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शेरशाह सूरी की सेना व्यवस्था

शेरशाह सूरी की सैन्य व्यवस्था

शेरशाह का मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक सैनिक के रूप में अपना जीवन आरम्भ कर पदोन्नति करके वह सुल्तान के पद पर आसीन हो गया और लगभग पाँच वर्षों तक उसने सफलतापूर्वक शासन किया था। सेनापति के रूप में उसे इतिहास में एक उच्च स्थान प्राप्त था। दस वर्ष के निरंतर संघर्ष के बाद उसने मुगल साम्राज्य को उखाड़ फेंका और सूर वंश को स्थापित कर अफगान शक्ति को पुनः स्थापित कर दिया था। शेरशाह ने अपने प्रशासकीय गुणों, आर्थिक सुधारों एवं धार्मिक सहिष्णुता की नीति के द्वारा अकबर की महानता का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

शेरशाह ने एक सशकत सेना का संगठन किया था अलाउद्दीन खिलजी की तरह उसने भी केन्द्र में एक शक्तिशाली सेना रखी थी। वह सुल्तान की सेना होती थी और जिसके सैनिक अपने को बादशाह के सैनिक स्वीकार करते थे। घुड़सवार सेना, पैदल सेना, हाथी और तोपखाना उसकी सेना के मुख्य भाग होते थे। उसके केन्द्रीय सेना में 1,50,000 घुड़सवार, 25,000 पैदल और 5,000 हाथी थे, सम्भवतः शेरशाह का तोपखाना अत्यधिक श्रेष्ठ नहीं था। घुड़सवार सेना में ज्यादातर अफगान होते थे। वै सैनिकों की भर्ती, वस्त्र, घोड़े, हथियार, वेतन, पदोन्नति आदि की देखरेख स्वयं करता था। इस प्रकार उसने प्रांतीय गर्वनरों को सैनिक संगठन के अधिकारों से वंचित कर दिया था। डॉ. आर. पी. त्रिपाठी के अनुसार, “स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार उसने सेना को देश के विभिन्न भागों में नियुक्त किया। कम से कम सोलह छावनियों का उल्लेख मिलता है,” सम्भवतः संख्या इससे अधिक ही रही होगी।

शेरशाह ने अलाउद्दीन की भाँति घोड़े को दागने की नीति को लागू किया क्योंकि सैनिक प्रायः अपने घोड़े बेच दिया करते थे और निरीक्षण के दौरान दूसरे घोड़े प्रस्तुत कर देते थे। इसलिए शेरशाह ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने तथा सेना में अच्छे घोड़े रखने के उद्देश्य से घोड़े को दागने की प्रथा को क्रियान्वित किया था। इसके साथ-साथ उसने सैनिकों की हुलिया भी लिखवाई थी। जिससे किसी सैनिक की अनुपस्थिति में कोई दूसरा व्यक्ति उस नाम पर उपस्थित नहीं हो सकता था। सैनिकों को वेतन जागीर के रूप में न देकर ज्यादातर नगद प्रदान करने की परिपाटी थी। सैनिक अधिकारियों को एक स्थान पर दो वर्ष से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं थी। क्योंकि ऐसा होने से अधिकारियों में भ्रष्टाचार और सामंती प्रवृत्तियों पर अंकुश लग जाता था। सैनिक अभियानों में सैनिकों पर पूर्ण अनुशासन एवं नियंत्रण पर बल दिया और यह आदेश दिया कि कृषि को किसी भी प्रकार से क्षति न पहुँचाया जाय।

बाबर की सेना में होने के कारण यह तोपखानों एवं बंदूकों के संबंध में विधिवत अवगत हो गया था। इसलिए उसने अपनी सेना में भी एक प्रभावशाली तोपखाने एवं बंदूकचियों के दल की व्यवस्था कर लिया था। सीमांत प्रदेशों की सुरक्षा की दृष्टि से उसने मुल्तान एवं रोहतास के दुर्गों में सैनिक रक्षकों को नियुक्त किया था।

