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शिक्षकों के व्यवसायिक विकास

शिक्षकों के  व्यवसायिक विकास

शिक्षकों के व्यवसायिक विकास में सूचना एवं संचार तकनीकी की भूमिका

(Role of ICT in Vocational Development of Teachers)

शैक्षिक प्रगति में आज सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आवश्यकता का सर्वत्र स्वीकारा जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय और अवरोधन को समाप्त करने सरकारी संस्थाओं एवं सरकारों द्वारा इसको आवश्यकता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा तथा शिक्षा के प्रसार और प्रचार को बढ़ावा देने में इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग तथा है।

आज शिक्षकों के व्यावसायिक विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है। व्यावसायिक विकास में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका के संदर्भ को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है, जो कि इस प्रकार हैं-

  1. अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग

    शिक्षण अधिगम में उपयोग आने वाली सामग्री के निर्माण तथा उसके सफल प्रयोग में यह अध्यापकों के लिए सहायता प्रदान करती है। आज प्रायः सभी अध्यापक बच्चों को सिखाने के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करते हैं यह प्रौद्योगिकी सामग्री निर्माण में उसके प्रयोग की सावधानियों से अवगत कराती है, इससे एक शिक्षक द्वारा अध्यापन कार्य प्रभावशाली एवं उपयोगी बनता है।

  2. तकनीकी विकास

    वर्तमान में एक शिक्षक द्वारा नयी तकनीकी; यथा—ओवरहेड प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि के माध्यम से शिक्षण कार्य को सम्पन्न कराया जाता है जिसमें सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी शिक्षण प्रक्रिया में अपनी प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह कर रही है।

  3. शिक्षण विधियों का ज्ञान

    शिक्षा के कार्य में शिक्षण विधियाँ एक शिक्षिक की कुशलता का परिचायक हैं। एक सफल शिक्षक छात्रों के स्तर के अनुसार शिक्षण विधियों को अपनाता है। ऐसी विधियों का ज्ञान सूचना एवं संचार प्रौद्योगिक के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। छात्रों के स्तरानुकूल विधियों का प्रयोग आज शिक्षा जगत में प्रत्येक विषय में किया जा रहा है।

  4. शिक्षण सूत्रों का ज्ञान

    शिक्षकों को वर्तमान शिक्षण सूत्रों के अनुसार शिक्षण कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान की जाती है। इसके लिए सभी शिक्षण सूत्र विद्वानों की देन के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा सभी प्रकार के शिक्षण सूत्रों का ज्ञान विश्व के समस्त शिक्षकों को सरलता से प्राप्त हो रहा है, जिसका प्रयोग करके शिक्षक अपने व्यावसायिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं।

  5. शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान-

    आज जापान में किसी शिक्षण सिद्धान्त की खोज होती है तो संचार माध्यमों से उसका ज्ञान संसार के समस्त देशों में सम्भव होता है। इस प्रकार शिक्षण सिद्धान्तों के व्यापक प्रयोग एवं उनके ज्ञान से एक ओर शिक्षकों द्वारा दायित्व पालन में सुविधा होती है, वहीं दूसरी ओर छात्रों को सरल अधिगम प्राप्त हो जाता है; यथा-क्रियाशीलता के सिद्धान्त के आधार पर छात्रों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से सक्रिय रहने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान में यह सिद्धान्त समस्त शिक्षकों द्वारा अनुकरण किया जाता है।

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