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अल्फ्रेड मार्शल के प्रमुख आर्थिक विचार

मार्शल के आर्थिक विचार

मार्शल के आर्थिक विचार (Economic thoughts of Marshell)

मार्शल के आर्थिक विचारों के इतिहास में मार्शल के योगदानों की व्याख्या निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत की जा सकती है।

  1. अर्थशास्त्र की परिभाषा और अध्ययन विधि-

    मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा में सुधार किया। वह लिखते हैं, “राजनैतिक अर्थशास्त्र अथवा अर्थशास्त्र मनुष्य जाति के जीवन की साधारण क्रियाओं का अध्ययन है। यह व्यक्ति या समाज के कार्य के उस भाग की परीक्षा करता है। जिसका सम्बन्ध विशेषतः भौगोलिक कल्याण से होता है। एक ओर यह तो धन का अध्ययन है एवं दूसरी ओर जो महत्त्वपूर्ण है, यह मनुष्य के अध्ययन का एक मात्र भाग हैं।” उनके अनुसार जीवन व्यापार से भौतिक वस्तुओं से, जो कि कल्याण के लिए आवश्यक है, सम्बन्धित हैं।

मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रणालियाँ भी नियत की। उसने अर्थशास्त्र के अध्ययन में आगमन और निगमन दोनों ही प्रणालियों को मनुष्य के चलने के लिए दोनों ही पैरों की भाँति आवश्यक बताकर, आर्थिक अध्ययन को सन्तुलित बनाने का प्रयास किया। उन्होंने दोनों प्रणालियों का क्षेत्र निर्धारित किया और कहा कि सिद्धान्त यथाशक्ति तथ्यों के आधार पर ही बनाये जायें।

  1. अर्थशास्त्र के नियम-

    मार्शल ने अर्थशास्त्र को एक शुद्ध विज्ञान माना और उसके नियमों की प्राकृतिक नियम कहा किन्तु साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि आर्थिक नियम शुद्ध का आशय एक सामान्य प्रवृत्ति की सामान्य व्याख्या से है। मार्शल के अनुसार, “नियम शुद्ध का एक समान रूप से आशय हैं। इस प्रकार किसी सामाजिक विज्ञान का नियम सामाजिक प्रवृत्तियों की व्याख्या है, अर्थात् इस बात का वर्णन है कि कुछ परिस्थिति में समाज के एक वर्ग का एक विशेष व्यवहार होने की सम्भावना है। आर्थिक नियम या आर्थिक प्रवृत्तियों की व्याख्याएँ सामाजिक नियम के सदृश है और व्यवहार में उस भाव से सम्बन्धित हैं, जिसमें मुख्य प्रेरणाओं को एक मौद्रिक मूल्य द्वारा मापा जा सकता है।” मार्शल का कहना है कि प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में तो अर्थशास्त्र के नियम कम निश्चित है किन्तु अन्य सामाजिक विज्ञानों से अधिक निश्चित।” अनिश्चितता का कारण बताते हुए मार्शल लिखते हैं कि “आर्थिक नियम भी उसी अर्थ में काल्पनिक हैं, जिस अर्थ में प्राकृतिक विज्ञान के नियम।”

  2. निरन्तरता का सिद्धान्त –

    निरन्तरता का सिद्धान्त मार्शल के अर्थशास्त्र की एक मुख्य विशेषता है। वह लिखते हैं कि, “प्रकृति छलांग लगाकर नहीं, वरन् धीरे-धीरे पगों द्वारा चलती हैं। समझदार और साधारण व्यक्तियों की क्रियाओं के बीच निरन्तरता होती है। भिन्नता के साथ उनमें समानता भी होती है। इसी तरह, बाजार मूल्य और सामान्य मूल्य भी निरन्तरता के सूत्र द्वारा परस्पर जुड़े हुए हैं। एक घण्टे की अवधि के आधार पर जो मूल्य ‘सामान्य मूल्य है, वही एक शताब्दी की अवधि के आधार पर ‘बाजार मूल्य’ हो जाता है। इस प्रकार समय तो स्वयं एक निरन्तर क्रम है। प्रकृति के अनुसार अल्प और दीर्घकाल् में अन्तर का समय आधार है किन्तु समय तो स्वयं अल्प और दीर्घकाल में कोई निरपेक्ष नहीं है, वरन् धीरे-धीरे एक दूसरे में मिल जाते हैं। जो समय एक घटना के लिए अल्पकाल है, वही दूसरी समस्या के लिए दीर्घकाल हो जाता है। इस प्रकार अल्पकाल और दीर्घकाल के बीच कोई बड़ी खाईं नहीं होती, वरन् ये अल्प दीर्घकाल के माध्यम द्वारा परस्पर मिल जाता है।

