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श्रवण विकलांगता

श्रवण विकलांगता

श्रवण विकलांगता का अर्थ

किसी व्यक्ति द्वारा पूरी तरह से आवाज सुनने में अक्षम होना श्रवण-विकलांगता कहलाता है। यह श्रवण त्रका के अपर्याप्त विकास के कारण, श्रवण संस्थान की बीमारी या चोट लगने की वजह से हो सकता है । सुनना, सामान्य वाचा एवं भाषा के विकास के लिए ‘सुनना’, यह प्रथम आवश्यकता | बच्चा, परिवार या आसपास के वातावरण में लोगों की बोली सुनकर ही बोलना सीखता है।

बधिरता एक अदृश्य दोष है । एक व्यक्ति या बच्चे के बहरेपन को पहचानने के लिए सूक्ष्म निरीक्षण की आवश्यकता होती है । जन्म के समय एवं शैशवावस्था में बहरापन बच्चे के सम्पूर्ण विकास में गलत प्रभाव डालता है। यह प्रभाव, विकलांगता की प्रभाव भिन्नता, प्रारम्भिक आयु, स्वरूप और श्रेणी पर निर्भर है।

श्रवण विकलांगता के जन्म से पहले के कारण

  1. बाल्यावस्था में कर्ण बधिरता का पारिवारिक इतिहास-पारिवारिक सदस्यों में बहरापन।
  2. निकट-सम्बन्धियों में वैवाहिक रिश्तों का होना; जैसे-चाचा-भतीजी, इत्यादि।
  3. खून की बीमारियाँ या H. (आर. एच.) अपरिपूर्णता ।
  4. गर्भावस्था के दौरान संक्रामक बीमारियाँ जैसे कि सिफिलस, जर्मन मीजल्स या रूबेला बुखार के साथ मम्पस।

श्रवण बाधितों का वर्गीकरण (Classification of Hearing Impaired Children)

जिन बालकों को सुनने में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित बालक कहलाते हैं । इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता 1 से 130 डेसीबल्स (Decibels) तक होती है । यदि यह 130 डी.बी. से ऊपर आये तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बाँटा जाता है-

  1. कम श्रवण बाधित बालक (Mild Hearing Loss Child)- कम श्रवण बाधित बालक वह होते हैं जिन्हें सामान्य स्तर पर बोलने पर सुनाई देता है । परन्तु यदि बहुत धीमा बोला जाये तो यह सुन नहीं पाते हैं । इनकी बातचीत का सामान्य स्तर 65 डी. बी. होता है । यह बालक किंचित श्रवण बाधित बालकों को 31 से 51 डी. बी. की श्रवण बाधिता लिए हुए होते हैं । यानि कि यह बालक 54 डी.बी. तक की ध्वनि नहीं सुन पाते हैं । इसलिए इन्हें कम श्रवण बाधितों की श्रेणी में डाला जाता है ।
  2. मन्द श्रवण बाधित बालक (Moderate Hearing Loss Child)— यह बालक मन्द रूप से श्रवण बाधितों की श्रेणी में इसलिए आते हैं, क्योंकि यह बालक 55 से 69 डी.बी. का क्षय रखते हैं । अतः सामान्य स्तर-65 डेसीबल्स पर यह नहीं सुन पाते हैं । अत: यह बालक ऊँचा सुनते हैं ।
  3. गम्भीर श्रवण बाधित बालक (Severely Hearing Impaired Child)- इन बालकों में 70-89 डी.बी. तक की श्रवण बाधित होती है तथा ये बालक काफी ऊँचा सुनते हैं।
  4. पूर्ण श्रवण बाधित बालक (Profoundly Hearing Impaired Children)- यह बालक बिल्कुल नहीं सुन पाते हैं। इनकी श्रवण बाधिता 90 डी.बी. तथा इससे आगे के स्तर की होती है । यह बहुत ऊँचा बोलने पर थोड़ा-सा ही सुन पाते हैं। यह बालक बधिर (deaf) की श्रेणी में आते हैं।

चालकीय श्रवण दोष

यह मध्यकर्ण एवं कान के बाहरी हिस्से में खराबी के कारण होता है। आवाज कान के अंदर तक ठीक से नहीं पहुँचती है। सभी सुनी हुई आवाज इस प्रकार कमजोर हो जाती है या और आवाज दब जाती है। सामान्यत: इस प्रकार के लोग अपने वातावरण की आवाजों का ध्यान रखे बिना नरम आवाज में बोलते हैं ।

चालकीय श्रवण दोष होने के कारण-

  • कान की नली में वैक्स का होना ।
  • बाह्यकर्ण एवं मध्यकर्ण की बीमारियाँ, कान का बहना एवं कान में दर्द के लक्षणों के साथ कान के बाह्यकर्ण एवं मध्य कर्ण में जन्मजात दोष-बाह्य या मध्य कर्ण में दोष या क्षति ।
  • ऊपरी सम्बन्धित शरीर में संसर्ग ।
  • मुँह के खड्डों एवं कान की देखभाल न करना ।

मध्यकर्ण श्रवण दोष (Central Hearing Loss)

