परिवार की संयुक्तता-सम्बन्धी उपधारणा
परिवार की संयुक्तता सम्बन्ध भारत में प्राचीन काल ही प्रचलित हैं। यह संयुक्तता (Joint-ness) खान-पान, पूजा-अर्चना एवं सम्पत्ति के सम्बन्ध में होती है। इस प्रकार की उपधारणा निकट के सम्बन्धियों के बयों के बीच में ही होती है जैसे भाइयों के बीच, पिता पुत्र के बीच। उड़ीसा उच्च न्यायालय ने यह कहा कि यह सामान्य बात है कि प्रत्येक हिन्दू परिवार संयुक्त माना जाता है। एक हिन्दू परिवार में जब तक विपरीत साबित न किया जाय परिवार संयुक्त बना हुआ समझा जाता है। यदि कोई पुराना विभाजन का तर्क लेता है तो उसे यह साबित करना पड़ेगा कि पुराने समय में विभाजन हुआ था। निम्नलिखित प्रमुख उपधारणों से यह निर्धारित किया जा सकता है कि परिवार संयुक्त है अथवा विभाजित, कोई सम्पत्ति संयुक्त परिवार की सम्पत्ति है या किसी विशेष सहदायिक की-
- प्रत्येक हिन्दू परिवार के बारे में यह उपधारणा है कि सम्पदा, उपासना तथा भोजन के सम्बन्ध में वह संयुक्त है, अतः प्रमाण-भार उस व्यक्ति के ऊपर होता है जो विभाजन का तर्क प्रस्तुत करता है। परिवार के सदस्य पृथक-पृथक निवास-गृह में रह सकते हैं अथवा भोजन पृथक् रूप से कर सकते हैं, फिर भी वे सम्पदा के सम्बन्ध में संयुक्त रह सकते हैं। यद्यपि पृथक् निवास तथा भोजन परिवार के विभाजन का अन्तिम प्रमाण नहीं है; फिर भी यह एक ऐसा तथ्य है जो विभाजित होने की स्थिति में निश्चित करने में अत्यधिक सहायक होता है। परिवार के एकीकृत होने की उपधारणा परिस्थितियों के परिवर्तन के अनुसार बदलती रहती है। यदि मामला भाइयों के बीच में है, तो यह उपधारणा सबल होती है वि कि परिवार संयुक्त है, किन्तु यदि मामला चचेरे भाइयों के बीच अथवा अन्य भाइयों या इसी प्रकार के सम्बन्धियों के बीच में है तो उपधारणा सबल नहीं होती है।
- कोई परिवार यदि एक बार संयुक्त हुआ मान लिया जाता है या उसके संयुक्त होने का प्रमाण प्राप्त हो जाता है तो विभाजन के अभाव में, यह संयुक्त मान लिया जाता है। सगे भाइयों के सम्बन्ध में एक दृढ़ उपधारणा होती है कि वे संयुक्त होंगे। यह साबित करना कि वे संयुक्त हिन्दू परिवार की संरचना नहीं करते, उसके ऊपर हैं जो उसके संयुक्त न होने की बात कहता है।
- जब यह प्रमाणित हो जाता है अथवा मान लिया जाता है कि विभाजन सम्पन्न हो चुका है तो जो व्यक्ति सम्पत्ति के संयुक्त होने की बात करता है, उसे सिद्ध करने का प्रमाण-भार उसी पर होता है।
- जहाँ यह प्रमाणित किया जाता है कि परिवार संयुक्त है अथवा उसमें सम्पत्ति संयुक्त है, तो यह उपधारणा निर्मित की जाती है कि सभी सम्पत्ति जो परिवार के पास है, संयुक्त है; किन्तु इस तथ्य से कि परिवार संयुक्त है, यह उपधारणा नहीं बनायी जा सकती है कि उसके पास संयुक्त सम्पत्ति अथवा कोई सम्पत्ति है।
प्रमाण-भार
यह जब प्रमाणित कर दिया जाता है कि पूरा परिवार एक ही निवास- गृह में संयुक्त रूप से रहता है, तो जो व्यक्ति उसके विभाजित होने का दावा करता है, प्रमाण- भार उसी व्यक्ति पर होता है, किन्तु इससे सम्बन्धित विधि परिस्थितियों के अनुसार बदलतीरहती है। अतः प्रत्येक परिस्थिति को सन्नियन्त्रित करने के लिए विधि का कोई एक साक्ष्य स्थापित नहीं किया जा सकता।
जहाँ किसी विशेष सम्पत्ति को अर्जित करने की तिथि को संयुक्त परिवार के पास पर्याप्त साधन था, वहाँ पर किसी एक सदस्य के नाम से उसके होने पर यह उपधारणा निर्मित की जाती है कि वह परिवार के संयुक्त कोश से अर्जित की गई है। अतः वह संयुक्त परिवार की सम्पदा है जब तक कि उसके विपरीत न सिद्ध कर दिया जाय। परिवार के सभी सदस्यों के व्यक्तिगत नाम में जो सम्पत्ति अर्जित की गई रहती है वह संयुक्त सम्पत्ति नहीं निर्मित करती। जो कोई सदस्य ऐसी अर्जित सम्पत्ति को संयुक्त परिवार की सम्पत्ति घोषित करता है उसको सम्पत्ति का केन्द्र बिन्दु प्रमाणित करना पड़ेगा। जहाँ वह यह साबित नहीं कर सकता, उपधारणा उसके विपरीत होगी।
महत्वपूर्ण लिंक
- दत्तक ग्रहण (Adoption)
- पारस्परिक सहमति से विवाह-विच्छेद (Divorce by mutual consent)
- नैसर्गिक संरक्षक के अधिकार (Rights of Natural Guardian)
- हिन्दू विधि में संरक्षक (Guardian in Hindu Law)
- भरण-पोषण अधिनियम, 1956
- वसीयती संरक्षक (Testamentary Guardian)
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