  3. उपभोग का सिद्धान्त-

    परम्पारवादी अर्थशास्त्रियों के समान मार्शल ने उपयोग के अध्ययन को समुचित स्थान दिया है। यद्यपि उपभोग के अध्ययन का महत्व ऑस्ट्रियन सम्प्रदाय के सदस्य की रचनाएँ प्रकाशित होने के बाद ही समझा जाता है तथापि मार्शल ने आवश्यकताओं और उपभोग के अन्य पहलुओं पर अधिक विस्तार के साथ विचार किया। उसके अनुसार उपभोग समस्त आर्थिक क्रियाओं का प्रारम्भ और अन्त है और इसीलिए उसने अपनी पुस्तक में उपभोग के अध्ययन को एक मुख्य स्थान प्रदान किया है।

  4. उपभोक्ता की बचत-

    यद्यपि यह विचार मार्शल से पूर्व भी ज्ञात था तथापि इसे व्यवस्थित रूप मार्शल ने ही प्रदान किया। इसी कारण अब मार्शल के नाम से ही जुड़ गया है। मार्शल के अनुसार, उपभोक्ता की बचत वह अतिरेक सन्तोष है जोकि वह वस्तु से वंचित रहने के बजाय देने को तैयार खरीद करके प्राप्त करता है। अन्य शब्दों में यह वस्तु की खरीद से प्राप्त मुद्रा की कुल उपयोगिता और मुद्रा को खर्च करने त्यागी गयी मुद्रा की कुल उपयोगिता का अन्तर होती है। स्पष्ट है कि यह धारणा कुल और सीमान्त उपयोगिता के विचार पर निर्भर है।

  5. माँग की लोच –

    अर्थशास्त्र को मार्शल ने ‘माँग की लोच’ का विचार दिया है। माँग की लोच का आशय मूल्य में परिवर्तनों के अनुसार किसी वस्तु की माँग में होने वाली परिवर्तन की गति है। उन्होंने माँग की लोच के पाँच अन्तर किये पूर्णतः लोचदार, अत्यन्त लोचदार, कम लोचदार और बेलोच। यथार्थ में प्रगतिशील सिद्धान्तों का प्रस्तुतीकरण कदापि सम्भव न हुआ होता। व्यावहारिक जगत में माँग की लोच के विचार का बहुत महत्त्व है।

  6. आभास लगान-

    ‘आभास लगान’ शुद्ध का भी प्रयोग सर्वप्रथम मार्शल ने किया। उन्होंने समय के प्रभाव की विवेचना करते हुए बताया है कि एक मशीन भी एक विशेष प्रकार की आय प्राप्त कर सकती है, जोकि लगान के समान हो और जिसे लगान कहा जा सकता है, किन्तु उसे लगानवत् या आभास लगान कहना अधिक उपर्युक्त है। अन्य शब्दों में आभास लगान अचल पूँजी पर अल्पकाल में प्राप्त हुई आय है। मार्शल ने यह तथ्य स्पष्ट किया कि सभी उत्पत्ति साधनों में समय-समय पर भूमि की बेसी आय समय साधारण आय से अधिक होती है। इस प्रकार मार्शल ने लगान को अलग आय न मानकर सामान्य आर्थिक विश्लेषण का एक अंग माना और बताया कि भूमि के लगान का अध्ययन माँग और पूर्ति के सामान्य सिद्धान्त द्वारा किया जा सकता है।

  7. उत्पत्ति के साधन-

    प्रो0 मार्शल के अनुसार भूमि और श्रम में दो उत्पत्ति के मुख्य साधन है। पूँजी के बारे में उन्होंने बताया कि यह भौतिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए तथा उन लाभों की प्राप्ति के लिए जो कि साधारणतः आय का भाग गिने जाते हैं। इस प्रकार पूँजी उत्पत्ति का एक गौण या व्युत्पादित साधन है। इनमें भी मनुष्य सक्रिय है जबकि भूमि निष्क्रिय । उत्पादन और उपभोग सम्बन्धी सभी क्रियाओं के पीछे केन्द्रीय शक्ति पूँजी मनुष्य है। चूँकि उसकी क्षमताएँ और उसकी परिस्थिति वातावरण द्वारा निर्मित होता है, इसलिए प्रकृति की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