मध्यकर्ण श्रवणदोष चोट के कारण होता है, श्रवण-तन्त्रिका के संक्रमण के कारण होता है या श्रवण-तन्त्रिका के अपर्याप्त रूप से विकसित होने के कारण होता है या दिमाग में सुनने के स्थान के विकसित न होने के कारण होता है । बच्चा सुन पाता है, लेकिन सुना हुआ समझ नहीं पाता । कुछ बच्चों को जिन्हें बिना सुनने वाला या सीखने में असमर्थ कहा जाता है, वे इस प्रकार के श्रवण-हानि से ग्रसित हो सकते हैं।

श्रवण विकलांगता के लक्षण

श्रवण बाधित बालकों के व्यावहारिक लक्षण निम्नलिखित होते हैं-

  1. यह बालक अपने व्यवहार को एक सा नहीं रख पाते हैं।
  2. यह बालक अपने शिक्षकों के होठों (lip reading) की गतिविधियों व हाव-भाव को देखकर तथ्यों के बारे में पता लगा लेते हैं।
  3. यह बालक ध्वनि पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।
  4. यह बालक बातों को सुनने के लिए एक ओर सिर झुकाते हैं ।
  5. इन्हें अक्सर समान ध्वनि वाले शब्दों में भ्रम होता है; जैसे—यह चाचा को पापा समझते हैं।
  6. यह बिना बुलायें ही बातों के बीच में निरर्थक बोलना शुरू कर देते हैं।
  7. यह धीरे-धीरे बोलते हैं।
  8. यह बिना पूर्व जानकारी के ही बड़बड़ाते रहते हैं।
  9. इन्हें शब्दों के सही उच्चारण में कठिनाई होती है तथा कक्षा में की गई ध्वनि को पहचान नहीं पाते हैं।

श्रवण बाधित्तों की पहचान (Identification of Hearing Impaired Children)

श्रवण बाधित बालकों की पहचान उनके बोलने से ही हो जाती है । परन्तु इन्हें पहचानने के लिए कई चिकित्सकीय परीक्षण करने पड़ते हैं। क्योंकि कक्षा में श्रवण बाधित बालक आसानी से शिक्षकों की दृष्टि में नहीं आते हैं । अतः इन्हें पहचानने हेतु कई प्रकार की अन्त:क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जबकि बड़ी कक्षा में ऐसा होना सम्भव नहीं हो पाता है अत: बालकों के प्रवेश के समय ही उनका परीक्षण करवा लेना उचित रहता है । बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाते समय उन्हें अध्यापक को बालकों की श्रवण शक्ति के बारे में बता देना चाहिए । अतः श्रवण बाधितों को अनलिखित आधार पर पहचाना जाता है-

  1. चिकित्सीय परीक्षण (Medical Examination)
  2. विकासात्मक मापनी (Development Scale)
  3. बालक का अध्ययन (Case study of the child)
  4. मनोनाड़ी परीक्षण (Neuropsychological Test)
  5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण (Systematic Observation of the Child Behaviour)

श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ (Characteristics)

कुछ शोध अध्ययनों के फलस्वरूप यह पता चला है कि श्रवण बाधित बालकों की मानसिक योग्यता कम होती है तथा इनकी शैक्षिक योग्यता एवं समायोजन भी उत्तम नहीं होता है । इसका मुख्य कारण भाषा का अभाव होता है। क्योंकि इन बालकों को सुनने तथा बोलने में कठिनाइयाँ होती हैं । इसके कारण ही इनमें हीन भावना आ जाती है। श्रवण बाधितों की अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह बालक भावात्मक व्यवहार में असामान्य होते हैं क्योंकि यह दूसरों की बातों को नहीं समझ पाते। अतः इनमें तनाव उत्पन्न होता है तथा यह चिड़चिड़े हो जाते हैं तथा असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
  2. इन बालकों को बोलने व सुनने में कठिनाई होती है । इसके कारण ही यह समुचित शाब्दिक अन्तःप्रक्रिया नहीं कर पाते हैं तथा एक सीमित शब्दावली तक रह जाते हैं । इन्हें सांकेतिक भाषाओं का सहारा लेना पड़ता है तथा यह सामान्य बालकों की तरह बातें नहीं समझ पाते हैं । अतः इनमें भाषा सम्बन्धी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  3. श्रवण बाधित बालकों में व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ अधिक उत्पन्न हो जाती हैं। क्योंकि जब वह दूसरों की बातों को ठीक प्रकार से नहीं सुन पाते हैं तो वह उनका गलत अर्थ निकाल लेते हैं तथा सही उत्तर नहीं देते हैं। जिससे सामान्य लोग भी उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं तथा सामान्य बालक उनकी सहायता नहीं करते । इससे यह बालक अपने को दूसरों से अलग समझते हैं ।
  4. यह बालक श्रवण बाधित होने के कारण व्यक्तित्व बाधित होते हैं। लेकिन यह कोशिश करते हैं कि सामान्य बालकों जैसा व्यवहार करें परन्तु यह सम्भव नहीं होता है । इसके कारण ही इन बालकों का व्यक्तित्व बाधित हो जाता है।
  5. यह बालक समाज के साथ उचित समायोजन नहीं कर पाते हैं क्योंकि इनकी सम्प्रेषण क्षमताएँ भी सामान्य नहीं होती हैं तथा यह दूसरों को अपनी बातें नहीं समझा पाते हैं।

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