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उष्णकटिबन्धीय सवाना जलवायु

सवाना तुल्य जलवायु (उष्ण कटिबन्धीय तर एवं शुष्क जलवायु)

सवाना तुल्य जलवायु

  1. स्थिति-

    सवाना तुल्य जलवायु (Aw) में विषुवत रेखीय तर जलवायु की अपेक्षा वार्षिक वर्षा कम होती है तथा वार्षिक वितरण भी असमान होता है, परिणामस्वरूप घास के वृहद क्षेत्र मिलते हैं जिन्हें अफ्रीका में ‘सवाना’ कहते हैं। इसी आधार पर इस जलवायु का ‘सवाना तुल्य जलवायु’ नामकरण किया गया है।

इसे सूडान तुल्य जलवायु भी कहा जाता है। स्मरणीय है कि वृहद् सवाना घास के मैदानों में भी वृक्ष मिलते हैं। इस जलवायु प्रदेश का अक्षांशीय विस्तार भूमध्यरेखा के दोनों ओर 5° या 10° से प्रारम्भ होकर 15° या 20° अक्षांश तक पाया जाता है। इस तरह सवाना जलवायु प्रदेश भूमध्यरेखीय जलवायु (At) तथा शुष्क (B) तथा आर्द्र उपोष्ण जलवायु (Ca) के बीच स्थित है, अर्थात् इसकी स्थिति भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब तथा उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के बीच है। दक्षिणी अमेरिका में इस जलवायु का विस्तार वेनेजुएला, कोलम्बिया, गायना, दक्षिणी मध्य ब्राजील, परागवे, अफ्रीका में विषुवत् रेखीय जलवायु के उत्तर तथा दक्षिण (सूडान में सर्वाधिक विस्तार) एवं उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाया जाता है।

  1. तापमान-

    सवाना तुल्य जलवायु तथा विषुवत् रेखीय जलवायु की तापमान सम्बन्धी दशाओं में अधिक अन्तर नहीं होता। वर्ष भर, उच्च तापमान बना रहता है। परन्तु वार्षिक तापान्तर कुछ अधिक होता है, जो कि 3°-8°C के बीच रहता है। इसका प्रमुख कारण ग्रीष्मकाल तथा शीतकाल में सूर्य की किरणों के कोण में कुछ अन्तर का हो जाना है। अर्थात् ग्रीष्मकाल की अपेक्षा शीतकाल में सूर्य की किरणें कुछ तिरछी हो जाती हैं, जिस कारण अपेक्षाकृत कुछ कम ऊष्मा प्रदान कर पाती हैं। स्मरणीय है कि उष्णतम महीने वर्षाकाल के ठीक पहले होते हैं (मार्च, अप्रैल तथा मई-उ. गोलार्द्ध) । कुल मिलाकर तापमान में भिन्नता की दृष्टि से यहां पर तीन मौसम अनुभव किये जाते हैं:

  • शुष्क शीत मौसम

    जिस समय दिन का तापमान ऊँचा होता है, दोपहर के बाद तापमान 26°-32°C के बीच हो जाता है तथा रात्रि में हो 21°C जाता है, लेकिन कभी भी 15°C से कम नहीं हो पाता। आर्द्रता के कम होने के कारण गर्मी कष्टदायक नहीं हो पाती है।

  • उष्ण शुष्क मौसम

    सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, जिसके कारण तापमान तक तथा कभी-कभी 38°C तक पहुंच जाता है।

  • उष्ण तर मौसम

    यह वर्षा का समय होता है जो कि जून से प्रारम्भ होता है। वर्षा के कारण तापमान कुछ घट जाता है, परन्तु हवा में नमी अधिक होती है, अतः मौसम कष्टदायक हो जाता है।

  1. वायुदाब तथा हवाएँ-

    सवाना तुल्य जलवायु के प्रदेश वर्ष में निम्न तथा उच्च वायुदाब से प्रभावित होते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति के कारण डोलड्रम की न्यून दाब की पेटी का विस्तार हो जाता है तथा यह भाग ‘इण्टर ट्रापिकल कन्वर्जेन्स’ (ITC) के अन्तर्गत आ जाता है, तथा चक्रवातीय दशाओं के कारण वर्षा होती है। सूर्य की दक्षिणायन स्थिति के समय यह प्रदेश उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायदाब के प्रभाव में आ जाता है, जिस कारण प्रतिचक्रवातीय दशाएँ व्यवस्थित हो जाती हैं। इस तरह शीतकाल (उ0 गो(0) में स्थिर तथा नीचे उतरती हुई शुष्क हवाएँ चलने लगती हैं, जिस कारण वर्षा नहीं हो पाती। इस सामान्य दशा के उलावा तटीय भागों में स्थलीय तथा जलीय समीर का प्रभाव होता है। पूर्वी तटों पर व्यापारिक हवाएं चलती हैं। वर्षा काल में उष्ण कटिबन्धीय तेज चक्रवात चलते हैं। इन्हें ‘टारनैडो’ कहा जाता है। पश्चिमी द्वीप समूह में ‘हरिकेन’ का प्रभाव अधिक होता है। इस तरह ‘सवाना जलवायु’ का जन्म सूर्य की उत्तरायण तथा दक्षिणायन स्थितियों के कारण क्रमशः आर्द्र ग्रीष्मकाल तथा शुष्क शरदकाल के कारण होता है। चूंकि सवाना जलवायु विषुवरेखीय तथा उष्ण कटिबन्धीय शुष्क जलवायु के मध्य की हैं, अतः उसमें भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर मौसम में क्रमिक अन्तर होता है। जैसे-जैसे ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, शुष्कता बढ़ती जाती है।

