यंग बंगाल आन्दोलन
यंग बंगाल आन्दोलन (19वीं शताब्दी)
उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे और चौथे दशक में बंगाल के बुद्धिजीवियों में एक ‘रेडिकल’ या उग्रवादी प्रवृत्ति का जन्म हुआ। यह प्रवृत्ति राममोहन के विचारों से भी ज्यादा आधुनिक एवं क्रांतिकारी थी। इस आंदोलन को ‘यंग बंगाल’ आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन के प्रेरणाश्रोत एवं युवा नेता हेनरी विवियन डिरोजियो (1809-31) थे। डिरोजियो ऐंग्लो-इंडियन थे जिन्हें भारत से अपार प्रेम था। वे 1826 से 31 तक हिन्दू कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी प्रतिभा आश्चर्यजनक थी। वे प्रभावशाली शिक्षक थे, जिन्होंने कुछ ही समय में अनेक मेधावी एवं श्रद्धालु विद्यार्थियों को अपना प्रशंसक एवं अनुयायी बना लिया था।
वे फ्रांस की महान क्रांति से अतिशय प्रभावित थे और अपने समय में शायद सबसे अतिवादी विचार रखते थे। उन्होंने अपने विद्यार्थियों को ‘विवेकपूर्ण और मुक्त ढंग से सोचने सभी आधारों की प्रामाणिकता की जांच करने, मुक्ति, समानता और स्वतंत्रता से प्रेम करने तथा सत्य की पूजा करने के लिए प्रेरित किया।’ डेरोजियो के अनुयायियों ने सभी प्राचीन जर्जर परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों का विरोध किया। वे वाद-विवाद, लेखन और बौद्धिक संगठनों के माध्यम से अपने विचारों का प्चरा करना चाहते थे। आत्मिक उन्नति और समाज सुधार के लिए उन्होंने ‘एकेडेमिक एसोसिएशन’ और ‘सोसायटी फॉर द एक्वीजीशन ऑफ जनरल नॉलेज’ जैसे कई संगठनों की स्थापना की। उन्होंने ‘ऐंग्लो-इंडियन हिन्दू एसोशिएशन’ ‘बंगहित सभा’ और ‘डिबेटिंग क्लब’ आदि का भी गठन किया। ये संगठन देश और समाज के लिए उपयोगी प्रायः सभी प्रश्नों पर विचार करते थे। अन्य चीजों के अलावा इनकी परिचर्चा के विषय थे विधवाओं का उद्धार और मूर्ति पूजा तथा सभी प्रकार की रूढ़िवादिता का विरोध। डिरोजियो के समर्थक आधुनिक पाश्चात्य विचारों से इतने प्रभावित थे कि उन्हें परम्परागत हिन्दू संस्कृति में असंख्य दोष नजर आने लगे। इन दोषों से मुक्ति के लिए वे अतीत से पूर्ण रूप से संबंध-विच्छेद करना चाहते थे।
कट्टर हिन्दुओं को डिरोजियनों के ऐसे विचार कतई पसंद नहीं थे, उ.तः उन्होंने उनका डटकर विरोध किया। अप्रैल 1831 में डिरोजियो को हिन्दू कॉलेज से निकाल दिया गया। पर डिरोजियो पर इसका असर नहीं पड़ा और अपने विचारों को फैलाने के लिए उन्होंने ईस्ट इंडिया नामक एक दैनिक पत्र का संपादन संभाल लिया। दुभार्ग्यवश इसी बीच 26 दिसम्बर 1831 को डिरोजियो की 23 वर्ष 8 महीने की आयु में हैजे से मृत्यु हो गई।
डिरोजियो के मरते ही एकेडेमिक एसोसिएशन बिखर गया। किन्तु डिरोजियो अपने पीछे अनेक शिष्य एवं समर्थक छोड़ गये थे, जो भविष्य में अपने-अपने ढंग से उनके उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहे। ऐसे शिष्यों में कृष्णमोहन बनर्जी, रामगोपाल घोष तथा महेशचन्द्र घोष आदि को काफी ख्याति मिली। एकेडेमिक एसोसिएशन के ध्वंशावशेष पर 1838 में सोसायटी फॉर द एक्वीजीशन ऑफ जनरल नॉलेज की स्थापना हुई जिसमें डिरोजियो के अनेक शिष्य थे। इसके कई सदस्य आगे चलकर बंगाल के प्रमुख नेता बने।
इस बौद्धिक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था हिन्दू कॉलेज। इस कॉलेज के विद्यार्थियों ने 1828 और 1843 के बीच आधा दर्जन से भी ज्यादा पत्र प्रकाशित किए। हिन्दू कॉलेज की ही तरह बंबई में एलफिंस्टन कॉलेज की स्थापना 1834 में हुई। इस कॉलेज के विद्यार्थियों ने भी हिन्दू कॉलेज के विद्यार्थियों का अनुकरण किया और अपने ‘यंग बाम्बे’ तथा ‘यंग मद्रास’ सरीखे आंदोलनों का आरम्भ हुआ। हालांकि ये आंदोलन बहुत दिन तक नहीं चल पाए फिर भी देखते-देखते वे भारत के नौजवानों के जागरण के प्रतीक बन गये।
‘यंग बंगाल’ आंदोलन का मूल संदर्भ देशी था, पर इस पर विदेशी प्रभाव को इनकार नहीं किया जा सकता। स्वयं डिरोजियो पश्चिमी विचारों, विशेषकर 1789 की फ्रांस की क्रांति के सिद्धांतों से प्रभावित थे। साथ हीयंग बंगाल अर्थात भारत के नौजवानों पर मैजिनी का और इटली के स्वतंत्रता-आंदोलन का प्रभाव था। इस दौरान इटली के एकीकरण और स्वतंत्रता का आंदोलन जोर-शोर से चल रहा था। मैजिनी का ‘यंग इटली’ दल इटली की राष्ट्रीय क्रांति का केन्द्र-बिन्दु था। बंगाल मैजिनी के विचारों से खासकर प्रभावित था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तक ने अपने ऊपर उनके प्रभाव को स्वीकार किया।
डिरोजियो की मृत्यु का ‘यंग बंगाल’ आंदोलन की प्रगति पर घातक प्रभाव पड़ा। वस्तुतः वे अपने पीछे विचार तो छोड़ गये थे मगर उनके प्रसार के लिए कोई संगठन नहीं। आंदोलन इसलिए भी विफल रहा क्योंकि उस समय की सामाजिक परिस्थितियाँ उसके अनुकूल नहीं थीं। आंदोलन पर किताबी बौद्धिकता ज्यादा हावी थी और आंदोलन का व्यावहारिक पक्ष सामाजिक वास्तविकता पर बहुत आधारित नहीं था। यह आंदोलन परपरावादी ओर रूढ़िग्रस्त समाज में एकाएक आमूल परिवर्तन लाना चाहता था। पुनः वे जिस परिवर्तन के लिए प्रयत्न कर रहे थे उसका समाज के बड़े भाग से ज्यादा संबंध नहीं था। वे आंदोलन में आम जनता को शमिल करने में विफल रहे। लेकिन आने वाले समय में यंग बंगाल आंदोलन सभी भावी सुधारकों और राष्ट्रप्रेमियों के लिए प्रेरण्य का एक महान स्रोत बन गया।
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