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गांधी का समाजवाद

गाँधीवाद और समाजवाद

गाँधीवाद और समाजवाद

(Gandhism and Socialism)

समाजवाद आधुनिक युग का फैशन है और प्रायः गाँधीवाद का मूल्यांकन समाजवाद के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। गाँधीवाद उच्चकोटि का समाजवाद है क्योंकि इसमें समाजवाद के समस्त गुणों और लक्षणों को अपना लिया गया है और दुर्गुणों से छुटकारा पा लिया गया है।

गाँधीजी का समाजवाद

गाँधीजी एक सच्चे समाजवादी थे। वे व्यक्ति के हित के साथ-साथ समाज के हित का ध्यान रखते थे। वे समस्त प्रकार के शोषण के विरोधी थे। वे समाज में समानता और स्वतन्त्रता के प्रबल समर्थक थे। वे निर्धनता को दूर करना चाहते थे। वे स्वयं कहते थे कि “मैं उसी समस्या को सुलझाने में लगा हुआ हूँ जो कि वैज्ञानिक समाजवाद के सामने है।” वे सामाजिक न्याय के उदान्त सिद्धान्तों को क्रियात्मक रूप देना चाहते थे। वे धन का समान वितरण ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के माध्यम से चाहते थे। वे कहते थे, “जमीन और दूसरी सारी सम्पत्ति उसकी है, जो इसके लिए काम करे।” लुई फिशर से स्वयं उन्होंने कहा था, “मैं सच्चा समाजवादी हूँ। मेरे समाजवाद का अर्थ है सर्वोदय।” वे अन्याय और अत्याचार के विरोधी थे। श्री रामनाथ सुमन के अनुसार- गाँधीवाद समाजवाद की अपेक्षा अधिक व्यापक है, गाँधीवाद समाजवाद की अपेक्षा अधिक क्रान्तिकारी है, समाजवाद के लक्ष्यों को गाँधीवाद पूरा करता है।

गाँधीवाद और समाजवाद की तुलना

डॉ० पट्टाभि सीतारमैटया के अनुसार “समाजवाद का लक्ष्य सबको समान सुविधाएँ देता है तो गाँधीवाद का यह उद्देश्य है कि हर आदमी अपने समय और सुविधाओं का उच्च उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयोग करे। यदि समाजवाद पूँजी पर, भारी अतिरिक्त आय-कर, जब्ती और शक्ति द्वारा सम्पत्ति को स्थानच्युत करता है तो गाँधीजी युगों पुरानी परम्परा का आह्वान करते हैं यदि समाजवाद अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राज्य की सहायता लेता है तो गाँधीवाद अपनी सफलता के लिए प्रत्येक नागरिक के अन्त करण की उन्नति और संस्कृति के विकास पर विश्वास करता है समाजवाद घृणा और फूट द्वारा मानवता का प्रचार करना चाहता है, गाँधीवाद मानव सेवा के लिए घृणा और फूट का त्याग करता है।”

समाजवाद और गाँधीवाद में निम्न समानताएँ हैं-

  1. समाजवाद समानता और सामाजिक न्याय पर बल देता है। गाँधीवाद भी समानता और सामाजिक न्याय पर बल देता है।
  2. समाजवाद और गाँधीवाद दोनों ही शोषण के विरोधी हैं।
  3. समाजवाद धन का समान वितरण चाहता है। समाजवादकी भाँति गाँधीवाद भी धन का समान वितरण चाहता है।
  4. समाजवाद और गाँधीवाद दोनों ही अन्याय और अत्याचारों के विरोधी हैं।

गाँधीवाद तथा समाजवाद में अन्तर

समाजवादी होते हुए भी गाँधीजी का समाजवाद पश्चिमी जगत के समाजवाद से कई बातों में मौलिक रूप से भिन्न है। दोनों के कुछ प्रमुख भेद इस प्रकार हैं-

  1. आध्यात्मिक आधार होना पश्चिम के समाजवाद का जन्म पूँजीवाद के दोषों और दुष्परिणामों से हुआ है, उसका प्रेरणा स्रोत भौतिक-आर्थिक विषमता है। किन्तु गाँधीजी के समाजवाद का मूल आधार आध्यात्मिक है, यह सत्य और अहिसा के आदर्शों से प्रेरित है। उनका विश्वास है कि सब व्यक्तियों में भगवान की दिव्य सत्ता का अंश विद्यमान है, अतः सभी व्यक्ति समान हैं; सबकी आवश्यकताएँ समान रूप से होनी चाहिए। अपनी आवश्यकताओं से अधिक सम्पत्ति रखना पाप है। प्रत्येक वस्तु ईश्वर की है, अतः उस पर सबका समान अधिकार है।
  2. साधनों की शुद्धता दूसरा अन्तर गाँधीजी द्वारा साधनों की शुद्धता पर और अहिंसा पर बल दिया जाना है। समाजवादी अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हिसा, क्रान्ति और असत्य के प्रयोग में कोई संकोच नहीं करते हैं, किन्तु गाँधीजी अहिंसा के उपासक हैं। वे समाजवाद को स्फटिक की तरह शुद्ध मानते हैं और उसे प्राप्त करने के साधनों की शुद्धता पर बल देते हैं। पश्चिमी समाजवादी पूँजीवाद की समाप्ति क्रान्ति और युद्ध से करना चाहते हैं, गाँधीवाद इसे अहिंसात्मक असहयोग करने पर कटिबद्ध हैं। वे यह काम धनिकों और जमींदारों के हृदय परिवर्तन एवं ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त से करना चाहते हैं।
  3. वर्ग संघर्ष का विरोधसमाजवाद और गाँधीवाद दोनों एक ही प्रकार के वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। किन्तु समाजवादी वर्ग संघर्ष को अनिवार्य मानते हैं। उनका यह कहना है कि सर्वहारा वर्ग क्रान्ति के द्वारा पूँजीपति वर्ग का उन्मूलन करके दर्गहीन समाज का निर्माण करेगा। किन्तु गाँधीजी इस हिंसात्मक पद्धति के विरोधी हैं। उनका यह कहना है कि “आज जमींदारों और पूँजीपतियों का हृदय परिवर्तन हिंसा से नहीं, बल्कि केवल समझा-बुझाकर ही कर सकते हैं।” गाँधीजी अपने सिद्धान्त को सर्वोदय अथवा समाज के सभी वर्गों तथा व्यक्तियों का उत्थान करने वाला समझते थे। वे समाज में वर्ग-संघर्ष के स्थान पर वर्ग-सहयोग तथा वर्ग-समन्वय की भावना को प्रबल बनाना चाहते थे।
  4. राष्ट्रीयकरण का विरोध समाजवादी उत्पादन के साधनों के राष्ट्रीयकरण में अगाध विश्वास रखते हैं, वे इस उपाय से समाजवाद की स्थापना करना चाहते हैं किन्तु गाँधीजी को राष्ट्रीयकरण का विचार पसन्द नहीं है क्योंकि इससे राज्य अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है। गाँधीजी मशीनों के द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन के, बड़े उद्योगों के तथा केन्द्रीयकरण के विरोधी हैं। इसलिए वे राष्ट्रीयकरण के भी विरोधी हैं।

फिर भी यह तो स्पष्ट है कि समाजवाद और गाँधीवाद के उद्देश्य समान हैं किन्तु साधनों और व्यवस्थाओं में अन्तर है। संक्षेप में, गाँधीवाद समाजवाद का भारतीय प्रतिरूप है और यह एक मानवतावाद है।

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