  2. वर्षा-

    सवाना प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 100 से 150 सेंमी. के बीच होती है, परन्तु चूंकि सवाना जलवायु आर्द्र तथा शुष्क जलवायु के बीच संक्रमण पेटी (transitional belt) के बीच स्थित है अतः इसकी आर्द्र तथा शुष्क सीमाओं पर वार्षिक वर्षा की मात्रा तथा अवधि में पर्याप्त विषमता पायी जाती है। विषुवत रेखीय जलवायु (Ar) की सीमा के पास वाले भाग में वायु के अभिसरण (convergence) तथा अवरोही (ascending) स्वभाव के कारण भारी वर्षा होती है। शुष्क जलवायु (BWh) की सीमा के पास प्रतिचक्रवाती दशा के कारण वायु के अवरोही (descending) स्वभाव के कारण वर्षा की मात्रा घट जाती है तथा वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेंमी. तक हो जाता है। सूर्य की उत्तरायण स्थिति के कारण जैसे ही ‘इण्टर ट्रापिकल कन्वर्जेन्स’ उत्तर (उ. गो.) की ओर खिसकता जाता है, मार्च के महीने तक तड़ित झंझा (thundersform) बनने लगते हैं तथा वर्षा की मात्रा में अगले महीनों में निरन्तर वृद्धि होती है। अगस्त तक ‘इण्टर ट्रापिकल कन्वर्जेन्स’ (ITC) अपनी अधिकतम उत्तरी सीमा को प्राप्त कर लेता है। इसके बाद उसमें दक्षिण की ओर स्थानान्तरण होने लगता है, जिस कारण वर्षा की मात्रा में कमी होने लगती है। नवम्बर के बाद पुनः शुष्क व्यापारिक वायु का साम्राज्य हो जाता है तथा सूखे की स्थिति आ जाती है। इस तरह विषुवत् रेखीय जलवायु की सीमा से उत्तर (उ. गो.) की ओर जाने पर आर्द्र मौसम की अवधि निरन्तर घटती जाती है तथा शुष्क मौसम की अवधि बढ़ती जाती है। पूर्व से पश्चिम में भी वर्षा की मात्रा घटती जाती है, परन्तु अफ्रीका (उ. गो. ) के प. तटीय भागों में तूफान के कारण वर्षा की मात्रा कुछ बढ़ जाती है। सवाना जलवायु में वार्षिक वर्षा की मात्रा में भी पर्याप्त विषमता होती है। किसी वर्ष तो इतनी अधिक हो जाती है कि बाढ़ की स्थिति आ जाती है, जबकि अगले वर्ष कम वर्षा के कारण सूखे की स्थिति आ जाती है।

  3. वनस्पति समुदाय पर जलवायु का प्रभाव-

    आर्द्र विषुवत् रेखीय तथा उष्ण मरुस्थलीय जलवायु के बीच की स्थिति के कारण यहां की वनस्पति मध्य प्रकार की होती हैं। सर्व प्रमुख वनस्पति मोटी घासें हैं, जिनके आधार पर ‘सवाना’ नामकरण किया गया है। दूर-दूर तक घास के वृहद् मैदान देखने को मिलने हैं, जिनमें छोटे-छोटे वृक्ष भी उगे रहते हैं। जैसे-जैसे वर्षा की मात्रा घटती जाती है, घास के रंग तथा ऊँचाई एवं वृक्षों की ऊंचाई तथा संख्या में अन्तर आता जाता है। इस आधार पर सवाना प्रदेश में वनस्पति के तीन मण्डल देखने को मिलते हैं:

  • आर्द सवाना: जब वर्षा का मौसम 7 से 9 महीने या उससे अधिक होता है, तो लम्बी-लम्बी घास उगती हैं तथा वर्षा होते ही इनकी ऊंचाई में तीव्रता से वृद्धि होने लगती है, जो कि 10 से 30 सेमी0 तक हो जाती हैं। इनका रंग कुछ पीलापन या भूरापन लिये हरा होता है।
  • जैसे-जैसे आर्द्र मौसम की अवधि कम होने लगती है, घासों की ऊंचाई कम हो जाती है। वृक्ष भी कम ऊंचे होते हैं तथा उनकी संख्या भी कम हो जाती है।
  • जब आर्द्र मौसम 3 महीने से भी छोटा होता है तो कंटीली वनस्पति देखने को मिलती हैं, परन्तु इसमें भी घासें तथा वृक्ष साथ-साथ मिलते हैं, यद्यपि वृक्ष कम ऊंचे तथा संख्या में निहायत कम हो जाते हैं। ग्रीष्मकाल में घासें तप कर जल जाती हैं। सवाना प्रदेश में वृक्ष प्रायः पर्णपाती होते हैं, परन्तु विषुवत् रेखीय जलवायु की सीमा के पास सदापर्णी होते हैं।

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