकता तथा पृथ्वी की तप्त अवस्था के कारण जीवाश्मों का निर्माण नहीं सका, किन्तु अधिकांश जीवविज्ञों के अनुसार इस महाकल्प में एककोशिकीय जीव प्रोटोफाइटा पादप व प्रोटोजोआ प्राणी बन चुके थे। दक्षिण अफ्रीका से प्राप्त हुए लगभग 3 अरब वर्ष प्राचीन हरित शैवालव जीवाणु इसका प्रतिनिधित्व करते हैं।

  2. प्रोटेरोजोइक महाकल्प-

    इस महाकल्प के कुछ ही जीवाश्म उपलब्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि इसके प्रारम्भ में नीले-हरे शैवाल व जीवाणु पाये जाते थे। महाकल्प के अन्तिम काल समुद्री शैवाल व कवक, स्पंज, जैली फिश, कोरल, आर्थोपोड, मोलस्क आदि प्राणियों का विकास हो चुका था। यह माकल्प आज से 60 करोड़ वर्ष पूर्व तक माना जाता है।

  3. पलियोजोइक महाकल्प-

    इसे प्राचीन जीवन का युग भी कहते हैं। इसकी अवधि 60 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 22.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक मानी जाती है। इस महाकल्प में पक्षियों तथा स्तनधारी जीवों के अतिरिक्त सभी अन्य जन्तुओं का विकास हुआ। पृथ्वी पर घने जंगलों का जन्म हुआ। इस महाकल्प को छह युगों में बाँटा जाता है-कैम्ब्रियन, आर्डोविसियन, सिल्युरियन, डेवीनियन, कार्बनिफरस तथा पर्नियन। कैम्ब्रियन काल में अकशेरूकी जन्तुओं तथा समुद्री शैवालों की अधिकता थी। ओर्डोविसियन को विशाल मोलस्क जन्तुओं का काल माना जाता है। कशेरूकी जन्तु भी सर्वप्रथम इसी काल में प्रकट हुए थे जिनमें कठोर कवच वाली मछलियाँ प्रमुख थीं। पौधों में समुद्री शैवालो की अधिकता थी। सिल्युरियन काल में प्रथम स्थलीय पादपों तथा वायु से श्वसन करने वाले जन्तुओं का विकास हुआ। डेवोनियन काल में बड़ी मात्रा में मछलियाँ उत्पन्न होने के कारण इसे मत्स्य युग भी कहा जाता है। इस काल में प्रथम बार वास्तविक वनों की उत्पत्ति हुई तथा जिम्नोस्पर्म पौधे का विकास हुआ। प्रचुर कोयला भण्डारों के आधार पर कार्बनिफरस काल को ठकोयला युगठ कहा गया। प्रथम सरीसृपों तथा पंखयुक्त कीटों का उद्गम इसी काल में हुआ। पादपों में बीजों फर्न व निम्नोस्पर्म के वनों का विकास हुआ। पर्मियन कल में सरीसृपों व कोणधारी वृक्षों का विस्तार हुआ।

  4. मेसोजोइक महाकल्प-

    इसे सरीसृप महाकल्प भी कहा जाता है। इसे ट्रियासिक, जुरासिक व क्रीटेशस युगों में बाँटा जाता है। यह कल्प विशालकाय व भयानक रेंगने वाले जीवों के उद्भव व पक्षियों के जन्म के लिए जाना जाता है। अण्डे देने वाले स्तनधारी सर्वप्रथम ट्रियासिक तथा पक्षी जुरासिक में प्रकट हुए। क्रीटेशस के अन्त तक अनेक सरीसृप लुप्त भी हो गये। पेड़-पौधों में जिम्नोस्पर्मी पौधों का प्रभुत्व स्थापित हुआ, किन्तु क्रीटेशस काल में ये भी धीरे-धीरे कम होते गए। इस महाकल्प के अंत में प्रथम मेपल तथा ओक वनों का उद्भव तथा प्रथम एक बीजपत्री पौधों का विकास हुआ।

  5. कैनोजोइक महाकल्प-

    पृथ्वी का यह नवीनतम महाकल्प है। इस महाकल्प को लक्षणों के आधार पर स्तरधारियों, पक्षियों, कीटों व पुष्पधारी का युग माना जाता है। घास व शाकीय पौधों, मनुष्य, हाथी, घोड़ा, ऊँट आदि प्राणियों का विकास इसी महाकल्प में हुआ।

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