उत्तम परीक्षण की विशेषताएँ
उत्तम परीक्षण की विशेषता
किसी वस्तु को इसलिए अच्छा कहा जाता है कि उसमें सभी अच्छे गुण होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु को अच्छा या खराब उसके मान्य गुणों या कसौटियों के आधार पर ही कहा जा सकता है। इसी प्रकार किसी शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक परीक्षण की उत्तमता का निश्चय उसकी मान्य कसौटियों (गुणों) के आधार पर किया जाता है।
एक अच्छा परीक्षण उसे कहा जा सकता है जो उन आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और उन उद्देश्यों को प्राप्त करता है, जिनको ध्यान में रखकर उसकी रचना की गयी है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि, “एक उत्तम परीक्षण आवश्यक रूप से प्रयोजनपूर्ण एवं प्रभावीकृत यन्त्र है जो मानव व्यवहार की वस्तुनिष्ठता एवं व्यापकता के साथ मापन करता है। इस प्रकार अच्छे परीक्षण का प्रशासन एवं अंकन सरल होता है। इन परीक्षणों की विश्वसनीयता, वैधता एवं मानक निश्चित होते हैं और जिसमें विभेदन करने की शक्ति या क्षमता विद्यमान होती है।
उपरोक्त के आधार पर मापन के अच्छे परीक्षणों के निम्न गुण होते हैं-
- अच्छे परीक्षण सप्रयोजन एवं उद्देश्यपूर्ण होते हैं।
- अच्छे परीक्षण मानव व्यवहार का वस्तुनिष्ठता एवं व्यापकता के साथ मापन करते हैं।
- अच्छे परीक्षणों का प्रशासन सरल होता है।
- अच्छे परीक्षण फलांकन की दृष्टि से सुगम होते हैं।
- अच्छे परीक्षण विश्वसनीय होते हैं।
- अच्छे परीक्षण वैध होते हैं।
- अच्छे परीक्षण में वस्तुनिष्ठता एवं व्यापकता का गुण पाया जाता है।
- अच्छे परीक्षण में विभेद शक्ति होती है।
उत्तम परीक्षण की व्यावहारिक कसौटियाँ
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उद्देश्यपूर्णता–
प्रत्येक उत्तम परीक्षण के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं, जिन्हें प्राप्त करना आवश्यक होता है। अतः परीक्षण के उद्देश्यों की पृष्ठभूमि में यह देखना चाहिए कि परीक्षण से उसके पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति होती है या नहीं जिनके लिए इसका निर्माण किया गया है।
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व्यापकता–
व्यापकता का अर्थ है-किसी परीक्षण में पाठ्यक्रम के अधिक से अधिक अंशों का समावेश हो। परीक्षण में पाठ्यक्रम के केवल कुछ अंशों को ही महत्व न दिया जाए, बल्कि विषय के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को महत्व प्रदान करते हुए सभी अंशों से प्रश्नों या पदों का चयन करके परीक्षण का निर्माण किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, परीक्षण को सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व (Representation) करना चाहिए। जितना अधिक कोई परीक्षण पाठ्यक्रम एवं उसके विभिन्न अंशों एवं क्षेत्रों से सम्बन्धित होगा, उतना ही वह व्यापक होगा।
परीक्षण की रचना करते समय पाठ्यक्रम में सम्मिलित सभी तथ्यों या विषय-सामग्री को न लेकर, उसके प्रतिनिधित्व करने वाले न्यादर्श (Sample) को लेते हैं। विषय-सामग्री के न्यादर्श पर चुने गए प्रश्नों की सूची यानी परीक्षण में परीक्षार्थी की सफलता-असफलता के आधार पर हम उसके सम्पूर्ण विषय के तथ्यों के ज्ञान की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
तथ्यों का कितना भाग लिया जाए कि परीक्षण व्यापक हो सके, यह एक विचारणीय विषय है। परीक्षण में कितने प्रश्न लिए जाएँ, जिससे यह सम्पूर्ण विषय के पाठ्यक्रम का उचित प्रतिनिधित्व कर सके, इसका निर्णय परीक्षण निर्माता (Test Constructer) परीक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर करता है। हाँ, परीक्षण इतना व्यापक होना चाहिए जिससे वह वैध (Valid) हो सके। परीक्षण को व्यापक बनाने के लिए परीक्षण के सभी व्यावहारिक उद्देश्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
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समय एवं कीमत–
परीक्षण के लिए समय की सीमा निश्चित की जाती है। वह परीक्षण उत्तम माना जाता है जो कम समय में परीक्षार्थियों की उपलब्धि का मापन कर सके। यदि परीक्षण के अन्य गुणों पर प्रभाव न पड़े तो छोटे परीक्षणों को सदैव प्राथमिकता दी जाती है, जिससे समय की बचत हो जाती है। परन्तु परीक्षण की विश्वसनीयता एवं वैधता बहुत कुछ लम्बाई पर भी निर्भर करती है। अतः परीक्षण में प्रश्नों की संख्या या लम्बाई इतनी ही रखनी चाहिए, जिससे कि उसकी विश्वसनीयता एवं वैधता प्रभावित न हो।
कम कीमत में अच्छी प्रकार निर्मित (Constructed) परीक्षण सदैव लाभप्रद होता है। उदाहरणार्थ, पुनः प्रयोग में लायी जाने वाली प्रश्न-पुस्तिका (Reusable Booklet) से धन की बचत होती है।
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सुगमता–
सुगमता अच्छे परीक्षण का एक गुण है। परीक्षण प्रशासन, अंकन और व्याख्या तीनों दृष्टियों से सुगम होना चाहिए। परीक्षण की सुगमता का सम्बन्ध तीनों बातों से होता है-
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प्रशासन की सुगमता–
परीक्षण ऐसा होना चाहिए, जिससे इसका प्रशासन सुविधापूर्वक हो सके।
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फलांकन की सुगमता–
