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डेविस और पेंक के अपरदन चक्र में तुलना

डेविस तथा पेंक के अपरदन चक्र में अंतर

डेविस तथा पेंक के अपरदन चक्र में अंतर

डेविस का मत

पेंक का मत

1. डेविस के अनुसार, उत्थान तथा अपरदन साथ-साथ क्रियाशील होते हैं। पहले उत्थान अधिक, बाद में अपरदन होता है।

2. उत्थान अधिक समय तक भी चल सकता है। लेकिन समय की अवधि में अन्तर होता है।

3. धरातल पर उत्थान काफी तीव्र गति से होता है।

4. चक्र की प्रथम अवस्था की विभिन्न गतियाँ संरचना के आधार पर होती हैं।

5. अपरदन चक्र तीन अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, तथा जीर्णावस्था) में पूर्ण हो जाता है।

6. डेविस के अपरदन चक्र में ढालों को कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं बतलाया गया है।

7. डेविस के मत में दृश्यभूमि संरचना, प्रक्रम तथा अवस्थाओं का प्रतिफल है।

8. डेविस ने अपने चक्र में तीन अवस्थाएँ मानी हैं। पहली और दूसरी अवस्था में उच्चवच अधिक होती है। अतः सम्पूर्ण चक्र में उच्चावच क्रियाशील रहता है।

9. डेविस के अपरदन चक्र के अन्त में समतल प्राय मैदान बनते हैं।

1. पेंक के अनुसार, उत्थान तथा अपरदन साथ-साथ क्रियाशील होते हैं। इसमें पहले उत्थान अधिक, बाद में कम तथा बाद में अपरदन अधिक होता है।

2. उत्थान अधिक समय तक भी चल सकता है। लेकिन समय की अवधि में अन्तर होता है।

3. धरातल पर उत्थान की गति एक समान दर से नहीं होती है।

4. चक्र का प्रारम्भ एक-सी संरचना वाले फैले हुए गुम्बदों से होता है।

5. पेंक ने अपरदन चक्र में कोई अवस्थाएँ नहीं मानीं। इन्होंने डेविस के विपरीत स्थल खण्ड के उत्थान की तीन दिशाएँ-

·       आफस्ती जिण्डे बढ़ती गति,

·       ग्लोखफार्मिंग (समान गति),

·       अनबत्सी जिण्डे (घटती गति से उत्थान) मानी है।

6. पेंक ने ढालों के विकास को महत्वपूर्ण बतलाया है। साथ ही बतलाया है कि ढालों का विकास क्रमशः समय के अनुसार होता है।

7. पेंक के मतों के दृश्यभूमि उत्थान की दर तथा निम्नीकरण की दर के आपसी सम्बन्ध का ही मूल परिणाम है।

8. पेंक ने अपने चक्र में पाँच अवस्थाएँ मानी हैं। प्रथम अवस्था में उच्चावचं बढ़ता जाता है तथा दूसरी, चतुर्थ अवस्थाओं में स्थिर और अन्तिम पाँचवी अवस्था में कम हो जाता है। अतः उच्चावच की क्रिया सम्पूर्ण चक्रं में अवस्थाओं में अनुसार क्रियाशील रहती है

9. पेंक के अपरदन चक्र के अन्त में इण्ड्रम्प मैदान बनते हैं।

उपर्युक्त तुलना में दो विद्वानों के मत एक-दूसरे के विपरीत हैं। साथ ही दोनों के कार्य क्षेत्र विभिन्न हैं। अतः मतों में भिन्नता आना स्वाभाविक ही है। पेंक का कार्य क्षेत्र मध्य यूरोप का पर्वतीय भाग था जो कि समान संरचना से काफी प्रभावित था। पेंक का मुख्य उद्देश्य यह था कि स्थलाकृति का पहले स्वरूप क्या था? तथा बाद में क्या होगा ? अतः इनकी विचारधारा में कुछ रूढ़िवादिता नजर आती है। दूसरे डेविस का कार्य क्षेत्र संयुक्त राज्य अमरीका था। इन्होंने बतलाया कि स्थलीय संरचना में पर्याप्त अन्तर होता है। अतः स्थलाकृति के विकास एवं संरचना को मुख्य स्थिति माना। डेविस महोदय ने स्थलाकृति की वर्तमान स्थिति को ही माना और बतलाया है कि स्थलस्वरूपों के विकास की संरचना प्रक्रम की अवस्था का प्रतिफल है। डेविस महोदय ने वर्तमान में हुए परिवर्तन एवं विकास को अधिक महत्त्व दिया। इसलिए इनकी विचारधारा में रूढ़िवादिता नाम की कोई वस्तु नहीं है। अतः डेबिस की विचारधारा में वस्तुस्थिति कुछ वास्तविक मालूम पड़ती है।

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