शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता और महत्व

शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता और महत्व

शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता (Need of Innovation in Education)

देश में हो रहे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन आवश्यक है। भारतीय परिप्रेक्ष्य एवं विश्व परिप्रेक्ष्य से शिक्षा में नवाचार एवं नूतन आयामों की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है-

  1. कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए।
  2. तीव्र आर्थिक विकास हेतु।
  3. वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली।
  4. जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति।
  5. मानव संसाधान का विकास करने हेतु ।
  6. सामाजिक परिवर्तन के अनुसार शिक्षा।
  7. रोजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु।
  8. पर्यावरण प्रदूषण जनित समस्याओं के समाधान हेतु।
  9. विशिष्टीकरण की वृद्धि एवं इससे उत्पन्न समस्याओं की पूर्ति हेतु।
  10. अन्य कारणों से आवश्यकता-शिक्षा में नूतन आयामों को अपनाने के अन्य महत्त्वपूर्ण कारक हैं; जैसे-
    • आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण एवं निजीकरण ।
    • स्वयंसेवी संगठनों (NGO) की बढ़ती भूमिका।
    • वैश्वीकरण।

इन कारकों के कारण शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियों तथा नूतन आयामों को अंगीकार किया जाने की महती आवश्यकता है।

शैक्षिक नवाचार का महत्व (Importance of Innovation in Education)

देश में हो रहे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा की नूतन प्रवृत्तियों का महत्त्व अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-

  1. मूल्य शिक्षा के क्षरण को रोकने के लिए

    भारतीय संस्कृति का अपना अलग ही महत्त्व है। यहाँ विभिन्न जाति एवं सम्प्रदायों के लोग आपस में मिल-जुलकर रहते हैं ऐसा माना जाता। वर्तमान में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बड़ी तेजी से बढ़ रहा है लोग भौतिकता के पीछे दौड़ रहे हैं, आध्यात्मिक मूल्यों का नितांत अभाव हो गया है। चारों ओर अन्धी दौड़ लगी हुई है, लोगों का वेशभूषा से लेकर चरित्र तक बदल गया है। इस प्रकार हम भारतीय अपने पुरातन मूल्यों को छोड़ते जा रहे हैं, जिसको सांस्कृतिक परिवर्तन द्वारा पुन: प्राप्त किया जा सकता है और यह शिक्षा में नवीन प्रवृत्ति अपनाने से है।

  2. साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ाना

    भारतीय समाज में तथा उसकी संरचना में तीव्र बदलाव आया है। सामूहिक परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवार स्थान ले रहे हैं, जातियों का बन्धन टूट रहा है, लिंग पर आधारित भेदभाव समाप्त हो रहा है। इस कारण साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है, जिससे राष्ट्र को सामाजिक शोषण से बचाया जा सके। इसके लिए शिक्षा में नूतन आयामों को महत्त्व दिया जाने की आवश्यकता है।

  3. परिवर्तन के अनुसार शिक्षा प्रणाली

    समाज में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, यह परिवर्तन शिक्षा द्वारा प्रभावित होते हैं। सामाजिक परिवर्तन होने से व्यक्तियों की सोच, उनकी आवश्यकताएं, उनके रहन-सहन का स्तर सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है। समाज में बदलाव आने से संस्कृति में भी परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा का कार्य इन परिवर्तनों के अनुकूल शिक्षण व्यवस्था करना है जिससे सामाजिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति की जा सके। यह भी शिक्षा में नवाचारों के उपयोग से ही सम्भव है।

  4. अनेक समस्याओं का समाधान

    भारत में तीव्र आर्थिक विकास एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दृष्टि से पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया गया। इस योजनाओं के फलस्वरूप हमारे देश में कृषि तथा औद्योगिक प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों के कारण देश के समक्ष नई समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। जिसमें तीव्र जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण, औद्योगीकरण, पर्यावरण प्रदूषण, बेरोजगारो प्रमुख हैं जिनकी व्यवस्था में नूतन आयामों, नवीन प्रवृत्तियों या नवाचारों को स्वीकार करने की आवश्यकता का अनुभव किया गया।

  5. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता के लिए

    शिक्षण अधिगम की प्रभावशीलता के लिए नवाचारों का प्रयोग आवश्यक है। प्राचीनकाल में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक का स्थान महत्त्वपूर्ण होता था तथा बालक का स्थान गौण होता था। शिक्षार्थी एक भूक श्रोता की भाँति शिक्षक के विचारों को सुनता था। इस व्यवस्था में सुधार के लिए नवाचारों की आवश्यकता का अनुभव किया गया तथा नवाचारों के प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रभावशीलता उत्पन्न हुई।

  6. ज्ञान का स्थायित्व

    शिक्षा में नवाचारों के प्रयोग से पूर्व छात्रों को प्राप्त ज्ञान कुछ समय के बाद विस्मृत हो जाता था, क्योंकि छात्रों की सक्रिय भूमिका नहीं रहती थी। नवाचारों के प्रयोग से छात्रों को पूर्णरूप से सक्रिय रखा गया जिससे वह प्राप्त ज्ञान को शीघ्र नहीं भूलते हैं। अत: ज्ञान के स्थायित्व के लिए शैक्षिक नवाचारों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है।