  8. जनसंख्या –

    जनसंख्या के प्रश्न पर मार्शल प्रायः माल्थस से सहमति रखते हैं। मार्शल के अनुसार, देश की जनसंख्या या तो प्रकृति कारणों से बढ़ जाती है या आप्रवसन द्वारा। विवाह मुख्यतः जलवायु सम्बन्धी दशाओं और मनुष्य के पारिवारिक भरण-पोषण के साधनों से प्रभावित होते हैं, इसलिए यह कहना सही है कि जनसंख्या में वृद्धि तथा राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता के लिए हानिकारक होती है। एक बड़े परिवार के सदस्य एक दूसरे को शिक्षित कर सकते हैं और एक छोटे परिवार के सदस्यों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान और बलवान हो सकते हैं।

  9. श्रम-विभाजन-

    प्रो0 मार्शल का कहना है कि विशेष वस्तुओं के लिए बढ़ी हुई माँग और बाजार के विस्तार इन दो घटकों में श्रम विभाजन को जन्म दिया है। श्रमिकों की निपुणता और मशीनों का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग करने के लिए यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि श्रम-विभाजन को अपनाया जाय। प्रत्येक व्यक्ति को निरन्तर रोजगार इस तरह मिलते रहना चाहिए कि उसकी निपुणता और योग्यता का सर्वोत्तम लाभ उठाया जा सके। स्पष्ट है कि मार्शल ने श्रम-विभाजन के महत्त्व और लाभों को जान लिया था।

  10. उत्पत्ति के नियम –

    उत्पत्ति के नियमों का मार्शल ने पहली बार वैज्ञानिक वर्णन किया, जो त्रुटिपूर्ण होते हुए भी आधुनिक सिद्धान्त का आधार बना। उन्होंने उत्पत्ति के तीन नियम, (ह्रास, वृद्धि एवं समता) बताये। आजकल ये एक ही नियम परिवर्तनशील अनुपातों के तीन चरण माने जाते हैं। दूसरा सुधार यह हुआ कि सीमान्त उपज के बजाय औसत उपज को उत्पादन घटने-बढ़ने का आधार माना गया है। मार्शल ने बताया है कि रिकार्डों ने उत्पत्ति, ह्रास नियम की परिभाषा ठीक-ठीक, शब्दों में नहीं की थी। “उन्होंने नियम को इस तरह परिभाषित की है – “भूमि की खेती में प्रयुक्त पूँजी और श्रम में वृद्धि सामान्यतः उपज की मात्रा में अनुपातिक रूप से कम वृद्धि सम्भव बताती है, बशर्ते कृषि कला में भी धीरे-धीरे सुधार न हो जाय।” उसने बार-बार सीमान्त इकाई, सीमान्त उपज, कृषि सीमान्त आदि शब्दों का प्रयोग किया है। उनका विश्वास है कि श्रम और पूँजी के प्रति प्रकृति के उर्वरता निरपेक्ष नहीं है। यह स्थान और समय सापेक्ष होती है अर्थात् उनके मतानुसार, नियम मछली उत्पादन केन्द्रों, खानों और खदानों में भी उसी प्रकार लागू होता है, जैसे कृषि में।

  11. प्रतिनिधि फर्म –

    प्रो0 मार्शल ने आर्थिक सिद्धान्त में एक नया विचार प्रतिनिधि फर्म का विचार प्रचलित किया है। उनके अनुसार प्रतिनिधि फर्म वह है, जिसे चलते हुए काफी समय बीत चुका है, जिसे काफी, सफलता मिली है, उसका प्रबन्ध सामान्य योग्यता से किया जा रहा है जो कि उत्पत्ति कुल मात्रा के सम्बन्ध में उदय होती है। मार्शल की सम्पत्ति में प्रतिनिधि फर्म एक औसत फर्म होती है बाह्य मितव्ययिताओं से उसका अभिप्राय उन मितव्ययिताओं से है, जो कि उद्योग के सामान्य विकास पर निर्भर होती है। आन्तरिक मितव्ययिताएँ वह है जो व्यक्तिगत फर्म की प्रबन्ध-कुशलता, संगठनात्मक निपुणता और प्रसाधनों के कारण खुद संगठन के भीतर से ही मिलती है।

