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भारत में कोयला क्षेत्र

भारत में कोयला क्षेत्र

भारत में कोयला क्षेत्र

वर्तमान समय में किसी भी देश का आर्थिक विकास तथा उसकी, औद्योगिक क्षमता का आधार शक्ति के साधन होते हैं। वर्तमान समय में उपलब्ध शक्ति के साधनों में कोयला, खनिज तेल तथा जल प्रमुख हैं। विश्व की औद्योगिक उन्नति के साथ-साथ कोयले का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान औद्योगिक क्रांति का आधार कोयला ही रहा है। इसलिए इसे ‘काले सोने’ का भी नाम दिया गया है। किसी भी देश में कोयले के उपयोग की मात्रा उस देश के औद्योगिक विकास के स्तर की द्योतक होती है। कोयले का उपयोग न केवल शस्त्र, बारूद, युद्धक, विमान, टैंक, बंदूक एवं वायुयान के निर्माण में ही होता है वरन् इसका उपयोग लिपिस्टिक जैसी शृंगार सामग्रियों, नायलान, प्लास्टिक, बटन, कागज आदि के निर्माणका में भी होता है। इस प्रकार कोयला आधुनिक सीयता का एक प्रकार से मापदंड हो गया है।

वर्तमान समय में भारतीय कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो गया है। इस समय ‘कोयला खान प्राधिकरण’ एवं ‘भारत कोकिंग कोल लिमिटेड’ भारतीय कोयले की खदानों की देख-रेख कर रही हैं जिनके नियंत्रण में क्रमशः 397 एवं 86 खदानें हैं।

राज्यों के अनुसार कोयले का उत्पादन (2001-02)

देश उत्पादन (लाख टन) कुल का प्रतिशत
बिहार व झारखंड

उड़ीसा

मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़

पश्चिम बंगाल

आंध्र प्रदेश

महाराष्ट्र

उत्तर प्रदेश

मेघालय

असम

अरुणाचल प्रदेश

नागालैंड

69174

51571

44319

25918

13675

7296

1062

459

320

90

20

34.00

24.11

20.72

12.12

6.39

3.41

0.50

0.21

0.15

0.04

0.01

भारत में कोयला क्षेत्र का वितरण

भारत का समस्त कोयला गोण्डवाना तथा टर्शियरी शैलों से प्राप्त होता है। गोण्डवाना शैलें 25 करोड़ वर्ष पुरानी हैं जबकि टर्शियरी कोयला लगभग 6 करोड़ वर्ष प्राचीन है। गोण्डवाना शैलों में दो शृंखलायें हैं जिन्हें बराकार एवं राजनीगंज के नाम से जाना जाता है। कार्बनीफेरस कल्प में भूगर्भिक हलचल के कारण मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी भारत के पूर्वी पठारों के जंगल धँस गए और कालांतर में अत्यधिक ताप एवं दबाव के कारण कोयले के सस्तरों के स्वरूप में परिणत हो गये। भारतवर्ष के संपूर्ण कोयले का लगभग 98.5 प्रतिशत गोण्डवाना शैलों से तप शेष 1.5 प्रतिशत टर्शियरी शैलों से प्राप्त होता है।

हमारे देश के कोयला उत्पादक राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा महाराष्ट्र, असम एवं मेघालय प्रमुख हैं।

बिहार-

कोयला उत्पादन की दृष्टि से इस राज्य का स्थान भारतवर्ष में प्रथम है। देश में उत्पादन का लगभग 34 प्रतिशत कोयला इसी राज्य से प्राप्त होता है। इस राज्य में कोयले के भंडार का अनुमान लगभग 64.4 करोड़ टन है। कोयले की प्रमुख खदानें अटिया, गिरिडीह, बोकारो, पालामऊ के कर्णपुरा, डालटनगंज, हुतार तथा रायगढ़ में हैं। हजारीबाग का झरिया कोयला क्षेत्र 390 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है। देश के संपूर्ण उत्पादन का लगभग 30.49 प्रतिशत कोयला झरिया की खदानों से प्राप्त होता है। झरिया की खदानों के निचले भागों में उत्तम कोटि का कोयला पाया जा रहा है। बोकारो क्षेत्र की कारगली परत लगभग 30 मीटर मोटी है। इस क्षेत्र में कोयले की 8 परतें हैं तथा इन संस्तरों की कुल मोटाई 60 मीटर है। कोकिंग का विशालतम क्षेत्र गिरिडीह है। यहाँ के कोकिंग कोयले का अनुमानित संचित भंडार 10 करोड़ टन है।

मध्य प्रदेश –

भारत के कोयला उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश द्वितीय स्थान पर है। इस राज्य में कोयले का अपरिमित भंडार है जिसकी खोज अभी पूर्ण नहीं हुई है। देश के संपूर्ण वार्षिक उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत कोयला मध्यप्रदेश से प्राप्त होता है। यहाँ के प्रमुख कोयला क्षेत्र नरसिंहपुर में मोहपानी, बिलासपुर, कोरबा, होशंगाबाद में सोहागपुर, सहडोल, में सिंगरौली एवं उमरिया, रायगढ़, सरगुंजा में तातापानी एवं रामकाला, बिलासपुर, छिंदवाड़ा में कनहन, होशंगाबाद में शाहपुर तथा कुरसिया क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र के नवीनतम कोयले की खदानें कोरबा में स्थित हैं जहाँ पर कोयले का एक संस्तर लगीग 21 मीटर मोआ है। यहाँ का संचित भंडार अपरिमित है। यहाँ से प्रति वर्ष कोयले के उत्पादन का लक्ष्य लगभग 40 लाख मीट्रिक टन है। यहाँ से जापान को भी कोयले का निर्यात किया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल-