  7. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु

    शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नवाचारों का प्रादुर्भाव हुआ और शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का मार्ग सरल हो गया।

  8. शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग के लिए

    प्राचीन समय में शिक्षण अधिगम प्रणाली प्रक्रिया में नीरसता उत्पन्न हो जाती थी। इसके परिणामस्वरूप यह आवश्यकता अनुभव की जाने लगी की नवाचार का प्रादुर्भाव हो। नवाचारों के प्रयोग से तकनीकी साधनों का प्रयोग शिक्षण अधिगम सामग्री में व्यापक स्तर पर होने लगा है।

  9. छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु

    छात्रों के सर्वांगीण विकास में नवाचारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। प्राचीनकाल में शिक्षार्थी के ज्ञानात्मक पक्ष को विकसित करने पर पूर्ण ध्यान दिया जाता था। वर्तमान समय में छात्र के अन्तर्गत निहित प्रतिभाओं को ज्ञात किया जाता है तथा उसके विकास के पूर्ण प्रयत्न किए जाते हैं। यह कार्य पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के माध्यम से किया जाता है। इसमें छात्रों की विभिन्न प्रतिभाओं की क्षमता एवं विकास की सम्भावनाओं को ज्ञात कर लिया जाता है। इसके बाद उनके विकास की व्यवस्था की जाती है।

  10. कौशलों का विकास के लिए

    सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) नवाचार की प्रमुख विधि है। इसमें छात्राध्यापकों में अनेक प्रकार के कौशलों का विकास किया जाता है। इन कौशलों के विकसित होने पर शिक्षक छात्रों को प्रभावी ढंग से शिक्षण करा सकता है। इन कौशलों का प्रयोग प्रायः शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में होते हैं; जैसे-प्रस्तावना कौशल में छात्राध्यापक में प्रस्तावना प्रश्नों के निर्माण एवं उनके प्रस्तुत करने की कला का विकास किया जाता है। व्याख्या कौशल में किसी तथ्य की प्रभावी, सरल एवं बोधगम्य व्याख्या करने का कौशल विकसित किया जाता है।

  11. नवीन शिक्षण विधियों के ज्ञान हेतु

    नवीन शिक्षण विधियों का ज्ञान नवाचारों के प्रयोग से सम्भव है। शिक्षण व्यवस्था में सूक्ष्म-शिक्षण, अनुदेशन एवं दल शिक्षण आदि सम्प्रत्यों को जन्म देने का श्रेय नवाचारों को ही है। नवाचारों के अभाव में सभी शिक्षक प्राचीन शिक्षण विधियों से शिक्षण कार्य करते थे वे दोषपूर्ण थीं। नवाचारों के द्वारा अब शिक्षकों द्वारा नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाने लगा जिसका लाभ शिक्षक एवं छात्र दोनों को मिलने लगा है।

  12. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास

    वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नवाचारों के द्वारा होता है। नवीन गतिविधियाँ अपनाने से शिक्षक एवं शिक्षार्थी में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।

  13. शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए-

    शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए नवाचारों का प्रयोग होता है। शिक्षा व्यवस्था में भी समय एवं समाज की माँग के अनुरूपबपरिवर्तन होने चाहिए। पहले छात्र पेड़ों की छाया में आसन पर बैठकर पढ़ाई करते थे, आज वातानुकूलित कक्षाओं में अध्ययन करते हैं। नवाचारों से शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक सुधार किए गए।

  14. अनुसन्धान के विकास के लिए-

    शिक्षा में अनुसन्धान का विकास सिर्फ नवाचारों के प्रयोग से ही सम्भव है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया एवं अन्य शिक्षण व्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं पर शोध कार्य सम्पन्न किए जाते हैं और इससे प्राप्त निष्कर्षों को शिक्षण व्यवस्था में प्रयोग किया जाता है।

  15. मनोविज्ञान सिद्धान्तों के प्रयोग के लिए-

    मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों को आधार मानकर ही नवाचारों का निर्माण तथा प्रयोग होता है। प्राचीनकाल में शिक्षा समान रूप से एक साथ छात्रों को प्रदान की जाती थी परन्तु मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक छात्र की बुद्धि-लब्धि स्तर पृथक् होता है। इसलिए उसका शिक्षण पृथक् विधियों के अनुसार होना चाहिए। इससे प्रत्येक छात्र को लाभ पहुंचेगा।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि नवाचार शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ है, क्योंकि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का सुधरा एवं विकसित स्वरूप नवाचारों की ही देन है। नवाचारों के प्रयोग से जो सफलता एवं धनात्मक परिवर्तन हुए इस कारण इनके महत्त्व में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गयी। वर्तमान में नवाचारों का प्रयोग शिक्षण विषय में व्यापकता के साथ किया जा रहा है, क्योंकि इससे शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों ही लाभान्वित होते हैं।

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