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क्या वणिकवाद नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था थी ?  

क्या वणिकवाद नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था थी ?

क्या वणिकवाद नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था थी ?

वणिकवाद (Mercantilism) – यूरोपवासियों द्वारा अमरीका तथा दक्षिण एशिया भारत आदि की खोज का लिए जाने के साथ ही विदेशी व्यापार के द्वारा अधिकाधिक धन सम्पदा अर्जित किए जाने की आपसी होड़ ने ही वणिकवाद को जन्म दिया। वणिकवाद सम्मिलित रूप से उन सिद्धान्तों का नाम है जो व्यापार, मुख्य रूप से विदेशी व्यापार के जरिए राष्ट्र को अत्यधिक साधन-सम्पन्न बनाने के लिए प्रयुक्त किया गया वणिकवाद के विचारकों एवं समर्थकों, जिनमें कुशल व्यापारी, प्रशासक एवं राजनीतिज्ञ तथा शासक सम्मिलित थे, का विचार था कि यदि कोई देश अपने यहाँ विनिर्मित उत्पादों का निर्यात करके अन्य देशों से सोना-चाँदी अपने देश में एकत्रित करने में सफल हो जाता है जो इससे उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और जो अन्तत एक सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण में योगदान देती है। वणिकवादी सोना-चाँदी को प्राप्त करने एवं उसके भण्डार बनाने पर बहुत बल देते थे। इसके लिए उन्होने एक योजनाबद्ध तरीके से काम करने का सुझाव दिया। वणिकवादियों के अनुसार – “किसी देश के पास आधिक सोना-चाँदी का होना आर्थिक शक्ति का प्रतीक है।” इसलिए अधिक स्वर्ण प्राप्त करके अधिक शक्तिशाली बनो” वणिकवादियों का मूलमंत्र था। सोलहवीं, सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के अत्यधिक साधन सम्पन्न देशों इग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, पुर्तगाल आदि में जन्मी, पली तथा विकसित हुई वणिकवादी विचारधारा को अनेक नामों से जाना जाता है। फ्रांस में कालवर्टवाद, जर्मनी में केमालिज्म, बहुमूल्य धातूवाद, व्यापारी अर्थव्यवस्था, प्रतिबन्धित अर्थव्यवस्था ।

यूरोप के कतिपय उत्साही नाविकों ने दूसरी दुनिया की खोज करके यूरोपीय व्यापारियों के लिए व्यापार प्रसार की सम्भावनाओं का नया पिटारा खोल दिया। इन लोगों ने व्यापार को बढ़ाने के लिए नए खोजे गए देशों की ओर रुख किया। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के तहत् साम्राज्यवादी नीतियों के तहत् यूरोप के विभिन्न देशों के शासकों ने व्यापारियों को हर सम्भव सहायता तथा प्रोत्साहन उदाहरण के तौर पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना भारत में व्यापार करने के लिए की गयी थी लेकिन इसी के माध्यम से इंग्लैण्ड ने भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इस प्रकार वणिकवाद, आर्थिक एवं राजनीतिक साम्राज्य का संयुक्त प्रयास था। वणिकवाद नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था थी ऐसा निम्न विवेचन से स्पष्ट है –

  1. राजतन्त्र का उदय-

    एलेक्जेण्डर ग्रे तथा श्मोलर जैसे अर्थशास्त्री यूरोप में राजतन्त्र के उदय को वणिकवाद नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था मानते हैं। जैसाकि एलेक्जेण्डर का कहना है, “वणिकवाद राज्य के आर्थिक पक्ष का निर्माण है”। इसी बात को श्लोमर इस प्रकार कहते हैं, “केवल राज्य के निर्माण का नाम है।” रोमन साम्राज्य के पतन, सामन्तशाही का उदय, राज्य प्रशासन में चर्च का अत्यधिक हस्तक्षेप, राजा का असमर्थ एवं शक्तिहीन होते जाना आदि से उपजी परिस्थितियों के बीच इटली के विचारक मेकियावेली के सिद्धान्तों को प्रतिपादन के साथ ही यूरोप में राजतन्त्र का नए सिरे से सूत्रपात हुआ।

  2. आर्थिक एवं राजनीतिक नीतियों का धार्मिक विचारधारा से पृथक होना

    धार्मिक क्रान्ति का प्रभाव तत्कालीन आर्थिक विचारकों पर भी पड़ा। मेकियावली जैसे – विचारकों ने कैथोलिक धार्मिक गुरुओं के इस विचार की कड़ी आलोचना की कि मुनष्य को धन के प्रति आसक्त होना चाहिए। मूल्य लागत से अधिक नहीं होना चाहिये, ब्याज नहीं लेना चाहिए। नए विचारकों ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध विद्रोह की सभी मान्यताओं को हिला दिया। यदि राजनीति में मनुष्य ईसाई धर्म के सिद्धान्तों को परित्याग कर सकता है तो आर्थिक मामलों में क्यों नहीं। लोग सोना-चाँदी, व्यापार-मुनाफा, ब्याज आदि को ठीक समझने लगे। काल्विन तो वाणिज्य को धर्म के अनुकूल मानते थे। इन्होनें भी सुधार का नवीन सम्प्रदाय स्थापित किया।

  3. पुर्नजागरण

    15-16 वीं शताब्दी में यूरोप की चेतना में एक क्रान्ति आयी जो कला, साहित्य, विज्ञान तथा दर्शन के विकास के रूप में प्रकट हुई ग्रीस और रोम के युग की सांस्कृतिक चेतना का फिर से जागरण हुआ जो कि संसार के इतिहास में “रिनैसा” के नाम से विख्यात है। इस युग में ब्ल्यूनार्डो दा विंसी, गैलीलियों, कोपरनिकस, मिशैल एन्जिलो, न्यूटन, केपलर तथा शेक्सपीयर जैसी प्रतिभाएँ उत्पन्न हुई। छापेखाने, दूरबीन, घड़ी तथा कुतुबमीनार जैसे यन्त्रों का अविष्कार हुआ। अर्थशास्त्र का क्षेत्र भी उपेक्षित नहीं रहा। आर्थिक क्षेत्र में पुनर्जागरण चहुँमुखी चेतना का विकास था, इसका एक अंश वणिकवाद भी था।

  4. मुद्रा प्रणाली का उदय

    वस्तु-विनिमय का स्थान वस्तु-मुद्रा वस्तु-विनिमय ने ले लिया। विनिमय के लिए बड़ी मात्रा में सोना-चाँदी की जरूरत थी। इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजाबेथ प्रथम के युग में ही प्रेशम ने यह नियम से मालूम किया कि खराब सिक्के अच्छे सिक्कों को चलन से निकाल देते हैं। सभी राज्यों को सोना-चाँदी की आवश्यकता थी। अत वणिकवादियों द्वारा सोना-चाँदी को महत्व दिया गया।

  5. परिवहन साधनों का विकास

    समुद्री मार्गों का पता लगाना वणिकवाद के नियोजित अर्थव्यवस्था के पूर्व की अवस्था होने का मुख्य प्रमाण है। इसी युग में भारत के समुद्री मार्गों का पता वास्कोडिगामा ने लगाया। कुक ने आस्ट्रेलिया और कोलम्बस इससे विदेशी व्यापार के नवीन युग का सूत्रपात हुआ।

इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वार्षिकवाद ने अमेरिका का पता लगाया, नियोजित अर्थव्यवस्था की पूर्वावस्था थी ।

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