  12. स्थैतिक दशा का विचार

    मार्शल के अनुसार एक स्थैतिक दशा में समय का प्रभाव कम दिखाई देता है।

वहाँ उपभोग, उत्पादन, विनियम और वितरण सम्बन्धी सामान्य दशाएँ प्रायः अपरिवर्तित या गतिरहित होती हैं। ऐसी दशा में लोगों की औसत आय एवं प्रति व्यक्ति उत्पादित वस्तुओं की मात्रा पीढ़ियों तक वही रहती है। व्यवसाय में तेजी और मन्दी के बावजूद प्रतिनिधि फर्म का आकार पूर्ववत् रहता है। ऐसी परिस्थिति में उत्पादन लागत ही मूल्य को निर्धारण करेंगी और दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन सामान्य मूल्यों में कोई अन्तर न होगा, किन्तु एक आधुनिक समाज में ऐसा नहीं है। ये सदा ही माँग के स्वभाव एवं विस्तार को प्रभावित करते हैं और स्वयं भी उससे प्रभावित होते हैं तथा पारस्परिक समायोजन के लिए उनको समय की आवश्यकता पड़ती हैं।

मार्शल के आर्थिक विचारों की आलोचना (Criticism of Marshell)

कुछ लोगों का विचार है कि मार्शल की प्रणाली में वैज्ञानिक यथार्थता का अभाव है तथा वह क्रमहीन है। जहाँ तक वैज्ञानिक यथार्थता के अभाव का सम्बन्ध है, हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र की वास्तविक परिस्थितियों के अनुकूल बनाने की जिज्ञासा में वह कभी-कभी एक कठोर वैज्ञानिक के पथ से विचलित हो गये थे। कुछ आलोचकों के अनुसार वितरण के क्षेत्र में मार्शल की यह धारणा थी कि राष्ट्र की उपस्थिति श्रम शक्ति, मशीनों तथा

उपकरणों के प्रतिस्थापना तथा उनको सुरक्षित रखने के लिए कुछ निश्चित न्यूनतम बातों की आवश्यकता होती है। इस धारणा के परिणामस्वरूप मूल्य तथा वितरण सम्बन्धी उसके सम्पूर्ण विश्लेषण में वैज्ञानिकता का अभाव है।

लागत सिद्धान्त तथा सीमान्त उपयोगिता सिद्धान्त का संश्लेषण भी अपूर्ण प्रतीत होता है। मार्शल ने मूल्य तथा वितरण सम्बन्धी विषयों की जो व्याख्या की, वह आवश्यक रूप से स्थिर परिस्थितियों से ही सम्बन्धित है। समय अवधि का वर्गीकरण भी सन्देहजनक प्रतीत होता है, क्योंकि यह सम्भव नहीं कि विभिन्न समय अवधियों के बीच ऐसी कठोर रेखाएँ खींची जा सकें, जैसे मार्शल ने खींची है। जो व्यक्तियों को हर प्रकार का प्रयत्न एवं त्याग करने के लिए प्रेरित करती हैं। यही नहीं, कहीं पर उसने उपयोगिता की तुलना इच्छा से की है और कहीं पर सन्तुष्टि से, कहीं पर अनुपयोगिता का सम्बन्ध वास्तविक लागत से स्थापित किया है और कहीं पर प्राप्त होने वाली वस्तु से, जिसके परिणामस्वरूप उसके विश्लेषण में गड़बड़ी उत्पन्न हो गयी हैं। उसने पूर्ण प्रतियोगिता को अनुचित महत्त्व दिया है और बड़े-बड़े कॉर्पोरेशनों, कार्टलों इत्यादि की ओर ध्यान नहीं दिया तथा व्यापक अर्थशास्त्र की जो व्याख्या उसने दी, वह अपर्याप्त है।

इन आलोचकों से उसकी स्थिति को कोई धक्का नहीं पहुँचा। यह कहने में कोई त्रुटि नहीं होगी कि आज तक उसका स्थान कोई एक व्यक्ति नहीं ले पाया। बल्कि उसके बाद अर्थशास्त्र का विकास हुआ और उसकी सैद्धान्तिक प्रणाली का क्षेत्र विस्तृत हुआ। आर्थिक सिद्धान्तों का ढाँचा जो उसने तैयार किया, वह आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है और वास्तविक समस्याओं के इतना समीप है कि उसका तिरस्कार नहीं किया जा सकता। मार्शल का नाम सदैव ही उन व्यक्तियों में सम्मिलित किया जाता रहेगा, जिन्होंने अर्थशास्त्र की कोई प्रतिष्ठा प्रदान की। हम अर्थशास्त्र में उसके योगदानों को, जैसे दीर्घकालीन तथा अल्पकाल का स्पष्ट भेद, उपभोक्ता बचत सिद्धान्त, आभास लगान सिद्धान्त और लगान सम्बन्धी विचार के विस्तार इत्यादि को नहीं भुला सकते।

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