परीक्षण की फलांकन विधि सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए।
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व्याख्या की सुगमता–
परीक्षण के मानक स्पष्ट रूप से निश्चित होने चाहिए। इससे व्याख्या करने में सरलता होती है।
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उत्तम परीक्षण की तकनीकी कसौटियाँ
(Technical Criteria of Good Test)
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वैधता–
किसी परीक्षण या परख की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी सत्यता से उस वस्तु का मापन करती है, जिसके मापन के उद्देश्य से उसका निर्माण किया गया है? अतएव यह स्पष्ट है कि परीक्षण-वैधता का उसके उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वैधता एक अच्छे परीक्षण का मुख्य गुण है।
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विश्वसनीयता–
वैधता की भाँति, विश्वसनीयता भी किसी अच्छे परीक्षण की एक मुख्य विशेषता है। यह अच्छे परीक्षण की एक प्रमुख कसौटी है।
“विश्वसनीयता किसी परीक्षण पर व्यक्ति के प्राप्तांकों की संगति है अर्थात् यदि एक व्यक्ति की परीक्षा किसी परीक्षण पर बार-बार ली जाए और प्रत्येक बार वह व्यक्ति समान प्राप्तांक अर्जित करता है, तो यह परीक्षण विश्वसनीय कहा जायेगा।
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वस्तुनिष्ठता–
पूर्ण रूप से वस्तुनिष्ठ परीक्षण वह है, जिसके द्वारा परीक्षार्थी की उपलब्धि या निष्पादन को देखकर प्रत्येक परीक्षक एक ही निर्णय (प्राप्तांक) दे। वस्तुनिष्ठता होने से परीक्षार्थी या प्रयोज्य के निष्पादन का मूल्यांकन करते समय परीक्षक का अपना व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ता है। परीक्षक, परीक्षार्थी के निष्पादन या कृतित्व को ध्यान में रखकर अंक प्रदान करता है। किसी भी परीक्षण का वस्तुनिष्ठ होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसका विश्वसनीयता एवं वैधता दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
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विभेदन–शक्ति–
एक परीक्षण तभी विभेदनकारी (Discriminating) कहा जायेगा, जब वह अधिक उपलब्धि एवं कम उपलब्धि वाले छात्रों में भेद करने की क्षमता रखता हो उदाहरणार्थ; उपलब्धि परीक्षण ऐसा होना चाहिए जो यह बता सके कि एक विद्यार्थी 75 अंक प्राप्त करता है, तो दूसरा केवल 40 अंक। अतः जब कोई परीक्षण ठीक ढंग से किसी गुण, कौशल, उपलब्धि या योग्यता के आधार पर समूह के परीक्षार्थियों को उच्च, मध्यम तथा कमजोर वर्ग की श्रेणियों में विभक्त कर देता है तो कहा जा सकता है कि उस परीक्षण में विभेदकारिता (Discrimination) का गुण है। इस प्रकार के परीक्षण अच्छे माने जाते हैं।
ऐसे परीक्षण में विभेदकारिता का गुण होता है, जिसमें सभी कठिनाई स्तर के प्रश्न (पद) सम्मिलित किए जाते हैं। इसमें कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनका उत्तर सभी परीक्षार्थी आसानी से दे सकते हैं, कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके उत्तर केवल कुशाग्र बुद्धि के परीक्षार्थी ही दे सकते हैं। परीक्षण में अधिकांश प्रश्न ऐसे सम्मिलित किए जाने चाहिए, जिनका उत्तर मध्यम स्तर के परीक्षार्थी दे सकें। परीक्षण की विभेदन-शक्ति या विभेदकारिता ज्ञात करने के लिए परीक्षण के प्रत्येक पद का पृथक्-पृथक् विश्लेषण किया जाता है। इसे पद-विश्लेषण (Item-Analysis) कहते हैं। इसमें प्रत्येक पद की कठिनाई स्तर का भी पता लग जाता है।
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मानक–
प्रमापीकरण का एक आवश्यक पक्ष है- मानकों का निर्धारण करना। परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या मानकों के आधार पर की जाती है। मानक वह अंक है, जो प्रतिनिधि प्रयोज्यों या न्यादर्श से प्राप्त किये जाते हैं। परीक्षण के मानकों को एक बड़े न्यादर्श (Sample) पर प्रशासित करके ज्ञात किया जाता है। मानकों का प्रयोग किसी व्यक्ति की समूह में स्थिति जानने के लिए किया जाता है तथा इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के निष्पादन या योग्यता की तुलना समूह के अन्य व्यक्तियों से करने के लिए किया जाता है।
मानक प्रायः दो प्रकार के होते हैं-
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आयु मानक (Age Norm)-
परीक्षण को व्यक्तियों के विशाल न्यादर्श समूह पर प्रशासित करके आयु मानकों का निश्चय किया जाता है; उदाहरणार्थ, 10, 20 या 40 वर्ष के लोगों पर अलग-अलग परीक्षण को प्रशासित करके हर समूह के प्राप्तांकों का औसत अंक ज्ञात कर लिया जाता है। तब पदों को उस आयु-वर्ग के व्यक्तियों के लिए रख देते हैं।
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श्रेणी मानक (Grade Norm)-
हर श्रेणी के बालकों के मध्यांक की गणना कर श्रेणी मानकों की गणना की जाती है। मानकों की विश्वसनीयता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
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- जिस न्यादर्श पर मानकों का निर्धारण हो, वह काफी बड़ा होना चाहिए।
- न्यादर्श, सम्पूर्ण जनसंख्या (Population) का उपयुक्त प्रतिनिधि होना चाहिए।
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