उत्पादन की दृष्टि से यह राज्य भारतवर्ष में तृतीय स्थान पर है। इस राज्य में कोयले के भंडार का अनुमान 13 अरब टन है। इस राज्य के बर्दवान जनपद में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र स्थित है जिसे रानीगंज के नकाम से जाना जाता है। जिसका विस्तार लगभग 1250 वर्ग किलोमीटर में है। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले कोयले की ऊपरी संस्तर में सर्वोत्तम कोयला पाया जाता है। आयु में यह कोयला झरिया की खदानों में मिलने वाले कोयले की अपेक्षा नवीन है। भारतवर्ष में संपूर्ण कोयले के उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत कोयला रानीगंज की खदानों से प्राप्त होता है। इस क्षेत्र की खदानों में कोयले की विभिन्न परतों की कुल मोटाई 15 मीटर के आसपास है। कुल संस्तरों की संख्या 6 है।

संचित कोष-

भारतीय भू-गर्भ सर्वेक्षण के अनुसार देश के सुरक्षित भंडार का अनुमान 19378 करोड़ टन है।

निर्यात

भारतवर्ष में कोयले का उत्पादन घरेलू माँग से अधिक नहीं होता है तथापि विदेशों को कोयला निर्यात किया जाता है। यह निर्यात म्याँनार, जापान, श्रीलंका, सिंगापुर तथा नाइजीरिया को होता है। 1989-90 में कुल निर्यात का मूल्य 114 करोड़ रूपये था। इनमें म्याँमार को सबसे अधिक कोयला निर्यात किया जाता है। जहाँ 1990 में दस लाख रूपये का कोयला निर्यात किया गया। भारत से सन् 1990 में कोक के कुल निर्यात की कीमत लगभग तीन मिलियन रूपये थी और वजन लगभग 34 हजार टन था।

कोयला उद्योग की समस्यायें एवं भविष्य-

भारतीय कोयला उद्योग की समस्यायें निम्नलिखित हैं-

  • हमारे यहाँ के कोयले का भंडार सीमित, है।
  • खुदाई में प्राचीन विधियों का ही उपयोग हो रहा है और बहुत अच्छे कोयले को निकालने के पश्चात् निम्नकोटि के कोयले को छोड़ दिया जाता है।
  • कोयले के भंडार बहुत सीमित क्षेत्रों में होने के कारण समस्त देश में कोयले की आपूर्ति सरलतापूर्वक संभव नहीं है।
  • कोयले के सही उपयोग के लिए खंभे एवं तख्ते की विधि के स्थान पर नवीन विधि का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • खदानों में कार्य करने वाले श्रमिकों के रहन-सहन की दशाएँ बहुत ही पिछड़ी हुई एवं कष्टप्रद हैं।

कोयला उद्योग के विकास के लिये विभिन्न स्तरों में पंचवर्षीय योजनाओं में इसे समन्वित किया गया है। नवीन कोयले के क्षेत्रों में खोज जारी है। श्रमिकों के कलयाण की विभिन्न योजनाएँ कार्यान्वित की गई हैं उनको प्राविधिक शिक्षा देने के लिये गिरिडीह, करगली, भोजुडीह आदि केंद्रों में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गयी है।

देश के घरेलू बाजार में कोक की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिये विभिन्न योजनाएँ कार्यान्वित की गयी हैं। कोक के स्रोत सीमित होने के कारण हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड ने सार्वजनिक क्षेत्रों में दुर्गापुर, दुगधा, भोजुडीह में कोयला धुलाई के लिए केंद्र स्थापित किया है। व्यक्तिगत क्षेत्र में जमदोबा, पश्चिम बोकारो, लोदना तथा नवराजबाद (बिहार) तथा पाथरडीह (पश्चिम बंगाल) में धुलाई के कारखाने लगाए गए हैं। केंद्रीय सरकार द्वारा स्थापित कोयला विकास निगम अनेक खदानों को संचालित कर रहा है। इसके नियंत्रण में कारगली, कपाड़ा, सवांग तथा गिडी की चार कोयला शोधनशालायें हैं जिनकी वार्षिक शोधन क्षमता क्रमशः 15,30, 15 एवं 29 लाख मीट्रिक टन है। वर्तमान समय में कुल उपयोग किये जाने वाले कोयले का लगभग 65 प्रतिशत उद्योग धंधे, 27 प्रतिशत रेलों एवं शेष अन्य कार्यों में लगाया जा रहा है।

पंचवर्षीय योजना में कोयले की बढ़ती माँग को देखते हुए राष्ट्रीय कोयला विकास निगम तथा धनबाद केंद्रीय अनुसंधान संस्थान सतत् प्रयत्नशील हैं। इस संस्कार ने जिमालगोड़ा नामक स्थान पर घटिया किस्म के कोयले की सहायता से उच्चताप की गैस बनाने का कारखाना स्थापित किया है।

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