आंतरिक शांति एवं सुरक्षा के लिए पुलिस व्यवस्था का अत्यधिक महत्व था जिससे अपराधियों को पकड़कर उन्हें उचित दंड दिया जा सके। प्रत्येक शिकदारें शिकदारान (प्रथम शिकदार) का यह कर्तव्य होता था कि वह अपने क्षेत्र में शांति एवं व्यवस्था को कायम रखे। परगने की शांति एवं व्यवस्था के लिए प्रत्येक परगने का शिकदार उत्तरदायी होता था। इसी प्रकार गाँव में शांति एवं व्यवस्था के लिए मुकद्दम उत्तरदायी होता था। अपराधी की जानकारी हो जाने पर मुकद्दम अथवा मुख्यिा को दण्ड दिया जाता था। इतिहासकार अब्बास खाँ सरवानी लिखते हैं कि “जिस दिन शेरशाह वैभव एवं सत्ता के सिंहासन पर आसीन हुआ किसी व्यक्ति को उसका विरोध करने का साहस न हुआ। कोई व्यक्ति विद्रोह तथा उद्दण्डता का झण्डा न खड़ाकर सका और न देश के उद्यान में कोई चिंताजनक काँटा उत्पन्न हुआ। उसके शासनकाल में यदि कोई वृद्ध स्त्री अपने सिर पर धन या गहनों से भरी टोकरी लेकर मार्ग में जाती हो तो कोई चोर या कोतवाल का व्यक्ति उसके आसपास न फिर सकता था। कुछ आधुनिक इतिहासकार शेरशाह की इस कठोर पुलिस व्यवस्था की आलोचना करते हैं क्योंकि यह आतंक पर आधारित थी। वास्तव में मध्य काल के लिये यह व्यवस्था उपयुक्त मानी जा सकती है और शेरशाह इस कठोर पुलिस व्यवस्था के द्वारा शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने में सफल भी हुआ था। प्रो० कानूनगो उसकी पुलिस व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि उसने “चोरों एवं डाकुओं को शांति के संरक्षक के रूप में परिवर्तित कर दिया।”

पारदर्शी एवं निरंकुश शासक के लिए एक संगठित गुप्तचर विभाग की अत्यंत आवश्यकता थी। शेरशाह ने गुप्तचर विभाग के महत्व को जानकर इसके संगठन की तरफ ध्यान दिया था। उसने साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अपने गुप्तचर नियुक्त किया जिसका प्रमुख कार्य साम्राज्य के अन्तर्गत होने वाली विभिन्न घटनाओं एवं स्थिति से सुल्तान को अवगत कराना था। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं था कि शेरशाह की शासन व्यवस्था की सफलता का ज्यादातर श्रेय उसकी सुसंगठित गुप्तचर प्रणाली को प्राप्त था।

शेरशाह को अकबर का अग्रणी (पथ-प्रदर्शक) माना जाता है। एक शासन प्रबन्धक की दृष्टि से शेरशाह को यह स्थान प्रदान किया गया था। शेरशाह ने एक अच्छा शासन प्रबन्धक के रूप में कार्य करके न केवल अकबर के शासन की आधारशिला की नींव रखी अपितु शासन में कई ऐसे कार्य आरम्भ किया जिससे अकबर को अत्यधिक सहयोग प्राप्त हुआ। उसने सैनिक प्रबंध, सरदारों पर नियंत्रण, न्याय प्रियता की भावना, प्रजाहित की भावना और शासन के मूल सिद्धान्त आदि का अकबर ने पूर्णतयः लाभ उठाया। शेरशाह ने राजपूतों से अधीनता स्वीकार कराकर उनके राज्य को वापस लौटा दिया, अकबर ने इस नीति को व्यापकता प्रदान किया। शेरशाह की लगान व्यवस्था भी अकबर के लिए मार्गदर्शक बन गई थी। मि. डब्ल्यू. क्रुक ने लिखा है कि “शेरशाह ऐसा प्रथम शासक था जिसने प्रजा की रक्षा के आधार पर भारतीय साम्राज्य को स्थापित करने का प्रयास किया था।” अकबर ने भी मूल रूप से इसी भावना से कार्य किया। अकबर ने शेरशाह द्वारा आरम्भ किये गये कार्यों में परिवर्तन करके उसमें सुधार किया और श्रेष्ठ बनाया। अकबर की लगान नीति शेरशाह से श्रेष्ठ राजपूतनीति अधिक उदार धार्मिक नीति अधिक विस्तृत एवं विशाल थी।

इस प्रकार अकबर एक कुशल प्रबंधक और शासक की दृष्टि से महान था। परन्तु शेरशाह ने अकबर से पहले एक उच्च आदर्श और एक श्रेष्ठ शासन व्यवस्था को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की थी। इस प्रकार उसने अकबर के शासन की आधारशिला का निर्माण किया और अग्रणी अथवा पथ-प्रदर्शक बना था।

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