अंग्रेजी भाषा शिक्षा का प्रभाव भारतीयों के जीवन पर
अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव
अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव भारत पर लाभ और हानि दोनों ही रूपों में पड़ा लाभ की दृष्टि से इसने भारतीयों के ज्ञान में वृद्धि की, विदेशों में उपलब्ध सभी प्रकार के ज्ञान से भारतीयों को परिचित कराया, भारतीयों में अपने समाज और धर्म में सुधार करने की भावना उत्पन्न की जिसका प्रमाण 19वीं सदी में हुए सामाजिक एवं धार्मिक आन्दोलन थे, मध्यम-वर्ग और उसी में से एक ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग का जन्म हुआ जिसने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीयों को नेतृत्व प्रदान किया तथा भारत के आधुनिकीकरण में सहायता प्रदान की। परन्तु इसके हानिकारक परिणाम भी हुए हैं। प्रारम्भ में आधुनिकीकरण में सहायता प्रदान की। परन्तु इसके हानिकारक परिणाम भी हैं। प्रारम्भ में और अब स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में ऐसी पीढ़ियों का निर्माण हुआ जो पश्चिमी सहायता से गम्भीरता से प्रभावित होकर अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं को भुला बैठीं। आरम्भिक काल में तो पाश्चात्यीकरण की लहर को रोकने में भारतीय समर्थ थे परन्तु स्वतंत्रता के पश्चात् आरम्भ हुई इस पाश्चात्यीकरण की ओर हुई घुड़दौड़ को रोके जाने की न तो भारतीयों में इच्छा है और न क्षमता जिसके कारण भारतीय विकृत पाश्चात्य सभ्यता के गुलाम होते जा रहे हैं और उनमें से अनेक ऐसे हैं जो भारत की अक्षमता को समझकर विदेशों में जाकर बस रहे हैं। इससे भारत की बौद्धिक क्षमता नष्ट हो रही है। अन्धे होकर पाश्चात्य सभ्यता की नकल करने से भारतीयों का सांस्कृतिक पतन हो रहा है। इसने भारत में एक ऐसे वर्ग को भी जन्म दिया है जो जनसाधारण से अपने को पृथक् मानता है और जिसका न भारतीय जन-मानस से कोई सम्पर्क है और न बौद्धिक और भावनात्मक एकता से। इससे एक बड़ी हानि यह भी हुई कि इसने स्वतन्त्रता से पूर्व ही हिन्दू और मुसलमानों में साम्प्रदायिकता की भावना को बढ़ावा दिया। वस्तुतः भारत-विभाजन का एक मुख्य कारण हिन्दू और मुसलमानों के शिक्षित मध्यम-वर्ग के पारस्परिक स्वार्थों की टकराहट था।
इस सम्बन्ध में एक अन्य प्रश्न यह भी है कि क्या अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शिक्षा के अभाव में भारत में राष्ट्रीय भावना का निर्माण और राष्ट्रीय आन्दोलन सम्भव था? विभिन्न विद्वानों और मुख्यतः यूरोपियनों ने यह विचार प्रस्तुत किया है कि अंग्रेजी शिक्षा ने ही भारतीयों को पाश्चात्य विचारों, यथा राष्ट्र, राष्ट्रीयता, जनतंत्र, स्वतंत्रता समानता आदि विचारों से परिचित कराया, विदेशों से सम्पर्क कराया, विभिन्न प्रान्तों के शिक्षित भारतीयों को विचारों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की, संगठन का मार्ग बताया तथा राजनीतिक संगठन बनाने की प्रेरणा दी। इसी कारण भारत में राष्ट्रीयता की भावना की उत्पत्ति और राष्ट्रीय आन्दोलन सम्भव हुआ। परन्तु यह विचार आंशिक रूप से ही सत्य है। निस्संदेह, भारतीयों ने अंग्रेजी शिक्षा से उपर्युक्त सभी कुछ प्राप्त किया परन्तु यदि अंग्रेजी शिक्षा भारत में न भी दी गयी होती तब भी भारत राष्ट्रीय आन्दोलन होता। अनेक अन्य राज्यों जैसे चीन, टर्की, ईरान आदि देशों के राष्ट्रीय आन्दोलन इसके प्रमाण हैं। वस्तुतः भारतीय राष्ट्रवाद के जन्म का कारण अंग्रेजी शासन के अन्तर्गत उत्पन्न हुई विभिन्न सामाजिक एवं भौतिक परिस्थितियाँ थीं। अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण, भारतीयों की बढ़ती हुई निर्धनता, नवीन सामाजिक वर्गों का उदय और भारतीयों का यह विश्वास कि अंग्रेजी शासन के अन्तर्गत उनका विकास जीवन के किसी भी क्षेत्र में सम्भव नहीं है, भारतीय राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय आन्दोलन का मूल कारण थे। अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शिक्षा का सहयोग इसमें गौण ही रहा।
महत्वपूर्ण लिंक
- ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था का प्रभाव
- ब्रिटिश शासन काल में कुटीर उद्योगों का ह्रास (पतन)
- औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के विकास के चरण
- ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘धन की निकासी’ एवं उसका परिणाम
- अंग्रेजी प्रशासन की आर्थिक नीतियां एवं प्रभाव
- भारत में औद्योगिक विकास
- ब्रिटिश काल में भारत के प्रमुख उद्योग
- आधुनिक शिक्षा का विकास- हण्टर, सैडलर, सार्जेण्ट, मैकाले, इत्यादि कमीशन
- 1857 की क्रांति- प्रारम्भ एवं विकास
- 1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण
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